मन की बात मोदी जी के साथ

विवाह : विवाह के मामले में जो विधान बनाया गया है वो पूर्णरूपेण शास्त्र की अवहेलना करता है। विवाह के विधान हेतु आपको पुनर्विचार करने की आवश्यकता है कि शास्त्र की आज्ञा क्या है ? जो व्यस्क विवाह करना चाहते हैं करें किन्तु जो शास्त्राज्ञा का पालन करते हुये कन्यादान करना चाहते हैं उनके लिये दण्ड का विधान करना अनुचित है।

विवाह सम्बन्धी अनपेक्षित दण्ड-विधान को समाप्त करने से लव-जिहाद पर अंकुश लगाया जा सकता है। वयस्क विवाह के लिये जनसामान्य को बाध्य किया गया है इस कारण लव-जिहाद की घटनायें अत्यधिक होती है।

उत्तराधिकार : उत्तरधिकार विधान में विशेष सुधार आवश्यक है। शास्त्रानुसार उत्तराधिकारी वो होता है जो मरने के बाद श्राद्धक्रिया करे, जिसका उत्तराधिकारी हो उसके अनुसार ही कर्मकाण्ड करे। प्रायः देखा जा रहा है कि उत्तराधिकारी श्राद्ध से विरत हो जाते हैं या मतान्तरण भी कर लेते हैं। उत्तराधिकार विधान शास्त्रानुसार करने से मतान्तरण पर अंकुश लगेगा।

जिसने मतान्तरण कर लिया हो उसका उत्तराधिकार भी समाप्त होना चाहिये। क्योंकि मतांतरण करने के बाद वो श्राद्ध नहीं करेगा। यदि श्राद्ध नहीं करेगा तो उत्तराधिकारी नहीं हो सकता। उस स्थिति में राजकीय रूप से एक स्वतंत्र संस्था कार्य करे और शास्त्रोक्त नियम से अगले श्रद्धाधिकारी को उत्तराधिकारी घोषित करे।

भोजन : लगभग सभी खाद्य पदार्थ दूषित हो गये हैं। वर्त्तमान में खाद्य पदार्थ के शुद्धिकरण की आवश्यकता है। अपराध नियंत्रण के लिये यह आवश्यक है कि जनसामान्य को शुद्ध और सात्विक भोजन मिले। जनसामान्य यदि तामसी भोजन करेगा तो अपराध भी करेगा ही करेगा। कठोरतम दण्ड-विधान करने से, अथवा दोगुना-तीनगुना न्यायालय बना देने से भी अपराध नियंत्रण संभव नहीं है। अपराध नियंत्रण हेतु पहली आवश्यकता तामसी और दूषित भोजन पर नियंत्रण करना है।

संस्कार के प्रति जागरूकता की आवश्यकता : सभी वर्णों के लिये ससमय शास्त्रोक्त विधि से संस्कार का विधान करना आवश्यक है। वर्तमान में संस्कार को औपचारिकता मात्र बना दिया गया है। उचित समय पर उचित विधि से संस्कार न होने के कारण व्यक्ति संस्कारी नहीं हो सकता। सर्वांगीण विकास हेतु ये आवश्यक है कि प्रजा संस्कारी हो।

बलिप्रथा को अनुचित सिद्ध करना : जो बलिप्रथा लाखों-करोड़ों वर्ष से चली आ रही है, कुछ दशकों से उस बलिप्रथा के विरुद्ध कुछ संगठन षड्यंत्र करके बंद कराने का दुष्प्रयास कर रहे हैं। सबके लिये बलिप्रथा प्रशस्त नहीं है किन्तु जिसके लिये शास्त्र से प्रशस्त है उसके धार्मिक अधिकार, आस्था का हनन कोई गैंग किस अधिकार से कर रहा है ?

आपसे यह भी अपेक्षा है कि जिसके लिये शास्त्र से बलि प्रशस्त सिद्ध होता है या कुल परम्परा से किया जाता रहा है उसे कोई नहीं रोक सके यह भी सुनिश्चित करें। उसके धार्मिक अधिकार को भी संरक्षित करें। बलिप्रथा में विश्वास करने वालों को कुछ दशकों से षड्यंत्रकारी नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। जिसके लिए बलिप्रथा में दोष है वो न करे किन्तु जिसके लिये विहित है अथवा कुलपरम्परा से प्रशस्त है उसे नीचा दिखाने का उसे कोई अधिकार नहीं है। बलि प्रथा एक अभिशाप क्यों ?

कर्मकांड में भीतरघात : पूर्वकाल में नये पंथ-सम्प्रदाय बनाये जाते रहे थे, जिस कारण कुछ लोगों के अतिरिक्त शेष धर्माचरण-कर्मकाण्ड आदि का मूल स्वरूप छिन्न-भिन्न नहीं होता था। परन्तु बीते शताब्दि से कुछ विशेष लोगों ने नया पंथ न बनाकर मूल स्वरूप को ही छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया है। ये लोग विभिन्न परिवार-समाज आदि नाम धारण करके सनातन के मूल का छेदन करने में लगे हुये हैं। इनके अनुयायियों अन्य किसी स्मृति-सूत्र-पुराण आदि शास्त्रों को नहीं स्वीकारते किन्तु फिर भी सकल सनातन समाज को दिग्भ्रमित करने का प्रयास करते हैं।

कर्मकांड
कर्मकांड

संगठन का जो संस्थापक रहा है उसके अनुयायी उसे एक महानपुरुष सिद्ध करके मात्र उसके लिखे पुस्तक को जिसमें सनातन के सभी सिद्धांतों-प्रमाणों का खंडन मात्र किया गया हो उसके आधार पर अन्य सभी ग्रंथों को असत्य सिद्ध करते हैं। लेकिन ये कार्य भी षड्यंत्रपूर्वक किया जा रहा है, बाहरी रूप से स्वयं को विशेष ज्ञानी सिद्ध करने का प्रयास करते हैं, ऐसा दिखाते हैं जैसे धर्म-कर्मकांड आदि में उनकी बहुत आस्था है किन्तु आतंरिक रूप से कर्मकाण्ड के मूल का ही छेदन कर रहे हैं।

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