मन की बात मोदी जी के साथ

शास्त्रवचन की अवहेलना : किसी भी विषय के सन्दर्भ में सही शास्त्रोचित तथ्य स्पष्ट हो इसका अभाव देखा जा रहा है और इसका कारण है गुरुकुल परम्परा से अध्ययन करने वाले विद्वान को परामर्शक न बनाना, RSS या अन्य भ्रमित संस्था-व्यक्तियों का परामर्शक होना।

आपके 10 वर्षों के कार्यकाल में जो भी धार्मिक-सांस्कृतिक कार्य संपन्न हुये हैं उसमें ये स्पष्ट हुआ है कि आपके परामर्शदाता वो हैं जो श्रीमद्भगवद्गीता को अपने अनुकूल वचन हेतु तो ग्रहण करते हैं परन्तु जो अनुकूल नहीं हो उस वचन को ग्रहण नहीं करते। महाभारत को तो मानते ही नहीं। अन्य पुराणों, स्मृति, सूत्र ग्रंथों की तो बात ही क्या करें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) राजनीतिक संगठन है या धार्मिक

ग्राह्य प्रमाण : वर्त्तमान में ऐसा देखा जा रहा है कि श्रुति-स्मृति-पुराणादि से प्राप्त ग्राह्य प्रमाण अर्थात ऋषि वचनों को असत्य सिद्ध करते हुये पं० श्रीरामशर्मा आचार्य, दयानन्द सरस्वती आदि के वचनों को सत्य सिद्ध किया जाता है। इनके वचन प्रमाण नहीं हैं प्रमाण शास्त्रों का वचन ही है। ये ऋषि तुल्य तो क्या ऋषि से तुलनीय भी नहीं हैं। अतः इस विषय में भी जारूकता की आवश्यकता है कि ग्राह्य प्रमाण श्रुति-स्मृति-सूत्र-पुराणादि के ही वचन हैं। इस विषय में भी आपको जागरूकता का संचार करना आवश्यक है।

तीर्थक्षेत्र : तीर्थक्षेत्र के विकास हेतु तो भाजपा सरकार प्रयत्नशील देखी जा रही है लेकिन एक तथ्य की अनदेखी भी कर रही है वो ये कि तीर्थ तीर्थाटन करने के लिये है पर्यटन करने के लिये नहीं। सरकार वामपंथियों को उत्तर देने के लिये मंदिरों/तीर्थों को भी आर्थिक उन्नति से जोड़कर विकासकार्य करती है जिससे वह धार्मिक केंद्र न रहकर पर्यटन केंद्र में परिवर्तित हो जाता है।

तीर्थयात्रा जीवन का एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्म है और तीर्थों का विकास करते समय यह भी ध्यान रखे कि विकास ऐसा न हो जिससे श्रद्धालू जन तीर्थदर्शन-स्नान-श्राद्ध-वास करने आयें पर्यटन करने नहीं। क्या आप तीर्थ यात्रा के महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते हैं 

तीर्थ यात्रा
तीर्थ यात्रा

करम प्रधान : करम प्रधान का अनुचित अर्थ सिद्ध किया जा रहा है। करम प्रधान का अर्थ है जो प्रधानमंत्री है वो अपना काम करे और जो प्रवक्ता है वो अपना काम करे। करम प्रधान का ये अर्थ नहीं है कि जिसे मन हो जो मन हो करे और स्वयं को उस कर्म के अनुसार अधिकारी घोषित कर दे। लेकिन बीती शताब्दी से ही यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि जिसे जो मन हो कर्म करे और कर्म के अनुसार स्वयं को सिद्ध कर दे। करम प्रधान विश्व करि राखा का मूल तात्पर्य क्या है ?

वर्ण व्यवस्था : करम प्रधान का विषय भी वर्णव्यवस्था से ही जुड़ा है। जिसका जिस जो वर्ण हो वो तदनुसार कर्म करे यह नहीं बताया जा रहा है। बताया यह जा रहा है कि जिसका जो मन हो वो कर्म करे और अपना वर्ण कर्म के अनुसार सिद्ध करे। साथ ही साथ वर्णव्यवस्था को समाप्त करने का भी दुष्प्रयास किया जा रहा है। सभी वर्णशंकर हो जायें ऐसा प्रयास राजकीय रूप से विधि बनाकर किया जा रहा है और इसका प्रमाण है अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहित करना। अंतर्जातीय विवाह से उत्पन्न संतान तो वर्णशंकर ही होगी न।

माननीय प्रधानमंत्री जी आप अपने प्रथम कार्यकाल से ही श्रीमद्भगवद्गीता का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं फिर श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित वर्णशंकर और उसके दुष्प्रभाव की अनदेखी क्यों कर रहे हैं। वर्णशंकर विनाश का कारण बनेगा इस तथ्य को क्यों नहीं स्वीकार किया जा रहा है। हम आपसे अपेक्षा करते हैं कि तीसरे कार्यकाल में आप वर्णशंकरों की वृद्धि न हो ऐसा भी प्रयास करेंगे। वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति के सिद्धांत – जन्म से या कर्म से

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