वारवेला क्या है ? काल वेला का अर्थ, – अर्द्ध प्रहर विचार .

वारवेला क्या है , काल वेला का अर्थ, अर्द्ध प्रहर विचार

उदाहरण 2. – शनिवार को पहले अर्द्धप्रहर का अधिपति वारेश शनि, दूसरे का गुरु (शनि से छठा), तीसरे का मंगल (गुरु से छठा), चौथे का सूर्य, पांचवें का शुक्र, छठे का बुध, सातवें का चन्द्र और आठवें का शनि अधिपति होता है।

शनिवार को पहले और आठवें दो भाग का अधिपति शनि होता है और, इसलिए दो बार कालवेला उपस्थित होती है।

अर्द्ध प्रहर विचार – कालवेला

कालरात्रि का अर्थ

यद्यपि कालरात्रि का अर्थ काल की रात्रि है, साथ ही माता दुर्गा का एक रूप भी कालरात्रि है किन्तु यहां कालरात्रि का अन्य तात्पर्य है और वह है रात में शनि का आठवां भाग। रात में शनि के अर्द्धप्रहर (कालवेला) को ही कालरात्रि कहते हैं। पहला अर्द्धप्रहर तो वाराधिपति का ही होता है किन्तु अगला क्रमशः पांचवें अधिपति का भाग होता है।

उदाहरण – सोमवार को पहले अर्द्धप्रहर का अधिपति स्वयं चन्द्र, दूसरे का शुक्र (चन्द्र से पांचवां), तीसरे का मंगल (शुक्र से पांचवां), चौथे का शनि, पांचवें का बुध, छठे का सूर्य, सातवें का गुरु और आठवें का अधिपति चन्द्र होता है।

सोमवार को रात में चौथे अर्द्धप्रहर का स्वामी शनि है इसलिए वही भाग कालरात्रि है।

इसी प्रकार सभी दिनों में विचार किया जाता है। सभी दिनों के दिन एवं रात के अधपहरा को इस प्रकार से वर्णित किया गया है :

दिन का अर्द्धप्रहरा

रवौ वर्ज्याश्चतुःपञ्च सोमे सप्तद्वयं तथा । कुजे षष्ठद्वयं चैव बुधे बाणतृतीयकम् ॥
गुरौ सप्ताष्टकं ज्ञेयं त्रिचत्वारि च भार्गवे । शनावाद्यन्तषष्ठं च वर्ज्यार्द्धप्रहरा बुधैः ॥

रविवार को चौथा और पांचवां, सोमवार का दूसरा और सातवां, मंगलवार को दूसरा और छठा, बुधवार को तीसरा और पांचवां, गुरुवार को सातवां और आठवां, शुक्रवार को तीसरा और चौथा, शनिवार को पहला, छठा और आठवां अर्द्धप्रहर दिन में त्याज्य होता है।

रात की अर्द्धप्रहरा

रवौर साब्धी हिमगौ हयाब्धी द्वयं महीजे विधुजे शरागौ ।
गुरौ शराष्टौ भृगुजे तृतीये शनौ रसाद्यन्तमिति क्षपायाम् ॥

रविवार को चौथा और छठा, सोमवार को चौथा और सातवां, मंगलवार को दूसरा, बुधवार को पांचवां और सातवां, गुरुवार को पांचवां और आठवां, शुक्रवार को तीसरा, शनिवार को पहला, छठा और आठवां अर्द्धप्रहर रात में त्याज्य होता है।

नित्य कर्म पूजा पद्धति मंत्र

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