गणेश कवच संस्कृत में - Ganesha Kavacham

गणेश कवच संस्कृत में – Ganesha Kavacham

गणेश कवच संस्कृत में – Ganesha Kavacham : जब भावनात्मक पूजा की बात आती है, तो भाव की प्राथमिकता होती है, जबकि मंत्र-स्तोत्र के लिए भाषा का महत्व भी बढ़ जाता है। देववाणी, संस्कृत में मंत्रों का पाठ विशेष लाभकारी है, जैसे गणेश कवच। भगवान गणेश, जिन्हें प्रथम पूज्य माना जाता है, के कवचों में सुरक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है। विभिन्न रूपों में तीन प्रमुख कवच हैं: मुद्गलकृत, महागणपति, और उच्छिष्ट। इन कवचों में नियमित जप कर मानसिक शांति और सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है। संस्कृत में ये मंत्र चारों ओर से रक्षा प्रदान करते हैं और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता दायक होते हैं।

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गणेश स्तुति मंत्र - ganesh stuti

गणेश स्तुति मंत्र – ganesh stuti

गणेश स्तुति मंत्र – ganesh stuti : यहां एकदन्त स्तोत्र, गणपतिस्तव, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणाधिपाष्टक, श्री सिद्धिविनायक स्तोत्र, सन्तानगणपति स्तोत्र, श्रीगणपतिषोडशनामावलि स्तोत्र, रुद्रयामलोक्त श्री विनायक स्तवराज, गणेशाष्टक, गणेश मङ्गलाष्टक इत्यादि अनेकों महत्वपूर्ण स्तोत्र दिये गये हैं जो आपके लिये उपयोगी हो सकते हैं।

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गणेश सहस्रनाम स्तोत्र - ganesh sahasranama stotram

गणेश सहस्रनाम स्तोत्र – ganesh sahasranama stotram

गणेश सहस्रनाम स्तोत्र – ganesh sahasranama stotram : इस आलेख में भगवान गणेश का सहस्रनाम दिया गया है। इसके साथ है महागणपति सहस्रनाम स्तोत्र भी दिया गया है।

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गणेश पूजा - गणेश अष्टोत्तरशत नाम

गणेश अष्टोत्तर शतनामावली | गणेश पूजा मंत्र | ganesha ashtottara shatanamavali

गणेश अष्टोत्तर शतनामावली | गणेश पूजा मंत्र | ganesha ashtottara shatanamavali : भगवान गणपति की पूजा में 21 नामों से पूजा करने का महत्व तो है ही इसके साथ विशेष पूजन में गणेश अष्टोत्तर शतनामावली से भी दूर्वा, मोदक, विविध फल आदि द्रव्यों द्वारा पूजन किया जाता है। सिद्धिविनायक पूजा विधि और संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि पूर्व से प्रकाशित है और उन पुजनों में 21 नामों से अतिरिक्त यदि अष्टोत्तर शतनाम से भी पूजा करनी हो तो यहां दिया गया है।

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नमक चमक रुद्राभिषेक – आगमोक्त

नमक चमक रुद्राभिषेक – आगमोक्त (अनुपनीत-प्रयोग) namak chamak mantra

नमक चमक रुद्राभिषेक – आगमोक्त (अनुपनीत-प्रयोग) namak chamak mantra : अनुपनीतों के लिये आगमोक्त “नमक चमक रुद्राभिषेक” की विधि है। इस आलेख में आगमोक्त नमक चमक स्तोत्र दिया गया है जो विशेष लाभकारी है।

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केतु के 108 नाम (केतु अष्टोत्तर शतनामावली) - Ketu Ashtottara Shatanamavali

केतु के 108 नाम (केतु अष्टोत्तर शतनामावली) – Ketu Ashtottara Shatanamavali

केतु के 108 नाम (केतु अष्टोत्तर शतनामावली) – Ketu Ashtottara Shatanamavali : राहु की तरह ही केतु भी छाया ग्रह ही है, अर्थात सूर्य और चंद्र पथ का दूसरा संक्रमण बिंदु है और इसकी भी पिण्डात्मक उपस्थिति नहीं है। जिस दैत्य का सिर कटा हुआ धर राहु है वही सिर केतु है। अष्टोत्तरशतनाम का एक विशेष लाभ ज्योतिषियों के लिये भी होता है कि इसके द्वारा फलादेश संबंधी ज्ञान भी मिलता है।

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राहु के 108 नाम (राहु अष्टोत्तर शतनामावली) - Rahu Ashtottara Shatanamavali

राहु के 108 नाम (राहु अष्टोत्तर शतनामावली) – Rahu Ashtottara Shatanamavali

राहु अष्टोत्तर शतनामावली – Rahu Ashtottara Shatanamavali : राहु वास्तव में सूर्य और चंद्र पथ का एक संक्रमण स्थल है जो सदा वक्रमार्ग पर बढ़ता रहता है, इसलिये इसे छाया ग्रह भी कहा जाता है। राहु को अशुभ और पाप ग्रह कहा जाता है। चंद्र या गुरु से साथ राहु की युति हो तो विशेष अशुभफल प्रदायक योग का निर्माण करता है।

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शनि अष्टोत्तर शतनामावली - Shani 108 names

शनि अष्टोत्तर शतनामावली – Shani 108 names

शनि अष्टोत्तर शतनामावली – Shani 108 names : शनि स्वभावतः एक क्रूर व अशुभ ग्रह बताया गया है किन्तु जिस प्रकार गुरु शुभ व सौम्य ग्रह होने पर भी दृष्टि व युति में शुभद होते हैं, जिस भाव में उपस्थिति हो उस भाव के फल का ह्रास ही करते हैं उसी प्रकार शनि की दृष्टि में ही अशुभवत्व होता है, उपस्थिति में भाव के लिये शुभद ही होता है।

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शुक्र अष्टोत्तर शतनामावली (शुक्र ग्रह के 108 नाम) - Shukra ashtottara shatanamavali

शुक्र अष्टोत्तर शतनामावली (शुक्र ग्रह के 108 नाम) – Shukra ashtottara shatanamavali

शुक्र अष्टोत्तर शतनामावली (शुक्र ग्रह के 108 नाम) – Shukra ashtottara shatanamavali : शुक्र ग्रह के 108 नाम वाले स्तोत्र को शुक्र अष्टोत्तरशत नामावली कहा जाता है। स्तोत्रों में देवताओं के 108 नाम अर्थात अष्टोत्तरशत नामों का भी विशेष होता है।

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बृहस्पति अष्टोत्तर शतनामावली - Guru ashtottara shatanamavali

बृहस्पति अष्टोत्तर शतनामावली – Guru ashtottara shatanamavali guru ke 108 Naam

बृहस्पति अष्टोत्तर शतनामावली – Guru ashtottara shatanamavali : गुरु स्वाभाविक रूप से शुभ और सौम्य ग्रह हैं, गुरु और बृहस्पति दो मुख्य नामों से प्रसिद्ध हैं। गुरु की शुभता दृष्टि-युति में बताई गयी है, किन्तु स्थिति में नहीं। अर्थात जिन-जिन ग्रहों-भावों को देखें तत्तत संबंधी फलों में शुभता की वृद्धि व अशुभता का निवारण करते हैं, किन्तु जिस भाव में उपस्थित हों उस भाव संबंधी फलों की हानि करते हैं।

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