संध्या तर्पण विधि

संध्या तर्पण विधि

संध्या तर्पण विधि : शारीरिक शुद्धि अर्थात शुचिता के बाद नित्यकर्म में संध्या, तर्पण, पंचदेवता व विष्णु पूजन का क्रम आता है। संध्या तो त्रैकालिक होती है अर्थात प्रातः, मध्यान और सायाह्न तीनों कालों में करणीय है, किन्तु तर्पण व पंचदेवता विष्णु पूजन प्रातः का ही नित्यकर्म है ये दोनों त्रैकालिक नहीं हैं।

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सत्यनारायण पूजा विधि मंत्र सहित

सत्यनारायण पूजा विधि मंत्र सहित – Satyanarayan Puja Vidhi

सत्यनारायण पूजा विधि मंत्र सहित – Satyanarayan Puja Vidhi : १. पवित्रीकरण मंत्र : ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याऽभंतर: शुचि:॥ ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥ हाथ में गंगाजल/जल लेकर इस मंत्र से शरीर और सभी वस्तुओं पर छिड़के ।२. आसन पवित्रीकरण मंत्र : ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ इस मंत्र से आसन पर जल छिड़क कर आसनशुद्धि करें।

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पूजा विधि मंत्र सहित - कर्मकांड सीखना

पूजा विधि मंत्र सहित – कर्मकांड सीखना

कर्मकांड सीखना : यह भारतीय कर्मकांड की भौमिक को समझाने का प्रयास करता है। कर्मकांड का सीखना मिश्रित प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न संस्कार, पूजन विधि, हवन विधि, और यज्ञ विधि शामिल हैं। एक कर्मकांडी बनने के लिए, सटीकता, इंद्रियों पर नियंत्रण, और सत्याग्रह की आवश्यकता होती है। यद्यपि ऑनलाइन साधारण कर्मकाण्ड उपयोगी मान गया है, लेकिन यह विशदीकरण के बिना शास्त्रीय कर्मकांड का प्रशिक्षण प्रदान करने में सक्षम नहीं होता है। वेबसाइट karmkandvidhi.com पर विस्तृत सामग्री उपलब्ध है जो कर्मकांड सीखने में सहायक हो सकती है।

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उल्काभ्रमण का शास्त्रीय प्रमाण

उल्काभ्रमण का शास्त्रीय प्रमाण क्या है? पितृ विसर्जन कब करें? पितृ विसर्जन कैसे किया जाता है?

उल्काभ्रमण का शास्त्रीय प्रमाण क्या है? पितृ विसर्जन कब करें? पितृ विसर्जन कैसे किया जाता है? – पितृपक्ष में यमलोक से पितृगण पृथ्वी पर अन्न-जलादि की आकांक्षा से आते हैं; और पितरों के आने से ही महालय सिद्ध होता है। पितृपक्ष में तर्पण-श्राद्ध आदि के द्वारा पितरों को अन्न-जलादि प्रदान किया जाता है। यदि पितर गण यमलोक से आते हैं तो वापस भी जाना ही चाहिए। कार्तिक अमावास्या को पितर वापस यमलोक जाते हैं।

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