रामार्चा मंडप निर्माण
- रामार्चा के लिये भी मंडप का विधान है।
- रामार्चा मंडप में न्यूनतम १२ स्तम्भ (खम्भे) देने चाहिये तभी चार द्वार बन सकते हैं।
- रामार्चा मंडप भी विधिवत ही स्थापित करना चाहिये यद्यपि पद्धतिकारों द्वारा इस बात की अनदेखी की गयी है।
- शुभ दिन में नान्दीमुख श्राद्ध करके विधिपूर्वक मंडप स्थापन-पूजन करना चाहिये।
- किसी भी मंडप में कलश स्थापन के बाद सबसे पहले वास्तु मंडल वेदी की पूजा का नियम है और रामार्चा एवं उपनयन-विवाहादि वाले मंडपों में भी अनिवार्यतः किया जाना चाहिये। वास्तु पीठ का अपना विशेष महत्व है जिसकी अवहेलना नहीं की जा सकती।
विशेष ध्यातव्य : जिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपने जीवन में सर्वत्र धर्म-वेद-शास्त्रोक्त विधियों एवं नियमों का संरक्षण किया वो शास्त्रीय विधि की अवज्ञा पूर्वक की जाने वाली पूजा कैसे स्वीकार कर सकते हैं ?
- रामार्चा को यज्ञतुल्य माना गया है एवं यज्ञ में यज्ञविधि का पालन करना चाहिये।
- हवन की भी विशेष विधि होती है रामार्चा पद्धतियों में इसकी भी अनदेखी की गयी है।
- हवन में आहूति की संख्या कम होती है इसलिये कुण्ड आवश्यक नहीं होता किन्तु हवन मंडप में करना आवश्यक होता है।
- यदि कुंड नहीं बनाया जाय तो वेदी अथवा भूमि पर ही हवन करना चाहिये लेकिन लोहे के गमले या कुंडों में नहीं करना चाहिये।
- अतः वेदी मंडप के पूर्व भाग में स्थापित करके पूजा करनी चाहिये एवं मध्य भाग में हवन।
- विधि की अवहेलना करके किया गया हवन आसुरी कहलाता है।
अन्य भी बहुत सारे नियम हैं लेकिन आलेख को अधिक विस्तार देने से विषयांतरण प्रवृत्त होगा।
मंडप स्थापना – मंडप पूजन विधि
मण्डप स्थापन से पूर्व नान्दीमुख श्राद्ध कर लें । मण्डप स्थापन काल में पांच स्तम्भों में रक्षासूत्र वेष्टित करके कुङ्कुम, हरिद्रा दधि, चौरठ आदि लेपित कर सजा लें । पूजन सामग्री व्यवस्थित कर लें। गड्ढा करने हेतु खनित्रि (खंती आदि) रख लें।
क्रम प्रथम मंत्र से गड्ढा के स्थान को चिह्नित करके रेखाङ्कित करें। द्वितीय मंत्र से गड्ढा करें। तृतीय मंत्र से गड्ढे में जल छिड़कें । चतुर्थ मंत्र से गड्ढे में जौ दें । पंचम मंत्र से दूर्वा दें । छठे मंत्र से दही, सातवें से पूंगीफल, आठवें से स्वर्ण या द्रव्य दें । नवें मंत्र से स्तम्भ उठायें । दशवें मंत्र से स्तम्भ को गड्ढे में आरोपित करें और मिट्टी आदि भरकर स्तम्भ का स्पर्श करके स्थिरीकरण करें। आरम्भ अग्निकोण से करके प्रदक्षिण क्रम से मध्य में समापन करें ।
- १. ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् । ॐ इदमह ᳪ रक्षसां ग्रीवा अपि कृन्तामि ॥ गड्ढा का स्थान चिह्नित करें।
- २. ॐ मा वोरिषत् खनिता असौ चाहं खनामि वः । द्विपाच्चतुष्पादस्माक ᳪ सर्वमस्त्वनातुरम् ॥ गड्ढा करें।
- ३. ॐ सिञ्चन्ति परिषिञ्चन्त्युत्सिञ्चन्ति पुनन्ति च । सुरायैबम्ब्रैमदेकिन्त्वोव्वदति किन्त्वः ॥ जल छिड़कें ।
- ४. ॐ यवोसि यवयास्मद्वेषो यवयारातीः ॥ जौ दें।
- ५. ॐ काण्डात् काण्डात् प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि । एवानो दूवें प्रतनु सहस्रेण शतेन च ॥ दूर्वाङ्कुर दें ।
- ६. ॐ दधिक्राब्णोऽअकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः । सुरभिनो मुखाकरत् प्रण आयू ᳪ षि तारिषत् ॥ दधि दें ।
- ७. ॐ याः फलिनीर्य्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः । बृहस्पतिप्प्रसूतास्तानो मुञ्चन्त्वᳪ हसः ॥ पूगीफल दें ।
- ८. ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेकऽआसीत् । सदाधारपृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ हिरण्य या द्रव्य दें।
- ९. ॐ उच्छ्रयस्व वनस्पत ऽऊर्ध्वो मापोह्य ᳪ हसः आस्य यज्ञस्योदृचः ॥ स्तम्भ उठायें ।
- १०. ॐ ऊर्ध्वं उषण ऊतये तिष्ठादेवो न सविता । ऊर्ध्वो वाजस्य सनिता यदञ्जिभिर्वाधद्भिर्विह्वयामहे ॥ स्तम्भ आरोपित करें।
- ११. ॐ स्थिरो भव व्विड्वङ्ग आशुर्भव वाज्यर्वन् । पृथुर्भव सुखदस्त्वमग्नेः पुरीषवाहनः ॥ मिट्टी आदि से गड्ढे को भरकर स्तम्भ स्थिर करें और स्तम्भ स्पर्श करके यह मंत्र पढ़ें। तत्पश्चात् काशादि तृण निर्मित आवरण आरोपित करके भलीभांति बांधकर दध्यक्षतहरिद्रादि से विभूषित करें।
तत्पश्चात् अग्निकोण से स्तम्भ में मण्डप मातृकाओं का पूजन आरम्भ करें :
- १. अग्निकोण (नन्दिनी) – ॐ भूर्भुवः स्वः नन्दिनी इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ नन्दिन्यै नमः ॥१॥
- २. नैर्ऋत्यकोण (नलिनी) – ॐ भूर्भुवः स्वः नलिनी इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः नलिन्यै नमः ॥२॥
- ३. वायव्यकोण (मित्रा) – ॐ भूर्भुवः स्वः मित्रे इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः मित्रायै नमः ॥३॥
- ४. ईशानकोण (उमा) – ॐ भूर्भुवः स्वः उमे इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः उमायै नमः ॥४॥
- ५. मध्य (पशुवर्द्धिनी) – ॐ भूर्भुवः स्वः पशुवर्द्धिनी इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः पशुवर्द्धिन्यै नमः ॥५॥
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टंयज्ञ ᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामों ३ प्रतिष्ठ ॥ नन्दिन्यादिमण्डपमातरः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ॥ इस मंत्र से प्रतिष्ठा करके एकतंत्र से पूजन कर लें – ॐ भूर्भुवः स्वः नन्दिन्यादि मण्डपमातृभ्यो नमः॥
प्रार्थना – ॐ प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेत्ताध्वरेषु यत् । स्मरणादेव तद् विष्णोः सम्पूर्णं स्यादिति श्रुतिः ॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु । न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥
दक्षिणा – ॐ अद्य कृतैत्तत् ………. कर्मनिमित्तक मण्डपस्थान पूजन कर्म प्रतिष्ठार्थमेतावद्रव्य मूल्यक हिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ॥ ॐ स्वस्ति ब्राह्मण प्रतिवचन ।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।