राम राज्य का सीधा भाव यह होता है कि सभी सुखी-सम्पन्न हों, चिन्तामुक्त जीवन हो, किसी प्रकार का भय न हो इत्यादि-इत्यादि । इसको अगर थोड़ा शब्दांतर से समझने का प्रयास करें तो इस प्रकार का भी अर्थ प्रकट हो सकता है :-
“सबके पास विलासिता की समस्त सामग्री हो अर्थात् कुछ भी अनैतिक न हो, जो असम्पन्न है उसके बीच सम्पन्नों की संपत्ति बांट दी जाय तो सभी सम्पन्न हो जाएंगे, चिन्तामुक्त जीवन का तात्पर्य ये हो कि किसी को कुछ किये बिना सब कुछ उपलब्ध हो, किसी भी चीज के लिए कुछ करना न पड़े जो चाहिये बोलो सरकार देगी या रामजी देंगे, किसी प्रकार का भय न होने का अर्थ ये हो कि कितना भी जघन्य अपराध किया गया हो दण्ड का भय न हो अर्थात् कुछ भी अपराध न हो।”
राम राज्य कब आयेगा ?
कुछ दिनों बाद ऐसी ही कुछ मिलती-जुलती चर्चायें राम राज्य के संदर्भ में आरम्भ हो सकती है। रामराज्य के लिये क्या-क्या आवश्यक है ये नहीं पूछेंगे :
- पुत्र का क्या धर्म होता है ? पितृधर्म क्या होता है? मातृधर्म क्या है? पतिधर्म क्या है? पत्नीधर्म क्या है? अनैतिक संबंध क्या है? भ्रातृधर्म क्या है? माता-पिता की सेव क्यों करनी चाहिये?
- गुरु किन्हें बनाना चाहिये? शिक्षा और विद्या में क्या अंतर है? शिक्षार्थी बनना चाहिये या विद्यार्थी? शिष्य धर्म क्या होता है? विद्यार्जन के समय क्या-क्या नहीं करना चाहिये? विद्या देने का अधिकार किनको होता है? ब्रह्मचर्य क्यों आवश्यक होता है? संस्कार क्यों आवश्यक है? संस्कारों की विधि और मंत्र क्या-क्या हैं ?
- सत्य का क्या महत्व है? पुण्य-पाप क्या होता है? धर्म-अधर्म क्या होता है? मनुष्य का लक्ष्य क्या है? मोक्ष क्या है? मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकते हैं? पूजा क्या है? हवन क्या है? यज्ञ क्या है? यज्ञोपवीत का महत्व क्या है? शिखा का महत्व क्या है? चन्दन का महत्व क्या है? कैसा वस्त्र धारण करना चाहिये?
- पितर कौन होते हैं? पितर के प्रति क्या उत्तरदायित्व होता है? तर्पण क्या है ? श्राद्ध क्या है ? श्राद्ध-तर्पण क्यों करना चाहिये ? उत्तराधिकारी के क्या कर्तव्य होते हैं ? अन्न में क्या-क्या दोष होता है? कैसा धन दूषित होता है?
- शुचिता क्या है ? बाहरी पवित्रता क्या है ? भीतरी पवित्रता क्या है ? मन कैसे शुद्ध होता है ? मन को निर्मल करने के लिये क्या करना चाहिये ? अशौच क्या होता है ? अशौच के कितने प्रकार होते हैं ? अशौच के विहित-निषिद्ध क्या-क्या हैं ? अशौचा निवारण कब और कैसे होता है ?
- प्रायश्चित्त क्या होता है? पाप के लिये प्रायश्चित्त क्यों करना चाहिये? यदि प्रायश्चित्त नहीं करते हैं तो क्या दुष्परिणाम होता है? वर्णशंकर का क्या तात्पर्य है? वर्णशंकर की वृद्धि का दुष्परिणाम क्या होता है ? वर्णशंकरता से कैसे बचा जा सकता है?
- परिवार, समाज, देश के प्रति क्या उत्तरदायित्व होता है? सरकार, अधिकारियों, सेवा प्रदाताओं के धर्म क्या है? ब्राह्मणों-साधु-संतों की सेवा क्यों करनी चाहिये? दान का क्या महत्व है ? प्रतिग्रह में क्या दोष होता है ? प्रतिग्रह दोष का शमन कैसे होता है ? ब्राह्मण भोजन का क्या महत्व है ? ब्राह्मण भोजन का ही विशेष महत्व क्यों है ?
- भारत की संस्कृति कब तक संघर्ष करेगी ? भारतीय संस्कृति क्या है ? व्यक्ति के लिये संस्कृति और धर्म का क्या महत्व है ? सत्ता-देश के लिये संस्कृति-धर्म का क्या महत्व है ?
इत्यादि – इत्यादि इतने प्रश्न हैं जिसकी चर्चा तो बड़े-बड़े कथावाचक भी नहीं कर पाते ये उल्टी गङ्गा बहाने वालों से तो इन विषयों पर चर्चा की अपेक्षा ही नहीं की जा सकती है?
यदि इन विषयों का उत्तर लोगों को नहीं ज्ञात है और आचरण विपरीत है तो राम राज्य कब आयेगा ये प्रश्न करने का किसी को अधिकार नहीं है।
राम राज्य कब आयेगा पूछने से पहले इन प्रश्नों के उत्तर ज्ञात करो तदनुसार आचरण करो लोगों को भी प्रेरित करो स्वतः राम राज्य आ जाएगा?
राम राज्य आ गया है
प्रत्येक विषय का एक आधार होता है। रामराज्य के लिये भी जो आधार है पहले उस आधार का निर्माण करना चाहिये। रामराज्य तो आ गया लेकिन टिके कहां ? आधार ही तो नहीं है।
रामराज्य टिकने के लिये आधार का निर्माण कैसे किया जाय इस सम्बन्ध में किसका क्या दायित्व है ?
इसकी चर्चा मत करो। बस उलटी गङ्गा बहने वाली राम राज्य दे दो तो कह दूँ की रामराज्य है।

राम राज्य का तात्पर्य
राम राज्य का तात्पर्य किसी तरह की उलटी गङ्गा बहना नहीं अपितु ये है कि किसी तरह की उलटी गङ्गा नहीं बहती है, गङ्गा बिल्कुल सीधी निर्धारित रूप से बह रही है।
पुत्र, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी, शिष्य, गुरु, समाज, सत्ता, अधिकारी सभी को अपने अधिकार और कर्तव्यों का ज्ञान है और सभी अपने दायित्वों का नीति और निष्ठा पूर्वक निर्वहन कर रहे हैं। कोई स्वार्थलोलुप नहीं है देशविरोध तो क्या किसी का व्यक्तिगत विरोध भी लोग नहीं सोचते क्योंकि कोई विरोध करने योग्य कार्य ही नहीं करता है।
सभी को ये ज्ञात है कि उसे परमात्मा ने मानव बनाकर पृथ्वी पर क्यों जन्म दिया है। उसका लक्ष्य क्या है, लक्ष्य साधन का मार्ग और तरीका क्या है ? सभी अपने मुख्य लक्ष्य प्राप्ति के प्रति सजग और उद्यमशील हैं।
ढकोसला क्या है ?
स्वयं को गाँधी का अनुयायी तो नेता गर्व से घोषित करते हैं, मीडिया वाले गाँधी की दुहाई देकर जीते-मरते हैं। गाँधी ने रामराज्य के बारे में कहा था, इनमें से किसी को राम राज्य नहीं चाहिये क्योंकि यही लोग विरोधात्मक प्रश्न खड़ा करेंगे – रामराज्य कब आयेगा ? आप राम राज्य की दिशा में आगे बढ़ेंगे तो फिर यही टांग खींचने लगेंगे।
गाँधी जी को चित्र में धोती पहने ही दिखाया जाता है – इन सबसे पूछो जीवन में तुमने कब धोती पहनी तो मुँह बा देंगे, कोई-कोई १-२ बार बता देगा लेकिन दुहाई गाँधी की देंगे, अनुयायी गाँधी के बनेंगे। गाँधी केवल धोती क्यों पहनते थे ? उन्होंने प्रण लिया था कि हमारे देश के लोगों को जब तक पूरा कपड़ा नहीं मिलेगा हम भी नहीं पहनेंगे।
अब गाँधीजी के सभी अनुयायियों और दुहाई देने वालों से प्रश्न है :
- क्या देश की सभी लोग हवाई जहाज से चलती है ? नहीं ! तो तुम क्यों चलते हो ?
- क्या देश की सभी लोग मंहगे वाहनों में चल रही है ? नहीं ! तो तुम क्यों चल रहे हो ?
- क्या देश की सभी लोग बड़े मकानों में रहती है ? नहीं ! तो तुम क्यों रहते हो ?
- क्या देश की सभी लोग बड़े-बड़े होटलों में रुकती है ? नहीं ! तो तुम क्यों रुकते हो ?
- क्या देश की सभी लोगों के खाते में करोड़ों रुपये हैं ? नहीं ! तो तुमने अपने खाते में क्यों रखे हैं ?
- क्या देश की सभी लोग हजारों की थाली खाती है ? नहीं ! तो तुम क्यों खाते हो ?
- क्या देश की सभी लोगों के पास कालाधन है ? नहीं ! तो तुम लोग क्यों रखते हो ?
- क्या देश की सभी लोग लाखों के कपड़े पहनती है ? नहीं ! तो तुम क्यों पहनते हो ?
- क्या देश के सभी लोगों के पास लाखों रुपये का मोबाईल है ? नहीं ! तो तुम क्यों रखते हो ?
यही ढकोसला है। अनुयायी तो गाँधी के बनेंगे किन्तु राम का विरोध करेंगे। अनुयायी तो गाँधी के बनेंगे मगर रामराज्य नहीं चाहिये। अनुयायी तो गाँधी के बनेंगे मगर उनके बनाये नियमों पर नहीं चलेंगे।
जब आप किसी भी तरह का पूजा-पाठ, धर्माचरण कर रहे होते हैं तो ये लोग तपाक से ढकोसला/आडम्बर कह देते हैं। कहते हैं की धर्म भीतर की चीज है बाहर दिखाना ढकोसला है। ऐसे धर्मद्रोहियों को ढकोसला क्या है सही तरीके से समझाने के लिये उपरोक्त प्रश्न बहुत उपयोगी हैं।
जब तक ऐसे नास्तिकों और अधर्मियों को दर्पण में वास्तविक मुखड़ा नहीं दिखाया जायेगा वो कुतर्क ही गढ़ते रहेंगे। रामराज्य के नाम पर उलटी गङ्गा बहाने का अधिकार मांगेंगे।
दशकों से जिन लोगों ने देश में लूटतंत्र मचा रखा था, बच्चों की पाठ्य-पुस्तकों में राम-सीता-दुर्गा-शंकर-हनुमान आदि देवताओं के लिये घृणात्मक बातें लिख रखी थी, राम के अस्तित्व को नकार रहे थे, धार्मिक ग्रंथों को फार रहे थे, मंदिरों में डाका डाल रहे थे, आतंकियों के पैरोकार बने थे, ये लोग तो रामराज्य का यही अनर्थ लगा सकते हैं जो वास्तविक रामराज्य की धारणा के विपरीत हो।
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ सुशांतिर्भवतु ॥ सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।