हवन करने के लाभ
- हवन करने से पाप का शमन होता है और यह मुख्य लाभ है।
- हवन करने से देवता तृप्त होकर फलस्वरूप हमारी पुष्टि करते हैं यह गौण लाभ है।
- हवन करने से वातावरण की शुद्धि होती है या अतिरिक्त लाभ है।
शास्त्रवचन का तिरष्कार करते हुये आध्यात्मिक फल का परित्याग करके केवल वातावरण की शुद्धि के लिये हवन करने वाले को मुर्ख नहीं तो और क्या कहा जा सकता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिये कर्मकांड मुख्य आधार है, भौतिक या व्यावहारिक या वैज्ञानिक लाभ तो गौण (अतिरिक्त) भाग है जो स्वतः प्राप्त हो जाता है।
- लेकिन यदि हम मात्र गौण लाभ के लिये कर्मकांड का आश्रय लेते हैं तो मुख्य आध्यात्मिक लाभ का तिरष्कार हो जाता है और वह प्राप्त नहीं होता।
- इसके संबंध में शास्त्र का प्रमाण भी है : अश्रद्धया च यद्दत्तं विप्रेऽग्नौ दैविके क्रतौ । न देवास्तृप्तिमायान्ति दातुर्भवति निष्फलम् ॥ इष्ट देवताकी प्रीतिके लिये अनुष्ठित यज्ञमें ब्राह्मण और अग्निके लिये जो कुछ अश्रद्धा से समर्पित किया जाता है, उससे देवगणकी तृप्ति नहीं होती ।
- दाता का वह दक्षिणा आदि द्रव्य व अन्य वस्तुयें निरर्थक ही जाता है, क्योंकि जो मुख्य लाभ नहीं मिलता।
सरल हवन विधि
आश्चर्य ये है कि भ्रमित करने वालों की तो बाढ़ है, किन्तु शास्त्रों में लिखा हुआ सत्य बताने वाला एक भी नहीं है। और यदि कोई सही बात रखे तो उसे स्वीकारने में भी समस्या होगी। जैसे यहाँ आपको सच्चाई बताई जाएगी लेकिन आप उसे स्वीकार कर पायेंगे इसकी कुछ दशमलवयुत प्रतिशत (0.01%) जैसी ही संभावना बनती है क्योंकि जो भ्रमित करने वाले हैं वो आपके अनुकूल बताते हैं और आप अनुकूलता को स्वीकार करते हैं शास्त्रसम्मत विधि का नहीं।
आगे की जानकारी से पहले आपको यह निश्चय कर लेना चाहिये की सरलता या धर्म दो में से किसी १ को ही चुना जा सकता है। यदि सरलता को चुनते हैं तो पुण्य नहीं मिलेगा और यदि पुण्य (धर्म) की इच्छा रखें तो सरल विधि नहीं होगी। विधि वही ग्रहण करनी होगी जो शास्त्रों में बताई गयी है।
यदि आप पुण्य न चाहकर सरल विधि चाहते हैं तो आपको आगे पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। और यदि आप सरलता की अपेक्षा न रखकर पुण्य की इच्छा रखते हैं तो आपको आगे अवश्य पढ़ना चाहिये।
संपूर्ण हवन विधि
यदि आप सरलता की अपेक्षा पुण्य की इच्छा रखते हैं, गौण लाभ की अपेक्षा मुख्य लाभ चाहते हैं तो आगे की जानकारी आपके लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण है। बिना पंडित अर्थात ब्राह्मण के हवन करने के लिये सोचा भी नहीं जा सकता कैसे करें यह प्रश्न ही अनुचित हो जाता है। इसकी पुष्टि संपूर्ण हवन विधि को समझने से हो जायेगी।
आपने कहा बिना पंडित के हवन नहीं हो सकता सिवाय नित्य अग्निहोत्र के । इस संदर्भ में मेरा एक प्रश्न है गीता प्रैस की नित्य कर्म पूजा प्रकाश में नित्य होम की एक विधि जो आपकी विधि से भिन्न है कृपया उस पर प्रकाश डालें क्या वह कर सकते हैं क्योंकि वह बहुत छोटा हवन है और गीता प्रैस जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन में उसका वर्णन है । मेरा एक प्रश्न और है उसी हवन से संबंधित उसमें कुशकंडिका के लिये कुश या दूर्वा के लिये कहा गया है । पंच भूसंस्कार के लिये भी कुश के लिये कहा गया है , क्या यहाँ भी दूर्वा का प्रयोग कर सकते हैं
नित्यहोम करने वाले को ही अग्निहोत्री कहा जाता है। कर्मकाण्ड में कहीं कुछ मनमानी करने की स्वतंत्रता नहीं है और यदि करे तो वह निष्फल होता है व विपरीत फल भी होता है। जो गुरुकुल न गया उसे नित्यहोम का ज्ञान नहीं होगा, नित्य होम की अग्नि गृहस्थाश्रम में प्रवेश के समय ही चयन किया जाता है और वह अग्नि नष्ट न हो इसका प्रयास करना होता है, यदि घर से बाहर हो तो भी प्रतिनिधि के माध्यम से नित्य होम करना ही होता है।
नित्य होम करने वाला जिसने विधिवत अग्निचयन किया हो वह साग्निक कहलाता है एवं जो नित्य होम नहीं करने वाले हैं वो निरग्निक कहलाते हैं। साग्निकों का अशौच विधान भी भिन्न होता है।
जो आडम्बर करने वाले होम-होम, अग्निहोत्र-अग्निहोत्र चिल्लाते रहते हैं, किसी को भी आध्यात्मिक महत्त्व बताते नहीं देखा जाता, वातावरण शुद्धि, वैज्ञानिकता आदि की चर्चा करते हुये ही देखा जाता है। यें लोग स्वयं स्वेच्छाचारी हैं और अन्य को भी बनाना चाहते हैं।
नित्य होम और अन्य होम में अंतर होता है, अन्य हवन नित्य होम की विधि से नहीं होता है,
कुशकंडिका में भी कुशा के विकल्पों का प्रयोग किया जा सकता है।
नित्य होम भिन्न विषय है, अन्य हवन में नित्यहोम के मंत्रों का भी प्रयोग नहीं होता है। कुछ लोग सबको स्वेच्छाचारी बनाने के लिये अग्निहोत्र करने के नाम पर किसी भी प्रकार से नित्यहोम करने के लिये भी प्रेरित कर रहे हैं जिससे हवन सामग्री का विक्रय हो सके। नित्यहोम अग्निहोत्री के लिये ही है जिसने यथाकाल अग्निसंचयन किया हो। कुशकण्डिका में भी कुशा के अनुपलब्ध होने पर विकल्पों का ग्रहण किया जा सकता है, किन्तु उपलब्ध होने पर नहीं।