धर्मो रक्षति रक्षितः पूर्ण श्लोक
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।। यह श्लोक मनुस्मृति का है जो कुछ-कुछ परिवर्तन के साथ महाभारत में भी कई बार प्रयुक्त हुआ है।
- धर्म एव हतो हन्ति – धर्म अपने नाश करने वाले का भी नाश कर देता है।
- धर्मो रक्षति रक्षितः – धर्म अपने रक्षकों की रक्षा भी करता है।
- तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो – इसलिये धर्म का हत्या/नाश/त्याग नहीं करनी चाहिये कि,
- मा नो धर्मो हतोऽवधीत् – नष्ट धर्म हमारा भी नाश न कर दे।
धर्म अपने नाश करने वाले का भी नाश कर देता है और अपने रक्षकों की रक्षा भी करता है। इसलिये नष्ट धर्म हमारा भी नाश न कर दे ऐसा सोचकर कभी भी धर्म की हत्या/नाश/त्याग नहीं करनी चाहिये।
कुछ प्रसिद्ध पौराणिक धर्मरक्षक
- सत्यवादी हरिश्चन्द्र : धर्म की रक्षा करते हुये सत्यवादी हरिश्चन्द्र ने बहुत दुःख भोगे थे।
- भगवान श्रीराम : मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने धर्म की रक्षा करने के लिये राज्याभिषेक छोड़कर वनवास स्वीकार किया था।
- माता सीता : धर्म की रक्षा के लिये ही राम वनगमन के समय माता सीता न तो अयोध्या में रही न तो जनकपुरी (नइहर) गयी स्वेच्छा से भगवान के साथ वन को गयी। पुनः धर्म रक्षा हेतु अग्निपरीक्षा भी दिया। दुबारा वनवास का दुःख झेलते हुये जीवन व्यतीत की लेकिन जनकपुरी जाकर नहीं रही।
- पाण्डव : पाण्डवों ने धर्म की रक्षा के लिये कठिन दुःख झेले थे।
- राजा शिवि : राजा शिवि ने शरणागत कबूतर की रक्षा करते हुये अपना मांस भी देने लगे वास्तव में ये कबूतर की रक्षा नहीं धर्म की रक्षा कर रहे थे।
- राजा दिलीप : राजा दिलीप ने धर्म की रक्षा करते हुये गाय से स्थान पर सिंह के समक्ष स्वयं को आहार के रूप में प्रस्तुत कर दिया।
- दानवीर कर्ण : दानवीर कर्ण ने धर्म की रक्षा करते हुये अपना कवच-कुण्डल दान कर दिया जिसके रहते वह अवध्य था।
आधुनिक इतिहास में भी धर्म की रक्षा करते हुये बलिदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के नाम भी अमर हैं। राष्ट्रधर्म भी धर्म का ही अनुभाग होता है। वर्त्तमान में भी राष्ट्ररक्षा करते हुये वीरगति प्राप्त करने वाले सैनिक धर्म का ही निर्वहन करते हुये प्राणों की आहुति देते हैं।
धर्म किस प्रकार रक्षा करता है ?
धर्म द्वारा रक्षा का तात्पर्य है पतन से रक्षा करना। धर्म पतन होने से रक्षा करता है अर्थात नरक में गिरने से बचाता है। नरक का दुःख बड़ा दुःख है, दीर्घकालिक दुःख है जो जीव को भोगना पड़ता है। सनातन में शरीर क्षणभंगुर माना गया है जो बार-बार मिलता है परन्तु जीव आत्मा को अविनाशी माना गया है और धर्म उसी जीव की दुःखों से रक्षा करता है। सांसारिक दुःखों की बात करें तो धर्मपालन करने में भी होता है।
F&Q :
प्रश्न : धर्मो रक्षति रक्षितः कहाँ से लिया गया है ?
उत्तर : धर्मो रक्षति रक्षितः मनुस्मृति से लिया गया है साथ ही यह श्लोक महाभारत में भी मिलता है।
प्रश्न : धर्मो रक्षति रक्षितः का अर्थ क्या है ?
उत्तर : धर्मो रक्षति रक्षितः का अर्थ है जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी भी रक्षा करता है ।
प्रश्न : रक्षा से क्या क्या कहते हैं या धर्म किस प्रकार रक्षा करता है ?
उत्तर : धर्म पतन होने से बचाता है, पतन का तात्पर्य नरकगामी होना है । दुःख तो धर्मपालन में भी होता है परन्तु वह अल्पकालिक होता है जो दुःख दीर्घकालिक और अधिक कष्टकारी है धर्म उससे रखा करता है।
प्रश्न : धर्मो रक्षति रक्षितः पूर्ण श्लोक क्या है ?
उत्तर : धर्मो रक्षति रक्षितः पूर्ण श्लोक है – धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।। यह मनुस्मृति से लिया गया है, आंशिक परिवर्तन के साथ महाभारत में भी मिलता है।
प्रश्न : धर्म की रक्षा कैसे होती है ?
उत्तर : शास्त्र की मर्यादा में रहते हुये कर्तव्यों का पालन करने, उत्तरदायित्व का निर्वहन करने से धर्म की रक्षा होती है।
प्रश्न : धर्म का अर्थ क्या होता है?
उत्तर : धर्म का अर्थ होता है धारण करना जिसका तात्पर्य है विहित कर्तव्य पालन का नियम धारण करना।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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