पढ़ें अग्नि स्तोत्र संस्कृत में – agni stotra

पढ़ें अग्नि स्तोत्र संस्कृत में - agni stotra

यदि अग्नि न होते तो यज्ञादि की बात छोड़ ही दें, जीवन भी नहीं होता। जल ही जीवन कहा जाता है किन्तु अग्नि भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं यह सरलता से समझ में नहीं आता है। ऐसा लगता है जैसे यज्ञादि करने में अथवा भोजन निर्माण आदि में ही अग्नि की आवश्यकता होती है। किन्तु सच यह है कि हम जो भोजन करते हैं उसका पाचन भी भी अग्नि ही करते हैं जिन्हें जठराग्नि नाम से जाना जाता है। कुपित अथवा क्षुधित अग्नि प्रलयंकर भी हो सकते हैं और इसलिये यह आवश्यक है कि अग्नि को प्रसन्न रखा जाय और क्षुधित न होने दिया जाय।

यहां अग्निदेव को प्रसन्न करने के लिए दो अग्नि स्तोत्र दिये गये हैं प्रथम स्तोत्र मार्कण्डेय पुराणोक्त है और द्वितीय स्तोत्र ब्रह्म पुराणोक्त है।

हेतुकृत ब्रह्मपुराणोक्त अग्नि स्तोत्र

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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