पवित्रीकरण-विधि

पवित्रीकरण अर्थात शुद्धिकरण की संपूर्ण विधि

सम्पूर्ण कर्मकांड में पवित्रीकरण अर्थात शुद्धिकरण की सर्वप्रथम आवश्यकता होती है। चाहे पूजा स्थल की बात हो, पूजा सामग्री की बात हो अथवा शारीरिक या मानसिक शुद्धि का विषय हो, प्रत्येक कर्म का आरम्भ पवित्रीकरण से ही होता है। इस आलेख में पवित्रीकरण की संपूर्ण विधि बताई गयी है जो अत्यंत उपयोगी विषय है।

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क्षमा प्रार्थना मंत्र

क्षमा प्रार्थना मंत्र

क्षमा प्रार्थना का तात्पर्य है अपने अपराधों (गलतियों) के लिये क्षमा याचना की विनती करना। यहां दिये गये क्षमा प्रार्थना में एक मंत्र “आवाहनं न जानामि” का प्राकारांतर भी दिया गया है एवं एक अतिरिक्त मंत्र “प्रसीद भगवत्यम्ब” भी दिया गया है।

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प्राधानिक रहस्य

प्राधानिक रहस्य

भगवन्नवतारा मे चण्डिकायास्त्वयोदिताः।
एतेषां प्रकृतिं ब्रह्मन् प्रधानं वक्तुमर्हसि॥१॥
आराध्यं यन्मया देव्याः स्वरूपं येन च द्विज।
विधिना ब्रूहि सकलं यथावत्प्रणतस्य मे॥२॥

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पुरुष सूक्तं – कृष्ण यजुर्वेदीय

पुरुष सूक्तं – कृष्ण यजुर्वेदीय

जहां शुक्लयजुर्वेद के पुरुषसूक्त में १६ ऋचायें मिलती है वहीं कृष्ण यजुर्वेद में १८ ऋचायें प्राप्त होती हैं।

कृष्ण यजुर्वेदियों को कृष्णयजुर्वेद के मंत्रों का ही उपयोग करना चाहिये।

सर्वत्र शुक्ल यजुर्वेद की ऋचायें इसलिये उपलब्ध होती है क्योंकि अधिकांश लोग शुक्ल यजुर्वेद के ही माध्यन्दिन शाखा का पालन करने वाले हैं।

किन्तु अन्य वेदों व शाखा वाले लोग भी हैं।

सबको अपने वेद व शाखा का ही पालन करना श्रेयस्कर कहा गया है।

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पितृ सूक्त

पितृ सूक्त

जिस तरह से विभिन्न देवताओं के सूक्त होते हैं उसी तरह पितरों के लिये भी विभिन्न वेदों में सूक्त हैं जिसे पितृसूक्त कहा जाता है। जिसमें से अन्य सभी सूक्तों की तरह ही शुक्ल यजुर्वेदोक्त पितृसूक्त ही मुख्य रूप से प्रयुक्त होता है।

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अप्रतिरथ सूक्त – Apratirath Suktam

अप्रतिरथ सूक्त – Apratirath Suktam

यजुर्वेद के सत्रहवें अध्याय में ऋचा ३३ से लेकर ४९ तक जो १७ ऋचायें हैं वो इंद्र की विशेष स्तुति है।
इंद्र की स्तुति वाली इस ऋचा का नाम अप्रतिरथ सूक्त है।

अर्थात वेद में मिलने वाला इंद्र स्तोत्र अप्रतिरथ सूक्त ही है।
रुद्राष्टाध्यायी में तीसरा अध्याय अप्रतिरथ सूक्त ही है।

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पवमान सूक्त – यजुर्वेदोक्त, विभिन्न यज्ञ, पूजा, पाठ आदि कर्मकांड के लिये विशेष महत्वपूर्ण सूक्त

पवमान सूक्त – यजुर्वेदोक्त, विभिन्न यज्ञ, पूजा, पाठ आदि कर्मकांड के लिये विशेष महत्वपूर्ण सूक्त

पवमान सूक्त यज्ञ में महत्वपूर्ण है। यह सामग्री को पवित्र करता है और जल प्रोक्षण में उपयोग होता है। ऋग्वेद में इसका वर्णन है। इसमें देवों की पूजा और अनुष्ठान का विवरण है।

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रक्षोघ्न सूक्त – ऋग्वेदोक्त, यजुर्वेदोक्त – रक्षोघ्न मंत्र

रक्षोघ्न सूक्त – ऋग्वेदोक्त, यजुर्वेदोक्त – रक्षोघ्न मंत्र

रक्षोघ्न सूक्त यजुर्वेद, ऋग्वेद, और अथर्ववेद में पाया जाता है और यज्ञ-पूजा में इसका प्रमुख उपयोग होता है। श्राद्ध में भी इसका पाठ किया जाता है, लेकिन यह पूजा-यज्ञ-अनुष्ठानों में भी होता है। इसे पितरों का मंत्र मानना एक भ्रम है।

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नामकरण कैसे करें ? नामकरण संस्कार

नामकरण कैसे करें ? नामकरण संस्कार

सूतिका को पंचगव्य प्राशन करा दे।
फिर पूर्व बताई विधि के अनुसार बालक को लेकर सूतिका पूजा स्थान पर आये।
बालक को गोद में ली हुई माता अग्नि की प्रदक्षिणा करके संस्कारकर्ता के बांयी ओर बैठे ।
आचमन करके पूजित देवताओं का स्मरण करके पुष्पांजलि दे।
फिर आचार्य अथवा बालक का पिता स्वर्ण शलाका से अष्टगंधादि द्रव्य का द्वारा पीपल के पांच पत्ते या श्वेत वस्त्र पर बच्चे के लिये निर्धारित पंचनाम लिखे।
फिर पंचनामों को तण्डुलपूर्ण पात्र में रखकर अक्षत-पुष्पादि लेकर उसकी प्रतिष्ठा करे :

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संध्या तर्पण विधि

संध्या तर्पण विधि

संध्या तर्पण विधि : शारीरिक शुद्धि अर्थात शुचिता के बाद नित्यकर्म में संध्या, तर्पण, पंचदेवता व विष्णु पूजन का क्रम आता है। संध्या तो त्रैकालिक होती है अर्थात प्रातः, मध्यान और सायाह्न तीनों कालों में करणीय है, किन्तु तर्पण व पंचदेवता विष्णु पूजन प्रातः का ही नित्यकर्म है ये दोनों त्रैकालिक नहीं हैं।

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