नवग्रह शांति उपाय – navagrah : 1st

नवग्रह शांति उपाय – navagrah

इस आलेख में नवग्रह शांति के विभिन्न उपायों पर प्रकाश डाला गया है और साथ-साथ नवग्रहों के वैदिक मंत्र, तांत्रिक मंत्र, नवग्रह स्तोत्र आदि दिया गया है। नवग्रह शांति के अन्य विभिन्न उपायों की चर्चा भी की गई है जैसे रत्न, हवन, दान आदि। नवग्रह शांति विधि की अलग से प्रकाशित की जाएगी जिसका लिंक सबसे नीचे दिया गया है।

  • राज्यं ग्रहाः प्रदद्युः सौख्यं च मनोरथातीतम् ॥
  • ग्रहाः राज्यं प्रयच्छन्ति ग्रहाः राज्यं हरन्ति च । ग्रहैर्व्याप्तमिदं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरं ॥

उपरोक्त वचनों से यह ज्ञात होता है कि ग्रह यदि अनुकूल हो तो राज्य भी प्रदान कर सकते हैं और यदि प्रतिकूल हों तो प्राप्त राज्य का हरण भी कर सकते हैं। यहां राज्य का तात्पर्य सबके लिये प्रत्यक्षतः राज्य ही ग्रहण नहीं करना चाहिये अपितु पर्याप्त धन-संपत्ति-सुख-समृद्धि-अनुकूलता आदि ग्रहण करना चाहिये।

नवग्रह मंत्र

आगे क्रमशः नवग्रहों के वैदिक मंत्र, पौराणिक मंत्र, तांत्रिक मंत्र, स्तोत्र, कवच, रत्नोपरत्न, जड़ी, समिधा, दान सामग्री आदि सम्पूर्ण नवग्रह शांति के उपाय दिये गये हैं जो अत्यधिक लाभकारी हैं।

नवग्रह मंत्र

नवग्रहों के वैदिक मंत्र वाजसनेयी

जब वैदिक मंत्रों की बात करें तो यद्यपि चारों वेदों में सभी कर्मों के निमित्त मंत्र प्राप्त होते हैं तथापि कर्मकाण्ड हेतु मुख्यतः दो वेद ही ग्रहण किये जाते हैं शुक्ल यजुर्वेद और सामवेद। शुक्ल यजुर्वेद से कर्मकांड करने वाले वाजसनेयी कहलाते हैं और सामवेद के मंत्रों से कर्मकांड करने वाले छन्दोगी (सामवेदी) कहलाते हैं। यहां पहले नवग्रहों के वाजसनेयी मंत्र दिया गया है और उसके पश्चात् छन्दोगी अर्थात सामवेदी मंत्र भी दिया गया है।

  1. सूर्य – ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च । हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भूवनानि पश्यन् ॥
  2. चन्द्र – ॐ इमं देवा असपत्न ᳪ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय । इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना ᳪ राजा ॥
  3. मंगल – ॐ अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपा ᳪ रेता ᳪ सि जिन्वति ॥
  4. बुध – ॐ उद्‍बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते स ᳪ सृजेथामयं च । अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत ॥
  5. बृहस्पति – ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु । यद्दीदयच्छवसऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥
  6. शुक्र – ॐ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः । ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान ᳪ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ॥
  7. शनि – ॐ शन्नो देवीरभिष्ट्य आपो भवन्तु पीतये । शं योरभि स्रवन्तु नः ॥
  8. राहु – ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः । सखा कया सचिष्ठया वृता ॥
  9. केतु – ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे । समुषद्भिरजायथाः ॥

ऊपर नवग्रहों के वाजसनेयी मंत्र दिये गये हैं और आगे अब छन्दोगी अर्थात सामवेदी मंत्र भी दिया गया है :

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