किसी भी देवी-देवता को प्रसन्न करने वाले स्तोत्रों अष्टक स्तोत्रों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। माता सरस्वती की कृपा सबके लिये आवश्यक होती है और विद्यार्थियों को तो विशेष रूप से माता सरस्वती की उपासना करनी चाहिये। यहां माता सरस्वती को प्रसन्न करने में विशेष महत्वपूर्ण 2 सरस्वती अष्टक स्तोत्र (araswati ashtaakam) दिये गये हैं।
यहां पढ़ें सरस्वती अष्टक स्तोत्र संस्कृत में – saraswati ashtaakam
प्रथम पद्मपुराणोक्त दिव्यज्ञान प्रदायक सरस्वती अष्टक स्तोत्र दिया गया है और उसके पश्चात् एक अन्य सरस्वत्यष्टक भी दिया गया है। दोनों ही अष्टक स्तोत्र संस्कृत में हैं।
दिव्यज्ञान प्रदायक पद्मपुराणोक्त सरस्वती अष्टक स्तोत्र
शतानीक उवाच
महामते महाप्राज्ञ सर्वशास्त्रविशारद ।
अक्षीणकर्मबन्धस्तु पुरुषो द्विजसत्तम ॥१॥
मरणे यज्जपेज्जाप्यं यं च भावमनुस्मरन् ।
परं पदमवाप्नोति तन्मे ब्रूहि महामुने ॥२॥
शौनक उवाच
इदमेव महाराज पृष्टवांस्ते पितामहः ।
भीष्मं धर्मविदां पृष्ठेदं धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः ॥३॥
युधिष्ठिर उवाच
पितामह महाप्राज्ञ सर्वशास्त्रविशारद ।
बृहस्पतिस्तुता देवी वागीशाय महात्मने ।
आत्मानं दर्शयामास सूर्य कोटिसमप्रभम् ॥४॥
सरस्वत्युवाच
वरं वृणीष्व भद्रं ते यत्ते मनसि वर्तते ।
बृहस्पतिरुवाच यदि मे वरदा देवि दिव्यज्ञानं प्रयच्छ मे ॥५॥
देव्युवाच
हन्त ते निर्मलं ज्ञानं कुमतिध्वंसकारकम् ।
स्तोत्रेणानेन ये भक्त्या मां स्तुवन्ति मनीषिणः ॥६॥
बृहस्पतिरुवाच
लभते परमं ज्ञानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् ।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ॥७॥
सरस्वत्युवाच
त्रिसन्ध्यं प्रयतो नित्यं पठेदष्टकमुत्तमम् ।
तस्य कण्ठे सदा वासं करिष्यामि न संशयः ॥८॥
॥ इति श्रीपद्मपुराणे दिव्यज्ञानप्रदायकं सरस्वत्यष्टकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
श्रीसरस्वत्यष्टकं
अमला विश्ववन्द्या सा कमलाकरमालिनी ।
विमलाभ्रनिभा वोऽव्यात्कमला या सरस्वती ॥१॥
वार्णसंस्थाङ्गरूपा या स्वर्णरत्नविभूषिता ।
निर्णया भारति श्वेतवर्णा वोऽव्यात्सरस्वती ॥२॥
वरदाभयरुद्राक्षवरपुस्तकधारिणी ।
सरसा सा सरोजस्था सारा वोऽव्यात्सरास्वती ॥३॥
सुन्दरी सुमुखी पद्ममन्दिरा मधुरा च सा ।
कुन्दभासा सदा वोऽव्याद्वन्दिता या सरस्वती ॥४॥
रुद्राक्षलिपिता कुम्भमुद्राधृतकराम्बुजा ।
भद्रार्थदायिनी साव्याद्भद्राब्जाक्षी सरस्वती ॥५॥
रक्तकौशेयरत्नाढ्या व्यक्तभाषणभूषणा ।
भक्तहृत्पद्मसंस्था सा शक्ता वोऽव्यात्सरस्वती ॥६॥
चतुर्मुखस्य जाया या चतुर्वेदस्वरूपिणी ।
चतुर्भुजा च सा वोऽव्याच्चतुर्वर्गा सरस्वती ॥७॥
सर्वलोकप्रपूज्या या पर्वचन्द्रनिभानना ।
सर्वजिह्वाग्रसंस्था सा सदा वोऽव्यात्सरस्वती ॥८॥
सरस्वत्यष्टकं नित्यं सकृत्प्रातर्जपेन्नरः।
अज्ञैर्विमुच्यते सोऽयं प्राज्ञैरिष्टश्च लभ्यते ॥९॥
॥ इति श्रीसरस्वत्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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