अयोध्या मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा को रोकने, विवादित करने, श्रद्धालुओं के मन में अश्रद्धा उत्पन्न करने के अनेकानेक प्रयास हुये, जिसमें से एक विषय मंदिर का शिखरहीन होना भी था। शिखरहीन मंदिर की चर्चा होने से एक नया गंभीर प्रश्न प्रकट हुआ जिसपर पूरे देश को चर्चा करनी चाहिये थी लेकिन उद्देश्य मात्र राम मंदिर के लिये विवाद उत्पन्न करना था इसलिये आगे कोई चर्चा नहीं मिली। इस आलेख में मंदिरों में शिखर की अनिवार्यता से सम्बंधित एक नये विषय के प्रकट होने की चर्चा कि गयी है, जो देश के लाखों राम और कृष्ण मंदिरों (ठाकुरवारियों) के सन्दर्भ में विचारणीय है।
शंकराचार्य पद का महत्व – ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य का योगदान; शिखर संबंधी नया विषय प्रकट हुआ
एक कहावत आपने सुनी होगी “सोना छूने पर भी लोहा हो जाय”, इसके विपरीत भी होता है। जो व्यक्ति भाग्यशाली होता है वह कुछ भी करे (पूर्वार्जित कर्मानुसार) उन्नति ही प्राप्त करता है और एक व्यक्ति वो भी होता है जो दुर्भाग्यवश कुछ भी करे कितना भी परिश्रम करे दुर्भाग्य (पूर्वार्जित कर्मानुसार) अवनति की ओर ही अग्रसर होता है।
शंकराचार्य पद का महत्व
इस विषय में शंकराचार्य पद का महत्व भी स्पष्ट होता है। 22 मई 2024, सोमवार, पौष शुक्ल द्वादशी/त्रयोदशी को होने वाली राम लला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर बहुत प्रश्न उठाये गये। प्राण प्रतिष्ठा न हो रुक जाये इसके लिये कठिन प्रयास हुये लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि एक नया विषय जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण है प्रकट हो गया। ये शंकराचार्य पद का महत्व भी स्पष्ट करता है।
पदासीन व्यक्ति नकारात्मक भी उद्देश्य रखता हो तो भी परिणाम सकारात्मक ही होगा। हमें एक कॉमिक्स की याद आ रही है बांकेलाल की याद आ रही है, उसे वरदान था कि जिसका भी अहित करना चाहेगा उसका हित ही होगा। ये शंकराचार्य पद का महत्व है,इस पद पर बैठा व्यक्ति नकारात्मक भी हो तो भी परिणाम सकारात्मक ही मिलेगा। “कर बुरा, हो भला”
ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य का योगदान
सर्वप्रथम ज्योतिर्मठ के पदासीन शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को साधुवाद, कोटिशः नमन कि आपका उद्देश्य जो भी था परंतु आपके बारम्बार शिखर को लेकर उठाये गए प्रश्न से एक नया और अतिमहत्वपूर्ण विषय प्रकट हो गया है। और अब आगे इसी विषय पर सकारात्मक विचार और प्रयास की आवश्यकता है।
आपको ज्ञात हो न हो अपरोक्ष रूप से ही सही आपके प्रश्नों के कारण इस विषय का विषय प्रकट होना सागरमंथन से अमृत प्रकट होने के समान है। भले ही आपने नकारात्मक दृष्टिकोण से प्रश्न उठाया हो किन्तु इस विषय के प्रकट होने में मूल योगदान आपका ही है जिसके लिये आपको पुनर्नमन।
वैसे नियति ने आपकी जो भूमिका निर्धारित कर रखी होगी उसमें आप भी कुछ नहीं कर सकते। उसी भूमिका का निर्वहन करना होगा। यदि कैकेयी की भूमिका ही नियति है तो वही कर सकते।
होइहि सोइ जो राम रचि राखा
होनी तो पूर्वनिर्धारित है उसमें सबकी भागीदारी भी पूर्व निर्धारित है और शंकराचार्य की जो भूमिका थी उन्होंने उसका भलीभांति निर्वहन किया। राम के वनवास में कैकेयी की भूमिका पूर्वनिर्धारित ही तो थी।
आपने अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा प्रसंग में जो योगदान दिया वो तो पूर्वनिर्धारित था। लेकिन चर्चा इस नये विषय को लेकर आगे बढ़नी चाहिये और सबको इसके सन्दर्भ में सकारात्मक प्रयास करना चाहिये, किन्तु नकारात्मक विचारों का भी महत्व होता है जिसे नकारा नहीं जा सकता।
शिखर संबंधी नया विषय प्रकट हुआ
बांकेलाल के वरदान वाली “कर बुरा हो भला” का ही परिणाम है कि ये तथ्य सामने आये :
मंदिर के शिखर संबंधी नया विषय क्या प्रकट हुआ है ?
- कर्मकांड विधि ने शंकराचार्य द्वारा बारंबार उठाये गये प्रश्नों के लिये बारंबार उत्तर दिया और इसी क्रम में नया विषय प्रकट हो गया।
- शंकराचार्य का ये वक्तव्य कि बिना शिखर के मंदिर अपूर्ण होता है, हीनांग होता है पूर्णतः सत्य है और इस तथ्य को पिछले आलेखों में भी स्वीकार किया गया है।
- उत्तर देने के क्रम में ही दो बार इस तथ्य का उल्लेख हुआ कि लाखों राम और कृष्ण मंदिर; जिन्हें ठाकुरबाड़ी कहा जाता है; शिखरहीन है क्योंकि आपत्काल है।
- इस सन्दर्भ में वस्तुतः दो विषय प्रकट हुये हैं १. आपत्काल और २. शिखरहीन लाखों ठाकुरबाड़ी, लेकिन दोनों एक दूसरे से सबद्ध ही हैं।
आपत्काल
वर्तमान में भी आपत्काल की सत्ता बनी हुई है ये तो कोई सोच भी नहीं रहा था। लेकिन शंकराचार्य के प्रश्नों का उत्तर देने के क्रम में ही ये स्पष्ट हुआ कि आपत्काल की सत्ता बनी हुई ही है, और सभी इसके निस्तारण हेतु सबको प्रयास करने की आवश्यकता है।
आपत्काल की सत्ता का प्रमाण क्या है ?
आपत्काल की सत्ता के प्रमाण हैं :
- अयोध्या के नये राममंदिर का शिखरहीन होना।
- सर्वविदित काशी, मथुरा (अन्य मंदिरों को छोड़कर भी) में मूल देवता की पूजा वाधित रहना।
- लाखों ठाकुरबाड़ी का शिखरहीन होना।
- अभी भी जहां भाजपा की सरकार नहीं है मंदिर विध्वंस हो ही रहा है।
इस कड़ी में राममंदिर से भी एक कड़ी जुड़ती है कि क्या आपत्काल समाप्ति से पूर्व शिखर स्थापित करना चाहिये ?
कर्मकांड विधि जिसके समक्ष ये विषय प्रकट हुये का विचार है कि राम मंदिर के शिखर स्थापन से पूर्व आपत्काल की सत्ता समाप्त करनी चाहिये।
जब तक मुख्य दोनों मंदिरों के मूल देवता काशी विश्वनाथ और मथुरा के श्रीकृष्ण की विधिवत पूजा आरम्भ नहीं हो जाती और सभी ठाकुरबाड़ी में शिखर स्थापित नहीं हो जाते तब तक आपत्काल की सत्ता की समाप्ति नहीं मानी जा सकती।
विशेष महत्वपूर्ण बिंदु : राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मोदी जी का वैराग्य जागृत हो जाय तो कोई बड़ी बात नहीं होगी । लेकिन वैराग्य की अपेक्षा कर्त्तव्य पालन का पक्ष बलवान है। नियति में सबकी भूमिका पूर्व-निर्धारित है और अपनी भूमिका का निर्वहन करने के लिये जीव बाध्य है। अपनी भूमिका का उत्तम प्रदर्शन करने वाला प्रशंनीय होता है भले ही उसकी भूमिका कैसी भी हो। मोदी जी को वैराग्य भाव उत्पन्न होने पर भी आपत्काल निवारण में अपनी भूमिका को समझकर उसे पूर्ण करने की दिशा में अग्रसर होने की आवश्यकता है।
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ सुशांतिर्भवतु ॥ सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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