“जय जयाजय मङ्गलमङ्गल” से प्रत्येक श्लोक का आरम्भ होता है जिसे श्री हरि मंगलाष्टक स्तोत्र नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु का एक नाम मंगलायतन है और “मंगलायतनो हरिः” कहा जाता है। मंगलायतन हरि के लिये श्री शांडिल्य मुनि कृत एक मंगलाष्टक स्तोत्र भी है जिसे श्री हरि मंगलाष्टक स्तोत्र (shri hari mangalashtak stotra) नाम से जाना जाता है और यह शांडिल्य संहिता में वर्णित है। यहां श्री हरि मंगलाष्टक स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है।
श्री हरि मंगलाष्टक स्तोत्र संस्कृत में – shri hari mangalashtak stotra
श्रीशाण्डिल्य उवाच
अथ स्तोत्रवरं दिव्यं मङ्गालानां च मङ्गलम् ।
श्रीनन्दनन्दनहरेः कालिन्द्या समुदीरितम् ॥१॥
जय जयाजय मङ्गलश्रुतिगणेन्दुमुखीव्रजसंस्तुत ।
जय जयात्मपदाम्बुजसंश्रितनतसुरेन्द्रमतानुमहेन्दिर ॥२॥
जय जयाजय मङ्गलमङ्गल
विकचनीलकुशेशयसुन्दर ।
विधृतकाञ्चनकान्तनवाम्बर
विविधभूषणभूषितभूषण ॥३॥
जय जयाजय मङ्गलमङ्गल विकचनीलकुशेशयसुन्दर ।
तव यदाब्जरजोऽभसिता जनाः जगति मङ्गल जयन्ति शुचिप्रभाः ॥४॥
जय जयाजय मङ्गलमङ्गल मुनिवरैः परिणूत्तमहोदय ।
सकलविश्वकुलानि कुलाणुभिस्तव कृतानि वदन्ति मनीषिणः ॥५॥
जय जयाजय मङ्गलमङ्गल जयति मङ्गलमङ्गलमिदं तव ।
तदनु मङ्गलमेव विभूषणं वर सुमाल्यमुखं विधृतं विभो ॥६॥
जय जयाजय मङ्गलमङ्गल व्रजजनीव्रजमङ्गल निजव्रजम् ।
मुरलिका मुकुटं लकुटं स्रजः सकलमेव विभो तव मङ्गलम् ॥७॥
जय जयाजय मङ्गलमङ्गल जगति ते भवनं विपिनं गिरिः ।
सरिदलं वचनं चरितं श्रुतं निखिलमङ्गलमस्ति न चापरम् ॥८॥
जय जयाजय मङ्गलमङ्गल
कुरु विभो भवमङ्गलमङ्गलम् ।
तव मुखाम्बुजदर्शनतः परं
भवति आर्य सुमङ्गलमङ्गलम् ॥९॥
इति श्रीमङ्गलस्तोत्रं हरेरद्भुतकर्मणः ।
पठेदुषसि यस्तस्य मङ्गलं ह्याष्टयामिकम् ॥१०॥
॥ इति श्रीशाण्डिल्यसंहितायां पञ्चमे भक्तिखण्डे षोडशोऽध्याये श्रीहरिमङ्गलाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।