हरिवासर भगवान विष्णु का एक महत्वपूर्ण व्रत है जो बहुत कठिन तो होता ही है और इसका आना भी सुनिश्चित नहीं है कि इतने दिनों पश्चात्, अथवा मास या वर्ष के पश्चात् आयेगा। यह पंचांग में विशेष योग प्राप्त होने पर होता है और विशेषकर वैष्णवजन तो हरिवासर की आकांक्षा करते हैं कि जीवन में एक बार भी उन्हें प्राप्त हो। इस वर्ष 2024 में हरिवासर का योग बना है और इसकी चर्चा यहां की गयी है। इस आलेख में हम जानेंगे कि हरिवासर क्या होता है, हरिवासर योग कब बनता है, इसका महत्व क्या है और 2024 में हरिवासर कब है ?
हरिवासर 2024
व्रत के विशेष देवता अवश्य होते हैं किन्तु व्रत अन्य देवोपासकों के लिये भी करणीय होता है ऐसा नहीं होता कि जिस देवता का व्रत हो उसी देवता के उपासक करें अन्य देवताओं के उपासक न करें। जैसे शैव, शाक्त, सौर, गाणपत्य सभी विष्णु के एकादशी व्रत को करते हैं एवं अन्य सभी भी महाशिवरात्रि, महाष्टमी, चतुर्थी, छठ, रवि आदि व्रत किया करते हैं।
इस तथ्य का प्रयोजन यह है कि एकादशी और द्वादशी के देवता भगवान विष्णु हैं इसलिये वह मात्र वैष्णवों का व्रत है ऐसी कोई बात नहीं है, सभी व्रत करते हैं। तथापि वैष्णव थोड़ी भिन्नता रखने के लिये अन्यों की अपेक्षा कुछ अतिरिक्त नियम-विधान आदि का भी पालन करते हैं। एकादशी व्रत के देवता भी भगवान विष्णु हैं और द्वादशी के देवता भी भगवान विष्णु ही हैं। हरिवासर का मुख्य अर्थ तो एक ही है किन्तु एक विशेषार्थ भी होता है जो विशेष योग द्वारा ग्रहण किया जाता है।
हरिवासर योग क्या है – harivasar kya hai
हरिवासर के विषय में कल्पद्रुम का जो प्रमाण है उससे ज्ञात होता है कि द्वादशी का प्रथम चरण हरिवासर होता है। यहां प्रथम चरण कहने का तात्पर्य प्रथम चतुर्थांश है। यह हरिवासर सभी द्वादशी में होता है और यदि एकादशी रात्र्यंत तक हो तो भी अगले दिन का पारण द्वादशी के प्रथम चतुर्थांश व्यतीत होने के पश्चात् ही करना चाहिये। और यह नियम सभी एकादशी व्रत के संबंध में है।
द्वादश्याः प्रथमः पादो हरिवासरसंज्ञितः । तमतिक्रम्य कुर्वीत पारणं हरिभक्तिमान् ॥ – शब्द कल्पद्रुम
इस तथ्य को वराहपुराण का एक वचन और पुष्ट करता है :
एकादशीमुपोष्यैव द्वादशीमप्युपोषयेत् । न चात्र विधिलोपः स्यादुभयोर्देवता हरिः ॥ – वराह पुराण
वराहपुराण के वचनानुसार एकादशी उपवास करने वाला द्वादशी का भी उपवास अवश्य करे। दोनों के देवता भगवान विष्णु ही हैं कर इसमें विधि का लोप न करे। विधिलोप का तात्पर्य द्वादशी के प्रथम चतुर्थांश में एकादशी का पारण नहीं करना है, क्योंकि द्वादशी का प्रथम चरण हरिवासर होता है।
इस प्रकार हरिवासर का प्रथम और मुख्य तात्पर्य ज्ञात होने के पश्चात् विशेष योग द्वारा निर्मित होने वाले हरिवासर को भी समझना है। ये विशेष योग निर्मित होने की स्थिति में ही निर्मित होता है जिसके लिये मास, तिथि, नक्षत्र और वार का उदयकाल में योग होना आवश्यक होता है।
उदयकाले नक्षत्रयोगे हरिवासरपदं पारिभाषिकम् । – सार संग्रह
मत्स्य पुराण के इस वचन से स्पष्ट होता है कि नभस्ये अर्थात भाद्र मास, शुक्ल पक्ष की द्वादशी को यदि श्रवण नक्षत्र हो तो वह संयुक्त हो जाता है और दोनों व्रत करना चाहिये। हरिवासर इसी को कहा गया है किन्तु इसमें वार योग का उल्लेख नहीं मिलता है अन्य प्रमाणों में वार का भी उल्लेख किया गया है।
द्वादशीशुक्लपक्षे तु नभस्ये श्रवणं यदि । उपोष्यैकादशीन्तत्र द्वादशीमप्युपोषयेत् ॥ – मत्स्य पुराण
ब्रह्मांडपुराण में इसका और विशेष लक्षण बताया गया है, भाद्र द्वादशी यदि हृषिकेश नश्रत्र (श्रवण) से संयुक्त हो तो वैष्णवजन दोनों दिन उपवास करे। पुनः यदि और विस्तार करते हुये कहा गया है कि द्वादशी, एकादशी, सौम्य (बुधवार) और श्रवण ये चारों यदि संयुक्त हों तो देवदुन्दुभियोग निर्मित होता है और शतगुणा फलदायक होता है। यद्यपि पक्ष का उल्लेख नहीं है तथापि पक्ष स्वतः ही सिद्ध हो जाता है कृष्ण द्वादशी को श्रवण नक्षत्र हो ही नहीं सकता, शुक्ल द्वादशी को ही होगा अतः पक्ष भी स्पष्ट हो जाता है।
द्वादश्यान्तु दिने भाद्रे हृषीकेशर्क्षसंयुते । उपवासद्वयं कुर्याद्विष्णुप्रीणनतत्परः ॥
द्वादश्येकादशी सौम्यः श्रवणं च चतुष्टयम् । देवदुन्दुभियोगोऽयं शतमन्युफलप्रदः ॥ ब्र.पु.
ब्रह्मांडपुराण में इसका और विशेष लक्षण बताया गया है, भाद्र द्वादशी यदि हृषिकेश नश्रत्र (श्रवण) से संयुक्त हो तो वैष्णवजन दोनों दिन उपवास करे। पुनः यदि और विस्तार करते हुये कहा गया है कि द्वादशी, एकादशी, सौम्य (बुधवार) और श्रवण ये चारों यदि संयुक्त हों तो देवदुन्दुभियोग निर्मित होता है और शतगुणा फलदायक होता है। यद्यपि पक्ष का उल्लेख नहीं है तथापि पक्ष स्वतः ही सिद्ध हो जाता है कृष्ण द्वादशी को श्रवण नक्षत्र हो ही नहीं सकता, शुक्ल द्वादशी को ही होगा अतः पक्ष भी स्पष्ट हो जाता है।
इस प्रकार भाद्रशुक्ल द्वादशी के संबंध में देवदुंदुभियोग संबंधी विशेष प्रमाण प्राप्त होता है। इसी में आगे तीन माह में विशेष नक्षत्र योग होने पर हरिवासर होना भी बताया गया है। एक वचन तो इस प्रकार है “आ-भा-का-सितपक्षेषु मैत्रश्रवणरेवती । सङ्गमे नहि भोक्तव्यं द्वादश द्वादशीर्हरेत् ॥” अर्थात आषाढ़, भाद्र और कार्तिक मासों के शुक्ल पक्ष में यदि (क्रमशः) अनुराधा, श्रवण और रेवती नक्षत्र हो तो उस संगम में भोजन न करे। इसी प्रकार से भोजन (पारण) निषेध के और भी अनेकों प्रमाण हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि हरिवासर न भी हो तो भी उपरोक्त नक्षत्र योग मात्र होने से भी पारण नक्षत्र समाप्ति होने पर ही करे।
हरिवासर योग का वर्णन भी इसी प्रकार से थोड़ा परिवर्तन करके बुधवार का योग होना बताया गया है, अर्थात यदि बुधवार दिन भी तो वो हरिवासर योग होता है। यदि बुधवार का योग न हो तो हरिवासर योग नहीं होगा किन्तु फिर भी पारण संबंधी निषेध ऊपर ही बता दिया गया है। आ-भा-का-सितपक्षस्य मैत्रश्रवणरेवती । सद्वादशी बुधवारेण हरेर्वासर उच्यते ॥
हरिवासर योग
अर्थात आषाढ़, भाद्र और कार्तिक शुक्ल पक्ष में द्वादशी के दिन बुधवार हो और क्रमशः अनुराधा, श्रवण, रेवती नक्षत्र हो तो वह हरिवासर कहलाता है। यह योग उदयकाल में होना चाहिये पूर्व ही स्पष्ट कर दिया गया है। इस योग को यदि सारणी के माध्यम से समझा जाय तो अधिक सरल हो जाता है :
माह | आषाढ़ | भाद्र | कार्तिक |
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पक्ष | शुक्ल | शुक्ल | शुक्ल |
तिथि | द्वादशी | द्वादशी | द्वादशी |
वार | बुधवार | बुधवार | बुधवार |
नक्षत्र | अनुराधा | श्रवण | रेवती |
उपरोक्त सारणी के अनुसार यदि उदयकालीन योग प्राप्त हो तो हरिवासर संज्ञक होता है और एकादशी करने वाला द्वादशी भी करे। यदि बुधवार न भी हो मात्र नक्षत्र ही हो हरिवासर नहीं होता है किन्तु नक्षत्र की उपस्थित रहने तक एकादशी का पारण न करे।
हरिवासर 2024
हरिवासर योग को समझने के पश्चात् अब हरिवासर योग कब है यह भी जानना आवश्यक है। इस वर्ष 2024 के कार्तिक माह में हरिवासर योग बन रहा है। सर्वप्रथम हम 2024 के हरिवासर संबंधी पंचांग का अवलोकन करते हुये समझेंगे कि किस प्रकार हरिवासर योग निर्मित हो रहा है :
दिनांक | माह | पक्ष | तिथि | वार | नक्षत्र |
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13-11-2024 | कार्तिक | शुक्ल | द्वादशी | बुधवार | रेवती |
12 नवंबर 2024, मंगलवार, कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवोत्थान एकादशी है एवं अगले दिन बुधवार को मध्याह्न 1:01 बजे तक द्वादशी तिथि, रात्र्यंत 3:10 बजे तक रेवती नक्षत्र है। उपरोक्त योग उदयकालीन है एवं हरिवासर योग के अनुसार है अतः वर्ष 2024 में 13 नवम्बर बुधवार को हरिवासर योग है।
हरिवासर 2026 देवदुंदुभियोग
2024 कार्तिक के पश्चात् 2025 में तो कोई हरिवासर नहीं है किन्तु 2026 में पुनः हरिवासर योग निर्मित हो रहा है। अगले वर्ष 2026 के भाद्र माह में हरिवासर योग बन रहा है। सर्वप्रथम हम 2026 के हरिवासर संबंधी पंचांग का अवलोकन करते हुये समझेंगे कि किस प्रकार हरिवासर योग निर्मित हो रहा है :
दिनांक | माह | पक्ष | तिथि | वार | नक्षत्र |
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23-09-2026 | भाद्र | शुक्ल | द्वादशी | बुधवार | श्रवण |
22 सितंबर 2026, मंगलवार, भाद्र शुक्ल एकादशी को एकादशी व्रत है एवं अगले दिन बुधवार को रात्रि 10:50 बजे तक द्वादशी तिथि, प्रातः 9:08 बजे तक श्रवण नक्षत्र है। उपरोक्त योग उदयकालीन है एवं हरिवासर योग के अनुसार है अतः वर्ष 2026 में 23 सितंबर बुधवार को हरिवासर योग है।
हरिवासर 2029 देवदुंदुभियोग
2026 भाद्र के पश्चात् 2027, 2028 में तो कोई हरिवासर नहीं है किन्तु 2029 में पुनः हरिवासर योग निर्मित हो रहा है। वर्ष 2029 के भाद्र माह में हरिवासर योग बन रहा है। सर्वप्रथम हम 2029 के हरिवासर संबंधी पंचांग का अवलोकन करते हुये समझेंगे कि किस प्रकार हरिवासर योग निर्मित हो रहा है :
दिनांक | माह | पक्ष | तिथि | वार | नक्षत्र |
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19-09-2029 | भाद्र | शुक्ल | द्वादशी | बुधवार | श्रवण |
19 सितंबर 2029, मंगलवार, भाद्र शुक्ल एकादशी को एकादशी व्रत है एवं अगले दिन बुधवार को सायाह्न 5:58 बजे तक द्वादशी तिथि, मध्याह्न 11:47 बजे तक श्रवण नक्षत्र है। उपरोक्त योग उदयकालीन है एवं हरिवासर योग के अनुसार है अतः वर्ष 2029 में 19 सितंबर बुधवार को हरिवासर योग है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।