
महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि – Mahalaxmi Vrat Puja
संकल्प करने के बाद 16 बार जल से हाथ-मुंह और पैर का प्रक्षालन करे (धोये) तत्पश्चात 16 तंतु युक्त सुंदर धागे में 16 गांठ लगाये और चंदन-पुष्पादि से अलंकृत कर दे, सोलह दूर्वा भी पूजा में रखे।
कर्मकांड में पूजा, पाठ, जप, हवन, शांति, संस्कार, श्राद्ध आदि सभी प्रकरण समाहित हो जाते हैं। कर्मकांड विधि द्वारा इन सभी कर्मकांड पूजा पद्धति से संबंधित विधि और मंत्रों का यहाँ पर्याप्त संग्रहण उपलब्ध है – karmkand
संकल्प करने के बाद 16 बार जल से हाथ-मुंह और पैर का प्रक्षालन करे (धोये) तत्पश्चात 16 तंतु युक्त सुंदर धागे में 16 गांठ लगाये और चंदन-पुष्पादि से अलंकृत कर दे, सोलह दूर्वा भी पूजा में रखे।
सिद्धिविनायक व्रत कथा में भरद्वाज मुनि सूत से पूछते हैं कि विघ्नों का निवारण कैसे होगा। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया उत्तर में सिद्धिविनायक की पूजा व्रत करने को कहा गया, जिससे नष्टराज्य की पुनर्प्राप्ति हो सकती है। सिद्धिविनायक की पूजा से सभी कार्यों की सफलता होती है और चाहे विद्या हो या धन, विजय या सौभाग्य, सब इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
भाद्र शुक्ल चतुर्थी को सिद्धिविनायक की पूजा की जाती है। पूजा के लिये मध्याह्नकाल को प्रशस्त बताया गया है। यह तिथि वर्ष में एक बार ही उपलब्ध होती है किन्तु यदि भक्तिभाव हो तो अन्य दिनों में भी सिद्धिविनायक की पूजा की जा सकती है।
पूजा से पहले नित्यकर्म किया जाता है। चौरचन पूजा यद्यपि पुरुष भी कर सकते हैं तथापि अधिकांशतः स्त्रियां ही करती है। स्त्रियों के लिये नित्यकर्म का तात्पर्य पंचदेवता व गौरी पूजा है। पूजा सूर्यास्त के बाद होती है इसलिये गणपत्यादि पंचदेवता और गौरी की पूजा करे। विधवा स्त्री गणपत्यादि पंचदेवता व विष्णु पूजा करे। तत्पश्चात संकल्प करके चतुर्थी चंद्र पूजा करे।
इस प्रकार दृश्य व अदृश्य दोनों पंचांगों के आधार पर प्रदोषकालीन चतुर्थी 6 सितम्बर 2024 शुक्रवार को उपलब्ध है और चतुर्थी चंद्र या चौरचन व्रत होना सिद्ध होता है। पंचांगों में भी इसी दिन चौरचन व्रत पूजा बताया गया है।
पूजा का काल प्रदोषकाल ही होता है अतः प्रदोषकाल में ही पूजा करे। पवित्रीकरणादि करके सर्वप्रथम संकल्प करे। यदि चौदह वर्षों तक ही करना हो तो प्रथम वर्ष चौदह वर्ष करने का संकल्प करे, अन्य वर्षों में संकल्प करे। यदि 14 वर्ष से अधिक भी करना हो तो 14 वर्षों वाला संकल्प प्रथम वर्ष न करे।
जैसे दिन में आँखें मूंद लेने से रात नहीं हो जाती उसी तरह सत्य को नकारने मात्र से वह असत्य नहीं हो जाता। विधवा का नयी व्यवस्थानुसार पुनर्विवाह कर देने से जीवन में व्यस्तता तो आ जाती है किन्तु वैधव्य का दुःख समाप्त नहीं होता। हरितालिका तीज व्रत वैधव्य निवारण के लिये किया जाता है।
हरितालिका तीज के संबंध में दृश्य और अदृश्य में पंचांगों में तिथि काल में 3 घंटे का अंतर होते हुये भी दोनों ही प्रकार से 5 सितम्बर 2024 गुरुवार को द्वितीयायुता तृतीया है एवं 6 सितम्बर शुक्रवार को चतुर्थीयुता तृतीया है। 2024 में सभी प्रकार के पंचांगों से विचार करने पर भी 6 सितम्बर शुक्रवार को ही हरितालिका तीज व्रत सिद्ध होता है।
वेधसिद्ध अर्थात दृश्य पंचांगों द्वारा 26 अगस्त 2024 सोमवार को ही औदयिक व निशीथव्यापिनी दोनों अष्टमी उपलब्ध है, 27 अगस्त को तनिक भी नहीं है इस कारण 26 अगस्त सोमवार को ही जन्माष्टमी व्रत की सिद्धि होती है।
यह सिद्ध होता है कि रक्षाबंधन व होलिका में भद्रा का पूर्ण त्याग करना चाहिये बिना किसी परिहार का विचार किये। चूंकि 19 अगस्त 2024 को भद्रा की समाप्ति 1:32 बजे मध्याह्न में हो रही है अतः मध्याह्न 1:32 के पश्चात् ही रक्षाबंधन करना चाहिये।