सनातन धर्म और इस्लाम में सबसे बड़ा अंतर क्या है ?
यहाँ सनातन धर्म और इस्लाम पंथ के दो ऐसे ऐतिहासिक उदाहरण को प्रस्तुत किया गया है जिसके द्वारा बिना कुछ कहे भी सनातन धर्म और इस्लाम पंथ का अंतर भलीभांति समझा जा सकता है।
यहाँ सनातन धर्म और इस्लाम पंथ के दो ऐसे ऐतिहासिक उदाहरण को प्रस्तुत किया गया है जिसके द्वारा बिना कुछ कहे भी सनातन धर्म और इस्लाम पंथ का अंतर भलीभांति समझा जा सकता है।
इस आलेख में हम चर्चा करेंगे की सनातन धर्म और इस्लाम में मुख्य अंतर क्या है। दोनों के बीच बहुत सारे बाह्य अंतर भी हैं लेकिन मुख्य अंतर जो कि आंतरिक है, विचार या सोच का है हम उसे ऐतिहासिक उदहारण से समझने का प्रयास करेंगे।
सर्वप्रथम बाबरी विध्वंस का सही तात्पर्य समझना होगा। अभी तक जो तात्पर्य समझा-समझाया जाता है वह है बाबरी ढांचे का गिरना। लेकिन यह अर्थ सही नहीं लगता है।
श्री अयोध्या पुरी को शकों ने उजाड़ दिया था। अन्य मंदिरों के साथ-साथ श्री राम का प्राचीन मंदिर भी विध्वंस कर दिया था और विध्वंस ऐसा था कि उस स्थान का पता करना भी असंभव कार्य था।
पंडित देवीदीन पांडे एक शूरवीर ब्राह्मण थे, जिन्होंने मुग़ल सेना के विरुद्ध रणभूमि में वीरगति प्राप्त किया था। उनकी वीरता का इतिहास गोपनीय रहा पर उन्होंने भारतीय धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपना जीवन न्योछावर किया। उनका और राम मंदिर के नाम सदैव जुड़ा रहेगा।
शंकराचार्य ज्ञान पक्ष में होते हैं। कर्मकांड में शंकराचार्य की भूमिका नगण्य होती है अथवा बिल्कुल ही नहीं होती। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में विरोधियों को बड़ा अच्छा प्रश्रय मिल रहा है और वह है शंकराचार्यों के वक्तव्य। लेकिन शंकराचार्यों के वक्तव्य में कुछ प्रच्छन्न पीड़ा भी है जो पूर्व से है। जहां तक प्राण प्रतिष्ठा संबंधी विहित-निषिद्ध, उचित-अनुचित आदि वाली बातें हैं उसके लिये शंकराचार्य का कोई दायित्व ही नहीं है यदि उपस्थित न हों ।
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में नया विवाद है, जिसमें शंकराचार्य का अनपेक्षित विडिओ सामने आया है। राम मंदिर निर्माण में राजनीतिक होने के साथ प्राण प्रतिष्ठा का धार्मिक महत्व भी है। इस प्रकार के कर्म में शास्त्रीय मर्यादा का पालन अत्यंत आवश्यक है। पर्षद की अहमियत और अनुचित आमंत्रण के विषय में विचार करना चाहिए।
आज मन्दिर निर्माण घोटाले की सच्चाई जानने के लिए, हमें सारे तथ्यों को समझने की आवश्यकता है। आरोप और आरोपियों के बारे में सच्चाई से पहले हमें समझना चाहिए। यह निश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि क्या गलती हुई है और कैसे हुई है।
भद्रा के तीनों परिहार दो कार्यों का त्याग करके ही किया जाता है। परिहार का विचार रक्षाबंधन और होलिका दहन में नहीं किया जा सकता। होलिका दहन रात्रि में ही किया जाना होता है अतः यदि भद्रारहित काल न मिले तो होलिका में भी पुच्छ भाग वाला परिहार ग्राह्य होता है।
हवन का जो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य वो यह है कि मात्र एक हवन जिसे नित्य होम कहा जाता है और नित्य होम करने वाले को अग्निहोत्री कहा जाता है, उस नित्य होम को छोड़कर अन्य कोई भी हवन बिना ब्राह्मण के नहीं हो सकता।