नवरात्रि पूजन विधि : संकल्प, स्वस्तिवाचन, कलशस्थापन, दुर्गा पूजा, अंग पूजा – Puja No. 1

कलश स्थापन पूजन विधि

नवरात्रि व्रत तो है किन्तु इसमें सर्वाधिक प्रधान पूजा ही है, दुर्गा सप्तशती में नवरात्र पूजन को ही महापूजा कहा गया है : “शरत्काले महापूजा” अर्थात शरदऋतु में जो नवरात्र आता है उसमें की जाने वाली पूजा को महापूजा कहा जाता है। चैत्रादि नवरात्रों में भी पूजा की विधि तो समान ही रहेगी किन्तु पूजा विधि का निर्धारण आश्विन के नवरात्रि अर्थात शारदीय नवरात्र से ही होता है। नवरात्र पूजा में प्रथम दिन यव वपन और कलश स्थापन किया जाता है, साथ ही भगवती दुर्गा का आवाहन पूजन किया जाता है। इस आलेख में नवरात्र के प्रथम दिन अर्थात प्रतिपदा पूजा की विधि और मंत्र दिये गये हैं।

यद्यपि दुर्गा पूजा के अनेकानेक पद्धतियां हैं तथापि उनमें से नवरात्र पूजन परक पद्धति अत्यल्प ही उपलब्ध हैं, अधिकांशतः पद्धतियां यज्ञ विधि के अनुसार बनायी गयी हैं और शतचंडी आदि हेतु विशेष उपयोगी है। नवरात्र में दुर्गा पूजा करने की भिन्न विधि होती है और उसमें भी दो विधि हो जाती है एक मंदिरों में पूजा की विधि और दूसरी घर में पूजा करने की विधि। नीचे प्रतिपदा के दिन की जाने वाली पूजा विधि मिथिलादेशीय परंपरा से दी गयी है।

प्रतिपदा के दिन जो कलश स्थापन और पूजन किया जाता है वो समान ही होता है मात्र संकल्प में थोड़ी भिन्नता होती है जिसके लिये घर में करने हेतु और मंदिरों में करने हेतु भिन्न-भिन्न संकल्प प्रयोग दिया गया है।

पूजा सामग्रियों की व्यवस्था पूर्व दिन ही कर ले। प्रतिपदा के दिन प्रातः काल कलशस्थापनादि करे। प्रतिपदा के दिन कलशस्थापन हेतु कुछ विशेष विचार किया जाता है जिसकी पूर्व आलेख में विस्तृत चर्चा की गयी है। यहां कलश स्थापन मुहूर्त्त हेतु विचारणीय प्रमुख बातें बिन्दुबार बताई जा रही है :

  • कलश स्थापन हेतु उदयकालीन प्रतिपदा को ही ग्रहण किया जाता है भले ही महूर्तमात्र ही क्यों न हो, शेष द्वितीया होने पर भी ग्राह्य होता है।
  • प्रतिपदा के प्रथम 16 दण्डों में कलशस्थापन का निषेध है। इसका विचार इस प्रकार से करे यदि प्रतिपदा का आरंभ अर्द्धरात्रि के उपरांत हो तो अवश्य ही उदयकाल के पश्चात् सोलहवां दण्ड समाप्त होगा, तथापि ऐसा बहुत कम ही पाया जाता है।
  • प्रतिपदा में चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग भी मिला रहा हो तो उसकी समाप्ति होने के उपरांत द्वितीया में भी करे।
  • कलशस्थापन हेतु यदि प्रातः काल की प्रशंसा की गयी है। प्रातः काल सूर्योदय से दश दण्ड माना गया है।
  • यदि संपूर्ण दिन वैधृति योग हो तो अभिजित् मुहूर्त में कलशस्थापन करे।

कलशस्थापन की तैयारी

प्रतिपदा के दिन नित्यकर्म करने के पश्चात् सर्वप्रथम कलश स्थापन हेतु दो हाथ, डेढ़ हाथ या न्यूनतम हस्तमात्र वेदी का निर्माण करे। शहरों में ऐसे घर बनाये जाने लगे हैं कि वेदी निर्माण करने में घर गंदा होने की बात लगती है और नीचे कुछ देकर मिट्टी डालते हैं। ऐसा घर ही क्या जिसमें धार्मिक आयोजन करना भी दुष्कर हो। अष्टदल निर्माण करके उसपर वेदी निर्माण करे, उसके चारों कोनों में अन्य चार कलश स्थापित करने हेतु धान्यपुञ्ज बना ले।

धूप-दीप जला ले, नैवेद्य व्यवस्थित कर ले। एक पात्र में अक्षत, तिल, चंदन आदि ले ले। चंदन का तात्पर्य श्रीखंड, मलयागिरि, रक्तचंदन आदि होता है जिसे घिसा जाता है न कि रोली/कुंकुम। पुष्प, दूर्वा, बिल्वपत्र, पल्लव आदि की व्यवस्था कर ले। जलपात्र में जल ले ले, पंचामृत, पंचगव्य आदि का निर्माण कर ले। यदि अखंडदीप जलाना हो तो उसकी भी तैयारी कर ले। तत्पश्चात पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन आदि करके फिर संकल्प करे। आसन शुद्धि व दिग्बंधन की विशेष विधि आगे दी गई है।

पवित्रीकरण-विधि

स्वस्तिवाचन संस्कृत

आसन शुद्धि

पंचगव्य प्राशन-प्रोक्षण करके आसन शुद्धि करे :-

  • जल लेकर आसनस्थान को सिक्त करे : ॐ रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा॥
  • दोनों हाथों को धरती पर रखे, बायें गट्टे के ऊपर दांये गट्टे को रखते हुये करतल से भूमि को स्पर्श करते हुये अगले मंत्र से अभिमंत्रित करे : ॐ पवित्र वज्रभूमे हूँ फट् स्वाहा॥
  • गंध-पुष्पाक्षतादि से आसन भूमि का पूजन करे : ॐ ह्रीं आधारशक्ति कमलासनाय नमः॥
  • रक्तचंदनादि द्रव्य से आसन के नीचे त्रिकोण बनाये, फिर अगले मंत्र से चारों ओर मंडल (गोलाकार) बनाये : ॐ आसुरेखे वज्ररेखे हूँ फट् स्वाहा॥
  • फिर उसके मध्य में लिखे : “ॐ ह् सौं”
  • गंध-पुष्पाक्षतादि से पुनः पूजा करे : ॐ ह्रीं आधारशक्ति कमलासनाय नमः॥

तत्पश्चात अगले मंत्रों से गंध-पुष्पाक्षतादि अर्पित करे :

  • ॐ अनन्ताय नमः॥
  • ॐ विमलासनाय नमः॥
  • ॐ पद्मासनाय नमः॥
  • ॐ ह् सौं महाप्रेतपद्मासनाय नमः॥

तत्पश्चात दोनों हाथों से पृथ्वी को स्पर्श कर प्रणाम करते हुये पढ़े : ॐ पृथ्वि त्त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां नित्यं पवित्रं कुरु चासनम् ॥

तत्पश्चात पूर्वादि क्रम से गंध-पुष्पाक्षतादि अर्पित करे :

ॐ वास्तुपुरुषाय नमः॥ ॐ ब्रह्मणे नमः॥ ॐ धर्माय नमः॥ ॐ ज्ञानाय नमः॥ ॐ वैराग्याय नमः॥ ॐ ऐश्वर्याय नमः॥

पुनः कोणों में पूजन करे :

ॐ अधर्माय नमः॥ ॐ अज्ञानाय नमः॥ ॐ वैराग्याय नमः॥ ॐ अनैश्वर्याय नमः॥ ॐ दिशायै नमः॥ ॐ विदिशायै नमः॥

तत्पश्चात पांच बार व्यापक विधान करे : ॐ रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा॥ ॐ ऐं हूँ फट् स्वाहा॥

तत्पश्चात भूमि-आकाश के विघ्ननिवारण का भाव करते हुये तीन बार वामपादघात करे : ॐ अस्त्राय फट् ॥

तत्पश्चात ऊपर से नीचे करते हुये तीन ताल करे । फिर दशों दिशाओं में चुटकी बजाते हुये दिग्बंधन करके लाजा-भस्म-चंदन-अक्षत-दूर्वा-भस्म-कुशा-पीली सरसों आदि लेकर नाराचमुद्रा पूर्वक भूतोत्सारन करे; अगले मंत्रों को पढ़कर चारों ओर बिखरे :

ॐ अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः प्रेत गुह्यकाः । ये चात्र निवसन्त्यन्ये देवता भुवि संस्थिताः ॥
ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमि संस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया ॥
ते सर्वे विलयं यान्तु ये मां हिंसन्ति हिंसकाः । मृत्युरोगभयक्रोधाः पतन्तु रिपुमस्तके ॥

सामान्य अर्घस्थापन

अर्घ्यस्थापन की विधि पुस्तकोपलब्ध होने से यहां दी जा रही है तथापि जो विधियां गुरुमुखी होने पर ही फलित होती है उनके लिये गुरुमुखी होना आवश्यक होता है। इसे सुगम इसलिये नहीं किया गया है कि इस विधि को जानने वाले और कराने वालों का अभाव देखा जा रहा है। तथापि वर्षकृत्य से यथावत प्रस्तुत किया गया है।

  • स्वदक्षिणभागे विशुद्धजलेन भूमि सम्प्रोक्ष्य, तत्र रक्तचन्दनसिन्दूरादिना मण्डलं कृत्वा तत्र चतुरस्रां रेखां विलिख्य तन्मध्ये त्रिकोणयन्त्रं च विलिख्य ।
  • ॐ आधारशक्तये नमः ॥ इति पाद्यादिभिः सम्पूज्य ।
  • तत्र : सामान्यार्घपात्रं स्थापयामि । इति स्वर्ण-रोप्य-ताम्राद्यन्यतमार्घपात्रं संस्थाप्य ।
  • ओंकारेण जलं निधाय – ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥ ॐ ब्रह्माण्डोदरतीर्थानि करैः स्पृष्टानि ते रवे । तेन सत्येन देवेश तीर्थं देहि दिवाकर ॥ इति सूर्यमण्डलात् अंकुशमुद्रया तीर्थमावाह्य ।
  • पुष्पाक्षतै : गङ्गादिसकलतीर्थेभ्यो नमः ॥ ॐ हृदयादिषडङ्गदेवताभ्यो नमः ॥ ॐ अँ आँ अर्कमण्डलाय द्वादशकलात्मने नमः ॥ ॐ ईं वह्निमण्डलाय दशकलात्मने नमः ॥ ॐ ऊँ सोमण्डलाय षोडषकलात्मने नमः ॥ इति सम्पूज्य ।
  • तत्र मूलमन्त्रं (ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ) प्रणवं वा दशधा जप्त्वा धेनुमुद्रया अमृतीकृत्य मत्स्यमुद्रया आच्छाद्य योनिमुद्रां प्रदर्श्य ।
  • तज्जलेन पूजोपकरणम्, आत्मानञ्चाभिषिच्य विशेषार्ध्यस्थापनं कुर्यात् ।

विशेषार्घ्य स्थापन

  • स्ववामभागे – ‘ॐ आसुरेखे वज्ररेखे हूँ फट् स्वाहा’ इति मन्त्रेण रक्तचन्दनसिन्दूरादिना त्रिकोणगर्भषट्कोण-वृत्त चतुरस्रमण्डलं विलिख्य ।
  • कुशैः – ‘ॐ लं’ इति भुवमभिषिच्य – ‘ॐ वं’ इति भुवं संमृज्य षट्‌कोणेषु हृदयादिषडङ्ग सम्पूज्य ।
  • चतुरस्त्रे – ‘ॐ पूर्णगिरिपीठाय नमः’ इति पूर्व, ‘ॐ उड्डीयानपीठाय नमः’ इति दक्षिणे, ‘ॐ कामरूपपीठाय नमः’ इति पश्चिमे, ‘ॐ जालन्धरपीठाय नमः’ इति उत्तरे च सम्पूज्य ॐ आधारशक्तये नमः, ॐ कूर्मशेषाभ्यां नमः । इति मध्ये ।
  • ॐ आँ अर्कमण्डलाय द्वादशकलात्मने नमः ॥ ॐ ईं वह्निमण्डलाय दशकलात्मने नमः ॥ ॐ ऊँ सोममण्डलाय षोडशकलात्मने नमः ॥ इति पञ्चोपचारैः तत्तन्मण्डलं सम्पूज्य ।
  • ‘ॐ ह्रीं फट्’ इत्याधारपात्रं त्रिपादिकां संस्थाप्य – ‘ॐ आधारपात्राय नमः’ इति सम्पूज्य ।
  • तदुपरि सौवर्णराजत ताम्राद्यन्यतमपात्रं शङ्खं वा ‘ॐ अस्त्राय फट्’ इति मन्त्रेण संस्थाप्य ।
  • ‘ॐ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वर्गकपालाय सर्वाधाराय सर्वोद्भवाय सर्वशुद्धिमयाय सर्वासुर-रुधिरारुणाय शुभ्राय सुधाभाजनाय देवीकपालाय नमः ॥ इति पुष्पाक्षतै सम्पूज्य ।
  • शंखे सुधाबुद्धया मूलमन्त्रेण जलं निधाय तत्र अंकुशमुद्रया सूर्यमण्डलात् तीर्थम‌वाहयेत् । तद्यथा –

ॐ गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥
ॐ ब्रह्माण्डोदरतीर्थानि करैः स्पृष्टानि ते रवे । तेन सत्येन मे देव तीर्थन्देहि दिवाकर ॥
ॐ गङ्गाद्याः सरितः सर्वाः सरांसि जलदा नदाः । ह्रदाः प्रस्रवणाः पुण्याः स्वर्गपातालभूगताः ॥
सर्वतीर्थानि पुण्यानि पात्रे कुर्वन्तु सन्निधिम् ॥

  • इति तीर्थान्यावाह्य – ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रौं ॐ ह्रीं लीं ईं फट् हसौं हूँ’ इति जलमभिमन्त्र्य ।
  • शंखधेनुयोनिमुद्राः दर्शयित्वा मत्स्यमुद्रया आच्छाद्य मूलमन्त्रं दशधा जपित्वा जपा-करवीर-द्रोण-कमलाद्रिपुष्पाणि, अक्षतम्, दूर्वा, दधि, तिलं यवं, सर्वोषधिं, बिल्वपत्रम्, कुशमूलानि च दत्त्वा त्रिखण्डां मुद्रां प्रदर्श्य ।
  • गन्धपुष्पाक्षतैः – ॐ गङ्गादिसकलतीर्थेभ्यो नमः ॥ ॐ हृदादिषडङ्गदेवताभ्यो नमः ॥ ॐ साङ्गसायुधसवाहनसपरिवारायै स्वेष्टदेवतायै दुर्गायै नमः । इति सम्पूज्य; ध्यायेत्

ॐ सूर्यकोटिप्रतीकाशं चन्द्रकोटिसुशीतलम् । अष्टादशभुजं देवं पञ्चवक्त्रं त्रिलोचनम् ॥
अमृतार्णवमध्यस्थं ब्रह्मपद्योपरि स्थितम् । वृषारूढं नीलकण्ठं सर्वाभरणभूषितम् ॥
कपालखट्वाङ्गधरं घण्टाडमरुवादिनम् । पाशाङ्कुशधरं देवं गदामुशलधारिणम् ॥
खड्गखेटकपट्टीश मुद्गैरोच्छलकुन्तिनम् । विचित्रखेटकं मुण्डं वरदाभयमालिनम् ॥
लोहितं देवदेवेशं भावयेत्साधकोत्तमैः । भावयेच्च सुधां देवी चन्द्रकोट्ययुतप्रभाम् ॥
हिमकुन्देन्दुधवलां पञ्चवक्त्रां त्रिलोचनाम् । अष्टादशभुजैर्युक्तां सर्वानन्दकरोद्यताम् ॥
प्रहसन्तीं विशालाक्षी देवदेवस्य सम्मुखीम् ॥

  • सामान्यार्घ्योदकेन – ॐ आनन्दभैरवीं तर्पयामि ॥ ॐ स्वेष्टदेवतां तर्पयामि ॥ इति सन्तर्प्य
  • तज्जलेनात्मानं पूजोपकरणानि चाभिषिच्य पूजामारभेत् ।

नवरात्र में किये जाने वाले कलशस्थापन और पूजन की विधि सामान्य कलशस्थापन-पूजन विधि से किंचित भिन्न है। जो प्रतिमा/चित्र आदि में भगवती दुर्गा का पूजन करते हैं उन्हें वहीं आवाहन पूजन करना चाहिये। अन्य को कलश में ही करना चाहिये। मंदिरों में भी जहां मिट्टी की प्रतिमा बनायी जाती है वहां प्रथम दिन भगवती दुर्गा, नवग्रह, दिक्पाल आदि का आवाहन-पूजन कलश में ही करना चाहिये।

संकल्प मंत्र

संकल्प हेतु त्रिकुशा, पान, सुपारी, तिल, जल, पुष्प, चंदन, द्रव्यादि लेकर संकल्प मंत्र का उच्चारण करे :

मंदिरों में सार्वजनिक पूजन का संकल्प :

घर में किया जाने वाला संकल्प :

वरण

वरणसामग्री, तिल, जल लेकर पढे :

कलश स्थापना विधि और मंत्र

संकल्पादि के उपरांत स्वयं के वाम भाग में, देवता के दक्षिण अथवा सम्मुख कलशस्थापन करे । पूर्वनिर्मित दोहाथ अथवा डेढ हाथ की वेदी को पञ्चगव्य-गङ्गाजलादि से सिक्त करे, फिर सबिन्दुषट्‌कोणाष्टदलयन्त्रगर्भ निर्माण करे अथवा सर्वतोभद्रमण्डल मण्डल बनाये, अथवा चतुरस्र वेदी मात्र का ही सामान्यर्घोदक से  अभ्युक्षन करके, कलशाधार शक्ति का आवाहन करे : ॐ कलशाधारशक्ते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

फिर पंचोपचार पूजन करे : ॐ कलशाधारशक्तये नमः॥

नवरात्रि पूजन विधि

तत्पश्चात मध्यमानामिका उंगलियों से वेदी का स्पर्श करके पढ़े – ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया  विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ ᳪ ह पृथिवी ᳪ माहि ᳪ सीः ॥

फिर गोमय से लीपे अथवा गोमय स्पर्श मात्र करे – ॐ मानस्तोके तनयेमानऽआयुषिमानो गोषुमानोऽअश्वेषुरीरिष: । मानो विरान्रुद्रभामिनो वधीर्हष्मन्तः सदमित्वा हवामहे ॥

फिर गंगाजल से सिक्त करे : ॐ वेद्या वेदिः समाप्यते बर्हिषा बर्हिरिन्द्रियम् । यूपेन यूप आप्यते प्रणीतो अग्निरग्निना ॥

यव/सप्तधान्य : ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धान्देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि॥ ॐ यव त्वं यवरूपोऽसि यज्ञार्थे निर्मितो विधेः । देवानां तृप्तिकृद्यस्मात् तस्मात्त्वं वरदो भव ॥ ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वधा स्वाहा तमोऽस्तु ते ॥ ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा ॥

तत्पश्चात सुंदर-सुसज्जित कलश जो काला न हो; व्रणरहित हो स्थापित करे : ॐ आजिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दवः पुनरुर्जा निवर्तस्व सा नः। सहस्रं धुक्ष्वोरु धारा पयस्वतिः पुनर्म्मा विशताद्रयिः॥

दध्यक्षत से कलश को विभूषित करे ततः कलशं (१) दध्यक्षतैर्भूषयेदनेन-ओ दधिक्राब्णो ऽअकारिषं जिष्णोरस्वस्य न्वाजिनः । सुरभि नो मुखाकरत् प्रण ऽआयू ंषि तारिषत् । ततः कलशे वरुणं (जलं) न्यसेदनेन-

कलश में सामान्य (कूपादि का) जल दे : ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्त्थो वरुण्स्य ऽऋतसदन्न्यसि वरुणस्य ऽऋतसदनमसि वरुणस्यऽऋत सदनमासीद् ॥ 

गंगा जल दे : ॐ गंगाद्याः सरितः सर्वाः समुद्राश्च सरांसि च । सर्वे समुद्राः सरितः तीर्थानि जलदा नदाः । आयान्तु यजमानस्य दुरितक्षयकारकाः ॥

पञ्चरत्न (यदि शुद्ध पंचरत्न न हो तो न दे, अथवा सुवर्ण दे) : ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तनाग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् । सदाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥

पंचपल्लव दे : ॐ अश्वत्थे वो निषदनं पर्ण्णे वो वसतिष्कृता। गोभाजऽइत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम् ॥ ॐ ये वृक्षेषु शष्पिञ्जरा नीलग्रीवा विलोहिताः । तेषा ᳪ सहस्रयोजनेव धन्वानि तन्मसि ॥ ॐ अम्बे ऽअम्बिके ऽअम्बालिके नमानयति कश्चन ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥

तत्पश्चात सप्तमृत्तिकादि शुद्ध हों तो दे (अशुद्ध न दे, बाजारू शुद्ध नहीं होता)

सप्तमृतिका : ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी । यच्छा नः शर्म सप्रथाः ॥

सर्वोषधी : ॐ या ऽओषधीः सोमराज्ञीर्बह्वीः शतविचक्षणाः । तासामसित्वमुत्तमारं कामायश ग्गूं हदे ॥

नारिकेल : ॐ याफलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी। बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वᳪ हस:॥

वस्त्र : ॐ युवासुवासाः परिवीत आगात् स उश्रेयान् भवति जायमानः । तन्धीरासः कवयः उन्नयन्ति स्वाध्यो मनसा देवयन्तः ॥ 

कलश को स्थिर करे : ॐ स्थिरो भव वीड्वङ्ग आशुर्भव वार्ज्यवन् । पृथुर्भव सुखदस्त्वमग्ने पुरीषवाहणः ॥

पुष्प : ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम् । इष्णन्निषाणामुम्मऽइषाण सर्वलोकम्म ऽइषाण ॥

गन्धप्रक्षेप (चन्दन-हल्दी इत्यादि) :- ॐ त्वां गन्धर्वा ऽअखनँस्त्वामिन्न्द्रस्त्वाँ बृहस्पति: । त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान्न्यक्ष्मादमुच्च्यत ॥

दूर्वाक्षत : ॐ काण्डात् काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि। एवा नो दूर्वे  प्रतनु सहस्त्रेण शतेन च॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥

ब्रीहिवपन : ॐ ब्रीहयश्च मे यवाश्च मे तिलाश्च मे मुद्गाश्च मे खल्वाश्च मे प्रियङ्गवश्च मे ऽणवश्च मे श्यामाकाश्च मे नीवाराश्च मे गोधूमाश्च मे मसूराश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥

अलक्त से विभूषित करे : ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यञ्च । हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥

सिन्दूर : ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातप्रमियः पतयन्ति यह्वाः । घृतस्य धारा अरुषो न वाजीकाष्ठाभिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥ 

इस प्रकार से वेदी के चारों कोण में यवपुंज पर अन्य चार कलश स्थापन करे तत्पश्चात प्राण-प्रतिष्ठा करके पूजन करे।

अक्षत : ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ॥ ॐ विनायकादिपञ्चदेवता नवदुर्गा नवचण्डिका नवग्रहादि दिक्पालवाहनास्त्रादिदेवतासहित सांगसायुधसवाहनसपरिवार ॐ भूर्भुवःस्वर्भगवति श्रीदुर्गे इहागच्छ इह तिष्ठ तिष्ठ, इह सन्निधेहि सन्निधेहि, अत्राधिष्ठानं कुरु कुरु, मम सर्वोपचारसहितां पूजां गृहाण गृहाण स्वाहा ॥ 

पुनः  : ॐ शान्तिकलश इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

“ॐ शान्तिकलशाय नमः” नाममंत्र से पंचोपचार पूजन करके पुष्पांजलि दे :

ॐ शान्तिकुम्भ महाभाय सर्वकामफलप्रद । पुष्पं गृहाण शुभं यच्छ देवाधार नमोऽस्तु ते ॥

फिर गणपति का आवाहन करे : ॐ गणानान्त्वा गणपति ᳪ हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपति ᳪ हवामहे निधीनान्त्वा निधिपतिᳪ हवामहे व्वसो मम आहमजानि गर्भधमात्त्वमजासि गर्भधम् ॥ ॐ कलशाष्ठित गणेश इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

पञ्चोपचार पूजा करके पुष्पांजलि दे : ॐ एकदन्तं महाकायं लम्बोदर-गजाननम् । विघ्नविनाशकरं देवं हेरम्बं प्राणमाम्यहम्॥

फिर वरुण का आवाहन करे : ॐ वरुण इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

पंचोपचार पूजा करके पुष्पांजलि अर्पित करे : ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि व्वरुणस्य स्कम्भसर्जनीस्थो व्वरुणस्य ऋतसदन्यसि व्वरुणस्य ऋतसदनमसि व्वरुणस्य ऋतसदनमासीद ॥ 

फिर ब्रह्मपूजन करे : ॐ आब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्योतिव्याधी महारथो जायताम् । दोग्ध्री धेनुर्वोढाऽनड्वानाशुः सप्तिः पुनन्घ्रिर्योषा जिष्णूरथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य व्वीरो जायताम् । निकामे निकामे नः पच्यन्ताम् । योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मन् इहागच्छ इह तिष्ठ॥

पंचोपचार पूजन करके पुष्पांजलि दे : पद्मयोनिश्चतुर्मूतिर्वेदवासाः पितामहः । यज्ञाध्यक्षश्चतुर्वक्त्रस्तस्मै नित्यं नमो नमः ॥ एष पुष्पाञ्जलिः ॐ ब्रह्मणे नमः

दुर्गा पूजा विधि

तत्पश्चात प्रधानपूजा का संकल्प करे, संकल्प हेतु त्रिकुशा-तिल-जल-द्रव्यादि लेकर पढ़े : ॐ अद्याश्विने मासि शुक्ले पक्षे प्रतिपत्तिथौ ………. गोत्रस्य ……….. शर्मणो मम सपरिवारस्य (एतद् ग्रामनिवासिनां नानानां गोत्राणां सकल जनानां एतत्पूजोपकारकानां अन्यद्ग्रामवासिनां) उपस्थितशरीराविरोधेन राज्यायुः सुतसौख्यसेव्येश्वरकर्तृक सम्मान सदा युद्धविजय सर्वविधसौमनस्य – नैरुज्य – दीर्घायुष्ट्वसार्वदिक् – श्रीदुर्गाप्रीति-काम कलशे श्रीदुर्गादेव्याः पूजनमहं करिष्ये ॥

तत्पश्चात दुर्गा का आवाहन करे : ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते। ॐ भूर्भुवः स्वर्भगवति दुर्गे इहागच्छ इह तिष्ठ

पुष्प लेकर पढ़े –

ॐ आगच्छ चण्डिके दैवि अष्टाभिः शक्तिभिः सह । पूजाभागं गृहाणेमं सान्निध्यमिह कल्पय ॥
ॐ आगच्छ त्वं महाभागे सर्वकल्याणहेतवे । मम शत्रुविनाशाय शङ्करप्राणदायिनि ॥
इदमावाहनपुष्पंसाङ्गसायुधसवाहनसपरिवारायै दक्षयज्ञविनाशिन्यै महाघोरायै
योगिनीकोटिपरिवृतायै भद्रकाल्यै सर्वशक्तिस्वरूपिण्यै ॐ ह्रीं भगवत्यै श्रीदुर्गायै नमः ॥

ध्यान करे : ॐ दुर्गे सर्वजगन्नाथे यावत् पूजावसानकम् । तावत्त्वंप्रीतिभावेन घटेऽस्मिन् सन्निधा भव ॥

  • आसन – ॐ आसनं भास्वरं तुङ्गं माङ्गल्यं सर्वमङ्गले । भजस्व जगतां मातः प्रसीद जगदीश्वरि॥ इदमासनं ॐ साङ्गसवाहनसायुधसपरिवारायै भगवत्यै श्रीदुर्गा देव्यै नमः ॥
  • पाद्य – ॐ गङ्गादिसलिलाधारं तीर्थं मन्त्राभिमन्त्रितम् । दूरयात्राश्रमहरं पाद्यं तत्प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं पाद्यं …….. नमः ॥
  • उद्वर्तन (उबटन) – ॐ तिलतैलसमायुक्तं सुगन्धिद्रव्यनिर्मितम् उद्वर्तनमिदं देवि गृहाण त्वं प्रसीद मे ॥ इदमुद्वर्तनं …….. नमः॥
  • अर्घ्य – ॐ तिलतण्डुल संयुक्तं कुशपुष्पसमन्वितम् । सगन्धं फलसंयुक्तमर्घ्यं देवि गृहाण मे ॥ एषोऽर्घ्यः …….. नमः॥
  • आचमन – ॐ स्नानादिकं विधायापि यतः शुद्धिरवाप्यते । इदमाचनीयं हि दुर्गे देवि प्रगृह्यताम् ॥ इदमाचमनीयं …….. नमः॥
  • स्नान – ॐ खमापः पृथिवी चैव ज्योतिषं वायुरेव च । लोकसंस्मृतिमात्रेण वारिणा स्नापयाम्यहम् ॥ इदं स्नानीयम् …….. नमः॥
  • अष्टगार्घ्य या विशेषार्घ्य – ॐ जगत्पूज्ये त्रिलोकेशि सर्वदानवभञ्जिनि । अष्टगार्घ्यं गृहाण त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि ॥ एष अष्टगार्घ्यः …….. नमः॥
  • मधुपर्क – ॐ मधुपर्कं महादेवि ब्रह्माद्यैः कल्पितं तव । मया निवेदितं भक्त्या गृहाण गिरिपुत्रिके। एष मधुपर्कः …….. नमः॥
  • पुनराचमन – ॐ स्नानादिकं पुरः कृत्वा पुनः शुद्धिरवाप्यते । पुनराचमनीयं ते दुर्गे देवि प्रगृह्यताम् ॥ इदमाचमनीयं …….. नमः॥
  • चन्दन – ॐ मलयाचलसम्भूतं नानागन्धसमन्वितम् । शीतलं बहुलामोदं चन्दनं गृह्यतामिदम् ॥ इदं श्रीखण्डचन्दनं …….. नमः॥
  • रक्तचन्दन – ॐ रक्तानुलेपनं देवि स्वयं देव्या प्रकाशितम् । तद्गृहाण महाभागे शुभं देहि नमोऽस्तु ते ॥ इदं रक्तचन्दनं …….. नमः॥
  • सिन्दूर – ॐ सिन्दूरं सर्वसाध्वीनां भूषणाय विनिर्मितम् । गृहाण वरदे देवि भूषणानि प्रयच्छ मे ॥ इदं सिन्दूराभरणं …….. नमः॥
  • कुङ्कुम – ॐ जपापुष्पप्रभं रम्यं नारीभालविभूषणम् । भास्वरं कुङ्कुमं रक्तं देवि दत्तं प्रगृह्य मे ॥ इदं कुमाभरणम् …….. नमः॥
  • अक्षत : ॐ अक्षतं धान्यजं देवि ब्रह्मणा निर्मितं पुरा । प्राणदं सर्वभूतानां गृहाण वरदे शुभे ॥ इदमक्षतम् …….. नमः॥
  • पुष्प : ॐ चलत्परिमलामोदमत्तालिगणसङ्कुलम् । आनन्दनन्दनोद्भूतं दुर्गायै कुसुमं नमः ॥ एतानि पुष्पाणि …….. नमः॥
  • बिल्वपत्र : ॐ अमृतोद्भवश्रीवृक्षं शङ्करस्य सदा प्रियम् । पवित्रं ते प्रयच्छामि बिल्वपत्रं सुरेश्वरि ॥ इदं बिल्वपत्रम् …….. नमः॥
  • द्रोणपुष्प : ॐ ब्रह्मविष्णुशिवादीनां द्रोणपुष्पं सदा प्रियम् । तत्ते दुर्गे प्रयच्छामि सर्वकामार्थसिद्धये ॥ इदं द्रोणपुष्पम् …….. नमः॥
  • माला – ॐ नानापुष्पविचित्राढ्यां पुष्पमालां सुशोभनाम् । प्रयच्छामि सदा भद्रे गृहाण परमेश्वरि ॥ इदं माल्यं …….. नमः॥
  • वस्त्र – ॐ तन्तुसंतान संयुक्तं कलाकौशल कल्पितं । सर्वाङ्गाभरणश्रेष्ठं वसनं परिधीयताम् ॥ इदं वस्त्रं बृहस्पति दैवतं …….. नमः॥
  • उपवस्त्र – ॐ यामाश्रित्य महादेवो जगत्संहारकः सदा । तस्यै ते परमेशान्ये कल्पयाम्युत्तरीयकम् ॥ इदं द्वितीयवस्त्रम् …….. नमः॥वस्त्रान्ते आचमनीयं ०। ।
  • आभूषण – ॐ सौवर्णाद्यलङ्कारं कङ्कणादिविभूषितम् । हारकेयूरयुक्तानि नूपुराणि गृहाण मे ॥ इदमलङ्करणम् …….. नमः॥
  • धूप – ॐ गुग्गुलं घृतसंयुक्तं नानाभक्ष्यैश्च संयुतम् । दशाङ्गं गृह्यतां धूपं दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ एष धूपः …….. नमः॥
  • दीप – ॐ मार्तण्डमण्डलान्तःस्थ-चन्द्रबिम्बाग्नितेजसाम् । निधानं देवि दीपोऽयं निर्मितस्तव भक्तितः ॥ एष दीपः …….. नमः॥
  • सुगन्धितद्रव्य (इत्रादि) – ॐ परमानन्दसौरभ्यं परिपूर्णदिगम्बरम् । गृहाण सौरभं दिव्यं कृपया जगदम्बिके ॥ इदं सुगन्धितद्रव्यम्० ।
  • कर्पूरदीप – ॐ त्वं चन्द्रसूर्यज्योतींषि विद्युदग्न्योस्तथैव च । त्वमेव जगतां ज्योतिः दीपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ एष ‘कर्पूरदीपः …….. नमः॥ (हस्तप्रक्षालन)
  • नानाविधनैवेद्य – ॐ दिव्यान्तरससंयुक्तं नानाभक्ष्यैस्तु संयुतम् । चोष्यपेयसमायुक्तमन्नं देवि गृहाण मे ॥ एतानि नानाविधनैवेद्यानि …….. नमः॥
  • पायस – ॐ गव्यसर्पिः पयोयुक्तं नानामधुरमिश्रितम् । निवेदितं मया भक्त्या परमान्नं प्रगृह्यताम् ॥ इदं पायसान्नं …….. नमः॥
  • मोदक (लड्डू) – ॐ मोदकं स्वादु रुचिरं कर्पूरादिभिरन्वितम् । मिश्रं नानाविधैर्द्रव्यैः प्रतिगृह्याशु भुज्यताम् ॥ एतानि मोदकान्नानि …….. नमः॥
  • पुआ-पक्वान्नादि – ॐ अपूपानि च पक्कानि मण्डका वटकानि च । पायसापूपमन्न च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥ एतान्यपूपादि नेवेद्यानि० ।
  • फल – ॐ फलमूलानि सर्वाणि ग्राम्याऽरण्यानि यानि च । नानाविधसुगन्धीनि गृहाण त्वं यथासुखम् ॥ एतानि नानाविधानि फलानि० ।
  • पानीय जल – ॐ पानीयं शीतलं स्वच्छं कर्पूरादिसुवासितम् ॥ भोजने तृप्तिकृद्यस्मात् कृपया परिगृह्यताम् ॥ इदं पानीयम्…….. नमः॥
  • करोद्वर्तन – ॐ कर्पूरादीनि द्रव्याणि सुगन्धीनि महेश्वरि । गृहाण जगतां नाथे करोद्वर्तनहेतवे ॥ इद करोद्वर्तनजलम् …….. नमः॥
  • आचमन – ॐ आमोदवस्तुसुरभिः कृतमेतदनुत्तमम् । गृहाणाचमनीयं त्वं मया भक्त्या निवेदितम् ॥ इदमाचमनीयम् …….. नमः॥
  • ताम्बूल – ॐ तमालदलकर्पूरनागवल्लीसमन्विम् । संशोधितं सुगन्धं च ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं ताम्बूलम् …….. नमः॥
  • घण्टावाद्य – ॐ यया भीषयसे दैत्यान् यया पूरयसेऽसुरम् । तां घण्टां सम्प्रयच्छामि महिषघ्नि प्रसीद मे ॥ इदं घण्टावाद्यम् …….. नमः॥
  • दक्षिणाद्रव्य – ॐ काञ्चनं रजतोपेतं नानारत्नसमन्वितम् । दक्षिणार्थं च देवेशि गृहाण त्वं नमोऽस्तु ते ॥ इदं दक्षिणाद्रव्यम् …….. नमः॥

पुष्पाञ्जलि

ॐ दुर्गे दुर्गे महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि । त्वं काली कमला ब्राह्मी त्वं जया विजया शिवा ॥
त्वं लक्ष्मीर्विष्णुिलोकेषु कैलासे पार्वती तथा । सरस्वती ब्रह्मलोके चेन्द्राणी शक्रपूजिता ॥
वाराही नारसिंही च कौमारी वैष्णवी तथा । त्वमापः सर्वलोकेषु ज्योतिस्त्वं ज्योतिरूपिणी ।
योगमाया त्वमेवासि वायुरूपा नभःस्थिता । सर्वगन्धवहा पृथ्वी नानारूपा सनातनी ॥
विश्वरूपे विश्वेशे विश्वशक्तिसमन्विते । प्रसीद परमानन्दे दुर्गे देवि नमोस्तु ते ।
नानापुष्पसमाकीर्णं नानासौरभसंयुतम् । पुष्पाञ्जलिञ्च विश्वेशि गृहाण भक्तवत्सले ॥
एष पुष्पाञ्जलिः ॐ साङ्गसवाहनसायुधसपरिवारायै भगवत्यै श्रीदुर्गा देव्यै नमः ॥

  • नीराजन : ॐ कर्पूरवर्तिसंयुक्तं वह्निना दीपितञ्च यत् । नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके ॥ इदं नीराजनम् …….. नमः॥
  • क्षमापन : ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित् स्खलितं मम । क्षम्यतां तज्जगन्मातः दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥

साष्टाङ्ग प्रणाम करे

ॐ महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनि । द्रव्यमारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमः सदा ॥
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते । भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥

तत्पश्चात नवग्रह-दशदिक्पाल का पूजन करे। कलश पर अथवा यदि नवग्रह मंडल बनाया गया हो तो उसी पर करे। यदि समयाभाव न हो तो पृथक-पृथक आवाहन करके पृथक-पृथक पंचोपचार पूजन करे अथवा तंत्र से करना चाहे तो तंत्र से करे, सबके आवाहन के मंत्र और पूजा हेतु नाममंत्र नीचे दिये गए हैं : :

नवग्रह पूजन

सूर्य : ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतं मर्त्यं च। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भूवनानि पश्यन् ॥ ॐ जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । तमोऽरिं सर्वपापघ्नं सूर्यमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूभुर्वः स्वः कलिंग देशोद्भव काश्यपगोत्र रक्तवर्ण भो सूर्य । इहागच्छ इहतिष्ठ ॐ सूर्याय नमः॥

चन्द्र : ॐ इमं देवा असपत्न ᳪ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय । इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना ᳪ राजा॥ ॐ दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् । ज्योत्सनापतिं निशानाथं सोममावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः यमुनातीरोद्भव आत्रेयगोत्र शुक्लवर्ण भो सोम । इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ सोमाय नमः ॥

मंगल : ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपा ᳪ रेता ᳪ सि जिन्वति ॥ ॐ धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् । कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः अवन्तिदेशोद्भव भारद्वाजगोत्र रक्तवर्ण भो भौम इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ भौमाय नमः ॥

बुध : ॐ उद्‍बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वभिष्टापूर्ते स ᳪ सृजेथामयं च । अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत ॥ ॐ प्रियंगुकलिकाभासं रूपेणाप्रतिमं बुधम् । सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः मगधदेशोद्भव आत्रेयगोत्र पीतवर्ण भो बुध । इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बुधाय नमः ॥

बृहस्पति : ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्द द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु । यदीदयच्छवसऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥ ॐ देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चनसन्निभम् । वन्द्यभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्व सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरसगोत्र पीतवर्ण भो गुरो । इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बृहस्पतये नमः ॥

शुक्र : ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः । ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान ᳪ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ॥ ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् । सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भुर्भूवः स्वः भोजकटदेशोद्भव भार्गवगोत्र शुक्लवर्ण भो शुक्र । इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ शुक्राय नमः॥

शनि : ॐ शं नो देवीरभिष्ट्य आपो भवन्तु पीतये । शं योरभि स्रवन्तु नः ॥ ॐ नीलांबुजसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् । छाया मार्तण्ड सम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्चर । इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ शनैश्चराय नमः ॥

राहु : ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः । सखा कया सचिष्ठया वृता ॥ ॐ अर्द्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् । सिंहिकागर्भ संभूतं राहुमावाहयाम्यहम् । ॐ भूर्भुवः स्वः राठिनपुरोद्भव पैठीनसगोत्र कृष्णवर्ण भो राहो । इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ राहवे नमः ॥

केतु : ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे । समुषद्भिरजायथाः ॥ ॐ पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् । रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतुमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः अन्तर्वेदिसमुद्भव जैमिनिगोत्र धूम्रवर्ण भो केतो । इहागच्छ, इहतिष्ठ, ॐ केतवे नमः ॥

दशदिक्पाल पूजन

इन्द्र : ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र  हवे हवे सुहव  शूरमिन्द्रम्, ह्वायामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्र  स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः॥ ॐ इन्द्रं सुरपतिश्रेष्ठं वज्रहस्तं महाबलम् । आवाहये यज्ञसिद्ध्यै शतयज्ञाधिपं प्रभुम् ॥ ॐ इन्द्र, इहागच्छ, इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राय नमः॥

अग्नि : ॐ त्वन्नोऽअग्ने तव पायुभिर्मघोनो रक्ष तन्वश्च वन्द्य। त्राता तोकस्य तनये गवामस्य निमेष  रक्षमाणस्तवव्व्रते॥ ॐ त्रिपादं सप्तहस्तं च द्विमूर्धानं द्विनासिकम् । षण्नेत्रं च चतुः श्रोत्रमग्निमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः अग्ने इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये नमः॥

यम : ॐ यमाय त्वांगिरस्वते पितृमते स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्मः पित्रे ॥ ॐ महामहिषमारुढं दण्डहस्तं महाबलम् । यज्ञसंरक्षनार्थाय यममावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः यम इहागच्छ, इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः यमाय नमः॥

निर्ऋति : ॐ असुन्नवन्तमयजमानमिच्छस्तेनस्येत्यामन्विहितस्करस्य अन्यमस्मदिच्छसात ऽइत्यानमो देवि निर्ऋते तुभ्यमस्तु ॥ ॐ निर्ऋत्यां खड्गहस्तं च नरारुढ़ं वरप्रदम् । आवाहयामि यज्ञस्य रक्षार्थं नीलविग्रहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः निरृत इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः निर्ऋतये नमः॥

वरुण : ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश  समानऽआयुः प्रमोषीः ॥ ॐ शुद्धस्फटिकसंकाशं जलेशं यादसां पतिम् । आवाहये प्रतीचीशं वरुणं सर्वकामदम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः वरुण इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः वरुणाय नमः॥ 

वायु : ॐ आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वर  सहश्रिणीभिरुपयाहि यज्ञम्, वायो ऽअस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयम्पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥ ॐ अनाकारं महौजस्कं व्योमगं वेगवद् गतिम् । प्राणिनां प्राणदातारं वायुमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः वायु इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः वायवे नमः॥

कुबेर : ॐ वय  सोमव्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः प्रजावन्तः सचेमहि॥ ॐ आवाहयामि देवेशं धनदं यक्षपूजितम् । महाबलं दिव्यदेहं नरयानगतिं विभुम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः कुबेर इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः कुबेराय नमः ॥

ईशान : ॐ तमीशानञ्जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयं। पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ॥ ॐ सर्वाधिपं महादेवं भूतानां पतिमव्ययम् । आवाहये तमीशानं लोकानामभयप्रदम् ॥ ॐ ईशान, इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः ईशानाय नमः॥

ब्रह्मा : ॐ अस्मे रुद्रा मेहना पर्वतासो वृत्रहत्ये भरहूतो सजोषाः यः श  स तेस्तुवते धायि वज्रऽइन्द्र ज्येष्ठाऽअस्माँ२ऽअवन्तु देवाः॥ ॐ पद्मयोनिं चतुर्मूर्तिं वेदगर्भं पितामहम् । आवाहयामि ब्रह्माणं यज्ञसंसिद्धिहेतवे ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मण इहागच्छ इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मणे नमः ॥

अनन्त  : ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरानिवेशनी यच्छा नः सर्मसप्रथाः॥ ॐ अनन्तं सर्वनागानामधिपं विश्वरुपिणम् । जगतां शान्तिकर्तारं मण्डले स्थापयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः अनन्त इहागच्छ इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः अनन्ताय नमः॥

अखंड दीप स्थापन : महापूजा में अखंड दीप का भी बहुत महत्व होता है। अखंड दीप स्थापित करने में भी वाजपेय यज्ञ का फल बताया गया है। देवी के दक्षिण भाग में आसन देकर दीप प्रज्वलित करे, गन्धपुष्पाक्षतादि से पूजन करे : ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्योज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा। अग्निवर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्योवर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा। ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ॥

तत्पश्चात त्रिकुशा-तिल-जल लेकर दीपोत्सर्ग करे : ॐ अद्य वाजपेययज्ञजन फलसम फल प्राप्तिकामः नवाहोरात्र स्थायिदीपमिदं विष्णुदैवतं श्रीदुर्गादेव्यै अहं ददे॥

तत्पश्चात पुनः नाना प्रकार के फल-मिष्टान्न-पायस आदि का भोग लगाये। हवन, कुमारी पूजन, आदि यदि प्रतिदिन करना चाहे तो प्रतिदिन करे। इसी प्रकार प्रतिदिन पूजा करे। आवाहन मात्र प्रथम दिन ही किया जाता है, अन्य दिनों आवाहन छोड़कर शेष सभी पूजन उपरोक्त विधि से करके फिर नवार्ण जप, सप्तशती पाठ आदि करे। पुनः संध्या में पंचोपचार पूजन करके आरती, क्षमाप्रार्थना, पुष्पांजलि आदि करे।

नवरात्रि पूजन सामग्री लिस्ट PDF

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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