माता दुर्गा की विशेष पूजा अराधना में ध्यान मंत्रों द्वारा ध्यान किया जाता है। वास्तविक ध्यान में मंत्र की अनिवार्यता नहीं होती है, किन्तु वास्तविक ध्यान में स्थित होना कठिन होता है तथापि ध्यान का में स्थित न होने पर भी ध्यान का फल प्राप्त हो इसके लिये मंत्रों का प्रयोग करना अपेक्षित होता है। यहां माँ दुर्गा ध्यान मंत्र (durga dhyan mantra) संस्कृत में दिया गया है।
यहां पढ़ें माँ दुर्गा ध्यान मंत्र संस्कृत में – durga dhyan mantra
“जटाजूटसमायुक्तामर्द्धेन्दुकृतशेखराम्” में कुल १३ श्लोक हैं जो विशेष पूजा आदि करते समय पाठ किया जाता है। पहले माता दुर्गा के ध्यान का “जटाजूटसमायुक्ताम्” 13 श्लोकों वाला ध्यान मंत्र दिया गया है और तदनंतर अन्य अनेकानेक ध्यान मंत्र दिये गये हैं। सभी ध्यान मंत्र संस्कृत में हैं क्योंकि मंत्र संस्कृत में होते हैं और मंत्रों के संस्कृत में होने का कारण है संस्कृत ही देववाणी है।
जटाजूटसमायुक्तामर्द्धेन्दुकृतशेखराम् ।
लोचनत्रयसंयुक्तां पूर्णेन्दुसदृशाननाम् ॥१॥
अतसीपुष्पवर्णाभां सुप्रतिष्ठां सुलोचनाम् ।
नवयौवनसम्पन्नां सर्वाभरणभूषिताम् ॥२॥
सुचारुदशनां तद्वत् पीनोन्नतपयोधराम् ।
त्रिभङ्गस्थानसंस्थानां महिषासुरमर्दिनीम् ॥३॥
मृणालायतसंस्पर्शदशबाहुसमन्विताम् ।
त्रिशूलं दक्षिणे पाणौ खड्गं चक्रं क्रमादधः ॥४॥
तीक्ष्णबाणं तथा शक्तिं दक्षिणे सन्निवेशयेत् ।
खेटकं पूर्णचापञ्च पाशमङ्कुशमेव च ॥५॥
घण्टां वा परशुं वापि वामतः सन्निवेशयेत् ।
अधस्तान्महिषं तद्वद्विशिरस्कं प्रदर्शयेत् ॥६॥
शिरश्छेदोद्भवं तद्वद्दानवं खड्गपाणिनम् ।
हृदि शूलेन निर्भिन्नं निर्यदन्त्रविभूषितम् ॥७॥
रक्तरक्तीकृताङ्गञ्च रक्तविस्फुरितेक्षणम् ।
वेष्टितं नागपाशेन भ्रुकुटीभीषणाननम् ॥८॥
सपाशवामहस्तेन धृतकेशञ्च दुर्गया ।
वमद्रुधिरवक्त्रञ्च देव्याः सिंहं प्रदर्शयेत् ॥९॥
देव्यास्तु दक्षिणं पादं समं सिंहोपरिस्थितम् ।
किञ्चिदूर्द्ध्वं तथा वाममङ्गुष्ठं महिषोपरि ॥१०॥
शत्रुक्षयकरीं देवीं दैत्यदानवदर्पहाम् ।
प्रसन्नवदनां देवीं सर्व्वकामफलप्रदाम् ।
स्तूयमानञ्च तद्रूपममरैः सन्निवेशयेत् ॥११॥
उग्रचण्डा प्रचण्डा च चण्डोग्रा चण्डनायिका ।
चण्डा चण्डवती चैव चण्डरूपातिचण्डिका ॥१२॥
आभिः शक्तिभिरष्टाभिः सततं परिवेष्टिताम् ।
चिन्तयेत् सततं दुर्गां धर्मकामार्थमोक्षदाम् ॥१३॥
॥ इति श्रीदुर्गाध्यानं सम्पूर्णम् ॥
॥ अन्यान्य ध्यान मंत्र ॥
सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिर्भुजैः
शङ्खं चक्रधनुः शरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता ।
आमुक्ताङ्गदहारकङ्कणरणत्काञ्ची रणन्नूपुरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्नेल्लसत्कुण्डला ॥
मातर्मे मधुकैटभघ्नि महिषप्राणापहारोद्यमे
हेलानिर्जितधूम्रलोचनवधे हे चण्डमुण्डार्दिनि ।
निश्शेषीकृतरक्तबीजदनुजे नित्ये निशुम्भापहे
शुम्भध्वंसिनि संहराशु दुरितं दुर्गे नमस्तेऽम्बिके ॥
हेमप्रख्यामिन्दुखण्डार्धमौलिं
शङ्खारिष्टाभीतिहस्तां त्रिणेत्राम् ।
हेमाब्जस्थां पीतवस्त्रां प्रसन्नां
देवीं दुर्गां दिव्यरूपां नमामि ॥
उद्यद्विद्युत्करालाकुलहरिगलसंस्थारिशङ्खासिखेटे-
ष्विष्वासाख्यत्रिशूलानरिगणभयदा तर्जनीं सन्दधाना ।
चर्मास्युत्तीर्णदोर्भिः प्रहरणनिपुणाभिर्वृता कन्यकाभिः
दद्यात्कार्शानभीष्टान् त्रिणयनललिता चापि कात्यायनी वः ॥
अरिशङ्खकृपाणखेटबाणान्
सुधनुः शूलककर्तरीं तर्जनीं दधाना ।
भजतां महिषोत्तमाङ्गसंस्था
नवदूर्वासदृशीश्रियेऽस्तु दुर्गा ॥
ॐ कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां
शङ्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम् ।
सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं
ध्यायेद्दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः ॥
ॐ विद्युद्धामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां
कन्याभिः करवालखेटविलसधस्ताभिरासेविताम् ।
हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं
बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ॥
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