दुर्गा पूजा : बिल्वाभिमन्त्रण विधि

दुर्गा पूजा : बिल्वाभिमन्त्रण विधि

नवरात्र महोत्सव में प्रतिपदा से आरंभ कर षष्ठी तक की पूजा समान है, कुछ विशेष उपचार हैं जो प्रतिदिन परिवर्तित भी किये जाते हैं। नवरात्र की पिछली तीनों तिथियां विशेष हैं – महासप्तमी, महाष्टमी और महानवमी । इन तीनों दिनों विशेष पूजा की जाती और उसका प्रारंभ षष्ठी को सायंकाल से ही हो जाता है। षष्ठी को सायंकाल में बिल्वाभिमंत्रण किया जाता है जिसे अगली प्रातः में भगवती का आवाहन-पूजन करने हेतु शिविका में स्थापित करके लाया जाता है। यहां बिल्वाभिमंत्रण की विधि दी गई है।

दुर्गा पूजा : बिल्वाभिमन्त्रण विधि

बिल्वाभिमन्त्रण को स्थानीय भाषा में बेलनौती, बेलटूटि आदि भी कहा जाता है। नित्य की भांति षष्ठी को भी प्रातः कालीन पूजा करके सायंकाल (सूर्यास्त के उपरांत) आगामी महापूजा हेतु बिल्व को निमंत्रण दिया जाता है और अगले दिन प्रातः काल निमंत्रित युगल बिल्वफल को शिविका में लाया जाता है। महापूजा में प्रथम पूजा बिल्व पर ही आवाहन करके की जाती है। बिल्व के संबंध में ये विशेष नियम है कि युग्म बिल्व का ही छेदन करके डाली सहित लाया जाता है।

  • देवीपुराण – ज्येष्ठानक्षत्रयुक्तायां षष्ठ्यां बिल्वाभिमन्त्रणम् ॥
  • महाकालसंहिताया : षष्ठ्यां सायं प्रकुर्वीत बिल्ववृक्षेऽधिवासनम् । रजन्याद्ये मुहूर्ते तु चण्डिकामधिवासयेत् ॥

षष्ठी को सायंकाल में गीत-वाद्य करते हुये चिह्नित बिल्ववृक्ष के पास जाते हैं, संकल्प करने के उपरांत, समंत्र प्रणाम करके वृक्ष को स्नान कराकर पंचोपचार पूजा की जाती है। तत्पश्चात बिल्ववृक्ष में ही भगवती दुर्गा का आवाहन करके पंचोपचार पूजन और प्रार्थनापूर्वक बोधन किया जाता है। तत्पश्चात पीत सूत्र/वस्त्र से वृक्ष को वेष्टित किया जाता है। व्यवहार में चिह्नित युग्म फल को भी पीतवस्त्र से वेष्टित किया जाता है ताकि छेदनकाल में भ्रम न हो। बिल्ववृक्ष में खोंयछा भी बांधने का व्यवहार बहुत जगह देखने को मिलता है।

कई जगहों पर बिल्वमूल में कलशस्थापन करने का भी व्यवहार पाया जाता है, तथापि कलशस्थापित करने की न तो पद्धति है और न ही उचित प्रतीत होता है क्योंकि रात्रि काल में कलशस्थापन निषिद्ध है, साथ ही रात्रि में स्थापित कलश को श्वान आदि पशुस्पर्श का भय रहता है।

बिल्वाभिमन्त्रण विधि और मंत्र

बताई गयी विधि के अनुसार सायंकाल (रात्रि के आदि में) पूजन सामग्री लेकर, गाजे-बाजे के साथ, ध्वजादि लेकर, घंटा-शंख आदि बजाते हुये बिल्ववृक्ष के पास जाकर धूप-दीप जला ले, नैवेद्य व अन्य पूजा सामग्री व्यवस्थित कर ले। पवित्रीकरणादि करके संकल्प करे। संकल्प हेतु त्रिकुशा-तिल-जल-द्रव्यादि लेकर आगे दिया गया संकल्प मंत्र पढ़े :

ततपश्चात दोनों हाथ जोड़कर बिल्ववृक्ष को प्रणाम करते हुये अगला मंत्र पढ़े :

तत्पश्चात बाल्टी आदि में जल लेकर लोटा आदि पात्र द्वारा बिल्ववृक्ष को जहां तक संभव हो धोये अर्थात स्नान कराये :

इसी प्रकार पञ्चोपचार पूजा करके पुष्पांजलि दे :

बिल्ववृक्ष में दुर्गा पूजन

जो बिल्ववृक्ष में भगवती दुर्गा के निमित्त खोंयछा बांधते हैं वो प्रथम खोंइछा बांध लें तत्पश्चात भगवती दुर्गा का बिल्ववृक्ष में आवाहन करके यथोपचार/पंचोपचार पूजन-प्रार्थना आदि करे :

पूजन करके पुष्पादि लेकर अगले मंत्रों से देवी का बोधन करे :

प्रणाम करे :

दोनों हाथों से बिल्व वृक्ष को स्पर्श करके अगला मंत्र पढ़े :

तत्पश्चात पीतसूत्र या वस्त्र से वृक्ष को वेष्टित करे, युग्म फल को भी पीतवस्त्र से वेष्टित करने का आचार हो तो पालन करे।

तत्पश्चात समयानुसार आरती प्रार्थना आदि करके पुनः मंदिर आये। मंदिर में संध्या पूजा, भोग आदि अर्पित करके आरती-क्षमाप्रार्थना आदि करे।

प्रातःकाल पुनः शिविका (सुसज्जित पालकी) लेकर बिल्ववृक्ष के पास जाकर डाली सहित छेदन करके युग्म फल को शिविका में लाये : पत्रिका प्रवेश विधि – महासप्तमी पूजा

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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