मुख्य न्यायाधीश कौन है – कर्मकाण्ड

मुख्य न्यायाधीश कौन है – कर्मकाण्ड

इस आलेख में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से सबंधित विवादों ने जो नया आयाम लिया है कि न्यायालय में इसके लिये याचिका तक चली गयी तो शास्त्र-सम्मत विशेष महत्वपूर्ण विमर्श किया जायेगा। शंकराचार्यों से सम्बन्धित चर्चा करना नहीं चाहता था किन्तु पुनः करने की आवश्यकता है। इस आलेख से कर्मकांड में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं को भी विशेष महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी। मुहूर्त संबंधी विवाद न्यायपालिका द्वारा स्वीकार करना आश्चर्यजनक है क्या अब कर्मकांड और धर्म के विषय का निर्णय भी न्यायपालिका करेगी जो की सेकुलर है। इस आलेख में चर्चा की गयी है कि धर्म-शास्त्र-कर्मकांड के विषय में मुख्य न्यायधीश कौन होते हैं ?

किस पञ्चाङ्ग में मुहूर्त है ?

सबसे पहले हम मुहूर्त विवाद को देखते हैं, क्योंकि शंकराचार्य ने भी मुहूर्त नहीं होने का प्रश्न खड़ा किया है।

  • किसी पञ्चाङ्ग में प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त नहीं है जो पूछ रहे हैं उनके लिये यहाँ पञ्चाङ्ग का संबंधित भाग चित्र के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
  • इस पञ्चाङ्ग के संबंध में जो विशेष बात है वह ये है कि या पञ्चाङ्ग मेरे द्वारा ही संकलित है।
  • आजकल दृक्तुल्य (सेटेलाइट आधारित ग्रहस्थिति व तिथ्यादि) अनेक सॉफ्टवेयर और मोबाइल ऐप के माध्यम से सर्वोपलब्ध है जिसके आधार पर यह पञ्चाङ्ग बनाया गया है।
किस पञ्चाङ्ग में मुहूर्त है ?
किस पञ्चाङ्ग में मुहूर्त है ?

इस पञ्चाङ्ग का नाम प्रज्ञा पञ्चाङ्ग है जिसे यहां क्लिक करके PDF डाउनलोड किया जा सकता है। ये एक संयोग मात्र है कि अन्य पञ्चाङ्गों में भले ही प्राण प्रतिष्ठा मुहूर्त न हो लेकिन प्रज्ञा पञ्चाङ्ग में है।

सबसे बड़ा प्रश्न क्या पौष माह में प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है ?

नहीं पौष माह में प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जा सकती। लेकिन इसके लिये चान्द्रमास नहीं सौरमास ग्रहण का नियम है। 15 जनवरी को सूर्य उत्तरायण हो गये हैं और उसी के साथ सौर मास माघ का आरम्भ हो गया है।

  • दूसरी बात – दुर्गा आदि देवी की प्राण प्रतिष्ठा दक्षिणायन में भी की जा सकती है।
  • भगवान शिव की प्रतिष्ठा श्रावण माह में भी विहित है।
  • भगवान विष्णु की प्रतिष्ठा पौष माह में भी विहित है।
  • भगवान राम की गणना कर्मकांड में विष्णु रूप में ही की जाती है।

मुख्य प्रश्न का उत्तर दे दिया गया है इससे विस्तृत चर्चा विषय अवांछित विस्तार होगा। जो शंकराचार्य को पहुंचा सकते हैं प्रमाण पहुंचा दें।

अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के प्रश्न का उत्तर तो पूर्व के कई मंदिरों से ही प्रमाण मिल जाते हैं।

मुख्य न्यायाधीश कौन है

अब अगली चर्चा का विषय है कर्मकांड का मुख्य न्यायाधीश (निर्णायक) कौन होता है ? क्योंकि ये विवाद न्यायालय चला गया है और संभवतः न्यायपालिका को भी इस तथ्य की जानकारी न होगी जिस कारण सूचीबद्ध भी कर लिया गया। साथ ही साथ आम श्रद्धालु जनों के लिये भी यह बहुत ही उपयोगी जानकारी है।

  • किसी भी यज्ञ में जहाँ हवन हो रहा हो उसका मुख्य न्यायाधीश ब्रह्मा होते हैं और ब्रह्मा का निर्णय अंतिम होता है।
  • ब्रह्मा का कार्य यही होता है कि कर्मकांड सविधि हो यह सुनिश्चित करे। विशेष जानकारी हिंदी में जानने के इच्छुक यज्ञ मीमांशा नामक पुस्तक का अवलोकन करें। और यदि यह बात असत्य हो तो शंकराचार्यों को खंडन करने के लिये कहें।
  • ब्रह्मा की स्थापना अग्निस्थापन से पहले होती है और विसर्जन पूर्णपात्र दान के बाद।
  • जहां हवन न हो रहा हो तो ब्रह्मा की स्थापना नहीं होती, उस कर्मकांड के मुख्य न्यायाधीश आचार्य होते हैं।
  • अर्थात यज्ञादि में भी अग्निस्थापन से पहले और पूर्णपात्र दान के बाद के विषय में मुख्य निर्णायक आचार्य होते हैं।
मुख्य न्यायाधीश कौन है

इसके अतिरिक्त जब किसी प्रकार का कर्मकांड न हो रहा हो अन्य काल में कर्मकांड/मुहूर्त/व्रत/पर्व आदि से संबधित किसी भी विषय पर मान्य निर्णय के लिये ४ – ७ – १२ – १८ – २४ – २८ विद्वान ब्राह्मणों की पीठ बनायी जा सकती है जिसे पर्षद (परिषद) कहा जाता है।

चातुवैर्द्यं विकल्पी च अङ्गविद्धर्मपाठकः । आश्रमस्थास्त्रयो विप्राः पर्षदेषा दशावरा ॥

चत्वारो वा त्रयो वापि वेदवेदाग्निहोतृणः। ये तु सम्यक् स्थिताः विप्राः कार्याकार्य विनिश्चिताः॥
प्रायश्चित्त प्रणेतारः सर्वे ते परिकीर्तिताः॥
– आङ्गिरसस्मृति

  • इस प्रकार के अनेक स्मृतियों में प्रमाण भरे परे हैं।
  • इसका स्थायी होना आवश्यक नहीं है जब आवश्यकता हुयी उपलब्ध विद्वानों की पर्षद बन जाती है किसी प्रकार के नियुक्ति पत्र की आवश्यकता नहीं होती। यज्ञादि में प्रायश्चित निर्णय (आज्ञा) हेतु सविधि सदस्यों का वरण करके पर्षद बनाने की विधि है।
  • ध्यातव्य यह है कि इसमें शंकराचार्य की कहीं कोई भूमिका नहीं है। कर्मकांड/मुहूर्त/व्रत/पर्व आदि के संबंध में शंकराचार्य पदेन होने के कारण कोई निर्णय नहीं दे सकते।
  • किसी भी प्रकार का निर्णय स्वेच्छा से मानने वाले आस्थावानों के लिये होता है। व्यावहारिक रूप से कोई मानने के लिये बाध्य नहीं होता, आध्यात्मिक रूप से बाध्य होता है।
brahman
दैवज्ञ ब्राह्मण
  • जब प्राण प्रतिष्ठा का आरम्भ नहीं हुआ था तो शंकराचार्य को या जिनको भी ऐसा लग रहा है कि गलत हो रहा है उनको मंदिर निर्माण समिति से मिलकर पर्षद गठन करके निर्णय कराना चाहिये था।
  • अब यदि प्राण प्रतिष्ठा आरम्भ हो गया है तो नियुक्त ब्रह्मा के पास जाकर अपना प्रश्न रखें।
  • यदि ब्रह्मा स्थापन नहीं हुआ हो तो नियुक्त आचार्य से पूछें।
  • न्यायपालिका का इस संबंध में कोई विधान नहीं है।

बड़ा विवाद

  • अब नया विवाद ये उत्पन्न हो गया कि न्यायपालिका ने इस विषय से संबधित याचिका को यदि स्वीकार किया है तो उपरोक्त पदों के अधिकार में अतिक्रमण किया है।
  • जब न्यायपालिका स्वयं किसी के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने लगे तो उस स्थिति में न्याय कौन करेगा ? क्योंकि यहाँ एक पक्ष तो स्वयं न्यायपालिका ही हो जाएगी।
  • इस स्थिति में (जब न्यायपालिका किसी का अधिकार हनन करे) महामहिम राष्ट्रपति क्या कर सकते (सकती) हैं या संसद क्या कर सकती है अपना दायित्व वो स्वयं समझें और स्वतः संज्ञान लेकर उचित कर्तव्यों का पालन करते हुये न्याय स्थापित करें।

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सुशांतिर्भवतु सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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