छठ पूजा विधि : Day 1 and 2

छठ पूजा कब है 2024 – छठ पूजा क्यों मनाई जाती है ?

छठ पूजा बहुत ही विस्तृत स्तर पर मनाया जाता है। इसमें पवित्रता का अत्यधिक ध्यान रखा जाता है। छठ व्रत में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। छठव्रत से दो दिन पूर्व नहायखाय होता है, नहायखाय के अगले दिन खरना, उसके बाद व्रत के दिन सायंकाल में अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाता है। इस आलेख में छठ पूजा विधि बतायी गयी है एवं पूजा के मंत्र भी दिये गये हैं।

प्रातः काल पुनः पूजा-अर्घ्य देकर विसर्जन किया जाता है। हम यहां छठ पूजा के मंत्र और विधियों को जानेंगे। छठ पूजा के अवसर पर सबके लिये ब्राह्मणों की उपस्थिति नहीं होने के कारण लोग स्वयं ही बिना मंत्र के करते पाये जाते हैं। किन्तु यदि मंत्र उपलब्ध हो जाये तो समन्त्र भी किया जा सकता है; इस हेतु यह आलेख आपके लिये उपयोगी हो सकता है।

छठ पूजा कब है 2024 – छठ पूजा क्यों मनाई जाती है ? छठ पूजा विधि
छठ पूजा विधि

छठ पूजा के सम्बन्ध में और विस्तृत जानकारी के लिये इस आलेख को पढ़ें।

  • कृतनित्यकृत्या व्रती सायंकाल नदी/तालाब/गृहपोखर के तट पर आकर पुनर्स्नान करके तिलजलादि लेकर संकल्प करे ।
  • तत्पश्चात् भगवान सूर्यनारायण का आवाहन करके फलपक्वान्नादियुक्त डाला व ताम्रअर्घ्यपात्र (जल, लाल चंदन, लाल फूल, लाल अक्षतयुत) अर्घ्यमंत्रों को पढ़े ।
  • तत्पश्चात् खड़ा होकर अर्घ्य प्रदान करे । परिवारजन भी अर्घ्य दे ।
  • फिर अन्य सम्पादित सामग्रियों से पूजा करके प्रदक्षिणा करके नमस्कार मंत्र पढकर प्रणाम निवेदन करे ।
  • तत्पश्चात् डाला अर्पित करके कथा श्रवण करे ।
छठ पूजा एवं अर्घ्य देने की विधि

॥ अथ प्रतिहारषष्ठीपूजा ॥

तत्र कृतनित्यक्रिया सरित्तटमागत्य सायंकाले सूर्याभिमुखी तिलजलान्यादाय –

  1. संकल्प : नमोऽद्य कार्तिक मासीयशुक्लपक्षीयषष्ठयां तिथौ …….. गोत्राया ममा …….. देव्या इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सकलदुःखदारिद्रय सकलपातकक्षय अपस्मारकुष्ठादि महाव्याधि सकलरोगक्षय चिरजीविपुत्रपौत्रादिलाभ गोधनधान्यादिसमृद्धिसुख सौभाग्या अवैधव्य सकलकामावाप्तिकामा अद्य श्वश्च सूर्यायार्घ्यमहं दास्ये । इति सङ्कल्प्य –
  2. सूर्य भगवान का आवाहन : नमो भगवन् सूर्य इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ इत्यावाह्य नाफलदूर्वा रक्तचन्दन अक्षत घृतपाचितान्नयुत ताम्रपात्रस्थार्घ्यमादाय :-
  3. अर्घ्य देने का मंत्र : नमोऽस्तु सूर्याय सहस्रभानवे नमोऽस्तु वैश्वानरजातवेदसे । त्वमेव चार्घ्यं प्रतिगृह्ण गृह्ण देवाधिदेवाय नमो नमस्ते । नमो भगवते तुभ्यं नमस्ते जातवेदसे दत्तमर्घ्यं मया भानो त्वं गृहाण नमोऽस्तु ते । ज्योतिर्मय विभो सूर्य तेजोराशे जगत्पते ॥ अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर ॥ एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते । अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर ॥ एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं संज्ञया सहितप्रभो ॥ एतान्मन्त्रान् समुच्चार्य उत्तिष्ठन्ती अर्घ्यं दद्यात्। ततो रक्तचन्दन रक्ताक्षत रक्तपुष्पदूर्वा वस्त्रयज्ञोपवीतधूपदीपताम्बूलनानाविधनैवेद्येस्सम्पूज्य प्रदक्षिणं (अर्द्धप्रदक्षिणं) कृत्वा प्रणमेदेभिः –
  4. सूर्य नमस्कार मंत्र : जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम् ।। इति प्रणम्य तत्तडल्लकं सूर्याय समर्प्य कथां शृणुयात् ।

ध्यातव्य – भगवान सूर्य की प्रतिमा न बनाये । अधिक अपेक्षित लगे तो ताम्रादि धातु की सूर्याकृति मात्र स्थापित करे ।

सूर्य प्रत्यक्ष ही रहते हैं इसलिये प्रत्यक्ष सूर्य को ही जल देना चाहिये, सूर्य की प्रतिमा बनाने का तात्पर्य यह होता है की प्रत्यक्ष सूर्य की अवज्ञा हुई। साथ ही सूर्य के चरणों को देखने से दोषभागी बनाना पड़ता है अतः श्रेयस्कर यही है की सूर्य की प्रतिमा अनावश्यक है अतः न ही बनायें।

प्रत्यक्ष सूर्य को ही जल दे
प्रत्यक्ष सूर्य को ही जल दे

प्रातःकालीन अर्घ्य एवं विसर्जन विधि

  • प्रातः काल पुनः पूर्ववत पूजा,अर्घ्य देकर यथोपचार पूजन कर ले फिर नमस्कार करके विसर्जन करे।
  • विसर्जन के पश्चात् तिलजलादक्षिणाद्रव्य लेकर दक्षिणां करे ।
  • संभव हो तो ब्राह्मणभोजन कराकर पारण करे अन्यथा भोजन निमित्त धन देकर पारण करे ।

अथ विसर्जनम्

ततः सूर्यं प्रणम्य विसर्जयेत् । ततः तिलजलान्यादाय ।

  • सूर्य नमस्कार मंत्र : जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम् ॥ इति प्रणम्य तत्तडल्लकं सूर्याय समर्प्य कथां शृणुयात् ।
  • विसर्जन : ॐ भगवन् सूर्य यथाविधि पूजितोसि प्रसीद प्रसन्नो भव क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ॥

ततः तिलजलान्यादाय –

दक्षिणा – नमोऽद्य कृतैतत्प्रतिहारषष्ठीव्रतकरण तत्कथाश्रवणकर्मप्रतिष्ठार्थमेतावद्द्रव्य मूल्यक हिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ॥ इति ब्राह्मणाय दक्षिणां दत्त्वा पारणां कुर्यात् ।

नमस्कार प्रियो भानु:

(पारण से पूर्व घर व निकटतम मंदिर में भी पूजादि कर लेना उचित है –

सारांश : यह आलेख छठ पूजा से संबंधित पूजा विधि और मंत्रों का वर्णन करता है। इसमें छठ व्रत, नहाय-खाय, खरना, सायंकाल और प्रातः काल की पूजा तथा अर्घ्य दान, नमस्कार और विसर्जन की विधि का उल्लेख है। मंत्र समेत यह पूजा विधि, धर्म और संस्कृति में बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है। इस आलेख में स्थानीय परंपरा के अनुसार प्रतिमा न बनाने और प्रत्यक्ष सूर्य को ही जल देने की सलाह भी दी गयी है। साथ ही कई महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर को भी समाहित किया गया है।

F&Q ?

प्रश्न : नहायखाय कब होता है ?
उत्तर : छठ व्रत से दो दिन पहले।

प्रश्न : खरना कब करते हैं ?
उत्तर : छठ व्रत से एक दिन पहले सायंकाल में खरना करते हैं।

प्रश्न : पहला अर्घ्य किस दिन होता है ?
उत्तर : कार्तिक कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को पहला अर्घ्य होता है जो सायंकाल में अस्ताचल सूर्य को दिया जाता है।

प्रश्न : दूसरा अर्घ्य किस दिन होता है ?
उत्तर : सायंकालीन अर्घ्य देने के बाद अगले दिन प्रातःकाल उदयगामी सूर्य के दिन होता है, जिसमें उदित सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

प्रश्न : क्या संकल्प करना आवश्यक होता है ?
उत्तर : किसी भी व्रत-पूजा में संकल्प करना आवश्यक होता है।

प्रश्न : संकल्प कैसे करते हैं ?
उत्तर : संकल्प – हाथ में तिल-जल-पुष्प-चन्दन-द्रव्य लेकर संकल्प मंत्र पढ़कर किया जाता है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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