यहां पढ़ें श्री काली प्रत्यंगिरा स्तोत्र संस्कृत में - kali pratyangira stotra

यहां पढ़ें श्री काली प्रत्यंगिरा स्तोत्र संस्कृत में – kali pratyangira stotra

यहां पढ़ें श्री काली प्रत्यंगिरा स्तोत्र संस्कृत में – kali pratyangira stotra : अंगिरा ऋषि कृत काली का विशेष स्तोत्र जो प्रत्येक अंगों की रक्षा करती है, श्री काली प्रत्यङ्गिरा स्तोत्र कहलाती है। काली प्रत्यंगिरा को ही काली प्रत्यंगिरा कवच भी कहा जाता है। श्री काली प्रत्यंगिरा विशेष सुरक्षा प्रदान करती है, सभी प्रकार के शत्रु बाधाओं का निवारण करती है। आगे श्री काली प्रत्यंगिरा स्तोत्र (kali pratyangira stotra) दिया गया है।

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यहां पढ़ें काली कीलक स्तोत्र संस्कृत में - kali keelak stotra

यहां पढ़ें काली कीलक स्तोत्र संस्कृत में – kali keelak stotra

यहां पढ़ें काली कीलक स्तोत्र संस्कृत में – kali keelak stotra : मंत्र की तुलना में कवच शतगुणित अधिक फलकारक कहा गया है और कवच से भी शतगुणित कीलक में बताया गया है। उत्कीलन प्रयोग में कीलक का विशेष प्रयोग भी कहा गया है किन्तु गुरु का निर्देश प्राप्त होना आवश्यक होता है।

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यहां पढ़ें काली अर्गला स्तोत्र संस्कृत में - kali argala stotram

यहां पढ़ें काली अर्गला स्तोत्र संस्कृत में – kali argala stotram

यहां पढ़ें काली अर्गला स्तोत्र संस्कृत में – kali argala stotram : यहां कालिका अर्गला स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है। इसमें दक्षिणकालिका का भी उल्लेख है अतः इसे दक्षिण कालिका अर्गला स्तोत्र भी कहा जाता है। यह अर्गला स्तोत्र बहुत ही महत्वपूर्ण है और इस स्तोत्र में रूप-सौंदर्य, सौभाग्य, सिद्धि, शत्रुवश, विद्या-वाणी आदि अनेकों कामनायें भी की गयी है।

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मां काली, काली स्तोत्र संस्कृत में - kali stotra, काली पूजा पद्धति: जानिये काली पूजा (Kali Puja) की संपूर्ण विधि

यहां पढ़ें काली स्तोत्र संस्कृत में – kali stotra

काली स्तोत्र संस्कृत में – kali stotra : यहां सभी काली स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है। यहां क्रमशः काली शांति स्तोत्र, कालिका स्तोत्र, मेना कृत काली स्तोत्र, काली ताण्डवस्तोत्र, आद्या स्तोत्र, काली स्तोत्र – रुद्रयामलोक्त, दक्षकृत काली स्तोत्र – कालिकापुराणोक्त, परशुराम कृत काली स्तोत्र – ब्रह्मवैवर्तपुराणोक्त और कामकला काली स्तोत्र दिये गये हैं।

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भगवती स्तोत्र – जय भगवती देवी नमो वरदे लिखा हुआ

भगवती स्तोत्र – जय भगवती देवी नमो वरदे लिखा हुआ

जय भगवति देवि नमो वरदे, जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भ कपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥१॥

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भवान्यष्टकम् संस्कृत – न तातो न माता

भवान्यष्टकम् संस्कृत – न तातो न माता

भगवती को प्रसन्न करने के लिये पूजा अनुष्ठानों में भवान्यष्टक बड़े भक्ति भाव से गाते देखा जाता है। इस स्तुति में भक्त स्वयं को सभी प्रकार से दीन-हीन होने की घोषणा करता है

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दस महाविद्या स्तोत्र संस्कृत में

दस महाविद्या स्तोत्र संस्कृत में

दस महाविद्यायें वास्तव में आदिशक्ति का ही अवतार है और इन महाविद्याओं की शक्तियां ही सम्पूर्ण संसार को चलाती है। इन सब महाविद्याओं का प्रयोग ज्ञान और शक्ति को अर्जन के लिए किया जाता है। इन दस महाविद्या काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्तिका, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातङ्गी माता आदि के नाम से जानी जाती है।

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दुर्गा आपदुद्धारक स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित – durga apaduddharaka stotram

दुर्गा आपदुद्धारक स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित – durga apaduddharaka stotram

दुर्गा आपदुद्धार स्तोत्र सिद्धीश्वरीतंत्र में उमामहेश्वर संवाद के रूप में वर्णित है।
इसके पाठ से सभी प्रकार के आपदाओं का निवारण होता है।
प्राणीमात्र के लिये सबसे बड़ी आपदा जन्म-मृत्यु का बंधन है।
इसके साथ ही सांसारिक जीवन में भी कई प्रकार के आपत् देखे जाते हैं।
दुर्गा आपदुद्धार स्तोत्र का पाठ करना सांसारिक आपत् का भी निवारक है।

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महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र – अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र – अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र एक बहुत ही सुंदर स्तोत्र है जिसे भगवती की अर्चना में लयपूर्वक पढ़ा जाता है। इसका प्रयोग पुष्पांजलि हेतु भी किया जा सकता है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र में कुल २२ श्लोक मिलते हैं। इस आलेख में महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित दिया गया है। इसके साथ ही भगवती के अनेकों अन्य स्तोत्रों के अनुगमन पथ भी दिये गये हैं जिसका अनुसरण करते हुये अन्य स्तोत्रों का भी अवलोकन करना सरल हो जाता है।

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देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् – देवी अपराध क्षमापन स्तोत्र

देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् – देवी अपराध क्षमापन स्तोत्र

इसका प्रार्थना का भाव इतना गंभीर है कि कुटिल जीव का भी हृदय द्रवित हो जाये। फिर जो माता स्वभावतः भक्तों के ऊपर दया करने को आतुर रहती है उनके लिये तो कहना ही क्या ?

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