हम क्रमशः अग्नि स्तोत्रों का अवलोकन कर रहे हैं जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं और अब हमें अग्नि के अष्टक स्तोत्र का भी अवलोकन करना चाहिये। सभी देवताओं के अष्टक स्तोत्र होते हैं और अग्नि के भी अष्टक स्तोत्र हैं जो सीताकृत है और कूर्मपुराण में वर्णित है। यहां अग्निदेव को प्रसन्न करने के लिए कूर्मपुराणोक्त अग्नि अष्टक अर्थात वह्न्यष्टक स्तोत्र (agni ashtak stotra) दिया गया है।
पढ़ें अग्नि अष्टक अर्थात वह्न्यष्टक स्तोत्र संस्कृत में – agni ashtak stotra
सीता उवाच
उपतस्थे महायोगं सर्वदोषविनाशनम् ।
कृताञ्जली रामपत्नी साक्षात्पतिमिवाच्युतम् ॥१॥
नमस्यामि महायोगं कृतान्तं गहनं परम् ।
दाहकं सर्वभूतानामीशानं कालरूपिणम् ॥२॥
नमस्ये पावकं देवं शाश्वतं विश्वतोमुखम् ।
योगिनं कृत्तिवसनं भूतेशं परमम्पदम् ॥३॥
आत्मानं दीप्तवपुषं सर्वभूतहृदि स्थितम् ।
तं प्रपद्ये जगन्मूर्त्तिं प्रभवं सर्वतेजसाम् ।
महायोगेश्वरं वह्निमादित्यं परमेष्ठिनम् ॥४॥
प्रपद्ये शरणं रुद्रं महाग्रासं त्रिशूलिनम् ।
कालाग्निं योगिनामीशं भोगमोक्षफलप्रदम् ॥५॥
प्रपद्ये त्वां विरूपाक्षं भूर्भुवःस्वःस्वरूपिणम् ।
हिरण्यमये गृहे गुप्तं महान्तममितौजसम् ॥६॥
वैश्वानरं प्रपद्येऽहं सर्वभूतेष्ववस्थितम् ।
हव्यकव्यवहं देवं प्रपद्ये वह्निमीश्वरम् ॥७॥
प्रपद्ये तत्परं तत्त्वं वरेण्यं सवितुः शिवम् ।
भार्गवाग्निपरं ज्योतिः रक्ष मां हव्यवाहन ॥८॥
इति वह्न्यष्टकं जप्त्वा रामपत्नी यशस्विनी ।
ध्यायन्ती मनसा तस्थौ राममुन्मीलितेक्षणा ॥९॥
॥ इति कूर्मपुराणे पूर्वभागे चतुस्त्रिंशाध्यायान्तर्गतं सीताया कृतं वह्न्यष्टकं सम्पूर्णं ॥
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