आधुनिक इतिहास का एक घृणित सत्य है कि इतिहासकार चाटुकार हो गये और राष्ट्र और संस्कृति के लिये योगदान करने वालों का नाम छुपाया उचित स्थान और सम्मान नहीं दिया, जिसका दूसरा पहलू यह होता है कि इतिहास में उन्हें महिमामंडित किया गया जो अनधिकारी थे, या इस प्रकार से भी कहा जा सकता है कि इतिहास में लूट मची रही और कुछ लुटेरे श्रेय की लूट करते रहे। इस आलेख में एक ऐसे वीर योद्धा के बारे में जानेंगे जिसे इतिहास ने उचित स्थान और सम्मान नहीं दिया।
इतिहास में जिस ब्राह्मण योद्धा को इस कारण जगह नहीं मिला वो पंडित देवीदीन पाण्डे जो अयोध्या से ६ मील दूर सनेथू गांव के रहने वाले थे। इनका जन्म सर्यूपारीण ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जो कि एक कर्मकांडी पुरोहित थे।
हिंदुस्तानी योद्धा
मीर बांकी की सेना से भिड़ने वाले अयोध्या के देवीदीन पांडे सूर्यवंशी क्षत्रियों के कुल पुरोहित थे। देवीदीन पांडे शास्त्र के साथ शस्त्र विद्या में भी पारंगत थे। शास्त्र ज्ञान के साथ-साथ वो मलखंभ, कुश्ती के लिये भी चर्चित थे। उनकी विद्वत्ता और वीरता की चर्चा दूर-दूर तक होती थी।
पंडित देवीदीन पाण्डे एक ऐसे हिंदुस्तानी योद्धा थे जिनको कभी भुलाया नहीं जा सकता लेकिन इतिहास में पूर्वाग्रह के कारण इनको स्थान नहीं दिया गया।
इतिहास में पूर्वाग्रह के कारण जिसे छुपाया गया
पंडित देवी दीन पाण्डे के बारे में यदि आज हम नहीं जानते तो ये हमारी गलती नहीं है। ये उन देशविरोधी इतिहासकारों का कुचक्र है जिन्हें स्वतंत्र भारत में पूजा गया। इतिहास में पूर्वाग्रह के कारण जिसे छुपाया गया हर राम भक्त को उस पंडित देवी दीन पाण्डे के बारे में अवश्य जानना चाहिये।
इतिहासकार कनिंघम; जो कि हिन्दुस्तानी नहीं था, ने अपनी कृति ‘लखनऊ गजेटियर’ के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखा है कि : “1,74,000 हिन्दुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीर बाकी राममंदिर ध्वस्त करने के अभियान में सफल हुआ।” लेकिन स्वतंत्र भारत के सनातन द्रोही इतिहासकारों ने मौन साध लिया ये भूल गये कि भविष्य में वो भी इतिहास के ही भाग होंगे और देश उन्हें सनातन द्रोही मानेगा।
पंडित देवीदीन पांडे
अयोध्या से ६ मील दूर सनेथू नाम का एक गांव है जहाँ के लोगों ने पगड़ी, छाता, जूता-चप्पल सब त्याग दिया क्योंकि राम लला का मंदिर नहीं बचा सके। अब जबकि राम मंदिर दुबारा बन रहा है और पुनः राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है तो सम्भवतः इन कड़े नियमों को तोड़ें।
- इसी गांव में सूर्यवंशी क्षत्रियों के पुरोहित परिवार थे जिनमें देवी दीन पाण्डे का जन्म हुआ था।
- ब्राह्मणों का काम तो अध्ययन-अध्यापन, यज्ञ-दान आदि होते हैं किन्तु इनकी विलक्षण कुण्डली के अनुसार ही संभवतः परिवार वालों ने इन्हें शास्त्र के साथ-साथ शस्त्र विद्या का भी ज्ञाता बनने में अड़चन नहीं किया।
- जिस कारण पंडित देवी दीन पाण्डे मात्र विद्वान पंडित ही नहीं बने बल्कि एक वीर ब्राह्मण योद्धा भी बने।
- इनके ज्ञान के साथ-साथ वीरता की गाथा भी आस-पास के गांवों में होती थी।
- इनका मानना था कि धर्म की रक्षा का भार ब्राह्मणों को लेना चाहिये और धर्म की रक्षा के लिये केवल शास्त्रार्थ ही नहीं युद्ध भी करना पड़े तो अवश्य करना चाहिये। धर्म की रक्षा के लिये प्राण भी न्योछावर करना पड़े तो सहर्ष करना चाहिये।
- क्योंकि इनके समय में ही मुगलों का आक्रमण हो रहा था और इसीलिये इन्होंने देखा कि मरने के दो तरीके हैं एक सीधे-सीधे मर जाना और दूसरा शत्रुओं को मारकर मरना, और इसीलिये इन्होंने युद्ध विद्या भी सीखी।
- बिना लड़े फ्री में जान दे देना इनको स्वीकार नहीं था।
जब मीर बांकी के नेतृत्व वाली मुगल सेना (बाबर की सेना) अयोध्या राम मंदिर को तोड़ रही थी तो राम भक्त, धर्म योद्धा पंडित देवीदीन पाण्डे युद्ध की अलख जगा रहे थे, हिन्दू समाज को जागृत कर रहे थे। जिसका परिणाम यह हुआ कि आस-पास के केवल क्षत्रिय ही नहीं बाकि गांववाले 70000 – 90000 लोग भी इनके साथ लड़ने को तैयार हुये।
महान हिन्दुस्तानी योद्धा और श्रीरामभक्त पंडित देवीदीन पाण्डेय के विषय में कुछ जानकारी हमें ‘तुजुके बाबरी’ से भी मिलती है। यह घटना 1528 ई. की है।
जब मुग़ल सेना राममंदिर को ध्वस्त करने के उद्देश्य से अयोध्या की ओर बढ़ी तब पण्डित देवीदीन पाण्डे ने पौरोहित्य कर्म त्यागकर आसपास के ब्राह्मणों व क्षत्रियों को लेकर बाबर सेना के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए शस्त्र उठा लिया और मीर बांकी के नेतृत्व वाली मुगल सेना से युद्ध किया।
- जब भीटी नरेश महताबसिंह श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या की रक्षा के लिये युद्ध कर रहे थे तो सात-आठ दिन व्यतीत हो जाने के पश्चात यह ब्राह्मण योद्धा पंडित देवीदीन पाण्डे अचानक रणभूमि प्रकट हो गया।
- पंडित देवीदीन पाण्डेय के देशभक्ति के नेतृत्व में लगभग 70,000 – 90000 युवा और देशभक्त श्रीरामजन्म भूमि की रक्षाके लिये युद्ध में कूदे थे।
- ये युद्ध इतना विकराल था की युद्ध करते समय पण्डित देवीदीन पाण्डे जी ने 700 मुगलों को अपनी धारदार तलवार से काट डाला। मीर बांकी के नेतृत्व वाली बाबरी सेना तीतर-बितर हो रही थी।
- देवीदीन पाण्डेय के नेतृत्व में जन्मभूमि पर जबरजस्त धावा बोल दिया इस एकाएक हुए आक्रमण से मीरबाँकी घबरा उठा।
- म्लेच्छ सेना से लगातार ५ दिनों तक युद्ध हुआ म्लेच्छ सेना संख्या बल में काफी बड़ी थी और रामभक्त कम मगर राम के लिए प्राण देने के लिये तैयार।
- एक ओर युद्ध में भी धर्म और नियम का पालन करने वाला पण्डित देवीदीन पाण्डे नेतृत्व कर रहा था।
- तो दूसरी ओर छल-बल से लड़ने वाले नीच म्लेच्छ सेना का नेतृत्व मीर बांकी कर रहा था।
- विशाल सेना के साथ रहते हुये भी नीच सोच वाले म्लेच्छों का नेतृत्व करने वाला मीर बांकी अचंभित था एक बार तो उसे अपने प्राण भी संकट में दिखा।
- म्लेच्छों के लिये क्या धर्म, क्या नियम, क्या नीति ? उनका तो बल ही छल और प्रपञ्च होता है जो आज भी होता है और 1947 में स्वतंत्र होने के बाद भी राम मंदिर 2024 में बन रहा है।
- म्लेच्छ सेना ने प्रपंच किया और छल करके पीछे से पंडित देवीदीन पाण्डे के सिर पर तलवार से प्रहार कराया।
- कुछ लोगों का कहना है कि कोई आस-पास फटक पाता था इसलिये दूर से ही पत्थर मारा जिससे देवीदीन पाण्डे का सिर फट गया।
- फिर भी वीर हो तो ऐसा देवीदीन पाण्डे ने गमछा बांधकर तब तक युद्ध किया जब तक की वीरगति को प्राप्त नहीं हो गये और हिन्दुस्तानियों को ये सिखा गये कि भविष्य में देश और धर्म की रक्षा के लिये कोई एक वर्ण या जाति नहीं लड़ेगी, सबको मिलकर लड़ना होगा।
- पंडित देवीदीन पाण्डे के वीरगति प्राप्त हो जाने के बाद मुगल सेना की जीत हुई। पंडित देवीदीन पाण्डे ने अपने जीते जी श्रीराममंदिर को आंच नहीं आने दी।
- जिस दिन पंडित देवीदीन पाण्डे वीरगति को प्राप्त करके अमर हुये वो 1528 ई. की 9 जून थी।
आज जब श्रीराम मंदिर बन रहा है और राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है तो पंडित देवीदीन पाण्डे की आत्मा को शान्ति मिली होगी। हर सनातनी इनका ऋणी है और राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में इनके वंशजों को भी उचित सम्मान दिया जाना चाहिये।
पंडित देवीदीन पाण्डे के विषय हम क्या लिखें, कितना लिखें, कैसे लिखें, लिखने में स्वयं को असमर्थ पा रहा हूँ जब बाबर की लिखी बात पढ़ता हूँ।
बाबर ने स्वयं लिखा है – ‘‘जन्मभूमि को शाही अख्तियारात से बाहर करने के लिए दो चार हमले हुए, उनमें से सबसे बड़ा हमलावर देवीदीन पाण्डे का था। इस व्यक्ति ने एक दिन में केवल तीन घंटे में ही गोलियों की बौछार के रहते हुए भी शाही फौज के सात सौ (700) सैनिकों का वध किया। एक सिपाही की ईंट से उसकी खोपड़ी घायल हो जाने के उपरांत भी वह अपनी पगड़ी के कपड़े से सिर बांधकर इस कदर लड़ा कि किसी बारूद की थैली को जैसे पलीता लगा दिया गया हो।’’
जब राम लला की मंदिर बन रही है और राम लला की प्रतिष्ठा होने जा रही है तब भी म्लेच्छों के वंशज बोल रहे हैं की हम फिर से इतिहास दुहरायेंगे तो इसके लिये पण्डित देवीदीन पाण्डे को भी तैयार रहना होगा। अब धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिये १ नहीं करोड़ों पंडित देवीदीन पाण्डे बनना होगा ताकि कोई म्लेच्छ दुबारा न तोड़े, देश दुबारा परतंत्र न हो।
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ सुशांतिर्भवतु ॥ सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।