किसी भी व्रत की पूर्ति के लिये उसका उद्यापन करना अनिवार्य होता है। उद्यापन का में पूजा-जप-हवन-दान आदि कर्म किया जाता है और सभी का महत्व है। दान उद्यापन का विशेष अंग है क्योंकि “पूजा-जप-हवन” तो सभी व्रतों में कर्तव्य है, विशेष दान ही है तो उद्यापन में किये जाते हैं। दान का तात्पर्य भी सामान्य दान नहीं है, सामान्य दान तो सभी व्रतों में कर्तव्य है, उद्यापन में विशेष दान करना चाहिये। इस आलेख में एकादशी व्रत उद्यापन की दान सामग्री सूची दी गयी है। – ekadashi udyapan samagri
एकादशी उद्यापन की सामग्री – ekadashi udyapan samagri
- एकादशी व्रत का सभी व्रतों में विशेष महत्वपूर्ण स्थान है।
- केवल वैष्णव ही नहीं शैव-शाक्त आदि भी एकादशी व्रत करते हैं।
- किसी भी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिये शास्त्रों में व्रत के उद्यापन की विधि बताई गयी है।
- अलग-अगल व्रतों के उद्यापन की विधि भी अलग-अलग होती है।
- व्रत उद्यापन में व्रत के अधिष्ठात्री देवता की विशेष पूजा व व्रत के अनुसार अन्य पूजा, व्रत की कथा, दान, हवन, ब्राह्मण भोजन आदि किया जाता है।
एकादशी उद्यापन की सामग्री को हम दो भागों में अलग-अलग करके देखेंगे – १. एकादशी व्रत उद्यापन की सामग्री – (पूजन की सामग्री) और २. एकादशी उद्यापन दान सामग्री लिस्ट ।
एकादशी उद्यापन के दान सामग्री को बाद में देखेंगे। पहले पूजन, हवन आदि की सामग्री को देखेंगे। एकादशी व्रत उद्यापन के लिये एकादशी माहात्म्य की कथा भी की जाती है जिसमें सभी २६ एकादशियों की कथा आती है।
कथा ३ दिन, ५ दिन, ७ दिन आदि सुनी जाती है। कथा श्रवण करने के लिये मंडप भी बनाये जाते हैं एवं व्रत उद्यापन सम्बन्धी पूजा मंडप में ही की जाती है।
गांवों में तो मंडप बनाना आसान होता है परन्तु शहरों में थोड़ी समस्या होती है। कई बार एक दिन में ही उद्यापन करते देखा जाता है जिसमें कथा न करके केवल पूजा और वर्तमान एकादशी की कथा, क्योंकि १ दिन में सभी एकादशी की कथा नहीं हो पाती है।
एकादशी व्रत उद्यापन की सामग्री – (पूजन)
एकादशी उद्यापन के दान सामग्री को बाद में देखेंगे। पहले पूजन, हवन आदि की सामग्री को देखते हैं :
- बडा कलश, छोटा कलश, चौमुख, दीप, ढकनी, नारियल (सजल), छिला नारियल, पीली सरसों, तिल, जौ, अरवा चावल, काली उड़द, चंदन, पीला चंदन, श्रीखंड चंदन, कुंकुम, सिंदूर, अबीर – कई रंगों के, हल्दी चूर्ण, रंग – लाल, पीला, हरा, काला, रक्षासूत्र, धूप, धूना, गुग्गुल, सप्मृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वौषधि, पंचरत्न, गाय का घी, शक्कर, मधु, सुगंधि द्रव्य (इत्र), सुगंधित तेल, गुलाब जल, कपूर, पीला-लाल-उजला कपड़ा, नवग्रह लकड़ी, गरीगोला, यज्ञोपवीत, डांरकडोर, पताका, पान. सुपारि, लौंग, इलायची, फल, मिठाई, मेवा, मूँज की डोरी, नवग्रह पताका,
- भगवान की स्वर्ण प्रतिमा या शालिग्राम, चार द्वारपालों की प्रतिमा, सिंहासन, चढ़ाने के लिये वस्त्र-आभूषण, श्रृंगार सामग्री ।
- हवन में – पूर्णपात्र (हवन) – पीतल का टोकना, स्रुवा, स्रुचि, प्रोक्षणी, प्रणीता, स्फय, ब्रह्मा वरण सामग्री – धोती १ जोड़ा, गमछा।
- सर्वतोभद्रादि वेदी बनाने के लिये चौकी, पीढ़िया आदि।
- आचार्य (ब्राह्मण) वरण सामग्री – धोती (जोड़ा), गमछा, गंजी, कुर्ता, पाग, चादर, आसनी, पंचपात्र-अर्घा, तुलसी माला, गोमुखी, यथा संभव भोजनपात्र, (आचार्य के सहयोगी ब्राह्मण हों तो उनके लिये भी) ।
- व्यास गद्दी के लिये चौकी कम्बल आदि।
- 26 एकादशी पूजन के लिये 26 कलश, वस्त्र, भोजन पात्र आदि व्यवस्थानुसार विधि।
- दूध, दही, गोबर, गोमूत्र, गंगाजल, फूल, माला, तुलसी, दूर्वा, केला या सखुआ आदि का पत्ता इत्यादि।
सामग्रियों की मात्रा पूजा-कथा के दिनों की संख्या व विधि पर निर्भर करती है, इसलिये किसी भी सामग्री की मात्रा नहीं दी गयी है।
एकादशी उद्यापन दान सामग्री
दान सामग्री यजमान के सामर्थ्य पर ही निर्भर करती है। इसका तात्पर्य है कि दरिद्र व्यक्ति मात्र ब्राह्मण भोजन कराकर ब्राह्मण वाक्य से ही व्रत उद्यापन का भागी बन सकता है तो धनी व्यक्ति को अपने सामर्थ्यानुसार लाख, २ लाख, ३ लाख ……. की सामग्री भी दान करना चाहिये।
- अब यहां एक प्रश्न उत्पन्न हो सकता है कि यदि कोई १ करोड़ का दान करना चाहे तो क्या सामग्री होगी ?
- हां करोड़ों की सामग्री भी दान की जा सकती है, स्वर्णाभूषण, घर और भूमि दान करने में करोड़ों भी खर्च हो सकता है।
दान किसे देना चाहिये ?
किन्तु देश की राजनीति ने दान को समाप्त कर स्वयं हड़पने की नीति का अवलंबन करते हुये दान न कर विभिन्न संस्थाओं, मंदिरों आदि में देने का प्रचलन आरंभ कर दिया भले ही उसका दुष्परिणाम ही क्यों न हो। यदि मंदिरों में भक्तों के चढ़ाये धन से उन व्यक्तियों का पालन-पोषण किया जाता है जो अधर्मी/नास्तिक/पापी है तो उसका दुष्परिणाम भी अवश्य होगा। राजनीति ने ऐसी स्थिति बना दिया है कि जिसे दान देना चाहिये, अर्थात जिसको दान लेने का अधिकार है और जिसे दान देने से कल्याण की प्राप्ति होगी वह ब्राह्मण लोभी होता है। किन्तु जो धूर्त/ठग हैं उन्होंने ठगने के अनेकों रास्ते बना रखे हैं।
- दान संबंधी फल प्राप्त करने के लिये ये आवश्यक होता है कि योग्य (सुपात्र) ब्राह्मण को दान किया जाय।
- ग्रामीण क्षेत्रों में तो अभी भी अधिकृत कुल पुरोहित परम्परा चली आ रही है किन्तु शहरों में विकृत्ति आ गयी है।
- वास्तविक गुरु और दान के अधिकारी कुलपुरोहित ही होते हैं। ये भगवान राम और कृष्ण की कथाओं से भी सिद्ध होता है। जैसे-जैसे पुरोहित के ज्ञान में कमी आती गयी गुरु पद अन्य व्यक्ति में अधिष्ठित होता गया।
- इसलिये शहरों में भी यदि कुलपुरोहित को बुलाया जा सके तो उन्हें ही बुलाना चाहिये, यदि कुल पुरोहित परम्परा का ज्ञान न हो तो जिस ब्राह्मण से अन्य पूजा-पाठ कराते हैं उन्हें ही कुल पुरोहित नियुक्त कर लेना चाहिये।
- वर्तमान युग में दान लेने का अधिकारी वो है जो सभी प्रकार के पूजा-पाठ कराते हों और यजमान के ऊपर दक्षिणा के लिये किसी प्रकार का दबाव न बनाते हों।
यदि सामान्य दिनों में पूजा-पाठ करने वाले ब्राह्मण दक्षिणा के लिये दबाव बनाते हों तो वो दान लेने के अधिकारी नहीं हो सकते। उस स्थिति में विद्वान ब्राह्मण को बुलाकर सभी वस्तुयें उन्हीं को दान देना चाहिये।
क्या पूजा-पाठ कराने वाले और दान लेने वाले ब्राह्मण को जन्मजात ब्राह्मण होना भी आवश्यक है ?
हाँ, जितना आवश्यक विद्वान होना है उससे अधिक आवश्यक जन्मजात ब्राह्मण होना भी है। वर्तमान युग में कर्म-प्रधान की रट लगायी जा रही है इसपर विशेष चर्चा तो अतिरिक्त आलेख में करेंगे किन्तु संक्षिप्त चर्चा में इतना कहा जा सकता है कि सभी वर्णों के कर्म जन्म से निर्धारित होते हैं, और कर्म प्रधान का आशय यह है की कर्म के अनुसार फल (सुख-दुःख) की प्राप्ति होती है।
जिन्हें लगता है की जन्मजात नहीं हो सकता उनके लिये कुछ प्रश्न हैं जिनपर उनको विचार करना चाहिये :
- भगवान राम के वंश में सदा वशिष्ठ ही कुलपुरोहित क्यों होते रहे ?
- भगवान कृष्ण का नामकरण संदीपनी ऋषि ने क्यों किया ?
- यदि म्लेच्छ बहुत बड़ा विद्वान हो जाये तो क्या उसे भी ब्राह्मण स्वीकार किया जा सकता है ?
- गीता में भगवान कृष्ण के वचन स्वधर्मे निधनं श्रेयः का क्या तात्पर्य है ?
- भागवत में गुरुरग्निर्द्विजातीनां जन्मना ब्राह्मणो गुरुः का क्या तात्पर्य है ?
- राम चरितमानस में पूजिय विप्र शील गुण हीना का क्या तात्पर्य है ?
एकादशी उद्यापन दान सामग्री लिस्ट
- शय्या : पलंग, बिछावन, चादर, तकिया, कम्बल, मसहरी, वस्त्र।
- कुर्सी+टेबल
- छाता
- पादुका (जूता, चप्पल, खड़ाऊ)
- तण्डुल पाकपात्र (बड़ा टोकना)
- द्विदल पाकपात्र (छोटा टोकना)
- कटाही (कड़ाही)
- डब्बू + छोलनी
- गमला
- चौकला + बेलना
- ताबा + हंसुआ
- सस्पेन, छन्ना, कप
- बाल्टी, कलशी (पीतल)
- थाली, कटोरी, प्लेट, चम्मच
- लोटा, ग्लास, जग, थर्मस
- चूल्हा (ईंधन सहित)
- पानी गर्म करने वाला जग (इलेक्ट्रिक केतली)
- पान सहित पानदानी और पीकदानी
- जूस निकालने वाली मशीन (जूसर)
- मिक्सर
- मंजूषा (पेटी या अटैची वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार प्रसाधन सहित)
- पंखा
- लाईट
- धार्मिक पुस्तक (रामायण, भागवत आदि वस्त्र सहित)
- पूजा के उपकरण (अर्घा, पञ्चपात्र, माला, आसनी, चंदन इत्यादि)
- सात कोठी में अलग-अलग सप्तधान्य
- चावल, दाल, सब्जी, आटा, चूड़ा, दही (हांड़ी में), चीनी, नमक, मसाला, तेल, तिलौरी, पापड़ आदि
- यथासंभव आभूषण
- विशेष सामग्री सामर्थ्य के अनुसार : गाय (बछड़ा सहित), वृक्ष, मोबाइल, लैपटॉप, वाशिंग मशीन, फ्रीज, गोदरेज, ए.सी., वाहन, भूमि, मकान या फ्लैट
दान सामग्री के संबंध में मुख्य नियम यही है कि यजमान का सामर्थ्य क्या है। यजमान से सामर्थ्य के अनुसार दान सामग्री में कमी भी हो सकती है और अधिक भी किया जा सकता है। यहां एक पुनरावृत्ति पुनः करना अपेक्षित है “एक दरिद्र यजमान यदि कुछ दान करने में समर्थ न हो तो मात्र ब्राह्मण भोजन कराकर भी उद्यापन कर सकता है।”
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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