ये क्या हो गया ? शंकराचार्य शास्त्रार्थ करेंगे या पदत्याग – दो ही विकल्प हैं एक ओर गड्ढा दूसरी ओर खाई।

ये क्या हो गया ? शंकराचार्य शास्त्रार्थ करेंगे या पदत्याग – दो ही विकल्प हैं एक ओर गड्ढा दूसरी ओर खाई

युक्तियुक्तं वचो ग्राह्यं बालादपि शुकादपि । अयुक्तमपि न ग्राह्यं साक्षादपि बृहस्पतेः ॥

“आया ऊंट पहाड़ तले” और भी अनेक मुहावड़े याद आ रहे हैं। रामचरित मानस की चौपाई “जहाँ कुमति तहं विपति निदाना”, हमारे ग्रामीण राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्ति “जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है” इत्यादि कितने कहूं। दोहे, मुहावड़े लिखते हुये लेख को तो नहीं पूरा किया जायेगा।

समाचार से ज्ञात हुआ है कि शंकराचार्य पद पर जो आसीन हैं उनको मिली शास्त्रार्थ की चुनौती मिली है। देखना ये है कि क्या करते हैं ?

  • श्रीमद् जगद्गुरु वैदेही वल्लभ देवाचार्य का कहना है कि जिस शंकराचार्य ने प्राण-प्रतिष्ठा के इस आधार को लेकर अपना विरोध दर्ज कराया है, उन्हें स्वयं सनातन धर्म शास्त्र का ज्ञान नहीं है।
  • उनका कहना है कि तुलसी पीठ के प्रमुख जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य सहित स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती भी इसके आधार को धर्म शास्त्र सम्मत होने की विधिवत पुष्टि कर चुके हैं।
  • इसके बाद भी अगर शंकराचार्य आग्रह कर रहे हैं तो उनको शास्त्रार्थ की खुली चुनौती है।
  • उन्होंने कहा है कि शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती मुझसे या जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य से इस विषय पर शास्त्रार्थ करें, जो भी पराजित होगा वह जल समाधि लेगा।
वैदेही वल्लभ देवाचार्य का स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शास्त्रार्थ की चुनौती
वैदेही वल्लभ देवाचार्य का स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शास्त्रार्थ की चुनौती

वैदेही वल्लभ देवाचार्य रामानंद संप्रदाय की सबसे बड़ी पीठ राजस्थान की विजय राम रावल द्वारा पीठ पाली के पीठाधीश्वर हैं।

एक और चुनौती : पुरी पीठ के ही भूतपूर्व पञ्चाङ्गकार आचार्य विनय झा जी ने पुरी शंकराचार्य निश्चलानन्द सरस्वती जी को राममन्दिर प्राणप्रतिष्ठा मुहूर्त को अशास्त्रीय कहने पर शास्त्रार्थ की चुनौती दे दी है। साथ ही विनय झा जी ने कहा है यदि निश्चलानन्द सरस्वती जी उत्तर न दे पाएँ तो पद त्याग दें।

उन्होंने फेसबुक पर चुनौती दिया है यहाँ उनके फेसबुक पोस्ट का लिंक दिया गया है।

  • लीजिये अब विरोध करने वाले शंकराचार्यों को शास्त्रार्थ की चुनौती भी मिल गयी है। क्या करेंगे शास्त्रार्थ या शंकराचार्य पदत्याग।
  • क्योंकि दो ही विकल्प हैं या तो शास्त्रार्थ करें या पदत्याग करें। एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई। शंकराचार्य मर्यादा के अनुसार आप शास्त्रार्थ से मुंह नहीं मोड़ सकते।
  • तीसरा विकल्प होता ही नहीं है। यदि चुनौती स्वीकार नहीं करते तो इसका तात्पर्य यही होता है कि बिना शास्त्रार्थ किये पराजित हो गए।
  • इस वीडियो में इस विषय पर बहुत विस्तृत चर्चा की गई है। यह वीडियो जयपुर डाइयलॉग्ज़ यूट्यूब चैनल पर है।
Challenge to Shankarachrya – चुनौती | स्वीकार करेंगे या गद्दी छोड़ेंगे? | Nityanand Mishra

कर्मकाण्ड विधि द्वारा भी इस विषय में उत्तर और प्रमाण प्रस्तुत किया जा चुका है। यदि आपने नहीं पढ़ा है तो यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

इसके साथ ही कर्मकाण्ड विधि द्वारा इस विवाद से प्रकट हुये नये विषय की चर्चा भी की गयी है : शंकराचार्य पद का महत्व – ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य का योगदान; शिखर संबंधी नया विषय प्रकट हुआ

कर्मकाण्ड विधि द्वारा ये भी बताया गया है कि शंकराचार्यों को कर्मकाण्ड में हस्तक्षेप करने का अधिकार ही नहीं है। फिर भी बारंबार राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में विघ्न करने का प्रयास किया गया।

ये क्या हो गया ? शंकराचार्य शास्त्रार्थ करेंगे या पदत्याग - दो ही विकल्प हैं एक ओर गड्ढा दूसरी ओर खाई।
शंकराचार्य शास्त्रार्थ करेंगे या पदत्याग

कुछ ऐसे भी ब्राह्मण हैं जिन्हें ये पढ़ा दिया गया है कि शंकराचार्य से प्रश्न ही नहीं किया जा सकता उनकी केवल पूजा की जा सकती है। तो बता दूं कि आदि शंकराचार्य का जीवन शास्त्रार्थ करते हुये प्रश्नोत्तर में ही व्यतीत हुआ था और इसी कार्य के लिये चार मठ उन्होंने स्थापित भी किया था कि भारत में उचित-अनुचित का निर्णय शास्त्रार्थ से होगा।

शंकराचार्य पद पूज्य है। इस विषय में किसी को कोई शंका नहीं है। किन्तु शंकराचार्य पद पर आसीन भी वही व्यक्ति हो जो योग्य हो। योग्यता निर्धारण राजनीतिक प्रक्षेपण से नहीं शास्त्रार्थ से ही हो सकती है। शंकराचार्यों का पद पर आसीन होना भी विवादित ही है, जो राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में किये गये विघ्नों से और पुष्ट होता है।

ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य पद पर आसीन उमाशंकर पाण्डेय अथवा जो भी सही नाम है न्यायालय द्वारा भी रोक लगाया जा चुका है। ऊपर से राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में विघ्न उपस्थित करने के कारण और समस्या उत्पन्न हो गयी है।

पद और पदासीन व्यक्ति में अंतर समझना आवश्यक होता है। पदासीन व्यक्ति सर्वथा पद के योग्य है यह स्वतः सिद्ध नहीं होता, इसे सिद्ध करना पड़ता है। शंकराचार्य पद पर आसीनस्थों के लिये तो यह स्वर्णिम अवसर है कि वो देश की जनता के समक्ष अपनी योग्यता भी सिद्ध करें।

यदि किसी पद पर आसीन हैं तो उसके लिये अपनी योग्यता सिद्ध करने में क्या आपत्ति हो सकती है ? यदि योग्यता सिद्ध नहीं करते तो भी ये स्पष्ट हो जायेगा कि …..

शंकराचार्य पद पर आसीन होने के लिये तो ये नियम बनना चाहिये कि प्रतिवर्ष शास्त्रार्थ द्वारा योग्यता सिद्ध करनी होगी। जहां आदि शंकराचार्य शास्त्रार्थ-ज्ञान के पर्याय थे वहां उनके मठों में पदस्थापित व्यक्तियों को वर्ष में एक बार राष्ट्रस्तरीय शास्त्रार्थ तो अवश्य करना चाहिये। विश्व को ज्ञानीविहीन नहीं समझना चाहिये। एकोऽहं द्वितीयोनास्ति सिद्ध करना चाहिये।

एक अन्य विषय भी उत्पन्न हुआ है। जिन पञ्चाङ्गों में 22 जनवरी 2024 को देवादि प्रतिष्ठा मुहूर्त नहीं दिया गया है उसकी उपयोगिता पर भी प्रश्नचिह्न उपस्थित हो गया है। क्योंकि उन पञ्चाङ्गों के कारण ही आज शंकराचार्य ने बार-बार मुहूर्त नहीं होने का प्रश्न खड़ा किया। वास्तविक दोषी तो ये पंचांगकर्ता प्रतीत होते हैं।

brahman
दैवज्ञ ब्राह्मण

आप असहमत हो सकते हैं, अपने विचार-प्रश्न रख सकते हैं इसका अधिकार सबको है। यदि सबको अधिकार है तो आपसे प्रश्न करने का अधिकार क्या किसी को नहीं है ?

  • फिर भी कर्मकाण्ड विधि को इस बात का हर्ष के कि उनके द्वारा शिखर सम्बन्धी प्रश्न बार-बार उठाने के कारण एक नया विषय प्रकट हुआ की देश के लाखों मंदिरों में शिखर निर्माण की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिये।
  • और इस विषय के प्रकट होने का श्रेय भी ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य को ही जाता है।
  • यदि देश इस विषय को स्वीकार करके आगे बढ़े, इस विषय की महत्ता को समझे तो पुनः बारम्बार शंकराचार्य को नमन करना चाहिये।
  • लेकिन पिछली बात भुलाकर शंकराचार्य को भी इस विषय पर सक्रिय होना चाहिये।
  • यदि सागरमंथन से अमृत प्राप्त हुआ है तो उसका पान चाहिये।

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सुशांतिर्भवतु सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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