नित्यकर्म विधि – भाग ३, शुचिता

नित्यकर्म विधि – भाग ३, शुचिता

शौच करने के नियम

दिशा – दिन में उत्तर की ओर और रात में दक्षिण मुख बैठे । परंतु ये तो शौचालय निर्माण के समय ही ध्यान देना होगा। दिशा संबंधी यह नियम महत्वपूर्ण है इसलिए शौचालय निर्माण के समय में ही वास्तु-दिशा आदि का विचार कर लेना उचित होता है।

वस्त्र-यज्ञोपवीत – शौचकाल में सिर पर वस्त्र रखना व यज्ञोपवीत कान पर धारण कर लेना आवश्यक है। किन्तु आप जहां भी ढूंढेंगे पूजा-आरति में सिर ढंकने की बात कही जाने लगी है जो कि अनुचित है। पूजा करते समय सिर ढंकना निषिद्ध है, शौच अर्थात् मल-मूत्रोत्सर्ग काल में सिर ढंकना चाहिए।

  • शौच बैठकर ही करना चाहिये।
  • शौचकाल में मौन रहना चाहिये।
  • शोधन हेतु हाथ का भले ही उपयोग न भी किया जाय फिर भी हाथ की सफाई, पैर धोना और कुल्ला करना आवश्यक होता है।
  • मूत्रोत्सर्ग के बाद ४ बार और मलोत्सर्ग के बाद ८ बार कुल्ला करने का निर्देश शास्त्रों में दिया गया है।

दंतधावन के नियम

दंतधावन अभिमंत्रित दातुन से पूर्वाभिमुख बैठकर मौनधारण करते हुये करने का नियम था किन्तु दातुन की जगह ब्रस के ने ले लिया है और इस कारण दंतधावन नियम के पक्ष में दातुन संबंधी चर्चा ही अनपेक्षित हो जाती है। लेकिन कुछ अन्य आवश्यक नियम फिर भी पालनीय हैं।

दिशा – दंतधावन के लिये पूर्वाभिमुख बैठना चाहिये, लेकिन बेसिन में बैठें कैसे यह समस्या है और भी समस्या है कि बेसिन के अनुसार ही मुंह भी रहेगा । इसलिये बेसिन ही इस तरह बनाना चाहिये कि उपयोग करने वाला सदा पूर्वाभिमुख रहे। इसे भी घर बनाने से पहले ही किया जा सकता है।

थूक फेंकना, गण्डूष करना – इस संबंध में एक विशेष महत्वपूर्ण नियम यह है कि कुल्ला हमेशा बांयी ओर ही करे । थूंकने के लिये भी यही विधि है। सम्मुख या दांये भाग में कुल्ला निषिद्ध ।

कुल्ले की संख्या – दंतधावन के बाद १२ कुल्ले करने चाहिये।

कुल्ला बांयी ओर ही क्यों करना चाहिये ?

बांयी और कुल्ला करने, थूक फेंकने का प्रमाण : पुरतः सर्वदेवाश्च दक्षिणे पितरस्तथा। ऋषयः पृष्ठतः सर्वे वामे गण्डूषमाचरेत्। (आश्वलायन) आगे देवता होते हैं, दाहिने पितर और पीछे ऋषी। अतः सदा बांयी ओर ही कुल्ला करे। यह नियम थूक फेंकने के लिये भी पालनीय है।

कुल्ला करने के बाद दाहिने कर्ण का स्पर्श करके भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिये।

दाहिने कर्ण स्पर्श करने का क्या तात्पर्य है ?

दाहिने कर्ण में अग्नि का वास होता है एवं जब आचमन न कर सकें तो दाहिने कर्ण का स्पर्श करें यह नियम है। चूंकि आचमन की भी एक विशेष विधि होती है अतः यहाँ आचमन न करके दाहिने कर्ण को स्पर्श करने का ही विधान उचित है।

स्नान

स्नान के प्रकार :

स्नान तीन प्रकार के होते हैं : नित्यं नैमित्तिकं काम्यं त्रिविधं स्नानमुच्यते। तर्पणंतु भवेत्तस्य तदङ्गत्वेन कीर्तितं ॥

  • नित्य स्नान : जो प्रतिदिन किया जाता है और यहां नित्य स्नान की ही चर्चा की जाएगी।
  • नैमित्तिक स्नान : ग्रहण, अस्पृश्य वस्तु आदि स्पर्श से शुद्धि के निमित्त से किया जाने वाला स्नान नैमित्तिक स्नान कहलाता है।
  • काम्य स्नान : किसी कामना हेतु, जन्मदिवस, जो दैवज्ञ द्वारा बताया गया पुष्य आदि स्नान काम्य स्नान कहलाते हैं।
स्नान

पुनः स्नान का एक मुख्य भेद है – स्नान और गौण स्नान।

स्नान करने के नियम – घर में नित्य स्नान करने की विधि :

  • सर्वप्रथम किसी आसन पर पूर्वाभिमुख या सूर्याभिमुख बैठे।
  • हाथ-पैर धोकर तीन बार कुल्ला करे।
  • आचमन करे और शिखाबंधन करे।
  • जल में अगले मंत्रों से गंगादि तीर्थों का आवाहन करे (तीर्थों का स्मरण करे) :

ॐ गङ्गे च यमुने चैत्व गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ॥ सुरधुनि मुनिकन्ये तारयेः पुण्यवन्तम्, स तरत्ति निजपुण्यैस्तत्र किन्ते महत्त्वम् । यदि च गतिविहीनं पापिनं तारयेर्मां, तदपि च तव मातस्त्वन्महत्त्वं महत्त्वम् ॥ आपो नारा इति प्रोक्तास्ता एतस्यायनं पुनः । तस्मान्नारायणं देवं स्नानकाले स्मराम्यहम् ॥ – फिर स्नान करे ।

स्नान संबंधी कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी :

  • स्नान घर में भी नंगा स्नान न करे – स्नानकाल में देव-पितर आदि जल की आशा से साथ जाते हैं अतः स्नानागार में बंद होकर भी स्नान कर रहे हों तो भी नग्न होकर स्नान न करे ।
  • स्नान के बाद तुरंत शरीर न पोंछे – स्नान करके तुरंत तौलिया/गमछा/हाथ से शरीर को न पोंछें। स्नान के बाद शरीर से गिरने वाला जल देव-पितरों का भाग होता है।
  • गीले वस्त्र उतारने का तरीका – वस्त्र को ऊपरी भाग से बाहर उतारे । तर्पण करने वाले तर्पण से पहले वस्त्र न गाड़े/निचोरे । प्रयोगपारिजात – स्नानं कृत्वार्द्रवस्त्रं तु ऊर्ध्वमुत्तारयेद्विजः । आर्द्रवस्त्रमधस्ताश्चेत्पुनः स्नानेन शुच्यति ॥
  • वस्त्र साफ किये गये पानी – वस्त्र साफ किया हुआ पानी पैर पर नहीं डाले ।

कौवे का स्पर्श किया हुआ वस्त्र अशुद्ध हो जाता है किन्तु मात्र जल प्रोक्षन करने से शुद्ध हो जाता है। इसलिए वस्त्र को जल से प्रोक्षिक करके ही धारण करना चाहिये। मनु – काकस्पृष्टानि वस्त्राणि प्रोक्षितानि शुचीनि हि । प्रोक्षणाद्भूमिशुद्धिः स्याद्वाससामपि सर्वदा ।।

स्नानोपरांत त्रिकच्छ धोती-उपवस्त्रादि धारण करके आचमन करें, चंदनादि धारण करके संध्या वंदन करे ।

वस्त्र धारण करने के पश्चात् दो बार आचमन करना आवश्यक होता है।

अगले पृष्ठ पर जायें – संध्या विधि ..

F & Q :

प्रश्न : सिर कब ढंकना चाहिये ?
उत्तर : मलमूत्र त्याग करते समय।

प्रश्न : पूजा करते समय सिर क्यों ढका जाता है ?
उत्तर : यह गलत है। शास्त्रानुसार पूजा के समय सिर ढंकना निषिद्ध है। मूर्खों ने यह भ्रम फैला रखा है।

प्रश्न : मलमूत्र उत्सर्जन किस दिशा में मुख करके करना चाहिये ?
उत्तर : दिन में उत्तर दिशा और रात में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके मलमूत्र त्याग करना चाहिये।

प्रश्न : कुल्ला कितने बार करने चाहिये ?
उत्तर : प्रातः उठने के बाद 3 बार, विष्ठा के बाद 8 बार, मूत्रोसर्जन के बाद 4 बार, स्नान करने से पहले 3 बार।

प्रश्न : कुल्ला किस ओर करना चाहिये ?
उत्तर : कुल्ला बांयी ओर करना चाहिये।

प्रश्न : स्नान करते समय साथ में कौन-कौन जाते हैं ?
उत्तर : स्नान करते समय देवता-पितर आदि वायुरूप से साथ में जाते हैं।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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