भक्तप्रह्लाद के पुत्र विरोचन थे और उनका पुत्र राजा बलि था अर्थात भक्त प्रह्लाद के पौत्र थे राजा बलि। और इस प्रकार यदि विचार करें तो राजा बलि के पितामह हेतु भी भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था और पुनः उसी कुल में राजा बलि के लिये भी वामन अवतार धारण किया था। राजा बलि से तीन पग भूमि की याचना करके भगवान वामन ने दो पग में ही सभी लोकों को माप लिया तो तीसरे पग में राजा बलि ने स्वयं को ही समर्पित कर दिया। यहां भगवान वामन की दो स्तुति (वामन स्तुति – vamana stuti) संस्कृत में दी गयी है।
वामन स्तुति संस्कृत में – vamana stuti
अव्याद्वो वामनो यस्य कौस्तुभप्रतिबिम्बिता ।
कौतुकालोकिनी जाता जाठरीव जगत्त्रयी ॥१॥
अङ्घ्रिदण्डो हरेरूर्ध्वमुत्क्षप्तो बलिनिग्रहे ।
विधिविष्टरपद्मस्य नालदण्डो मुदेऽस्तु नः ॥२॥
खर्वग्रन्थिविमुक्तसन्धिविलसद्वक्षःस्फुरत्कौस्तुभं
निर्यन्नाभिसरोजकुड्मलपुटीगम्भीरसामध्वनि ।
पात्रावाप्तिसमुत्सुकेन बलिना सानन्दमालोकितं
पायाद्वः क्रमवर्धमानमहिमाश्चर्यं मुरारेर्वपुः ॥३॥
हस्ते शस्त्रकिणाङ्कितोऽरुणविभाकिर्मीरितोरःस्थलो
नाभिप्रेङ्खदलिर्विलोचनयुगप्रोद्भूतशीतातपः ।
बाहूर्मिश्रितवह्निरेष तदिति व्याक्षिप्यवाक्यं कवेः
तारैरध्ययनैर्हरन्बलिमनः पायाज्जगद्वामनः ॥४॥
स्वस्ति स्वागतमर्थ्यहं वद विभो किं दीयतां मेदिनी
का मात्रा मम विक्रमत्रयपदं दत्तं जलं दीयताम् ।
मा देहीत्युशनाब्रवीद्धरिरयं पात्रं किमस्मात्परं
चेत्येवं बलिनार्चितो मखमुखे पायात्स वो वामनः ॥५॥
स्वामी सन्भुवनत्रयस्य विकृतिं नीतोऽसि किं याच्ञया
यद्वा विश्वसृजा त्वयैव न कृतं तद्दीयतां ते कुतः ।
दानं श्रेष्ठतमाय तुभ्यमतुलं बन्धाय नो मुक्तये
विज्ञप्तो बलिना निरुत्तरतया ह्रीतो हरिः पातु वः ॥६॥
ब्रह्माण्डच्छत्रदण्डः शतधृतिभवनाम्भोरुहो नालदण्डः
क्षोणीनौकूपदण्डः क्षरदमरसरित्पट्टिकाकेतुदण्डः ।
ज्योतिश्चक्राक्षदण्डस्त्रिभुवनविजयस्तम्भदण्डोऽङ्घ्रिदण्डः
श्रेयस्त्रैविक्रमस्ते वितरतु विबुधद्वेषिणां कालदण्डः ॥७॥
यस्मादाक्रामतो द्यां गरुडमणिशिलाकेतुदण्डायमानात्
आश्च्योतन्त्याबभासे सुरसरिदमला वैजयन्तीव कान्ता ।
भूमिष्ठो यस्तथान्यो भुवनगृहमहास्तम्भशोभां दधानः
पातामेतौ पयोजोदरललिततलौ पङ्कजाक्षस्य पादौ ॥८॥
कस्त्वं ब्रह्मन्नपूर्वः क्व च तव वसतिर्याखिला ब्रह्मसृष्टिः
कस्ते नाथो ह्यनाथः क्व स तव जनको नैव तातं स्मरामि ।
किं तेऽभीष्टं ददामि त्रिपदपरिमिता भूमिरल्पं किमेतत्
त्रैलोक्यं भावगर्भं बलिमिदमवदद्वामनो वः स पायात् ॥९॥
॥ इति वामनस्तुतिः सम्पूर्णा ॥
वामनस्तुति – 2
देवेश्वराय देवाय देवसम्भूतिकारिणे ।
प्रभवे सर्ववेदानां वामनाय नमो नमः ॥१॥
नमस्ते पद्मनाभाय नमस्ते जलशायिने ।
प्रणमामि सदा भक्त्या बालवामनरूपिणे ॥२॥
नमः शार्ङ्गधनु-र्बाणपाणये वामनाय च ।
यज्ञभुक् फलदात्रे च वामनाय नमो नमः ॥३॥
॥ इति वामनस्तुतिः सम्पूर्णा ॥
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