तत्पश्चात पूजन आरंभ करे। गृहारंभ में बहुत सारे देवताओं की पूजा करनी होती है अतः सबकी पञ्चोपचार पूजा ही करे। यदि समयाभाव न हो तो वास्तु की षोडशोपचार पूजा करे। कलशस्थापन पूजन के उपरांत नवग्रह, दशदिक्पाल, अष्टवसु आदि की पूजा करे :
नवग्रह पूजन
- अक्षत : ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहाः इहागच्छत इह तिष्ठत॥
- जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
- गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
- पुष्प : इदं पुष्पं ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
- अक्षत : इदं अक्षतं ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
- धूप : एष धूपः ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
- दीप : एष दीपः ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
- नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
- जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
- पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
दशदिक्पाल पूजन
- अक्षत : ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालाः इहागच्छत इह तिष्ठत ॥
- जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
- गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
- पुष्प : इदं पुष्पं ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
- अक्षत : इदं अक्षतं ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
- धूप : एष धूपः ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
- दीप : एष दीपः ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
- नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
- जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
- पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
अष्टवसु पूजन
- अक्षत : ॐ अष्टवसव इहागच्छत इह तिष्ठत ॥
- जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ अष्टवसुभ्यो नमः ॥
- गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ अष्टवसुभ्यो नमः ॥
- पुष्प : इदं पुष्पं ॐ अष्टवसुभ्यो नमः ॥
- अक्षत : इदं अक्षतं ॐ अष्टवसुभ्यो नमः ॥
- धूप : एष धूपः ॐ अष्टवसुभ्यो नमः ॥
- दीप : एष दीपः ॐ अष्टवसुभ्यो नमः ॥
- नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ अष्टवसुभ्यो नमः ॥
- जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ अष्टवसुभ्यो नमः ॥
- पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ अष्टवसुभ्यो नमः ॥
क्षेत्रपाल पूजन
- अक्षत : ॐ क्षेत्रपाल इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ क्षेत्रपालाय नमः ॥
- गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ क्षेत्रपालाय नमः ॥
- पुष्प : इदं पुष्पं ॐ क्षेत्रपालाय नमः ॥
- अक्षत : इदं अक्षतं ॐ क्षेत्रपालाय नमः ॥
- धूप : एष धूपः ॐ क्षेत्रपालाय नमः ॥
- दीप : एष दीपः ॐ क्षेत्रपालाय नमः ॥
- नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ क्षेत्रपालाय नमः ॥
- जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ क्षेत्रपालाय नमः ॥
- पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ क्षेत्रपालाय नमः ॥
क्रूरभूत पूजन
- अक्षत : ॐ क्रूरभूतानि इहागच्छत इह तिष्ठत ॥
- जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ क्रूरभूतेभ्यो नमः ॥
- गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ क्रूरभूतेभ्यो नमः ॥
- पुष्प : इदं पुष्पं ॐ क्रूरभूतेभ्यो नमः ॥
- अक्षत : इदं अक्षतं ॐ क्रूरभूतेभ्यो नमः ॥
- धूप : एष धूपः ॐ क्रूरभूतेभ्यो नमः ॥
- दीप : एष दीपः ॐ क्रूरभूतेभ्यो नमः ॥
- नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ क्रूरभूतेभ्यो नमः ॥
- जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ क्रूरभूतेभ्यो नमः ॥
- पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ क्रूरभूतेभ्यो नमः ॥
वास्तु पूजन विधि
वास्तु पूजा के लिये वास्तुवेदी भी बनाई जा सकती है किन्तु गृहारंभ में वेदी की विशेष आवश्यकता नहीं होती। कलश, प्रतिमा, गर्तजल, शालिग्राम आदि पर वास्तु का आवाहन करके पूजा करें।
- वास्तु आवाहन मंत्र – ॐ वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान् स्वावेशो अनमीवो भवानः । यत्वेमहे प्रतितन्नोजुषस्व शन्नो भव द्विपदेशञ्चतुष्पदे ॥ ॐ आवाहयामि देवेशं वास्तुदेवं महाबलम्। देवदेवं गणाध्यक्षं पातालतलवासिनं ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पते इहागच्छ इहतिष्ठ।
- जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥
- पञ्चामृत : इदं पंचामृतं स्नानीयं ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥
- जल : इदं शुद्धोदकं ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥
- वस्त्र (श्वेत वस्त्र) : इमे वस्त्रोपवस्त्रे बृहस्पति दैवते ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥ इदमाचमनीयं ….
- यज्ञोपवीत : इमे यज्ञोपवीते बृहस्पति दैवते ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥ इदमाचमनीयं ….
- गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥
- पुष्प : इदं पुष्पं ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥
- अक्षत : इदं अक्षतं ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥
- धूप : एष धूपः ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥
- दीप : एष दीपः ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥
- नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥
- जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥
- पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पतये नमः॥
- प्रार्थना – ॐ वास्तोष्पतिं जगद्देवं सर्वसिद्धि विधायकम् । त्वं पूजयामि देवेशं वास्तुदेवं महाबलम् ॥ दधि-उड़द आदि की बलि भी अर्पित करें।
उपरोक्त प्रकार से ही नाममंत्रों द्वारा अन्य देवताओं का भी पंचोपचार पूजन करे। आगे सभी देवताओं का आवाहन मंत्र देकर पूजन करने के लिये नाममंत्र दे दिया गया है। उन नाममंत्रों से ही उपचार वस्तु अर्पित करे।
सर्प पूजन
- आवाहन – ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवी मनु । येऽन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्वेभ्यो नमः ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः सर्पाः इहागच्छत इहतिष्ठत ॥
- सर्प पूजन मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः सर्पेभ्यो नमः॥
- प्रार्थना – ॐ वासुकिं धृतराष्ट्रञ्च कर्कोटक धनञ्जयौ । तक्षकैरावतौ चैव कालेयमणिभद्रकौ ॥
(ऊपर तंत्र से सर्पपूजन विधि दी गयी है यदि समयाभाव न हो तो पृथक-पृथक अष्टनागों का आवाहन पूजन करे।)
वृषभ पूजन
- आवाहन – ॐ आशुः शिशानो वृषभो न भीमो घनाघनः क्षोभणश्चर्षणीनाम् । संक्रन्दनोऽनिमिष ऽएकवीरः शत ᳪ सेना अजयत्साकमिन्द्रः॥ ॐ भूर्भुवः स्वः धर्मरूप वृषभ इहागच्छ इहतिष्ठ॥
- वृषभ पूजन मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः धर्मरूपवृषभाय नमः॥
- प्रार्थना – ॐ धर्मोसि धर्मदैवत्य वृषरूप नमोऽस्तु ते । सुखं देहि धनं देहि देहि पुत्रमनुत्तमम् ॥ गृहे गृहे निधिं देहि वृषरूप नमोऽस्तु ते । आयुर्वृद्धिं च धान्यं च आरोग्यं गृह देहि गेहयोः ॥ आरोग्यं मम भार्याया पितृमातृसुखं सदा । भ्रातृणां परमं सौख्यं पुत्राणां सौख्यमेव च ॥ सर्वस्वं देहि मे विष्णो गृहे संविशतां प्रभो । नवग्रहयुतां भूमिं पालयस्व वरप्रद ॥
शिला (ईंट) पूजन
फिर खात के वायव्य कोण में पीली सरसों छिड़ककर एक बड़ा पीठ (पीढिया या लकड़ी की पट्टी) रखकर, कपड़ा बिछाकर उस पांच ईंट रखे । एक ईंट मध्य में और अन्य चार पूर्वादि दिशा में रखें।
- जल दे – ॐ आपः शुद्धा ब्रह्मरूपाः पावयन्ति जगत्त्रयम् । चाभिरद्भिः शिलां स्नाप्य स्थापयामि शुभे स्थले । जल से शिला अथवा ईंट को धो ले ।
- सप्तमृत्तिका – ॐ गजाश्वरथ्यावल्मीकसद्भिर्मृद्भिः शिलेष्टकान् । प्रक्षालयामि शुद्ध्यर्थं गृहनिर्माण कर्मणि ॥ सप्तमृत्तिका लगाकर साफ करें।
- पञ्चगव्य – गायत्री मंत्र द्वारा पञ्चगव्य से प्रक्षालित करके, तीर्थों के जल या शुद्ध जल से प्रक्षालित करके साफ कपड़े से पोंछ कर यथास्थान स्थापित करे।
चंदन-कुंकुम-सिंदूर आदि लगाकर (स्वास्तिक बनाकर) लाल कपड़े से ढंककर पांचों की पूजा करें।
- १. नन्दा (मध्य शिला) – ॐ नन्दायै नमः॥
- २. भद्रा (पूर्व शिला) – ॐ भद्रायै नमः॥
- ३. जया (दक्षिण शिला) – ॐ जयायै नमः॥
- ४. रिक्ता (पश्चिम शिला) – ॐ रिक्तायै नमः॥
- ५. पूर्णा (उत्तर शिला) – ॐ पूर्णायै नमः॥