चातुवैर्द्यं विकल्पी च अङ्गविद्धर्मपाठकः । आश्रमस्थास्त्रयो विप्राः पर्षदेषा दशावरा ॥
पर्षद ही कर्माधिकार हेतु विहित प्रायश्चित्त का निर्णय कर सकती है और शंकराचार्यों को एवं अन्य मूर्धन्य विद्वानों को पर्षद हेतु आमंत्रित करना चाहिये। पर्षद के निर्णय से रहित होने पर प्रायश्चित्त पूर्ण नहीं हो सकता और बिना प्रायश्चित्त के कर्माधिकार प्राप्त नहीं हो सकता।
चत्वारो वा त्रयो वापि वेदवेदाग्निहोतृणः।
ये तु सम्यक् स्थिताः विप्राः कार्याकार्य विनिश्चिताः॥
प्रायश्चित्त प्रणेतारः सर्वे ते परिकीर्तिताः। – आङ्गिरसस्मृति

यद्ब्राह्मणास्तुष्टतमा वदन्ति तद्देवताः प्रत्यभिनन्दयन्ति ।
तुष्टेषु तुष्टाः सततं भवन्ति प्रत्यक्ष देवेषु परोक्षदेवाः॥ – विष्णुस्मृति
ब्राह्मणा जङ्गमं तीर्थं निर्मलं सार्वकामिकम् ।
तेषां वाक्योदकेनैव शुध्यन्ति मलिनो जनाः ॥ – शातातप स्मृति
पुनः शातातप स्मृति से ही
अलंकृत्य यथाशक्ति वस्त्रालंकरणार्द्विजान् ।
याचेद्दण्डानुसारेण प्रायश्चित्तं यथोचितम् ॥
तेषामनुज्ञया कृत्वा प्रायश्चित्तं यथाविधि ।
पुनस्तान्परिपूर्णार्थमर्चयेद्विधिवद्विजान् ॥
दद्याद्वतानि नामानि तेभ्यः श्रद्धासमन्वितः ।
संतुष्टा ब्राह्मणा दद्युरनुज्ञां व्रतकारिणे ॥
जपच्छिद्रं तपश्छिद्रं यच्छिद्रं यज्ञकर्मणि ।
सर्वं भवति निश्छिद्रं यस्य चेच्छन्ति ब्राह्मणाः ॥
ब्राह्मणा यानि भाषन्ते मन्यन्ते तानि देवताः ।
सर्वदेवमया विप्रा न तद्वचनमन्यथा ॥

इस विषय में वेद का प्रमाण :
रुचं ब्राह्मं जनयन्तो देवा अग्रे तदब्रुवन्।
यस्त्वैवं ब्राह्मणो विद्यात्तस्य देवा असन् वशे॥५॥ नारायण सूक्त यजुर्वेद ॥
पर्षद का महत्व :
धर्मशास्त्रानुसारेण प्रायश्चित्तं मनीषिभिः ।
दातव्यं पापमुक्त्यर्थं प्राणिनां पापकारिणाम् ॥
अज्ञात्वा धर्मशास्त्राणि प्रायश्चित्तं ददाति यः ।
प्रायश्चित्ती भवेत्पूतस्तत्पापं पर्षदं व्रजेत् ॥
ज्ञानी ब्राह्मणों का पर्षद प्रायश्चित्त प्रदान करे तो यजमान का पाप नष्ट होता है किन्तु वह पाप पर्षद में भी नहीं जाता लेकिन यदि अज्ञानी ब्राह्मणों का पर्षद हो तो भी यजमान पापमुक्त होता ही परन्तु वह पाप पर्षद में स्थित हो जाता है।

- जहाँ पूरे देश की भावना जुड़ी हुई हो, जो कर्म पूरे देश के लोगों के सहयोग से किया जा रहा हो उस कर्म में तो शंकराचार्यों की ही पर्षद बनाई जानी चाहिये।
- शंकराचार्यों की अवहेलना करके यदि अन्य विद्वानों की पर्षद बना भी ली जाय तो उसमें भी अतिक्रमण दोष का पात हो जायेगा।
- यदि पर्षद ही न बनाया जाय और बिना प्रायश्चित्त के प्राण प्रतिष्ठा की जाय तो वह भी अतिक्रमण होगा क्योंकि प्रायश्चित्त के बिना कर्माधिकार सिद्ध नहीं होगा।
- पुनः सम्पूर्ण कर्मों में भी उचित-अनुचित का निर्णय करने के लिये भी अन्य विद्वान ब्राह्मणों की आवश्यकता होती है जिन्हें सदस्य कहा जाता है। सदस्यों के समूह को भी पर्षद ही समझना चाहिये।
- ब्राह्मणों के निमंत्रित करने की भी एक विशेष विधि होती है जिसमें आमंत्रण पत्र का कोई स्थान नहीं होता है। ब्राह्मण के घर/आश्रम पर स्वयं जाकर उन्हें आमंत्रित करना चाहिये।
- स्वयं महाराज दशरथ गुरु वशिष्ठ के आश्रम पर गये थे ये रामायण में भी वर्णित है।
- पर्षद में उपस्थित ब्राह्मणों की पूजा के लिये भी उत्तम व्यवस्था करनी चाहिये।
जब सम्पूर्ण भारत के लोग राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में सम्मिलित हैं तो ये भी आवश्यक है कि इसमें शास्त्राज्ञा का विशेष रूप से पालन भी हो अन्यथा यह तो सामूहिक शास्त्रोलंघन हो जायेगा। और शास्त्राज्ञा का उल्लंघन करके यदि की जाय तो कर्म ही आसुरी श्रेणी का हो जायेगा।
राम मंदिर का उद्घाटन कौन करेगा
मंदिर को दुकान, कार्यालय, भवन नहीं है जिसका उद्घाटन किया जाय। मंदिर का उत्सर्ग होता है। यह प्रश्न बताता है कि हम अपनी संस्कृति/धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानते किन्तु सभी धर्म की व्याख्या करते रहते हैं। धर्मशास्त्र संबंधि किसी भी प्रकार का वक्तव्य देने से पहले ये सुनिश्चित करना चाहिए कि शास्त्रसिद्ध है या केवल मन का उद्गार। यदि मन का उद्गार है तो मन में ही रखें, वक्तव्य उतना ही दें जितना सम्यक् हो । थेथरई राजनीति का अंग है कर्मकाण्ड का नहीं।
राम आ रहे हैं यही बड़ी बात है, और कोई आये न आये क्या फर्क पड़ता है? ऐसे भाव भी लोगों के मन में उत्पन्न हो रहे हैं और प्रकटीकरण भी देखा जाता है।
यदि कोई उत्सव करते हैं उसमें कोई रिश्तेदार आये न आये क्या फर्क पड़ता है? फिर रूठे हुए को क्यों मनाते हैं? शंकराचार्य व्यक्ति की नहीं पद की पूजा अनिवार्य है? राम मंदिर देश-विदेश के लोगों की भावना से जुड़ा हुआ है और सबका राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री में समाहित है । उसी तरह शंकराचार्य पद में भी कुछ समाहित है जिसका विचार नियमानुसार होना चाहिए न कि जनमत संग्रह से। जनता को इस विषय में यह पूछना चाहिए कि शास्त्र-संस्कृति-सदाचार क्या कहता है।
शुभ मुहूर्त संबंधी अनावश्यक त्रुटि
22 जनवरी 2024, सोमवार को देवादि प्रतिष्ठा अर्थात प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त तो है किन्तु उसके लिये त्रयोदशी तिथि विहित है।
- त्रयोदशी तिथि का आरंभ संध्या 7:51 (pm) बजे होगा।
- त्रयोदशी आरम्भ होने से पूर्व द्वादशी तिथि है जो दग्ध तिथि है।
- परिहार हेतु अभिजिन्मुहूर्त कहा जा सकता है किन्तु यदि शुभमुहूर्त अनुपलब्ध हो या व्यतीत हो गया हो तो अभिजिन्मुहूर्त ग्राह्य है।
- शुभमुहूर्त का तिरष्कार करके अभिजिन्मुहूर्त ग्राह्य नहीं हो सकता।
- यदि मात्र अभिजिन्मुहूर्त का ही महत्व है तो अन्य किसी दिन कर लेना चाहिए था, फिर देवादि प्रतिष्ठा के दिन का निर्धारण क्यों किया गया?
- ये तो ठीक वैसा है जैसे एक साथ हंस भी रहे और रो भी रहे। देवादि प्रतिष्ठा से प्रतिष्ठा दिवस का निश्चय भी कर रहे और और उसका उल्लंघन भी कर रहे हैं।
- जनतंत्र है, बोलने का अधिकार सबको है और राजनीतिक तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं जब भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा हो तभी शुभ मुहूर्त है, अर्थात् मुहूर्त, पंचांग, शास्त्र सब बेकार है। यदि सब बेकार ही है तो मंदिर की क्या आवश्यकता थी? प्राण प्रतिष्ठा क्यों करना? संग्रहालय बनाकर फीता काट लेते!
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राम लला की प्राण प्रतिष्ठा
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 22 जनवरी को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा पूर्णरूप से राजनीतिक है किन्तु ये अकारण नहीं है।
- राममंदिर से देशभर के लोगों की आस्था जुड़ी हुयी है और प्रधानमंत्री मोदी सभी के निर्वाचित प्रतिनिधि हैं।
- राममंदिर निर्माण में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का महत्वपूर्ण योगदान है जिसके प्रतिनिधि भी प्रधानमंत्री मोदी ही हैं।
- देश में राजतंत्र नहीं लोकतंत्र है जिसमें राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष तो होते हैं किंतु वास्तविक राज्यभार प्रधानमंत्री के पास ही होता है।
लेकिन इस विषय का धार्मिक पक्ष नहीं है ऐसा नहीं है। इसका धार्मिक पक्ष भी है। मोदी की भी धर्म में प्रचुर आस्था है जो कई बार देश ने देखा है।

नोट : इस विषय के सन्दर्भ में एक बात विशेष रूप से स्पष्ट कर दूँ की मेरे द्वारा प्रस्तुत विचार आपसी है, इसमें विपक्षियों/रामद्रोहियों को किसी प्रकार से टांग अड़ाने की आवश्यकता नहीं है। जिनकी सनातन में आस्था ही नहीं है, जो दिन रात सनातन ग्रंथों, भगवान, ब्राह्मण के विरुद्ध आग उगलते हैं उनको इन विषयों में पड़ने का कोई अधिकार नहीं है।
सारांश :
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में नया विवाद है, जिसमें शंकराचार्य का अनपेक्षित (मात्र राजनीतिक रूप से) विडिओ सामने आया है। राम मंदिर निर्माण में राजनीतिक होने के साथ प्राण प्रतिष्ठा का धार्मिक महत्व भी है और धार्मिक महत्व ही विशेष है। इस प्रकार के कर्म में शास्त्रीय मर्यादा का पालन अत्यंत आवश्यक है। पर्षद की आवश्यकता और उचित विधि से आमंत्रण के विषय में विचार करना चाहिए।
सारांश : आज मन्दिर निर्माण घोटाले की सच्चाई जानने के लिए, हमें सारे तथ्यों को समझने की आवश्यकता है। आरोप और आरोपियों के बारे में सच्चाई से पहले हमें समझना चाहिए। यह निश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि क्या गलती हुई है और कैसे हुई है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
इस विषय में आप अपने विचार भी यहां टिप्पणि करें। ये आवश्यक है कि सनातन में आस्था हो।