सनातन में अनेकानेक व्रत का विधान है जिसमें से एक श्रेष्ठ व्रत एकादशी है। एकादशी व्रत औदयिक एकादशी के दिन किया जाता है। वर्ष में १२ महीने होते हैं इसलिये एकादशी की कुल संख्या २४ होती है। इसके अतिरिक्त अधिकमास में दो एकादशी और होते हैं एवं कुल मिलाकर २६ एकादशी होती है। किसी भी व्रत की पूर्णता हेतु उस व्रत का उद्यापन किया जाता है और जब तक उद्यापन नहीं किया गया हो तब तक व्रत पूर्ण नहीं होता है। एकादशी व्रत की भी पूर्णता हेतु उद्यापन करने की एक विस्तृत विधि है और इस आलेख में एकादशी उद्यापन की शास्त्र-सम्मत विधि दी गयी है एवं उसे सरल रूप से समझाया भी गया है।
एकादशी उद्यापन विधि – Ekadashi Udyapan Vidhi
किसी भी व्रत को एक नियत काल तक किया जाता है और जब व्रत की (निर्धारित) संख्या/वर्ष पूर्ण हो जाती है अथवा जिस व्रत के लिये संख्या/वर्ष का निर्धारण न हो तो जब व्रत करने में शारीरिक अक्षमता का अनुभव होने लगे तो उसे पूर्ण करने हेतु उसका उद्यापन किया जाता है। जब तक उद्यापन न किया जाय व्रत पूर्ण नहीं होता है। एकादशी को व्रतराज कहा जाता है और इसकी पूर्णता हेतु भी उद्यापन करना आवश्यक है एवं सर्वाधिक उद्यापन यदि किसी व्रत का होता है तो वह एकादशी व्रत ही है।
नीचे एकादशी व्रत उद्यापन करने की विधि दी गयी है। इसे एकादशी उद्यापन की सरल विधि भी कहा जा सकता है, किन्तु सरल कहने का तात्पर्य यह है कि पद्धति की जटिलताओं का निर्देश इस प्रकार किया गया है कि उसकी जटिलता का निवारण हो गया और विधि सरल हो गयी अर्थात समझना सरल हो गया। पद्धति की जटिलता का तात्पर्य है कि कर्मकांड को ऐसा कालदंश लगा है कि वर्त्तमान में सामान्य कर्मकांडी वर्ग (90%) विशेष अध्ययन/प्रशिक्षण से रहित है जिस कारण उसे समझना कठिन होता है। उनके समझने हेतु कर्मकांड की सभी पद्धतियों को सरल बनाना आवश्यक हो गया है, जिसे विधिपूर्वक संपादन संभव हो सके।
यदि कृपणतारहित सामर्थ्य हो तो लोग कई दिनों पूर्व से ही मंडप आदि निर्माण कर एकादशी माहात्म्य श्रवण करते हैं एवं उक्त स्थिति में कलश स्थापन, वेदी निर्माण व पूजन पूर्व से ही होता रहता है, एकादशी के दिन पुनः पूजन मात्र किया जाता है दुबारा निर्माण नहीं। किन्तु असमर्थता अथवा कृपणता आदि कई कारणों से यदि एक ही दिन में उद्यापन करना हो तो उसी दिन वेदी निर्माण, कलशस्थापन आदि भी किया जाता है। एकादशी उद्यापन विधि की विस्तृत चर्चा हेतु स्वतंत्र आलेख की आवश्यकता है जो अलग से प्रकाशित की जायेगी। यहां उद्यापन की विधि दी जा रही है।
मंडप स्थापन
किसी भी कर्म का मंडप कर्म से पूर्व ही बनाया जाता है। एकादशी व्रत उद्यापन में सामान्यतः लघ्वाकार मंडप बनाया जाता है। किन्तु यह अर्थाभाव के कारण किया जाता है, यदि अर्थाभाव न हो तो प्रमाणानुसार मंडप निर्माण व तदनुसार मंडप पूजन किया जायेगा।
चूंकि अधिकांशतः (99. 9%) लघ्वाकार मंडप ही बनाया जाता है इसलिये यहां दिये गये मंडप स्थापन विधि के अनुसार मंडप स्थापन-पूजन करे।
संकल्प
कथा कई दिनों से सुनी जा रही हो तो भी संकल्प व उद्यापन की सभी विधियां उद्यापन के दिन ही किये जाने चाहिये। ऐसा नहीं हो सकता कि यदि 5 – 7 – 15 दिन पूर्व कथा का आरंभ हो रहा है तो उद्यापन का संकल्प उसी (आरंभ) दिन होगा, आरंभ के दिन मात्र कथा श्रवण और पूजन का संकल्प होगा। उद्यापन का संकल्प एकादशी के दिन ही प्रातः काल नित्यकर्म करके किया जायेगा। अतः प्रातः काल नित्यकर्म करके व्रती त्रिकुशा-तिल-जल-संकल्प द्रव्य लेकर एकादशी उद्यापन का संकल्प करे :
एकादशी उद्यापन संकल्प – नमोऽद्य अमुके मासि शुक्ले पक्षे एकादश्यां तिथौ ……… गोत्रायाः मम श्री ……… देव्याः ज्ञाताज्ञात सकलपापक्षयपूर्वक ऐहिक सकलाभीष्ट सुखसाधन बहुधन धान्यालङ्कृत विपुललक्ष्मीप्राप्ति चिरजीवि पुत्रपौत्रादिसन्ततिमत्त्व मातृपितृ कुलोद्धरणत्व-कोटियज्ञजन्य पुण्यसमपुण्य कपिलाकोटिदानजन्यपुण्यसमपुण्य पुरुषोत्तमदर्शनजन्यपुण्यसमपुण्य देहान्तकालिक वह्वप्सरोगण सेव्यमानार्कवर्ण विमानाधिकर्णक विष्णुलोकावाप्तितदधिकरणकाऽक्षयकालनिवासकामा (इयत्समयपर्यन्त कृत – यथा : द्वादश/पञ्चदश वर्ष पर्यन्त कृत) एकादशी व्रतोद्यापनमहङ्करिष्ये ॥
बालविधवा हेतु संकल्प : नमोऽद्य अमुके मासि शुक्ले पक्षे एकादश्यां तिथौ ……… गोत्रायाः मम श्री ……… देव्याः ज्ञाताज्ञात सकलपापक्षयपूर्वक ऐहिक सकलाभीष्ट सुखसाधन बहुधन धान्यालङ्कृत विपुललक्ष्मीप्राप्ति मातृपितृ कुलोद्धरणत्व-कोटियज्ञजन्य पुण्यसमपुण्य कपिलाकोटिदानजन्यपुण्यसमपुण्य पुरुषोत्तमदर्शनजन्यपुण्यसमपुण्य देहान्तकालिक वह्वप्सरोगण सेव्यमानार्कवर्ण विमानाधिकर्णक विष्णुलोकावाप्तितदधिकरणकाऽक्षयकालनिवासकामा (इयत्समयपर्यन्त कृत – यथा : द्वादश/पञ्चदश वर्ष पर्यन्त कृत) एकादशी व्रतोद्यापनमहङ्करिष्ये ॥
आचार्य वरण
संकल्प करने के उपरांत आचार्य वरण करें, इसके लिये सर्वप्रथम आचार्य की पूजा करके प्रार्थना करे :
अस्मदीयं व्रतं विप्र विष्णुवासरसम्भवम् । सम्पूर्णं तु भवेद्येन तत् कुरुष्व द्विजोत्तम ॥
आचार्यस्तु यथा स्वर्गे शक्रादीनां बृहस्पतिः । तथा त्वं मम यज्ञेऽस्मिन्नाचार्योभव सुव्रत ॥
तत्पश्चात वरण सामग्री, तिल, जल आदि लेकर आचार्य का वरण करे : नमोऽद्य …….. मासि शुक्ले पक्षे एकादश्यां तिथौ …….. गोत्रायाः मम श्री ……… देव्याः कर्तव्य एकादशी व्रतोद्यापनाङ्गभूत-मातृकापूजाभ्युदयिकश्राद्धपूर्वक पूजाहोमादिसकल कर्मकर्तुम्, ………. गोत्रम्, ………. शर्माणं ब्राह्मणम्, एभिः पुष्पचन्दनताम्बूलयज्ञोपवीत कटिसूत्राङ्गुरीयक (कुण्डलकण्ठाभरण केयूर) वासोभिः, आचार्यत्वेन त्वामहं वृणे ॥
- आचार्य प्रतिवचनम् : ॐ वृतोऽस्मि ॥
- यजमान/व्रती वचन : नमो यथाविहितं कर्म कुरु ॥
- आचार्य प्रतिवचनम् : ॐ करवाणि ॥
उपरोक्त संकल्प-आचार्यवरण प्रातः काल ही करे । तत्पश्चात् मातृकापूजन-वसोर्द्धारा-आयुष्यमंत्र जप करके नान्दीमुख श्राद्ध करे। नान्दी श्राद्ध विधि इस आलेख में देखें । दिन में सभी प्रकार की व्यवस्था करे । यदि कई दिनों से कथा श्रवण करते रहे हों तो मंडप पूर्व से ही निर्मित होता है किन्तु यदि एक दिन में ही करना हो तो मण्डप भी एक दिन पूर्व अथवा उसी दिन बनाया जाता है। उसी दिन उद्यापन का आरंभ प्रदोषकाल में करे ।
एकादशी उद्यापन
उद्यापन संबंधी पूजा की व्यवस्था करके प्रदोषकाल में उद्यापन विधि आरम्भ करने से पूर्व आचार्य सहित यजमान (व्रती) मण्डप के पश्चिम भाग में पूर्वाभिमुख पवित्रिकरण – स्वस्तिवाचन करके प्रार्थना करे :
उद्यापने कर्मणि सानुकम्पा विघ्नोपघाताय गणैः समेताः ।
शीघ्रं समागच्छत लोकपालाः शक्त्या युताः सायुधवाहनाश्च ॥
दामोदरव्रतं दिव्यं यथाविधि कृतं मया। उद्यापनं चरिष्यामि यथोक्तफलकाम्यया ॥
लोकपाला ग्रहाः नागा यक्ष-राक्षसकिन्नराः । उद्यापने विधातव्ये यूयं भवत साक्षिणः ॥
तत्पश्चात् मंडप में प्रवेश करके पूर्वद्वार से आरंभ करके चारों द्वारों पर क्रमशः कलश स्थापन करे। कलशग्रीवा व्सत्रावेष्टित हो, जल-पुष्प-पल्लव-पूर्णपात्र-फल-माला-दीप सहित “ॐ आजिघ्रकलशं…..” मंत्र से कलश स्थापन करे। तत्पश्चात् मण्डप में पंचगव्य प्रोक्षण करे।
तत्पश्चात् पीली सरसों, दूर्वा, तिल आदि लेकर दिग्बंधन करे –
ॐ अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम् । सर्वेषामविरोधेन ब्रह्मकर्म समारभे ॥
ॐ देवाः आयन्तु ॥ यातुधाना अपयान्तु॥ ॐ विष्णोर्देवयजनं रक्षस्व ॥
दिग्बंधन करने के उपरांत वेदी के पश्चिम भाग में बैठे, तत्पश्चात् वेदी का स्पर्श करके पढे – ॐ वेद्या वेदिस्समाप्येते बर्हिषा बर्हिरिन्द्रिम्। यूपेन यूप आप्यायते प्रणीतोऽअग्निरग्निना ॥
तत्पश्चात् वेदी पर पूर्वाग्र कुशा बिछावे – ॐ योगे योगे तवस्तरं वाजे वाजे हवामहे सखाय इन्द्रमूर्तये ॥
तत्पश्चात् वेदी के ऊपर पंचवर्णीय वितान (चांदनी) बांधे – ॐ विमान एष दिवो मध्यऽआस्तऽआपत्रियान् रोदसी ऽअन्तरिक्षं सविश्वाचीरभिचष्टे घृताचीरुत्तरा पूर्वमपरञ्च केतुम् ॥
तत्पश्चात पूर्वादि द्वारों पर क्रमशः पुण्यशील-सुशील-जय-विजयान् चारों द्वारपालों का आवाहन पूजन करे। द्वारपाल पूजन हेतु मृण्मयी प्रतिमा स्थापित की जाती।
पूर्वद्वार – पुण्यशील पूजन
- आवाहन : पुष्पाक्षत लेकर पुण्यशील का आवाहन करे – ॐ पुण्यशील इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पंचोपचार पूजन : तत्पश्चात “ॐ पुण्यशीलाय नमः” नाममंत्र से पंचोपचार पूजन करे।
- पुष्पाञ्जलि : फिर पुष्पाञ्जलि अर्पित करे – ॐ पुण्यशील नमस्तुभ्यं नृणां त्वं पुण्यदः सदा । एकादशीव्रतपुण्येन त्राहि मां हरिवल्लभ ॥ एष पुष्पाञ्जलिः ॐ पुण्यशीलाय नमः ॥
दक्षिणद्वार – सुशील पूजन
- आवाहन : पुष्पाक्षत लेकर सुशील का आवाहन करे – ॐ सुशील इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पंचोपचार पूजन : तत्पश्चात “ॐ सुशीलाय नमः” नाममंत्र से पंचोपचार पूजन करे।
- पुष्पाञ्जलि : फिर पुष्पाञ्जलि अर्पित करे – ॐ सुशील त्वं महाभाग सर्वदा श्रीहरि प्रिय । पूजां गृहाण मे नित्यं कुरु पापक्षयं मम ॥ एष पुष्पाञ्जलिः ॐ सुशीलाय नमः ॥
पश्चिमद्वार – जय पूजन
- आवाहन : पुष्पाक्षत लेकर जय का आवाहन करे – ॐ जय इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पंचोपचार पूजन : तत्पश्चात “ॐ जयाय नमः” नाममंत्र से पंचोपचार पूजन करे।
- पुष्पाञ्जलि : फिर पुष्पाञ्जलि अर्पित करे – ॐ जयस्त्वं विष्णुभक्तश्च विष्णोः प्रीतिकरः सदा । नारायणस्य सानिध्यं शास्वतं चैव मां नय ॥ एष पुष्पाञ्जलिः ॐ जयाय नमः ॥
पश्चिमद्वार – विजय पूजन
- आवाहन : पुष्पाक्षत लेकर विजय का आवाहन करे – ॐ विजय इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पंचोपचार पूजन : तत्पश्चात “ॐ विजयाय नमः” नाममंत्र से पंचोपचार पूजन करे।
- पुष्पाञ्जलि : फिर पुष्पाञ्जलि अर्पित करे – ॐ द्वारपालश्च विष्णोस्त्वं केशवस्य प्रियः सदा । एकादशीव्रत पुण्येन विजयं देहि मे प्रभो ॥ एष पुष्पाञ्जलिः ॐ विजयाय नमः ॥
कलशस्थापन
कलशस्थापन करने के संबंध में एक प्रश्न है कि कलशस्थापन कब करे ? अर्थात प्रदोषकाल में करे या प्रातःकाल करे। किन्तु यह प्रश्न तभी उत्पन्न होता है जब एक दिन में ही उद्यापन करना हो, क्योंकि यदि कई दिनों से कथा श्रवण भी की जा रही हो तब तो कलश पूर्व से ही स्थापित होगा।
लेकिन यदि एक दिन में करना हो तो नान्दीश्राद्ध के अनन्तर भी कलशस्थापन व अन्य पूजन करके कथा की जा सकती है एवं प्रदोषकाल में उद्यापनांग पूजन पुनः होगा। किन्तु यदि दिन में कथा का आयोजन न हो तो प्रदोषकाल में ही कलशस्थापन पूजन करे – कलश स्थापन पूजन विधि
कलशस्थापन पूजन विधि के अनुसार स्थापन और पूजन करे।
वास्तुपूजन
एकादशी व्रतोद्यापन में वास्तु (शांति) पूजन की आवश्यकता नहीं होती है, इसका कारण है कि मंडप भी अधम प्रमाण “अष्टहस्त” से भी लघु होता है एवं आहुति की संख्या भी अष्टोत्तरशत ही है, और न ही कुण्ड बनाने की आवश्यकता है।
इन कारणों से एकादशी व्रत उद्यापन में वास्तुमंडल निर्माण व वास्तुशांति की आवश्यकता नहीं होती। किन्तु दो परिस्थिति में हो भी सकती है और वो दो परिस्थिति मंडप व हवन से संबंधित है।
- यदि मण्डप प्रमाणानुसार बनायी गयी हो भले ही अधम क्यों न हो तो भी वास्तु पूजन करे।
- हवन यदि सहस्राहुति का हो अथवा हवन कुण्ड का निर्माण किया गया हो तो भी वास्तु पूजन करे। हवन वेदी पर, भूमि पर, अष्टोत्तरशताहुति होम में भी वास्तु पूजन की आवश्यकता नहीं होती।
सर्वतोभद्र मंडल पूजन
एकादशी व्रतोद्यापन में प्रधानवेदी के रूप में सर्वतोभद्र का निर्माण किया जाता है एवं प्रधानपूजा भी सर्वतोभद्र पर ही की जाती है। यद्यपि पद्धतियों में नवग्रह-दिक्पाल आदि का पूजन करके प्रधानपूजन देखने को मिलता है तथापि कर्मकांड अनुक्रमणिका के अनुसार प्रथम प्रधानवेदी पूजन व प्रधान पूजा करने के पश्चात् नवग्रह मंडल पूजन की सिद्धि होती है। यदि क्रम का विशेष निर्वहन करना हो तो प्रथम अग्निस्थापन करके तब प्रधानपूजन व नवग्रह मंडल पूजन करे।
किन्तु कर्मान्त में भी हवन किया जाता है अतः लघ्वाकार मंडप होने के कारण हवन कर्मान्त में ही करे।
यदि मंडप लघ्वाकार न हो तो अग्निस्थापन आदि करके कर्मकांड अनुक्रमणिका के अनुसार करे।
सर्वतोभद्र मंडल निर्माण तो पूर्व ही करने की विधि बताई गयी है। नियमानुसार जिस विधि के अनुसार पूजन करना हो उसका व्यवस्थानुसार अवलम्बन करते हुये सर्वतोभद्र मंडल पर ब्रह्मादि देवताओं का आवाहन और पूजन करे। सर्वतोभद्र मंडल की पूजन विधि अन्य आलेख में प्रकाशित की गयी है जिसके अनुसार आवाहन-पूजन करे – सर्वतोभद्र मंडल वेदी – पूजन
विधि के अनुसार नवग्रह मंडल पूजन हवन काल में अग्नि स्थापन करके भी किया जा सकता है, प्रधान पूजन (सलक्ष्मीकदामोदर) के पश्चात् भी कर सकते हैं। किन्तु पद्धतियों में हवन अंत में होने के कारण प्रधान पूजा से पूर्व ही नवग्रह मंडल पूजा करने का विधान मिलता है। यदि प्रधान पूजा से पूर्व ही नवग्रह मंडल पूजा करनी हो तो करे : नवग्रह मंडल पूजा की विधि और मंत्र
नवग्रह मंडल पर सूर्यादि नवग्रह, अधिदेवता, प्रत्यधि देवता, लोकपाल, दशदिक्पाल आदि की पूजा की जाती है।
प्रधान पूजा – लक्ष्मीदामोदर पूजन
सर्वतोभद्र मंडल पूजन करने के पश्चात् सर्वतोभद्र मंडल पर धातु कलश (ताम्र/कांस्यादि) स्थापित करके, कलश पर एक पात्र में चंदनादि से अष्टदल निर्माण कर रखे। अष्टदल के मध्य में लक्ष्मीदामोदर की स्वर्णप्रतिमा/शालिग्राम/तिलपुंज उपलब्धतानुसार रखे और अष्टदलों में आगे दिये गये विधि के अनुसार पूजन करके तत्पश्चात लक्ष्मीदामोदर की पूजा करे :
दल पूजन
पूर्वादि दलों पर क्रमशः तिल लेकर आगे दिये गये आवाहन मंत्र से आवाहन करे और पूजन नाममंत्र से पंचोपचार पूजन करे :
- पूर्वदल विष्णु : आवाहन – ॐ विष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ विष्णवे नमः ॥
- आग्नेयदल श्रीधर : आवाहन – ॐ श्रीधर इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ श्रीधराय नमः ॥
- दक्षिणदल मधुसूदन : आवाहन – ॐ मधुसूदन इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ मधुसूदनाय नमः ॥
- नैर्ऋत्यदल हृषिकेश : आवाहन – ॐ हृषिकेश इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ हृषिकेशाय नमः ॥
- पश्चिमदल त्रिविक्रम : आवाहन – ॐ त्रिविक्रम इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ त्रिविक्रमाय नमः ॥
- वायव्यदल पद्मनाभ : आवाहन – ॐ पद्मनाभ इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ पद्मनाभाय नमः ॥
- उत्तरदल दामोदर : आवाहन – ॐ दामोदर इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ दामोदराय नमः ॥
- ईशानदल वामन : आवाहन – ॐ वामन इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ वामनाय नमः ॥
पुनः इसी क्रम से अष्टदल के बाहर भी पूजन करे :
- केशव : आवाहन – ॐ केशव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ केशवाय नमः ॥
- लक्ष्मी : आवाहन – ॐ लक्ष्मी इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- नारायण : आवाहन – ॐ नारायण इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ नारायणाय नमः ॥
- वाराही : आवाहन – ॐ वाराहे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ वाराह्यै नमः ॥
- माधव : आवाहन – ॐ माधव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ माधवाय नमः ॥
- ब्रह्माणि : आवाहन – ॐ ब्रह्माणि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ ब्रह्माण्यै नमः ॥
- गोविन्द : आवाहन – ॐ गोविन्द इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ गोविन्दाय नमः ॥
- कुमारी : आवाहन – ॐ कुमारी इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पूजन – ॐ कुमार्यै नमः ॥
तत्पश्चात अष्टदल के मध्य में यथोपलब्ध स्वर्णप्रतिमा/शालिग्राम/तिलपुंज पर लक्ष्मीदामोदर का आवाहन करके पूजन करे। आगे लक्ष्मीदामोदर पूजन विधि दी गयी है :
ध्यान : दोनों हाथों में पुष्प लेकर ध्यान करे :
ॐ नवोदितघनस्निग्धं श्यामवर्णं चतुर्भुजम् । कण्ठे कौस्तुभसंयुक्तं शङ्खचक्रगदाधरम् ॥
श्रीवत्सवक्षसं शार्ङ्गं पुष्कराक्षं मनोहरम् । हार केयूरवलयमणिकुण्डलभूषितम् ॥
पीताम्बरं श्रिया युक्तं गरुडासन सुप्रभम् । वरदं दयया युक्तं सनकाद्यैरुपासितम् ॥
पुरःस्थितैर्देवसंघैः स्तूयमानं सदा मुदा । भक्तेष्वभीष्टवरदं दामोदरं नमाम्यहम् ॥
प्राण-प्रतिष्ठा : तिल और यव लेकर आवाहन करे : मनोजूतिरित्यादिना ॐ सलक्ष्मीकदामोदर इह सुप्रतिष्ठितो भव ॥
- आवाहन : ॐ आगच्छ देवदेवेश शंखचक्रगदाधर । गृहाणेमां समागत्य पूजामुद्यापने मम ॥ ॐ सलक्ष्मीकदामोदर इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- आसन : ॐ सर्वान्तर्यामिने देव सर्वबीजमयन्ततः । आत्मस्थाय परं शुद्धमासनं कल्पयाम्यहम् ॥ इदमासनम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- स्वागत : ॐ यस्य दर्शनमिच्छन्ति देवाः स्वाभीष्टसिद्धये । तस्मै ते परमेशाय स्वागतं स्वागतञ्च मे ॥ ॐ कृतार्थोऽनुगृहीतोस्मि सफलं जीवितञ्च मे । आगतो देवदेवेश सुस्वागतमिदं वपुः ॥ इदं स्वागतम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- पाद्य : ॐ यद्भक्तिलेशसम्पर्कात् परमानन्दसम्भवः । तस्मै ते चरणाब्जाय पाद्यं शुद्धाय कल्पये ॥ इदं पाद्यम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- अर्घ्य : ॐ तापत्रयहरं दिव्यं परमानन्दलक्षणम् । अर्थत्रयस्य दाता त्वं तवार्घ्यं कल्पयाम्यहम् ॥ एषोर्घः ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- पञ्चामृत : ॐ पयो दधि घृतं गव्यं माक्षिकं शर्करा तथा । पञ्चामृतेन स्नपनं गृहाण जगतः पते ॥ इदं पञ्चामृतस्नानीयम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- आचमन : ॐ देवानामपि देवाय देवानान्देवतात्मने । आचामं कल्पयामीशशुद्धानां शुद्धिहेतवे ॥ इदमाचमनीयम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- शुद्धोदक : ॐ परमानन्दबोधाब्धि निमग्ननिजमूर्तये । साङ्गोपाङ्गमिदं स्नानं कल्पयाम्यहमीश ते ॥ इदं शुद्धोदक स्नानीयम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- पीत वस्त्र : ॐ मायाचित्रपटाच्छन्न निजगुह्योरुतेजसे । निरावणविज्ञाय वासस्ते कल्पयाम्यम् ॥ इदं पीतवस्त्रं बृहस्पतिदैवतम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- द्वितीय वस्त्र : ॐ यमाश्रित्य महामागा जगत्सम्मोहिनी सदा । तस्मै ते परमेशाय कल्पयाम्युत्तरीयकम् ॥ इदमुत्तरीयवस्त्रं बृहस्पतिदैवतम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- यज्ञोपवीत : ॐ दामोदर नमस्तेऽस्तु त्राहि मां भवसागरात् । ब्रह्मसूत्रं सोत्तरीयं गृहाण सुरसत्तम ॥ इमे यज्ञोपवीते बृहस्पतिदैवते ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- गंध : ॐ स्वभावसुन्दराङ्गाय नानाशक्त्याश्रयाय ते। चन्दनञ्च विचित्रञ्च कल्पयाम्यमरार्चित ॥ इदमनुलेपनम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
आभूषण : इदं भूषणम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥ तिल जौ : एते यवतिलाः ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- पुष्प : ॐ तुरीयवसनं भूतं नानागुणमनोहरम् । आनन्दसौरभं पुष्पं गृह्यतामिदमुत्तमम् ॥ एतानि पुष्पाणि० । ॐ शरत्कानन सम्भूतं तुलसीबिल्वमिश्रितैः । पुष्पैरमीभिः सन्तुष्टैः पूजितः पुण्यदो भव ॥ एतानि सुगन्धितपुष्पाणि ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- माला : ॐ माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि च प्रभो । मयाहृतानि पूजार्थम्माल्यानि प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं पुष्पमाल्यम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
दूर्वा : एतानि दूर्वादलानि ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥ तुलसी : एतानि तुलसीपत्राणि ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- धूप : ॐ यक्षाणां येन सन्तोषो येन सौरभ्यवज्जगत् । धूपस्सोयं मया दत्तो गृहाण परमेश्वर ॥ एष धूपः ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- दीप : ॐ यातेऽन्धकारे देवेश येन प्रद्योतते जगत् । दीपः सोयम्मया दत्तः प्रसीद परमेश्वर ॥ एष दीपः ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- नैवेद्य : ॐ कलायाङ्कुरसंयुक्तं नानाफलसमन्वितम् । भक्षणीयैः कृतं देव नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥ एतानि नानाविधनैवेद्यानि ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- आचमन : ॐ मुखशुद्धिविधानेन यतः शुद्धिरवाप्यते । एतदाचमनीयं मे गृहाण पुरुषोत्तम ॥ इदमाचमनीयम् ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- ताम्बूल : ॐ नागलोक समुद्भूतं रससौरभ्यसंयुतम् । ताम्बूलं ते प्रयच्छामि गृहाण परमेश्वर ॥ एतानि ताम्बूलानि ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥
- पुष्पांजलि : ॐ समस्तजगदाधार सृष्टिस्थित्यन्तकारक । श्रीकृष्ण कमलानाथ तुभ्यं पुष्पाञ्जलिन्नमः ॥ एष पुष्पाञ्जलिः ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥३॥
प्रणाम करे :
ॐ त्रैलोक्यरक्षणार्थाय दानवानां वधाय च । भक्तानां प्रीणनार्थाय अवतारस्त्वया कृतः ॥
महेन्द्रानुज गोविन्द गोविप्रपरिपालक । यज्ञेश यज्ञपुरुष त्वं मां पालय माधव ॥
संसारदुस्तराम्भोधि पारप्रापणकारक । प्रसीद भगवन् मह्यं व्रतस्य फलमस्तु मे ॥
त्वया नाथेन गोविन्द सनाथं हि जगत्त्रयम् । अतो भामप्यनाथं त्वं सनाथं कुरु माधव ॥
- तत्पश्चात विष्णु के दक्षिण भाग में लक्ष्मी का आवाहन करे : इदमक्षतं ॐ लक्ष्मी इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- तत्पश्चात नाममंत्र “ॐ लक्ष्म्यै नमः” से पूजा करके पुष्पांजलि प्रदान करे :
- पुष्पांजलि : ॐ नमस्ते सर्वदेवानां वरदाऽसि हरिप्रिये । या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्त्वदर्चनात् ॥ एष पुष्पाञ्जलिः ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- सिंदूर : ॐ अस्यां रात्रौ सिन्दूररेणुसम संख्यकवर्ष सहस्रावच्छिन्न विष्णुसदनवासकामनया एतानि सिन्दूराभरणानि सूर्यदैवतानि लक्ष्म्यै अहन्ददे ॥
प्रार्थना
ॐ अनघं वामनं शौरिं वैकुण्ठं पुरुषोत्तमम् । वासुदेवं जगन्नाथं हृषीकेशं जनार्दनम् ॥
वाराहं पुण्डरीकाक्षं नृसिंहं दैत्यसूदनम् । दामोदरं पद्मनाभं केशवं गरुडध्वजम् ॥
गोविन्दमच्युतं कृष्णमनन्तमपराजितम् । अधोक्षजं जगद्बीजं सर्गस्थित्यन्तकारिणम् ॥
अनादिनिधनं विष्णुं त्रिलोकेशं त्रिविक्रमम् । नारायणञ्चतुर्बाहुं शङ्खचक्रगदाधरम् ॥
पीताम्बरधरं नित्यं वनमालाविभूषितम् । श्रीधरं श्रीकरं श्रीशं श्रीपतिं श्रीहरिन्नमः ॥
वरप्रार्थना : ॐ रूपन्देहि जयन्देहि भाग्यम्भगवन्देहि मे। धर्मान्देहि धनन्देहि सर्वान् कामान् प्रदेहि मे ॥
त्रयोदश घटदान : तत्पश्चात वस्त्रवेष्टित सजल 13 घटदान करे : ॐ अस्यां रात्रौ एतान् वस्त्रसहितान् सफलान्नान् जलपूर्णान् त्रयोदशघटान् प्रजापतिदैवतान् सलक्ष्मीकाय दामोदरायाहं ददे ॥
दान
तत्पश्चात दानसामग्री (शय्यादि) प्रसारित करके उत्तराभिमुख हो दान करे; सर्वप्रथम शय्यादान करे :
- शय्यादान : त्रिकुशा, गन्धपुष्पाक्षत लेकर शय्या पूजन (तीन बार) करे : ॐ सोपकरणशय्यायै नमः ॥३॥
- तत्पश्चात लक्ष्मीदामोदर (अक्षत के स्थान पर तिल-जौ ले) की पूजा करे : ॐ सलक्ष्मीकाय दामोदराय नमः ॥३॥
- तत्पश्चात जल से शय्या को सिक्त करे : ॐ तत्सत् ॥
- उत्सर्ग : तत्पश्चात त्रिकुशा-तिल-जल लेकर उत्सर्ग करे : ॐ अस्यां रात्रौ ………. मासि ………… पक्षे ………… तिथौ …………. गोत्राया अस्याः श्री …………… देव्या दीयमानशय्यान्तर्गत यावत्तन्तु समसंख्यक सहस्त्रवर्षावच्छिन्न विष्णुसदनाधिकरण शय्यासुख प्राप्तिपूर्वक विष्णुसदनवास काम इमां सोपकरणां शय्यां प्रजापतिदैवतां सलक्ष्मीकाय दामोदायाऽहं ददे ॥
- शय्या निवेदन : ॐ नानोपकरणोपेतां ताम्बूलपरिपूरिताम् । पुण्यदां कल्पितां शय्यां गृहाण भगवन् हरे ॥
इसी प्रकार अन्य वस्तुयें भी दान करे, दान करने की विस्तृत विधि और मंत्र इस आलेख में दी गयी है – एकादशी उद्यापन की दान विधि
अनेकानेक वस्तुयें जो भी जीवनोपयोगी होती है व सभी वस्तुयें दान की जाती है, वर्त्तमान में अनेकानेक वस्तुओं की वृद्धि हुई है यथा – वाशिंग मशीन, फ्रीज, AC, मिक्सी, मोबाईल, लैपटॉप, गैसचूल्हा, मोटर साईकिल इत्यादि। इन सबके दानमंत्र पुराने पुस्तकों में नहीं मिलता क्योंकि तब लिखे गये जब उपरोक्त वस्तुयें नहीं थी तो। उपरोक्त अनेकों वस्तुओं के साथ सम्पूर्ण दान विधि और मंत्र अलग आलेख में दिया गया है और अनुसरण लिंक ऊपर दिया जा चुका है। दान करने के पश्चात् हवन करे :
हवन विधि
हवन सङ्कल्प – ॐ अस्यां रात्रौ ……. मासि शुक्ले पक्षे एकादश्यांतिथौ …….. गोत्राया अस्याः श्री ……… देव्याः कर्तव्यैकादशी व्रतोद्यापनाङ्ग विष्णुप्रीतिकामाऽष्टोत्तरशतं हवनमहं करिष्ये ॥
- पंचभूसंस्कार
- अग्निस्थापन
- ब्रह्मावरण
- प्रणयनादि
- परिसमूह्य : ३ कुशाओं से स्थण्डिल या हस्तमात्र भूमि की सफाई करें। कुशाओं को ईशानकोण में (अरत्निप्रमाण) त्याग करे ।
- उल्लेपन : गोबर से ३ बार लीपे।
- उल्लिख्य – स्फय या स्रुवमूल से प्रादेशमात्र पूर्वाग्र दक्षिण से उत्तर क्रम में ३ रेखा उल्लिखित करे।
- उद्धृत्य – दक्षिणहस्त अनामिका व अंगुष्ठ से सभी रेखाओं से थोड़ा-थोड़ा मिट्टी लेकर ईशान में (अरत्निप्रमाण) त्याग करे।
- अभ्युक्ष्य – हाथ में जल लेकर अधोमुखी हस्त वेदी पर छिड़के । ऊर्ध्वमुखी हस्त से प्रोक्षण होता है, तिर्यकहस्त से वोक्षण और अधोमुखी हस्त से अभ्युक्षण ।
- अग्नानयन व क्रव्यदांश त्याग – कांस्यपात्र या हस्तनिर्मित मृण्मयपात्र में अन्य पात्र से ढंकी हुई अग्नि मंगाकर अग्निकोण में रखवाए । ऊपर का पात्र हटाकर थोड़ी सी क्रव्यदांश अग्नि (ज्वलतृण) लेकर नैर्ऋत्यकोण में त्याग कर जल से बुझा दे ।
- अग्निस्थापन – दोनों हाथों से आत्माभिमुख अग्नि को स्थापित करे :- ॐ अग्निं दूतं पुरोदधे हव्यवाहमुपब्रुवे । देवां२ आसादयादिह ॥ अग्नानयन पात्र में अक्षत-जल छिरके।
- अग्निपूजन-उपस्थान – अग्नि को प्रज्वलित कर पूजा करे, नैवेद्य वायव्यकोण में देकर स्तुति करे : ॐ अग्निं प्रज्वलितं वन्दे जातवेदं हुताशनं। हिरण्यवर्णममलं समृद्धं विश्वतोमुखं ॥
- ब्रह्मावरण – उत्तर दिशा में स्थित प्रत्यक्ष ब्रह्मा (विद्वान ब्राह्मण) ब्रह्मा का वरण वस्त्र, पान, सुपारी, द्रव्य, तिल, जलादि लेकर करे : ॐ अस्यां रात्रौ कृतैतद्-एकादशी व्रतोद्यापनाङ्गभूत होम कर्मणि कृताकृतावेक्षणरूप ब्रह्मकर्मकर्तुं एभिः वरणीय वस्तुभिः ……….. गोत्रं ……….. शर्माणं ब्रह्मत्वेन त्वामहं वृणे॥ ब्रह्मा स्वीकार करके “वृत्तोस्मि” कहे पुनः यजमान “यथाविहितं कर्म कुरु” कहे और ब्रह्मा “करवाणि” कहे। अथवा ५० कुशात्मक ब्रह्मा पक्ष में : ॐ अस्यां रात्रौ कृतैतद्-एकादशी व्रतोद्यापनाङ्गभूत अस्मिन् होम कर्मणि कृताकृतावेक्षणरूप कर्मकर्तुं त्वं मे ब्रह्मा भव ॥ कुशात्मक ब्रह्मा में प्रतिवचन नहीं होता।
- बह्मा का आसन – दक्षिण दिशा (अग्निकोण) में, परिस्तरण भूमि को छोड़कर ब्रह्मा के लिये ३ कुश का आसान पूर्वाग्र बिछाये। प्रत्यक्ष ब्रह्मा का दक्षिणहस्त ग्रहण कर (कुशात्मक बह्मा को उठाकर) प्रदक्षिण क्रम से दक्षिण ब्रह्मासन तक ले जाकर स्वयं पूर्वाभिमुख होकर ब्रह्मा को उत्तराभिमुख बैठाये या कुशात्मक ब्रह्मा को रखे – ॐ अस्मिन होम कर्मणि त्वं मे ब्रह्मा भव॥ ब्रह्मा की पूजा अमंत्रक ही करे। पुनः अप्रदक्षिणक्रम से अग्नि के पश्चिम आकर आसन पर बैठे।
- प्रणीय – तदनन्तर प्रणीतापात्र को आगे में रखकर जल भरे, कुशाओं से आच्छादन करे । फिर ब्रह्मा का मुखावलोकन करते हुए अग्नि के उत्तर भाग में विहित कुशाओं के आसन पर रखे । (वाजसनेयी विशेष, छन्दोग में अभाव)
- परिस्तरण – तदनन्तर १६ कुशा लेकर परिस्तरण करे । ४ कुशा अग्निकोण से ईशानकोण तक उत्तराग्र, ४ कुशा दक्षिण में ब्रह्मा से अग्नि पर्यंत पूर्वाग्र, ४ कुशा नैर्ऋत्यकोण से वायव्यकोण तक उत्तराग्र और ४ कुशा उत्तर दिशा में अग्नि से प्रणीता तक पूर्वाग्र बिछाए । (परिस्तरण हेतु एक और प्राकान्तर प्राप्त होता है : पूर्व में पूर्वाग्र, दक्षिण में उत्तराग्र, पश्चिम में पूर्वाग्र और उत्तर में पुनः उत्तराग्र।)
- आसादन : अग्नि के उत्तरभाग में पश्चिमपूर्व क्रम से क्रमशः आसादित करे : पवित्रीच्छेदन 3 कुशा, पवित्रिनिर्माण 2 कुशा, प्रोक्षणी, आज्यस्थाली, सम्मार्जन कुशा, उपयमन कुशा, 3 समिधा, स्रुवा, घी, पूर्णपात्र, पूर्णाहुति सामग्री।
- पवित्री निर्माण – पवित्री निर्माण हेतु आसादित पवित्रिकरण २ कुशाओं को ग्रहण करे फिर मूल से प्रादेशप्रमाण भाग पर पवित्रच्छेदन ३ कुशाओं को रखकर दक्षिणावर्त २ बार परिभ्रमित करके नखों का प्रयोग किये बिना २ कुशों का मूल वाला प्रादेशप्रमाण भाग तोड़ ले शेष का उत्तर दिशा में त्याग करे। ग्रहण किये हुए प्रादेशप्रमाण २ कुशाओं में दक्षिणावर्त ग्रंथि दे । प्रोक्षणीपपात्र को प्रणिता के निकट रखे।
- पवित्रीहस्त प्रणीता से प्रोक्षणी में ३ बार जल देकर पवित्री को उत्तराग्र करके अंगूठा व अनामिका से ३ बार प्रणीता का जल ऊपर उछाले या मस्तक पर प्रक्षेप करे।
- प्रोक्षणीपात्र को बांये उठाकर दाहिने हाथ से अनामिका और अंगूठे द्वारा पवित्री ग्रहण किये हुए जल को ३ बार ऊपर उछाले। प्रणीतापात्र के जल से प्रोक्षणी को ३ बार सिक्त करके प्रोक्षणी के जल से होमार्थ आसादित-अनासादित सभी वस्तुओं को सिक्त करके अग्नि व प्रणिता के मध्य भाग में कुशा के आसन पर प्रोक्षणीपात्र को रख दे।
- घृतपात्र में घृत डालकर घृतपात्र को प्रदक्षिणक्रम से घुमाते हुए अग्नि पर चढ़ाये। २ प्रज्वलित तृण को प्रदक्षिणक्रम से घृत के ऊपर घुमाकर (घृत में सटाये बिना ऊपर घुमाकर) अग्नि में प्रक्षेप करे दे । चरु हो तो सामान विधान करे। दाहिने हाथ से स्रुव को ३ बार अग्नि पर तपाकर बांये हाथ में रखे, दाहिने हाथ से सम्मार्जन कुशा लेकर कुशाग्र से स्रुव के ऊपरी भाग का मूल से अग्रपर्यन्त सम्मार्जन करे और कुशमूल से स्रुव के पृष्ठभाग का अग्र से मूलपर्यन्त मार्जन करके प्रणीतोदक से ३ बार सिक्त करके स्रुव को दाहिने हाथ में लेकर पुनः ३ बार तपाकर दक्षिणभाग में कुशा के ऊपर रखे। स्रुचि के लिये भी स्रुववत् विधि।
- घृतपात्र को प्रदक्षिणक्रम में अग्नि से उतारकर आगे में रखे (चरु हो तो उसे भी)। पूर्व की भांति पवित्री से घृत को भी ३ बार ऊपर उछाले या मस्तक पर प्रक्षेप करे। तत्पश्चात घृत को भलीभांति देखे, कुछ अपद्रव्यादि हो तो निकाल दे। पुनः प्रोक्षणी के जल को ३ बार ऊपर की पूर्ववत उछाले।
- फिर बांये हाथ में उपयमन कुशा ग्रहण करके, उठकर ३ घृताक्त समिधा प्रजापति का ध्यानमात्र करते हुए अग्नि में प्रक्षेप करे।
- पर्युक्षण – फिर बैठकर पवित्रिहस्त प्रोक्षणी से जल लेकर सभी सामग्रियों सहित अग्नि का प्रदक्षिणक्रम से पर्युक्षण करे। ३ बार पर्युक्षण करके पवित्री को प्रणीतापात्र में रख दे।
उपरोक्त विधियों का अनुसरण करते हुये हवन प्रारंभ करे। हवन करने में एक विशेष तथ्य जो है उसकी चर्चा यहां की जा रही है, आहुति यदि घृत की दी गयी हो तो स्विष्टकृद्धोम भी घृत से ही होता है, किन्तु यदि शाकल्यादि द्रव्यों से आहुति दी जाती है तो स्विष्टकृद्धोम के लिये चरु निर्माण करना पड़ता है जो चरु हवनाग्नि में ही पकाना चाहिये। अन्य अग्नि में पाचित चरु से स्विष्टकृद्धोम नहीं होता। हवन की संपूर्ण विधि व मंत्र इस आलेख में पूर्वप्रकाशित है : हवन करने की विधि एवं मंत्र
विसर्जन
प्रातःकाल पुनः स्नानादि नित्यकर्म करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दे : ॐ जगत्प्राण जगन्नाथ जगदीश्वर भास्कर । कृतोद्यापनकर्माऽहमर्घं दद्मि गृहाण तम् ॥
तत्पश्चात आवाहित देवताओं का पंचोपचार पूजन करके सलक्ष्मीकदामोदर की भी पूजा करे। पूजा करके पुष्पांजलि अर्पित करे :
ॐ नवोदितघनस्निग्धं श्यामवर्णं चतुर्भुजम् । कण्ठे कौस्तुभसंयुक्तं शङ्खचक्रगदाधरम् ॥
श्रीवत्सवक्षसं शार्ङ्गं पुष्कराक्षं मनोहरम् । हार केयूरवलयमणिकुण्डलभूषितम् ॥
पीताम्बरं श्रिया युक्तं गरुडासन सुप्रभम् । वरदं दयया युक्तं सनकाद्यैरुपासितम् ॥
पुरःस्थितैर्देवसंघैः स्तूयमानं सदा मुदा । भक्तेष्वभीष्टवरदं दामोदरं नमाम्यहम् ॥
- तत्पश्चात अर्घ दे : ॐ यद्यच्च दुष्कृतं कर्म कृतं सप्तसु जन्मसु । तत्सर्वन्नाशमायातु गृहाणार्घञ्च श्रीपते ॥
- चार बार प्रदक्षिणा करे : – ॐ यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यासमानि च । तानि तानि प्रणश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे ॥
- क्षमाप्रार्थना करे : ॐ मन्त्रहीनं क्रियाहीनं विधिहीनश्च यद्भवेत् । पूजितोऽसि जगन्नाथ तत्क्षमस्व गदाधर ॥
तत्पश्चात विसर्जन करे :
- ॐ भगवन् दामोदर पूजितोऽसि प्रसीद क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ ॥
- ॐ श्रीर्मयि रमस्व ॥
- ॐ यान्तु देव-गणाः सर्वे पूजामादाय याज्ञिकात् । इष्टकामप्रसिद्धयर्थं पुनरागमनाय च ॥
- ॐ अद्योद्यापनकर्मणि पूजितदेवताः पूजिताः स्थ क्षमध्वं, स्वस्थानं गच्छत ॥
आचार्य दक्षिणा
- सुवर्ण
- गो
- द्रव्यकल्पित गो
तत्पश्चात यजमान/व्रती उद्यापन की दक्षिणा करे; दक्षिणा करने हेतु त्रिकुशा-तिल-जल-सुवर्ण लेकर पढ़े : नमोऽद्य कृतैतद्-एकादशी व्रतोद्यापनाङ्गभूताचार्यकृत पूजाहोमादि सकलकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं सुवर्णमग्निदैवतम् (एतावद्रव्यमूल्यकगामेकां रुद्रदैवतां वा) ……. गोत्राय ……. शर्मणे ब्राह्मणाय आचार्याय दक्षिणां तुभ्यमहं सम्प्रददे॥ आचार्य का प्रतिवचन – ॐ स्वस्ति ॥
तत्पश्चात यजमान/व्रती उद्यापन की दक्षिणा करे; दक्षिणा करने हेतु त्रिकुशा-तिल-जल लेकर पढ़े : नमोऽद्य कृतैतद्-एकादशी व्रतोद्यापनाङ्गभूताचार्यकृत पूजाहोमादि सकलकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं गामेकां रुद्रदैवतां ……. गोत्राय …….. शर्मणे ब्राह्मणाय आचार्याय दक्षिणां तुभ्यमहं सम्प्रददे ॥ आचार्य का प्रतिवचन – ॐ स्वस्ति ॥
तत्पश्चात यजमान/व्रती उद्यापन की दक्षिणा करे; दक्षिणा करने हेतु त्रिकुशा-तिल-जल-सुवर्ण लेकर पढ़े : नमोऽद्य कृतैतद्-एकादशी व्रतोद्यापनाङ्गभूताचार्यकृत पूजाहोमादि सकलकर्मप्रतिष्ठार्थमेतावद्रव्य मूल्योपकल्पित गामेकां रुद्रदैवतां ……… गोत्राय …….. शर्मणे ब्राह्मणाय आचार्याय दक्षिणां तुभ्यमहं सम्प्रददे ॥ आचार्य का प्रतिवचन – ॐ स्वस्ति ॥
तत्पश्चात मंडप-शय्यादि सभी दान सामग्री का स्पर्श करते हुये आचार्य को अर्पित करे। यहां ध्यातव्य यह है कि मंडप भी दान हो जाता है और मंडप भी आचार्य का ही होता है।
तत्पश्चात त्रिकुशा-तिल-जल-द्रव्य आदि लेकर आचार्य कर्म दक्षिणा और भूयसी दक्षिणा करे :
- कर्म दक्षिणा
- भूयसी
ॐ अद्य कृतैतद्-एकादशीत्रतोद्यापनाङ्गभूत पूजाहोमादि सकलकर्म प्रतिष्ठार्थमेतावद्रव्य मूल्यक हिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे॥ इस प्रकार दक्षिणा करके पुरोहित को प्रदान करे। पुरोहित प्रतिवचन – ॐ स्वस्ति ॥
त्रिकुशा-तिल-जल-प्रचुर द्रव्यादि लेकर भूयसी दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतद्-एकादशीत्रतोद्यापनकर्मणि न्युनाधिकदोष परिहारार्थमेतावद्द्रव्य मूल्यक हिरण्यमग्निदैवतं नानानामगोत्रेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो भूयसीं दक्षिणां दातुमहमुत्सृज्ये ॥
अभिषेक
तत्पश्चात आचार्य अग्रांकित मंत्रों को पढ़ते हुये शान्तिकलश के जल से यजमान/व्रती का अभिषेक करे :
ॐ सुरास्त्वामभिषिञ्चन्तु ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः। वासुदेवो जगन्नाथस्तथा सङ्कर्षणो विभुः॥१॥
प्रद्युम्नश्चानिरुद्धश्च भवन्तु विजयाय ते । आखण्डलोऽग्निर्भगवान् यमो वै निर्ऋतिस्तथा ॥२॥
वरुणः पवनश्चैव धनाध्यक्षस्तथा शिवः । ब्रह्मणा सहितः शेषो दिक्पालाः पान्तु ते सदा ॥३॥
कीर्तिर्लक्ष्मीर्धृतिर्मेधा श्रद्धा पुष्टिः क्रिया मतिः । बुद्धिर्लज्जा वपुः शान्तिस्तुष्टिः कान्तिश्च मातरः ॥४॥
एतास्त्वामभिषिञ्चन्तु देवपत्न्यस्समागताः । आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधजीवसितार्कजाः ॥५॥
ग्रहास्त्वामभिषिञ्चन्तु राहुः केतुश्च तर्पिताः । देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षस पन्नगाः ॥६॥
ऋषयो मनवो गावो देवमातर एव च । देवपत्न्यो द्रुमा नागा दैत्याश्चाप्सरसां गणाः ॥७॥
अस्त्राणि सर्वशस्त्राणि राजानो वाहनानि च । औषधानि च रत्नानि कालस्यावयवाश्च ये ॥८॥
सरितः सागराः शैलास्तीर्थानि जलदा नदाः । एते त्वामभिषिञ्चन्तु सर्वकामार्थसिद्धये ॥९॥
॥ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः ॥
तत्पश्चात ब्राह्मणभोजन आदि कराये। एकादशी व्रतोद्यापन में बहुत यजमानों द्वारा एक अन्य कर्म अपाक-पाक भाण्डोत्सर्ग भी किया जाता है।
यदि अपाक-पाक भाण्डोत्सर्ग विधि की भी आवश्यकता हो तो हमें सूचित कर सकते हैं : info@karmkandvidhi.in , इस प्रकार से ऊपर एकादशी व्रत उद्यापन की विधि का अवलोकन करने के उपरांत यह प्रतीत होता है कि एकादशी व्रतोद्यापन में पूजा-हवन सामग्रियों के अतिरिक्त भी दान की बहुत सामग्रियां लगती हैं।
एकादशी व्रतोद्यापन दान सामग्री के लिये अलग से आलेख प्रकाशित की गयी है और यदि आप पढ़ना चाहें तो यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं : एकादशी उद्यापन सामग्री
सारांश : एकादशी व्रत सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे व्रतराज भी कहा जाता है। एकादशी व्रत का उद्यापन करने की विधि को समझना आवश्यक है, जिससे व्रत की पूर्णता सुनिश्चित होती है। उद्यापन के लिए मंडप, कलश स्थापन, संकल्प लेना, आचार्य वरण और विभिन्न पूजन और दान विधियों का पालन करना होता है। वर्त्तमान युग में जब ध्यात्म और कर्मकांड की जटिलताएं बढ़ी हुयी प्रतीत होती है, ऐसे में एकादशी का सरल और स्पष्ट उद्यापन विधि समझाना आवश्यक है। वास्तव में, व्रतों की पद्धतियां केवल शास्त्रीय ज्ञान तक सीमित नहीं होतीं, बल्कि इसे समझकर पालन करने की भी आवश्यकता होती है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
Discover more from संपूर्ण कर्मकांड विधि
Subscribe to get the latest posts sent to your email.