धनार्जन : वर्त्तमान में कहीं न कहीं शिक्षापद्धति का दोष है जो लोगों को मात्र धनार्जन करने के लिये प्रेरित करता है। उसका तरीका उचित हो या अनुचित यह नहीं सिखाता। धनार्जन आवश्यक है किन्तु पापयुक्त कर्म से नहीं, भ्रष्टाचार करके नहीं। यह दण्ड-विधान से संभव नहीं है, इसके लिये शिक्षापद्धति में उचित सुधार करना होगा जो यह सिखाये कि धनार्जन आवश्यक है किन्तु धर्मपूर्वक।
संस्कृति विरोधी मिडिया : जिस कारण भी हो आप मीडिया का राजनीतिक विरोध सहन करके अपनी सहनशीलता प्रदर्शित करें, किन्तु धर्म-संस्कृति पर मीडिया के द्वारा किया जाने वाला प्रहार अपराध की श्रेणी में लाना आवश्यक है। मीडिया का सनातन विरोधी षड्यंत्र किसी से छुपा नहीं है।
सनातन का विरोध करना मात्र धर्म का विरोध नहीं भारत की संस्कृति का भी विरोध है। जिस मीडिया का भारतीय संस्कृति में आस्था नहीं है उस मीडिया के लिये भारत में स्थान भी नहीं होना चाहिये। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस घिनौनी मीडिया के जड़ में आपने मट्ठा डाल दिया है और दीमक लग गये हैं। आगे की अन्य अपेक्षा भी पूर्ण होगी यह विश्वास है। मीडिया की भूमिका एवं समस्याएं और ग्रामीण संस्कृति पर घातक प्रभाव
सोशल मीडिया पर नियंत्रण : सोशल मीडिया वर्तमान काल का नया प्रयोग है किन्तु यहां धर्म-कर्मकाण्ड-ज्योतिष आदि के विषय में भ्रामक तथ्यों को अधिक प्रसारित किया जाता है, किन्तु उचित तथ्यों के लिये अवरोध उत्पन्न किया जाता है। इसका प्रमाण कोई और नहीं कर्मकाण्ड विधि स्वयं है। बहुत सारे भ्रामक तथ्य तो गूगल विशेष रूप से दिखाता है किन्तु कर्मकाण्ड विधि पर उचित तथ्य दिया जाता है इसलिये इसका रिच घटाकर कम दिखाता है अर्थात प्रसार में अवरोध उतपन्न करता है। इस प्रकार ये मात्र गूगल नहीं करता है सभी सोशल मीडिया करता है। सोशल मीडिया पर इसके लिये विशेष नियंत्रण अपेक्षित है कि भ्रामक तथ्यों को प्रचारित न करे अपितु उचित तथ्यों को करे।
अन्य षड्यंत्रकारी : इन सबके अतिरिक्त भी बहुत सारे षड्यंत्रकारी हैं जो दशकों से फिल्म, धारावाहिक बनाकर देश की संस्कृति, धर्म, ग्रन्थ आदि सभी बात को सांप्रदायिक सिद्ध करने का प्रयास करते रहे हैं।
- भारत का ग्रन्थ वेद, पुराण, स्मृति, रामायण, महाभारत आदि ही है न? यदि ये भारतीय ग्रन्थ हैं तो भारत में सांप्रदायिक कैसे हो सकते हैं ? क्या अपने देशों में कुरान-बाइबल आदि सांप्रदायिक किताब-बुक है ?
- अखण्ड भारत सर्वप्रथम सनातनी ही था न ? आज सनातन भारत का धर्म क्यों नहीं है ? सनातन यदि भारत का धर्म नहीं हो सकता तो दुनियां में और कौन देश है जिसका धर्म हो सकता है ?
- क्या सम्पूर्ण विश्व धर्मनिरपेक्ष है ? यदि सम्पूर्ण विश्व धर्मनिरपेक्ष नहीं है तो सनातन के भारत को धर्मनिरपेक्षता का विष क्यों पिलाया जा रहा है ? जबकि कथित धर्म के नाम पर ही भारत को खण्डित भी कर दिया गया।
हमारी अपेक्षा है कि आप विश्व के समक्ष ये स्थापित करें कि खण्डित भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता। सनातन धर्म, संस्कृति ही भारत की पहचान है। वेद, पुराण, स्मृति, सूत्र, रामायण, महाभारत ही भारतीय ग्रन्थ हैं न कि सांप्रदायिक ग्रन्थ।
फिल्म बनाने वाले तो ठोकरें खा रहे हैं भले ही अभी भी सुधरे नहीं हैं किन्तु आपके अगले कार्यकाल में सुधर जायेंगे ऐसी आशा है। किन्तु धारावाहिक बनाने वालों ने नई नौटंकी का आरम्भ किया है। वो अपनी धारावाहिकों में छद्म सनातनी (कालनेमी) बनकर भीतरघात करते हुये धर्म पर आघात अभी भी कर रहे हैं। इनके छद्म स्वरूप का भंडाफोड़ करके इनको भी दण्डित करने की आवश्यकता है।
7 दशकों तक लोगों के मन में साम्प्रदायिकता का ऐसा विषवपन कर दिया गया है कि सार्वजनिक रूप से राम-कृष्ण-शिव-रामायण-महाभारत-वेद-पुराण आदि को साम्प्रदायिक कहा जाता है और लोगों के मन में भी ऐसा भाव आता है। लोगों के मन से इस भाव की निवृत्ति अनिवार्य है और कैसे किया जाये वो मार्ग आप निकालें मैं तो अपने मन की बात कह रहा हूँ कि भारत में धर्म-संस्कृति-ग्रंथ-राम-कृष्ण आदि कुछ भी सांप्रदायिक सिद्ध नहीं होता क्योंकि यही भारत के मूल हैं, पहचान हैं।
जब तक लोगों के मन में इस सांप्रदायिक होने का बीज रहेगा तब तक भारतीयता मूल रूप से प्रकट नहीं हो पायेगी और लोग स्वयं डरते रहेंगे। यही कारण है कि राम मंदिर का, प्राण-प्रतिष्ठा का कुछ लोगों ने सदा विरोध किया। न्यायपालिका भी इस विषय पर इसी कारण भ्रमित रहती है कि ये तो सांप्रदायिक है। लोगों के मन से जब तक इसके साम्प्रदायिकता के भाव का निस्तारण नहीं किया जाता तब तक साम्प्रदायिकता का स्वांग रचने वाले उपद्रव करते ही रहेंगे।
इस प्रकार हमने आपके साथ अपने मन की बात निर्भयता पूर्वक साझा किया क्योंकि आप स्वयं को शासक नहीं सेवक कहते हैं। ये मेरे विचार मात्र हैं या मेरे मन की बात मात्र है, ऐसा नहीं है सामान्यजन भावना है। आपके ऊपर 10 वर्षों से ये आरोप लगाया जा रहा है कि अपने मन की बात तो करते हैं लोगों के मन की बात नहीं सुनते तो ये सिद्ध करना आपका कार्य है कि; जो देश-संस्कृति-धर्म आदि के हित में हो; आप लोगों के मन की बात भी सुनते हैं ।
F & Q ?
प्रश्न : मन की बात कब होती है?
उत्तर : मन की बात तब होती है जब सुनने वाले से किसी प्रकार का भय न हो और अपेक्षापूर्ति की आशा हो। यदि अपेक्षापूर्ति की आशा न हो तो भी मन की बात नहीं होती अथवा यदि सामने वाले व्यक्ति से भय हो तो भी नहीं की जा सकती।
प्रश्न : मन की बात का उद्देश्य क्या है?
उत्तर : मन की बात का उद्देश्य अपनी अपेक्षा और उचित सलाह प्रदान करना होता है।
प्रश्न : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “मन की बात” का उद्देश्य क्या है?
उत्तर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “मन की बात” का उद्देश्य राष्ट्र की अपेक्षा प्रकट करना और तदनुसार जनसामान्य को योगदान करने के लिये जागरूक करना है।
प्रश्न : मन की बात करने से क्या लाभ होता है ?
उत्तर : मन की बात करने से जिसके साथ की जाय उसे आपकी अपेक्षा ज्ञात होती है अथवा सलाह मिलता है जिससे वह उचित कार्य करने के लिये प्रेरित होता है।
प्रश्न : मन की बात कब करना चाहिये ?
उत्तर : मन की बात तब करना चाहिये जब सुनने वाला शांतचित्त हो।
प्रश्न : मन की बात किसे कहना चाहिये ?
उत्तर : मन की बात उसे कहना चाहिये जो आक्रामक न हो, उद्विग्न न हो, अशांत न हो, प्रतिकूल प्रतिक्रिया देने वाला न हो इत्यादि।