जब किसी नये घर का निर्माण आरंभ करते हैं तो उसके लिये जो पूजा की जाती है उसे गृहारंभ या भूमि पूजन कहा जाता है। गृहारंभ का सर्वप्रथम शुभ मुहूर्त बनवाया जाता है तत्पश्चात गृहारंभ सामग्रियां व्यवस्थित की जाती है फिर शुभ मुहूर्त में भूमि-वास्तु आदि पूजन करके गृहारंभ किया जाता है। यहां स्वयं का घर बनाते समय गृहारंभ या भूमि पूजन विधि की कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई गयी है जिसे ध्यान में रखनी चाहिये। इस प्रकार यहां गृहारंभ से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हुये गृहारंभ विधि दी गयी है।
भूमि पूजन विधि – गृहारंभ विधि पूजन मंत्र सहित
गृहारंभ विधि को समझने से पूर्व गृहारम्भ से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को समझना अत्यावश्यक है इस कारण हम गृहारंभ विधि से पूर्व गृहारंभ विषयक कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का अवलोकन करेंगे :
गृहारंभ से संबंधित महत्वपूर्ण बातें
- गृहारंभ को उत्सव की तरह मनाना चाहिये।
- सर्वप्रथम भूमि पर पञ्चगव्य का छिड़काव करना चाहिये।
- अग्निकोण अथवा ईशानकोण में एक खात (गड्ढा) करना चाहिये।
- पञ्चाङ्ग से प्राप्त राहु (काल) दिशा के आधार पर भी खात की दिशा निर्धारित होती है जो 3-3 महीने पर बदलती है।
- गृहद्वार का पूर्व विचार करके सम्मुख और दक्षिण काल वाले समय का गृहारंभ में त्याग करना चाहिये।
- गृहारंभ विद्वान ब्राह्मण के निर्देशानुसार करना चाहिये।
- गृहारंभ में ब्राह्मण के साथ-साथ प्रधान शिल्पी (राज मिस्त्री) को भी वस्त्रादि देना चाहिये।
- गृह निर्माण में बहुत सारे जीवों की हिंसा होती है अतः दोष-निवारण हेतु गायत्री जप अवश्य करना चाहिये।
- हिंसा आदि दोषों के दुष्परिणाम भी संभावित होते हैं अतः उनके निवारण हेतु महामृत्युञ्जय जप अवश्य कराना चाहिये।
- सामान्य घरों में सामर्थ्यानुसार पुरोहित द्वारा यथासंभव महामृत्युञ्जन जप कराना चाहिये।
- बड़े बिल्डिंगों के निर्माण में न्यूनतम सवा लाख (1,25,000) महामृत्युंजय जप कराना चाहिये।
- गृह निर्माण की वस्तुओं का संग्रह पंचक (भदवा) में न करे।
- गृह निर्माण में बंधन वाला कार्य भी पंचक (भदवा) में नहीं करे ।
भूमि पूजन विधि की प्रारंभिक तैयारी :
गृहारंभ में भी नान्दीमुख श्राद्ध अपेक्षित होता है अतः पूजन से पूर्व ही मातृका पूजा, वसोर्द्धारा और नान्दीमुख श्राद्ध कर ले – वृद्धि श्राद्ध विधि अर्थात आभ्युदयिक श्राद्ध विधि

- पूर्व निर्धारित स्थान पर अथवा अग्निकोण या ईशानकोण में 2.5 ढ़ाई हाथ या सवा हाथ का खात (गड्ढा) बना लें।
- गोबर से गड्ढा एवं चारों ओर लीप लें।
- ब्राह्मण के लिये उत्तराभिमुख एवं स्वयं के लिये पूर्वाभिमुख बैठने के लिये आसन बिछा लें।
- पूजन सामग्रियां व्यवस्थित कर लें।
- खात के ईशान भाग में भूमि के ऊपर ही (खात में नहीं) पूजन आरम्भ करें।
- पवित्रीकरण के बाद पञ्चगव्य निर्माण करके प्राशन करें और संपूर्ण वास्तु भूमि पर प्रोक्षण करें।
- धूप-दीप जलाकर दिग्बन्धन, स्वस्तिवाचन, पञ्चदेवता एवं विष्णु पूजन, संकल्प करके ब्राह्मण वरण करें।
गृहारंभ पूजन विधि
संकल्प विधि : त्रिकुशा धारण कर हाथ में पान, सुपारी, तिल, जल, चंदन, पुष्प, द्रव्य आदि लेकर संकल्प मंत्र पढ़ें :
संकल्प मंत्र : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरूषस्य, विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते ………… १ संवतसरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे ………. २ मासे ………… ३ पक्षे ………… ४ तिथौ …………५ वासरे ………… ६ गोत्रोत्पन्नः ………… शर्माऽहं/(वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) ममात्मनः श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फलप्राप्तये, करिष्यमाणस्य अस्य वस्तोः शुभता सिद्ध्यर्थं निर्विघ्नतागृहसिद्ध्यर्थं आयुरारोग्य-ऐश्वर्याऽभिवृद्ध्यर्थं च कलशस्थापनं-पूजनं, अंगदेवतादि पूजनपूर्वकं वास्तोस्तस्य भूमिपूजनपूर्वकं गृहारम्भं करिष्ये॥

(१ संवत्सर का नाम, २ महीने का नाम, ३ पक्ष का नाम, ४ तिथि का नाम, ५ दिन का नाम, ६ अपने गोत्र का नाम कहें।)
ब्राह्मण वरण
- ब्राह्मण (आचार्य) वरण विधि : ब्राह्मण वरण सामग्री (१ जोड़ा धोती, गमछा, गंजी, कुर्ता, जनेऊ, पान, सुपारी, द्रव्य, पुष्पाक्षत आदि) बांयें हाथ में ले, दांयें हाथ में तिल-जल लेकर अगला मंत्र पढ़े :
- ब्राह्मण वरण मंत्र : ॐ अद्यैतस्य कर्तव्य गृहारंभकर्मणि आचार्य कर्म कर्तुं एभिः वरणीय वस्त्रद्रव्यादिभिः ………. गोत्रं ………. शर्माणं ब्राह्मणं आचार्यत्वेन त्वामहं वृणे॥ मंत्र पढ़कर तिल-जल वरण वस्तु पर छिड़क कर ब्राह्मण को दे। ब्राह्मण वरण वस्तु लेकर ॐ वृत्तोस्मि कहें। पुनः यजमान कहे – यथाविहितं कर्म कुरु। ब्राह्मण कहें – कर्वाणि।
- तत्पश्चात् निर्विघ्नता हेतु गौरी गणेश पूजन करें। मोदक नैवेद्य अर्पित करें और निर्विघ्न रूप से घर बनने के लिये प्रार्थना करें।
- फिर कलश स्थापन-पूजन करें।
- कलश के निकट लौह शंकु (कीलें) धोकर किसी पात्र या पत्ते पर रखे । कीलों में दूध, दही, कुंकुम, अक्षत आदि लगाकर मौली लपेटे । नये उपकरण (धोकर) एवं धागे को भी कलश के पास ही रखे । वास्तु प्रतिमा कलश पर रखें ।