पद्म पुराणोक्त दामोदर स्तोत्र संस्कृत में - damodar stotra

पद्म पुराणोक्त दामोदर स्तोत्र संस्कृत में – damodar stotra

पद्म पुराणोक्त दामोदर स्तोत्र संस्कृत में – damodar stotra : भगवान विष्णु का ही एक नाम दामोदर है। कृष्णावतार में माता यशोदा ने रजभक्षण पर उन्हें रस्सी से बांधने का उपक्रम किया था और इसी से भगवान कृष्ण का नाम दामोदर हो गया। पद्म पुराण में सत्यव्रत के एक स्तोत्र है जो दामोदर स्तोत्र नाम से जाना जाता है। इस स्तोत्र की एक विशेषता कार्तिक मास से संबद्ध होना भी है।

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गोपाल कवच संस्कृत में - gopal kavach

गोपाल कवच संस्कृत में – gopal kavach

गोपाल कवच संस्कृत में – gopal kavach : नारद पंचरात्र में गोपाल कवच वर्णित है जिसे बाल गोपाल कवच भी कहा जा सकता है। इसी के साथ एक और महत्वपूर्ण गोपाल कवच ब्रह्मसंहिता में वर्णित है जिसे श्रीगोपालाक्षयकवचं नाम से जाना जाता है। प्रथम गोपाल कवच का मुख्य फल नित्य पाठ से शत्रुरहित होना बताया गया है तो द्वितीय श्रीगोपालाक्षयकवचं के अन्य अनेकानेक फल भी बताये गये हैं।

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वराह पुराणोक्त गदाधर स्तोत्रं - gadadhara stotram

वराह पुराणोक्त गदाधर स्तोत्रं – gadadhara stotram

वराह पुराणोक्त गदाधर स्तोत्रं – gadadhara stotram : वराह पुराण में रैभ्य के द्वारा भगवान विष्णु का जो स्तवन किया गया है उस स्तोत्र का नाम गदाधर स्तोत्र (gadadhara stotram) है। इस स्तोत्र में कुल ९ बार गदाधर नाम लिया गया है और इसी कारण इसे गदाधर स्तोत्र कहा गया है।

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बाल कृष्ण सहस्रनाम - bal krishna sahasranam

बाल कृष्ण सहस्रनाम – bal krishna sahasranam

बाल कृष्ण सहस्रनाम – bal krishna sahasranam : भगवान कृष्ण की पूजा में उनके बालरूप का विशेष महत्व है जिन्हें बालकृष्ण, बालगोपाल कहा जाता है। यदि हाथ में लड्डू हो तो लड्डू गोपाल भी कहा जाता है। यदि आप बालकृष्ण के सहस्रनाम का अवलोकन करना चाहते हैं तो वह नारद पंचरात्र में शिव-पार्वती संवादात्मक है।

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गोपाल हृदय स्तोत्र - gopal hriday stotra

गोपाल हृदय स्तोत्र – gopal hriday stotra

गोपाल हृदय स्तोत्र – gopal hriday stotra : भगवान गोपाल का जो हृदय स्तोत्र है उसे गोपाल हृदय स्तोत्र नाम से तो जानते ही हैं, इसके साथ ही इसे विष्णु हृदय स्तोत्र नाम से भी जाना जाता है। यहां गोपाल हृदय स्तोत्र (gopal hriday stotra) संस्कृत में दिया गया है।

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श्री गोपाल स्तवराज - Shri Gopala Stavaraja

श्री गोपाल स्तवराज – Shri Gopala Stavaraja

श्री गोपाल स्तवराज – Shri Gopala Stavaraja : भगवान श्रीकृष्ण गोपालन करते थे और इसी कारण उनका एक नाम है गोपाल। भगवान के विषय में कहा गया है “गो द्विज धेनु देव हितकारी”, कर्मकांड में बिना गव्य प्रयोग के कुछ भी संभव नहीं है। यज्ञ का मूल गो है और गो के पालक भगवान स्वयं ही हैं एवं इसी कारण भगवान का एक नाम गोपाल है। स्तोत्रों में जो बहुत ही महत्वपूर्ण होता है उसे स्तवराज कहा जाता है।

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मधुराष्टकं - madhurashtakam

मधुराष्टकं – madhurashtakam

मधुराष्टकं – madhurashtakam : भगवान श्री कृष्ण की स्तुति करें और उसमें मधुराष्टकं न करें ऐसा कैसे हो सकता है। मधुराष्टकं भगवान श्री कृष्ण का ऐसा स्तोत्र है जो अधिकांश लोगों कंठाग्र भी रहता है। इस स्तोत्र में भगवान को सर्वविध मधुर और मधुर बताया गया है और इस स्तोत्र का पाठ-गायन-श्रवण सब विशेष मधुर लगता है।

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ककारादि कृष्ण सहस्रनाम - kakaradi krishna sahasranama

ककारादि कृष्ण सहस्रनाम – kakaradi krishna sahasranama

ककारादि कृष्ण सहस्रनाम – kakaradi krishna sahasranama : जिस देवता का सहस्रनाम हो उस देवता के नामाद्याक्षर से संबंधित सहस्रनाम विशेष महत्वपूर्ण होता है। भगवान श्री कृष्ण का नामाद्याक्षर “क” है अतः “क” अक्षर से संबंधित सहस्रनाम विशेष महत्वपूर्ण हो जाता है और इसे ककारादि कृष्ण सहस्रनाम (kakaradi krishna sahasranama) कहा जाता है। यदि ककारादि कृष्ण सहस्रनाम की बात करें तो यह श्री ब्रह्माण्ड पुराण में मिलता है और इसमें कुल ३६० श्लोक हैं।

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कृष्ण सहस्रनाम - krishna sahasranam

श्री कृष्ण सहस्रनाम – krishna sahasranam

श्री कृष्ण सहस्रनाम – krishna sahasranam : यदि भगवान श्री कृष्ण सहस्रनाम की बात करें तो यह अनेकों पुराणों में मिलता ही है और साथ ही साथ अनेकों नामों से भी सहस्रनाम मिलता है। इनमें से गर्ग संहिता में वर्णित श्री कृष्ण सहस्रनाम का अपना विशेष महत्व है

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कृष्ण अष्टोत्तर शतनाम - krishna ashtottara satanam

कृष्ण अष्टोत्तर शतनाम – krishna ashtottara satanam

कृष्ण अष्टोत्तर शतनाम – krishna ashtottara satanam : नारद पञ्चरात्र में भगवान श्री कृष्ण का अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र मिलता है श्री शेष कृत है। इस अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का बहुत ही विशेष फल बताया गया है। अन्य सभी प्रकार के पुण्यप्रद कर्मों से कड़ोरों गुणित फल इसका कहा गया है। इसकी एक बड़ी विशेषता जो बताई गयी है वो है बालक और गोवंश के लिये पुष्टिकारक होना।

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