श्राद्ध कर्म विधि मंत्र की विस्तृत जानकारी – shraddh

श्राद्ध कर्म विधि मंत्र की विस्तृत जानकारी – shraddh
  • श्राद्धकर्ता नित्यकर्म करके सर्वप्रथम गोबर से लीपी गयी पवित्र दक्षिणप्लव भूमि पर पहले बताये गये विधि के अनुसार पञ्चगव्यादि प्रोक्षण पूर्वक भूमि को संस्कारित करे।
  • पञ्चदेवता व विष्णु पूजा भी नित्यकर्म का ही अंग है।
  • फिर रक्षा दीप प्रज्वलित करे।
  • तत्पश्चात ही पाक का आरम्भ करे।
  • पाककर्ता अन्य व्यक्ति भी हो सकता है लेकिन यह ध्यान रखना आवश्यक है कि पाककर्ता वही व्यक्ति बने जो कर्त्ता के किसी अक्षमता वाली स्थिति में श्राद्धकर्म का अगला अधिकारी हो।
  • पाककर्ता भी कर्ता की ही भांति पूर्व दिन से ही श्राद्ध कर्म के नियमों का पालन करे।
  • यदि पाक आरंभ होने से पूर्व सपिण्डादि में किसी की मृत्यु हो जाये तो पाकारम्भ न करे क्योंकि सम्पूर्ण अशौच की प्राप्ति हो जाएगी।
  • यदि पाकारम्भ कर लिया गया हो और संकल्प न हुआ हो और सपिण्ड में किसी की मृत्यु हो जाये तो उस पाक से होने वाले श्राद्ध में अशौच प्रभावी नहीं होगा क्योंकि श्राद्ध का आरम्भ पाक ही कहा गया है।
  • चूंकि पाक से ही श्राद्ध का आरम्भ होता है इसलिये द्वादशाह के दिन भी पूर्वाह्न में कदापि पाकारम्भ न करे, कई संपन्न व्यक्ति 3-4 बजे ही भोज का आरम्भ करने के लिये पूर्वाह्न में ही श्राद्ध भी आरम्भ करते हैं जो श्राद्धविधि के नियम का उल्लंघन है। श्राद्ध काल के विषय में विस्तृत चर्चा के लिये अलग आलेख प्रकाशित की जाएगी।
  • अत्यावश्यक होने पर पूर्वाह्न में श्राद्ध की पूर्व व्यवस्था करके सङ्गव काल में आरम्भ किया जा सकता है।
  • वो ब्राह्मण भी निंदा के पात्र हैं जो किसी भी कारण से शास्त्र विधि का परित्याग करके पूर्वाह्न में श्राद्ध आरम्भ कराते हैं।
  • श्राद्ध की तैयारी या व्यवस्था करना यजमान का कार्य होता है। यजमान सही से व्यवस्थित नहीं कर सकता अथवा समय अधिक व्यतीत होगा इसलिये समय की बचत हो ब्राह्मण स्वयं व्यवस्थित करते हैं।
  • किन्तु इसके अतिरिक्त यजमान ब्राह्मण से अन्य कोई कार्य न कराये।
  • बहुत जगह यजमान का आसन तक भी ब्राह्मण ही लगाते हैं और यजमान आकर निर्लज्ज की तरह बैठ भी जाता है। ये यजमान और ब्राह्मण दोनों की अज्ञानता है।
  • यजमान और ब्राह्मण दोनों को एक बात अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है कि ब्राह्मण को सेवा लेने के लिये आमंत्रित नहीं किया जाता अपितु सेवा करने के लिये आमंत्रित किया जाता है।
  • ब्राह्मण से अधिकतम श्राद्ध की तैयारी मात्र ही कराये, कल्याण चाहने वाला यजमान वो भी न कराये ब्राह्मण से दिशा-निर्देश मात्र ले, और व्यवस्थित करने के लिये बंधु-बांधवों का सहयोग ले।
  • ब्राह्मण के लिये यजमान स्वयं सुन्दर और स्वयं के आसन से ऊँचा आसन लगाये। ब्राह्मण से अपना आसन लगवाने वाला यजमान तो उल्टी गङ्गा बहाते हुये पितरों और स्वयं के लिये नरक का द्वार ही खोलता है।

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