नवग्रहों में गुरु का पांचवां क्रम आता है। जैसे सूर्य, चंद्र, मंगल आदि ग्रहों की शांति विधि मिलती है उसी प्रकार गुरु के लिये भी शांति विधि प्राप्त होती है। गुरु को सौम्य, शुभ ग्रह कहा जाता और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी शुभद कर देता है। गुरु की दृष्टि शुभद है किन्तु उपस्थिति अशुभ है, जिस भाव में गुरु स्थित होता है उस भाव संबंधी फलों का ह्रास करता है। इस आलेख में गुरु शांति विधि दी गयी है। गुरु शांति विधि का तात्पर्य शास्त्रोक्त विधान से गुरु के अशुभ फलों की शांति करना है।
गुरु शांति के उपाय | गुरु ग्रह शांति : Guru Shanti Mantra
सूर्य, चंद्र, मंगल और बुध की शांति विधि पूर्व आलेखों में दी गयी है, यहां हम गुरु शांति विधि देखेंगे और समझेंगे। गुरु ग्रह शांति का तात्पर्य है गुरु के अशुभ फलों के निवारण की शास्त्रोक्त विधि। यदि गुरु निर्बल हो तो सबल करने के लिये पुखराज, टोपाज आदि धारण करना लाभकारी होता है। किन्तु यदि गुरु के कोई अशुभ प्रभाव हों तो उसका निवारण रत्न धारण करना नहीं होता, ग्रहों के अशुभ प्रभाव का निवारण करने के लिये शांति ही करनी चाहिये।
गुरु शांति के उपाय का तात्पर्य है गुरु के अशुभत्व का निवारण करने वाला उपाय, अनिष्ट फलों का शमन करने वाला उपाय चाहे वह पूजा हो, हवन हो, जप हो, पाठ हो, दान हो, रत्न-जड़ी धारण करना हो, यंत्र धारण करना हो। अर्थात यदि गुरु किसी प्रकार से अशुभ हों तो उनकी शांति के लिये इतने प्रकार के उपाय किये जा सकते हैं।
कमजोर (निर्बल) गुरु के उपाय
गुरु यदि कमजोर अर्थात निर्बल हो तो उसे सबल करने हेतु निम्न उपाय (रत्नादि धारण) किये जा सकते हैं :
- रत्न : पुखराज।
- उपरत्न : टोपाज।
- जड़ी : भृंगराज अथवा केला
- दिन : गुरुवार।
- समिधा : पीपल
- धातु : स्वर्ण
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११ | ९ | ७ |
६ | १३ | ८ |
गुरु शांति मंत्र – Budh Shanti Mantra
- वैदिक मंत्र (वाजसनेयी) : ॐ बृहस्पते ऽअति यदर्यो अर्हाद्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु । यद्दीदयच्छवसऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥
- वैदिक मंत्र (छन्दोगी) : ॐ बृहस्पते परिदीयारथेन रक्षोहामित्राँ अपबाधमानः प्रभञ्जत्सेना: प्रमृणो युधाजयन्नस्माकं मेध्यविता रथानाम् ॥
- तांत्रिक मंत्र : ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः॥
- एकाक्षरी बीज मंत्र : ॐ बृं बृहस्पतये नमः। ॐ गुं गुरवे नमः॥
- जप संख्या : 16000
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