
महामृत्युंजय कवच हिन्दी अर्थ सहित
महामृत्युंजय कवच रुद्रयामल तंत्र में वर्णित है।महामृत्युंजय कवच का पाठ, श्रवण और यंत्र में धारण करने का विधान है। महामृत्युंजय कवच pdf डाउनलोड
Stotrani : देवताओं को प्रसन्न करने के उपायों में स्तोत्र या स्तुति का विशेष महत्व होता है। इस श्रेणी में विभिन्न देवताओं के भिन्न-भिन्न प्रकार के स्तोत्रों का संग्रहण किया गया है।
महामृत्युंजय कवच रुद्रयामल तंत्र में वर्णित है।महामृत्युंजय कवच का पाठ, श्रवण और यंत्र में धारण करने का विधान है। महामृत्युंजय कवच pdf डाउनलोड
महामृत्युंजय स्तोत्र pdf सहित – Maha mrityunjaya Stotra – महामृत्युंजय स्तोत्र के दो प्रकार पाये जाते हैं एक मार्कण्डेयकृत और दूसरा लोमशकृत । यहाँ दोनों प्रकार के महामृत्युंजय स्तोत्र दिये गये हैं जिससे महामृत्युंजय उपासना में अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
शत सृष्टि तांडव रचयिता, नटराज राज नमो नमः ।
हे आद्य गुरु शंकर पिता, नटराज राज नमो नमः ॥
शिव ताण्डव स्तोत्र रावण रचित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। नित्य शिव ताण्डव स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। इस आलेख में अर्थ सहित शिव ताण्डव स्तोत्र दिया गया है। शिव ताण्डव स्तोत्र के दो प्रकार पाये जाते हैं –
रुद्राष्टक स्तोत्र गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में वर्णित है। इस स्तोत्र का भक्ति पूर्वक पाठ करने से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। इस आलेख में रुद्राष्टक स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है साथ ही विशेष लाभ हेतु हिन्दी अर्थ भी दिया गया है।
भगवान शिव को प्रसन्न करने वाले स्तोत्रों में से एक है लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम्। लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् में कुल 8 मंत्र हैं जिसमें शिवलिङ्ग की स्तुति की गई है। यहां लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम्त्र अर्थ सहित दिया गया है।
पंचाक्षर मंत्र भगवान शिव की पूजा के लिये सबसे महत्वपूर्ण मंत्र है और पंचाक्षर मंत्र के पांचों वर्णों द्वारा की गयी भगवान शिव की स्तुति जिसे पंचाक्षर स्तोत्र कहा जाता है भगवान शिव का सबसे महत्वपूर्ण स्तोत्र है। यहां पंचाक्षर स्तोत्र अर्थ सहित दिया गया है।
जय भगवति देवि नमो वरदे, जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भ कपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥१॥
भगवती को प्रसन्न करने के लिये पूजा अनुष्ठानों में भवान्यष्टक बड़े भक्ति भाव से गाते देखा जाता है। इस स्तुति में भक्त स्वयं को सभी प्रकार से दीन-हीन होने की घोषणा करता है
दस महाविद्यायें वास्तव में आदिशक्ति का ही अवतार है और इन महाविद्याओं की शक्तियां ही सम्पूर्ण संसार को चलाती है। इन सब महाविद्याओं का प्रयोग ज्ञान और शक्ति को अर्जन के लिए किया जाता है। इन दस महाविद्या काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्तिका, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातङ्गी माता आदि के नाम से जानी जाती है।