यहां माता काली का अर्गला स्तोत्र (kali argala stotram) संस्कृत में दिया गया है। माता काली की उपासना में काली अर्गला स्तोत्र का पाठ करना विशेष लाभकारी होता है। काली अर्गला का स्वतंत्र पाठ भी किया जा सकता है।
यहां पढ़ें काली अर्गला स्तोत्र संस्कृत में – kali argala stotram
यहां कालिका अर्गला स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है। इसमें दक्षिणकालिका का भी उल्लेख है अतः इसे दक्षिण कालिका अर्गला स्तोत्र भी कहा जाता है। यह अर्गला स्तोत्र बहुत ही महत्वपूर्ण है और इस स्तोत्र में रूप-सौंदर्य, सौभाग्य, सिद्धि, शत्रुवश, विद्या-वाणी आदि अनेकों कामनायें भी की गयी है।
॥ श्री काली अर्गला स्तोत्र ॥
विनियोग : ॐ अस्य श्रीकालिकार्गल स्तोत्रस्य श्रीभैरवः ऋषि, अनुष्टुप् छन्दः श्रीकालिका देवता, मम सर्व सिद्धि साधने पाठे विनियोगः ॥
॥ ऋष्यादि न्यास ॥
- श्रीभैरव ऋषये नमः शिरसि ॥
- अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ॥
- श्रीकालिका देवतायै नमः हृदि ॥
- सर्वसिद्धि साधने पाठे विनियोगाय नमः अंजलौ ॥
॥ अथ श्री काली अर्गला स्तोत्रं ॥
ॐ नमस्ते कालिके देवी आद्य वीज त्रय प्रिये ।
वशमानय मे नित्यं सर्वेषां प्राणिनां सदा ॥
कूर्च युग्म ललाटे च स्थातु मे शव वाहिनी ।
सर्व सौभाग्य सिद्धि च देहि दक्षिण कालिके ॥
भुवनेशी बीज युग्मं भ्रूयुगे मुण्ड मालिनी ।
कन्दर्प रूपं में देहि महा कालस्य गेहिनि ॥
दक्षिणे कालिके नित्ये पितृ कानन वासिनी ।
नेत्र युग्मं च मे देहि ज्योतिरालोकनं महत् ॥
श्रवणे च पुनर्लज्जा वीज युग्मं मनोहरम् ।
महा श्रुति धरत्वं च मे देहि मुक्त कुन्तले ॥
ह्रीं ह्रीं बीज द्वयं देवि पातु नासा पुटे मम ।
देहि नाना विधिं मह्यं सुगन्धिं त्वं दिगम्बरे ॥
पुनस्त्रि बीज प्रथमं दन्तौष्ठ रसनादिकम् ।
गद्य पद्य मयीं वाणीं काव्य शास्त्राद्यलंकृताम् ॥
अष्टादश पुराणां स्मृतीनां घोर चण्डिके ।
कविता सिद्धि लहरीं मम जिह्वां निवेशय ॥
वह्नि जाया महादेवि ! घण्टिकायां स्थिरा भव ।
देहि मे परमेशानि ! बुद्धि सिद्धि रसायनं ॥
तुर्याक्षरी सिद्धि रूपा चित् स्वरूपा मदालिका ।
सा तु तिष्ठतु हृत्पद्मे हृदयानन्द कारणा ॥
षडक्षरी महा काली चण्ड काली कपालिनी ।
रक्ताशिनी घोर दंष्ट्रा भुज युग्मे सदाऽवतु ॥
सप्ताक्षरी महा काली महा काल रतोद्यता ।
स्तन युग्मे सूर्य कर्णी नर मुण्ड सुकुन्तला ॥
तिष्ठस्व जठरे देवि ! अष्टाक्षरि शुभ प्रदे ।
पुत्र पौत्र कलत्रादि सुहृदन्मित्राणि देहि मे ॥
दशाक्षरी महा काली महा काल प्रिया सदा ।
नाभौ तिष्ठतु कल्याणी श्मशानालय वासिनी ॥
चतुर्दशार्णवा या च जय काली सुलोचना ।
लिंग मध्ये च तिष्ठस्व रेतस्विनी ममांगके ॥
गुह्य मध्ये हर्ष काली मम तिष्ठ कुलांगने ।
सर्वांगे भद्र काली च तिष्ठ मे परमोत्मिके ॥
कालि ! पाद युगे तिष्ठ दक्षिणे मे मुखे शिवे ।
कापालिसी च या शक्तिः खड्ग मुण्ड धरा शिवा ॥
पाद द्वयांगुलिष्वङ्गे तिष्ठ मे पाप नाशिनी ।
कुल्ला देवी मुक्तकेशी रोम कूपेषु वै मम ॥
तिष्ठतु उत्तमांगे च कुरु कुल्ला महेश्वरी ।
विरोधिनी विरोधे च मम तिष्ठतु शाङ्करि ॥
विप्र चित्ता महेशानि ! चण्ड मुण्ड विनाशिनी ।
मार्गे दुर्मार्ग गमने उग्रा तिष्ठतु मे सदा ॥
प्रभा दिक्षु विदिक्षु मां दीप्ता दीप्तं करोतु मां ।
नीला शक्तिश्च पाताले घना चाकाश मंडले ॥
पातु शक्तिर्बलाका मे भुवं मे भुवनेश्वरी ।
मात्रा मम कुले पातु मुद्रां तिष्ठतु मन्दिरे ॥
मिता मे योगिनी या च सदा मित्र कुल प्रदा ।
सा मे तिष्ठतु देवेशि ! पृथिव्यां दैत्य दारिणी ॥
ब्राह्मी ब्रह्म कुले तिष्ठ मम सर्वार्थ दायिनी ।
नारायणी विष्णु माया मोक्ष द्वारे च तिष्ठ मे ॥
माहेश्वरी वृषारूढ़ा कैलाशाचल वासिनी ।
शिवतां देहि चामुण्डे ! पुत्र पौत्रादि दायिनी ॥
कौमारी च कुमाराणां रक्षार्थं तिष्ठ मे सदा ।
अपराजिता विश्व रूपा जये तिष्ठ स्वाभाविनी ॥
वाराही वेद रूपा च साम वेद परायणा ।
नारसिंही नरसिंहस्य वक्षःस्थल निवासिनी ॥
सा मे तिष्ठतु देवेशि ! पृथिव्यां दैत्य दारिणी ।
सर्वेषां स्थावरादीनां जंगमानां सुरेश्वरि ॥

स्वेदजोद्भिजाण्डजानां चराणां च भयादिकम् ।
विनाशायाभि मतिं मे देहि दक्षिण कालिके ॥
॥ फल श्रुति ॥
य इदं चार्गलं देवि ! यः पठेत् कालिकार्चने ।
सर्व सिद्धिमवाप्नोति खेचरो जायते तु सः ॥
॥ इति कालिकाऽर्गला स्तोत्रं ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।