लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजियउ तेहु॥

लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजियउ तेहु॥

लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजियउ तेहु॥ : जनभावना और भारतीय परंपरा या व्यवहार यही है कि गांवों के लोग आज भी “न जाने किस वेश में नारायण मिल जाय” में विश्वास रखते हैं भले ही कितने ही पाखंडियों ने ठगा क्यों न हो।

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भक्ति की शक्ति भाग २

भक्ति की शक्ति भाग 2

भक्ति की शक्ति का वर्णन यदि भगवान भी करना चाहें तो बड़ी विकट स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। भगवान स्वयं भी स्वयं का पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते हैं और जैसे भगवान स्वयं का वर्णन नहीं कर सकते वैसे ही भक्ति की महिमा या शक्ति का वर्णन भी नहीं कर सकते।

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भक्ति की शक्ति भाग - १

भक्ति की शक्ति भाग – 1

भक्ति की शक्ति : ये विज्ञान का अहंकार है जो चमत्कार को अस्वीकार करता है। ये विज्ञान की तानाशाही है जो ऐसे कानून बनवा देता है जिससे चमत्कार संबंधी वार्तालाप भी अपराध सिद्ध हो जाये। हमें उस कानून के बारे में विशेष ज्ञात तो नहीं कि वो कानून क्या कहता है और हमारा आलेख किसी प्रकार से उस कानून का उल्लंघन भी करता है या नहीं, तदपि यदि ऐसा कानून है जिसका इस आलेख से उल्लंघन हो रहा हो तो वो कानून गलत है उस कानून को बदलने की आवश्यकता है।

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भक्ति मार्ग की प्राचीनता

भक्ति मार्ग की प्राचीनता

भक्ति मार्ग की प्राचीनता : भारत की संस्कृति और सनातन का इतिहास पुस्तकों में ही नहीं नदियों और पहाड़ों में भी लिखी हुयी है किन्तु यदि उसे झुठलाने का ही दुराग्रह लेकर इतिहास लिखा जाये तो ये षड्यंत्र के अतिरिक्त और कुछ नहीं माना जा सकता। आधुनिक भारतीय इतिहास को संवत से क्यों नहीं व्यक्त किया जा सकता ?

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सुख कैसे प्राप्त करें | सुख प्राप्ति के शाश्वत उपाय

सुख कैसे प्राप्त करें | सुख प्राप्ति के शाश्वत उपाय

सुख कैसे प्राप्त करें : शांति प्राप्त करना सुख है, विश्राम करना सुख है। एक पथिक जो यात्रा (श्रम) कर रहा है वह दुःख प्राप्त कर रहा है; पैर दुखने लगता है, शरीर थक जाता है, मन व्यथित होने लगता है आदि-आदि। जब विश्राम करता है तो सुख का अनुभव करता है, जो दुःख भुगत रहा था उससे आराम मिलता है, पैर का दर्द मिलना बंद हो जाता है और दर्द दूर भी होने लगता है, शरीर की थकान दूर होने लगती है। यह सुख को समझने का एक उदहारण है।

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स्वर्ग नरक सब यहीं है, सुख ही स्वर्ग और दुःख नरक है

स्वर्ग नरक क्या है ? स्वर्ग नरक सब यहीं है, सुख ही स्वर्ग और दुःख नरक है

स्वर्ग नरक क्या है : शास्त्रों में ऐसा प्रमाण नहीं है जो यह सिद्ध करता हो कि स्वर्ग और नरक कुछ भी पृथक नहीं है और संसार में ही स्वर्ग नरक है, ऐसा प्रमाण नहीं मिलता है कि सुख ही स्वर्ग है और दुःख ही नरक है। काव्यों में सुख की स्वर्ग से और दुःख की नरक से तुलना करने की परंपरा अवश्य रही है।

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कर्म का फल भोगना ही पड़ता है तो दुःख का कारण अज्ञान कैसे

कर्म का फल भोगना ही पड़ता है तो दुःख का कारण अज्ञान कैसे

कर्म का फल : एक ओर कर्मफल के भुक्ति का प्रमाण है वहीं दूसरी ओर दुःख का कारण अज्ञान है ये प्रमाण है, परस्पर विरोधाभाषी प्रतीत होता है, यदि कर्मफल के कारण सुख-दुःख की प्राप्ति होती है तो फिर अज्ञान कैसे कारण सिद्ध होता है। वहीं कर्म के विषय में भी ऐसा प्रमाण है कि बिना भोगे कर्म का क्षय नहीं होता है तो दूसरी ओर पाप नाश का भी प्रमाण है और अनंत कथायें हैं जिसमें भगवान की कृपा से पाप का नाश भी होता है यह सिद्ध होता है।

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क्या संसार में कोई सुखी नहीं है, दुःख के प्रकार

क्या संसार में कोई सुखी नहीं है, दुःख के प्रकार

दुःख के प्रकार : “आहार निद्रा भय मैथुनं च” ये चार चीजें सभी प्राणियों में समान रूप से ही पायी जाती है। इन चार चीजों के कारण मनुष्य अन्य किसी प्राणियों से तनिक भी भिन्न नहीं है तथापि भिन्न है भी। ये भिन्नता वर्त्तमान युग में अत्यधिक दिखती है।

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दुःख ही जनम भेल दुःख ही गंवाओल, सुख सपनेहुं नहीं भेल

जन्म दुःखं जरा दुःखं : दुःख ही जनम भेल दुःख ही गंवाओल, सुख सपनेहुं नहीं भेल

जन्म दुःखं जरा दुःखं : धर्मराज युधिष्ठिर, गांडीवधारी अर्जुन, गदाधारी भीम, भाला वाला नकुल सहदेव, साथ में सहयोगी थे साक्षात् नारायणावतार भगवान श्रीकृष्ण। लेकिन कितना दुःख झेला था ये तो सोचो ? इनको दुःख क्यों मिला ? इन्हें तो संसार के सर्वश्रेष्ठ सुखी व्यक्तियों में जाना जाया चाहिये था। इनके जीवन चरित्र का अवलोकन करो और ज्ञात करो कब सुख भोगा था।

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आप दुःखी क्यों हैं - why are u sad

आप दुःखी क्यों हैं – why are u sad

why are u sad : संसार का एक नाम ही दुःखालय है। जैसे पुस्तकालय में पुस्तक मिलता है, औषधालय में औषधि, चिकित्सालय में चिकित्सा, विद्यालय में विद्या, वस्त्रालय में वस्त्र उसी प्रकार दुःखालय में क्या होगा या मिलेगा यह समझना अधिक कठिन नहीं है, समस्या इसे मानने और न मानने की है।

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