एकादशी व्रत कथा – संक्षेप में 26 एकादशी की व्रत कथा

एकादशी व्रत कथा

8. आमलकी एकादशी व्रत कथा

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम आमलकी एकादशी है। कथा के अनुसार वैदिश नगर का राजा चैत्ररथ एक बार एकादशी कर रहे थे जो कि आमलकी एकादशी थी, रात्रि जागरण के समय एक भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी वहां आया और वहीं रुक गया। क्षुधित होने पर भी उसने भगवान का दर्शन किया, कथा श्रवण किया रात्रिजागरण भी कर लिया।

मृत्यु के उपरांत अगले जन्म में एकादशी के प्रभाव से जयंतीनगरी के राजा विदूरथ के यहाँ पुत्र रूप में जन्म लिया जिसका नाम वसुरथ रखा गया। राजा बनने के बाद एक समय शिकार करते हुये वह भटक गया और म्लेच्छों के बीच फंस गया।

म्लेच्छों में अपने शत्रु राजा को मारने का प्रयास किया जिससे डरकर राजा मूर्छित हो गया किन्तु फिर भी किसी अस्त्र-शस्त्र का राजा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा उल्टे म्लेच्छ ही थक गये और तभी राजा के शरीर से एक सर्वांगसुन्दरी देवी प्रकट होकर उन म्लेच्छों का संहार कर देती है। होश आने पर राजा को आश्चर्य होता है तो आकाशवाणी होती है कि भगवान केशव के अतिरिक्त शरणागत की रक्षा करने वाला और कौन है। प्रसन्नचित्त राजा सकुशल पुनः घर वापस आ गया।

  • आमलकी एकादशी फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष में होती है।
  • इसके अधिदेवता केशव हैं।
  • इससे सभी पापों का नाश हो जाता है।
  • इस एकादशी को करने से १००० गोदान का पुण्य प्राप्त होता है।

9. पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

चैत्र मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम पापमोचनी एकादशी है। कथा के अनुसार कुबेर के चैत्ररथ वन में च्यवन मुनि का आश्रम था जहाँ उनके पुत्र मेधावी मुनि भी तपस्या करते थे। उस वन में विहार करने के लिए इंद्र भी आया करते थे। एक बार उनके साथ आयी अप्सरा मंजुघोषा मेधावी मुनि पर मोहित हो गयी और उन्हें आकर्षित करने का प्रयास करने लगी जिसमें कामदेव ने भी शंकर भगवान से वैर को याद करके उसका साथ दिया।

मेधावी मुनि मंजुघोषा के साथ बहुत समय तक विषयभोग करते रहे तो मंजुघोषा ने वापस स्वर्ग जाने की अनुमति मांगी। इस पर मेधावी मुनि ने कहा कि अभी संध्या को आयी ही हो प्रातः काल तक रूको। श्राप के डर से मंजुघोषा रूकी रही और इसी तरह समय व्यतीत होता रहा। ५७ वर्ष ९ माह ३ दिन बाद पुनः उसने जाने की इच्छा व्यक्त की तो मुनि ने कहा अभी सबेरा हुआ ही है संध्या कर लेने दो। इस पर मंजुघोषा ने कहा आपकी संध्या कितने वर्षों की होगी ?

थोड़ा समय का विचार करें तब मेधावी मुनि ने समय का विचार किया तो बहुत क्रोधित हो गये और तप भंग करने का दोषी मानकर मंजुघोषा को पिशचिनी होने का श्राप दे दिया। पुनः अनुनय विनय करने पर श्रापमुक्ति के लिए चैत्र माह के कृष्णपक्ष की पापमोचनी एकादशी उपदेश करके पिता च्यवन के पास उपस्थित हुये तो उन्हें भी प्रायश्चित्त हेतु पापमोचनी एकादशी व्रत का ही उपदेश मिला।

पापमोचनी एकादशी करके दोनों पापमुक्त हो गये। मंजुघोषा पुनः अप्सरा का दिव्य स्वरूप प्राप्त करके स्वर्गलोक चली गयी और मेधावी मुनि तपस्या करने लगे।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
  • पापमोचनी एकादशी चैत्र मास के कृष्णपक्ष में होती है।
  • इस एकादशी के प्रभाव से ब्रह्महत्या, मदिरापान, भ्रूणहत्या आदि पापों का नाश हो जाता है।
  • इस कथा को पढ़ने-सुनने से सहस्र गोदान का पुण्य प्राप्त होता है।
  • यह एकादशी भी पिशाचत्व, प्रेतत्व का नाश करने वाली है।

10. कामदा एकादशी व्रत कथा

चैत्र मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम कामदा एकादशी है। कथा के अनुसार रत्नपुर में नागों के साथ उसका मदोन्मत्त राजा पुण्डरीक निवास करता था। वहीं पर ललिता नाम की अप्सरा और ललित नामक गन्धर्व भी रहता था।

एक समय सभा में नृत्य प्रस्तुत करते समय दोनों से भूल हो गयी जिसे कर्कोट नाग ने राजा पुण्डरीक को बताया तो क्रोधित राजा ने ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। ललिता राक्षस स्वरूप वाले ललित के साथ वनों में भटकते हुये एक समय विंध्याचल शिखर पर शृंगी के पास पहुँच गयी और भेंट होने पर विनम्रता पूर्वक सारी रामकथा सुनाई तो शृंगी ऋषि ने उसे कामदा एकादशी करके उसका पुण्य पति को प्रदान करने का उपदेश दिया।

ललिता ने वैसा ही किया और कामदा एकादशी के प्रभाव से ललित गन्धर्व श्रापमुक्त हो गया।

  • कामदा एकादशी चैत्रमास के शुक्ल पक्ष में होती है।
  • यह एकादशी भी सभी प्रकार के पापों से मुक्त करती है।
  • विभिन्न प्रकार के श्राप, नजर आदि दोषों के निवारण हेतु कामदा एकादशी का व्रत करना चाहिए।

11. वरूथिनी एकादशी व्रत कथा

वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम वरूथिनी एकादशी है। इस एकादशी की कथा में एकादशी व्रत की विशेष विधियों और नियमों का वर्णन किया गया है। यह एकादशी पुनर्जन्म के दुःख से मुक्ति प्रदान करती है।

राजा मान्धाता, धुन्धुमार इसी व्रत के प्रभाव से स्वर्ग गये। भगवान शंकर भी इसी व्रत को करके ब्रह्मकपाल से मुक्त हुये।

सभी प्रकार के दानों में विद्यादान का अत्यधिक महत्व है, वरूथिनी एकादशी विद्यादान और रत्नों से अलंकृत कन्यादान के सामान पुण्य प्रदान करने वाली है। कांसे के बर्तन में भोजन, मांस, मसूर, चना, कोदो, शाक, शहद, परान्न, पुनर्भोजन रतिक्रिया ये सभी दशमी को भी वर्जित कहे गए हैं। जुआ खेलना, शयन करना, पान खाना, दातुन करना, परनिंदा, चुगली और पापियों के साथ सम्भाषण, क्रोध, असत्यभाषण एकादशी को निषिद्ध किया गया है।

कांस्यपात्र में भोजन, मांस, मसूर, शहद, मिथ्याभाषण,व्यायाम, परिश्रम, पुनर्भोजन, मैथुन, क्षौर, तेल लगाना और परान्न द्वादशी को वर्जित होता है।

  • वरूथिनी एकादशी वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में होती है।
  • इससे सभी प्रकार के पापों का नाश होता है।
  • यह एकादशी सौभाग्यकारक है।
  • जिसे यमराज का भय हो वह इस एकादशी को अवश्य करे।
  • इस कथा को पढ़ने-सुनने से सहस्र गोदान का पुण्य प्राप्त होता है।

12. मोहिनी एकादशी व्रत कथा

वैशाख मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम मोहिनी एकादशी है। सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती पुरी का राजा द्युतिमान था। उसी नगरी में धनपाल नामक एक धनी वैश्य भी था जिसके पांच पुत्र थे – सुमन, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत और धृष्टबुद्धि। पांचवां पुत्र धृष्टबुद्धि पापाचारी था।

तंग आकर पिता और बंधु-बांधवों ने उसका त्याग कर दिया। जब उसके शरीर के आभूषण समाप्त हो गये तो वेश्याओं ने भी त्याग दिया। फिर वह चोरी करने लगा; कई बार सिपाहियों ने छोड़ भी दिया लेकिन अंततः राजा के पास पकड़कर ले गए तो राजा ने देशनिकाला दे दिया।

अब धृष्टबुद्धि जंगल में हिंसारत रहने लगा। एक समय पूर्वपुण्य के उदय होने पर वह कौण्डिन्य ऋषि के आश्रम पहुँच गया जहाँ कौण्डिन्य ऋषि के वस्त्रों से गिरने वाले जल का स्पर्श होने पर उसे अपूर्व शांति की प्राप्ति हुई। फिर उसने कौण्डिन्य ऋषि से पापमुक्ति और उद्धार का उपाय पूछा तो उन्होंने मोहिनी एकादशी का उपदेश किया जिसको करने से उसे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हुई।

  • मोहिनी एकादशी वैशाख मास के शुक्लपक्ष में होती है।
  • यह एकादशी सुमेरु पर्वत के सामान पापों को भी नष्ट करने वाली है।
  • इस कथा को पढ़ने-सुनने से सहस्र गोदान का फल प्राप्त होता है।

13. अपरा एकादशी व्रत कथा

ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम अपरा एकादशी है। अपरा एकादशी से अधिक पुण्य प्रदान करने वाला अन्य कोई तीर्थ, व्रत आदि नहीं है। इसकी कथा में इसके माहात्म्य का उल्लेख किया गया है। पापरूपी वृक्ष को काटने के लिये यह कुल्हाड़ी के समान है तो पापरूपी ईंधन या वन को जलाने के लिये अग्नि के समान, पापरूपी अंधकार के लिये सूर्य के समान तो पापरूपी मृग के लिये सिंह के सामान है।

  • अपरा एकादशी ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में होती है।
  • इसकी कथा कहने-सुनने से सभी पापों का शमन हो जाता है।

14. निर्जला एकादशी व्रत कथा

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम निर्जला एकादशी है। इस एकादशी को भीमसेन ने भी किया था इसलिये इसका दूसरा नाम भीमसेनी एकादशी भी है। जो सभी एकादशी न कर सके उसे भी वर्ष में इस एक एकादशी का निर्जल व्रत अवश्य ही करना चाहिये। एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल नहीं पीने पर निर्जला कहा जाता है।

स्नान और आचमन के लिये जल निषेध नहीं है किन्तु आचमन विधि के अनुसार ही करना चाहिये न कि बार-बार आचमन करके जल पीना चाहिये। इसके अतिरिक्त इसमें विशेषतः दान करने की विधि कही गयी है। अक्षय तृतीया और अक्षय नवमी को किया गया पुण्य कर्म जिस तरह अक्षयफल देने वाला होता है उसी तरह निर्जला एकादशी के दिन का पुण्य भी अक्षय होता है।

  • निर्जला एकादशी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में होती है।
  • इसका एक अन्य नाम भीमसेनी एकादशी भी है।
  • जो सभी एकादशी नहीं करते उन्हें भी यह एकादशी अवश्य करना चाहिये।
  • निर्जला एकादशी को विधिवत करने से सभी एकादशियों को करने का पुण्य प्राप्त होता है।

15. योगिनी एकादशी व्रत कथा

आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। कथा के अनुसार अलकापुरी के राजा कुबेर भगवान शिव के परमभक्त थे। उनके यहाँ हेममाली नाम का एक यक्ष था जिसकी सुंदरी पत्नी का नाम विशालाक्षी था। हेममाली यक्ष शिवपूजन के लिये मानसरोवर से पुष्प लेकर कुबेर को नित्य देता था।

एक दिन काममोहित हेममाली दोपहर बाद भी पुष्प देने नहीं पहुंचा तो कुपित होकर कुबेर ने अन्य यक्षों को कारण ज्ञात करने के लिये कहा। अन्य यक्षों ने जब कुबेर को बताया कि हेममाली रमणरत है तो कुबेर और कुपित होकर तुरंत बुलाने के लिये कहा। भयभीत हेममाली कांपता हुआ कुबेर के सम्मुख प्रस्तुत हुआ तो कुबेर ने उसे श्राप दे दिया कि उसे श्वेत कुष्ठ हो जाये, स्त्री से सदा वियोग रहे और स्थानभ्रष्ट होकर नीचगति को प्राप्त हो जाये।

श्रापित हेममाली निर्जन वन में क्षुधातृष्णातुर होकर भटकने लगा केवल पूर्व शिव सेवा के पुण्य से उसकी स्मरणशक्ति बनी रही। एक दिन संयोग से वह हिमालय पर मार्कण्डेय मुनि के आश्रम के पास पहुंचा और अपने पाप की ग्लानि के कारण दूर से ही दंडवत प्रणाम किया तो मार्कण्डेय मुनि ने निकट बुलाकर दुःख का कारण पूछा और हेममाली ने सारा पूर्ववृतान्त सच-सच बता दिया।

सज्जन स्वभावतः परोपकारी होते हैं और मार्कण्डेय मुनि ने उसे श्रापमुक्ति हेतु योगिनी एकादशी का उपदेश दिया जिसको करने से हेममाली श्रापमुक्त हो गया।

  • योगिनी एकादशी आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष में होती है।
  • इसको करने से बड़े-बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं।

16. देवशयनी एकादशी व्रत कथा

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम देवशयनी एकादशी है। इसका एक अन्य नाम पद्मा एकादशी भी है। कथा के अनुसार सतयुग में एक सूर्यवंशी राजा मान्धाता विख्यात हुये जो धर्मपूर्वक प्रजा पालन करते थे और उनका राज्य हर तरह से संपन्न था।

एक बार पूर्व पाप के कारण अकाल पड़ गयी और सारे धर्म-कर्म का भी लोप हो गया। ३ वर्षों बाद प्रजा व्याकुल होकर राजा के पास वर्षा हेतु उचित प्रयत्न का प्रस्ताव लेकर पहुंची तो मान्धाता सेना के साथ वन में ऋषि-मुनियों के आश्रम में भटकने लगे।

दैवकृपा से एक दिन उन्हें अङ्गिरा का दर्शन प्राप्त हुआ तो दंडवत करके सारी व्यथा सुनाते हुये समाधान के लिये उपाय पूछा। इस पर अङ्गिरा ऋषि ने कहा कि यह सतयुग है और सतयुग में शूद्रों को तपस्या करने का अधिकार नहीं है, तुम्हारे राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है जिसका तुम्हें वध करना होगा।

इसपर राजा मान्धाता ने कहा कि किसी निरपराधी तपस्यारत को मारने में मैं समर्थ नहीं हूँ, कृपया कोई अन्य धर्माचरण का उपदेश करें। फिर अङ्गिरा ऋषि ने पद्मा एकादशी का उपदेश दिया, राजा और प्रजा सबने पद्मा एकादशी का व्रत किया जिसके प्रभाव से शीघ्र प्रचुर वर्षा हो गयी। इसके साथ ही इसी दिन चातुर्मास्य का आरम्भ होता है और भगवान विष्णु को शयन कराया जाता है। कथा में चातुर्मास्य की भी विशेष चर्चा करते हुये दान के विषय में बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है।

  • पद्मा एकादशी या देवशयनी एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में होती है।
  • इसके अधिदेवता भगवान हृषिकेश हैं।
  • इस एकादशी को करने से विभिन्न प्रकार के उपद्रवों का शमन होता है।

17. कामिका एकादशी व्रत कथा

श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम कामिका एकादशी है। इस एकादशी की कथा में विशेषतः एकादशी व्रत का माहात्म्य वर्णित है जिसको सुनने मात्र से भी वाजपेय यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है। ब्रह्महत्या – गर्भहत्या जैसे जघन्य पाप भी इस एकादशी के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी की कथा में भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है यह भी बताया गया है।

  • कामिका एकादशी श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में होती है।
  • इसमें भगवान श्रीधर के नाम से पूजा करनी चाहिये।

18. पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। कथा के अनुसार द्वापर युग में माहिष्मती पुरी में महीजित नामक धर्मात्मा राजा हुआ जिसको वृद्धावस्था तक भी पुत्रप्राप्ति नहीं हुई और इसलिये राजा चिंतित रहता था।

एक आमसभा बुलाकर राजा ने बताया कि हमनें इस जन्म में कोई पाप नहीं किया है फिर भी हमें किस कारण से पुत्र-प्राप्ति नहीं हुई इसका विचार करें। सबने चर्चा करके लोमश ऋषि के पास जाने का निर्णय लिया। राजा-प्रजा सभी लोमश ऋषि के आश्रम गये। राजा-प्रजा की समस्या सुनकर लोमश ऋषि ने बताया की यह राजा पूर्व जन्म में एक क्रूर वैश्य था जिसनें एक समय नवप्रसूता गौ को जलाशय से भगा दिया क्योंकि इसे स्वयं भी जल पीना था। इसी पाप के कारण इसे पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही है।

पुत्रदा एकादशी का पुण्य इसे पुत्र प्रदान करने में सक्षम है। हर्षित होकर राजा-प्रजा सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया, प्रजा ने अपने व्रत का पुण्य राजा को प्रदान कर दिया और पुत्रदा एकादशी के प्रभाव से उस राजा को शीघ्र ही पुत्र की प्राप्ति हो गई।

  • पुत्रदा एकादशी श्रावण मास के शुक्लपक्ष में होती है।

19. अजा एकादशी व्रत कथा

भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा एकादशी है। कथा कुछ इस प्रकार है, सत्यवादी हरिश्चंद्र की कथा से सभी परिचित ही हैं, जब चांडाल के यहाँ उन्होंने स्वयं का विक्रय कर दिया और दुःखों का भोग कर रहे थे तो स्वभावतः उपकार करने के लिये घूमने वाले ब्राह्मण गौतम मुनि उनके पास आये।

सत्यवादी हरिश्चंद्र ने उनको आपबीती सुनाई तो गौतम मुनि को भी विस्मय हो गया। गौतम मुनि ने सातवें दिन पड़ने वाली अजा एकादशी का उपदेश राजा हरिश्चंद्र को दिया, जिसे करने के बाद वो दुःख से निवृत्त हो गये।

  • अजा एकादशी भाद्र मास के कृष्ण पक्ष में होती है।
  • इसके अधिदेवता भगवन हृषिकेश हैं।

20. परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा

भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम परिवर्तिनी एकादशी है। शयन किये भगवान विष्णु का इस एकादशी में पार्श्व परिवर्तन (करवट बदलना) होता है इसीलिए इस एकादशी का नाम परिवर्तिनी एकादशी है, अन्य नाम वामन एकादशी, जयंती एकादशी भी है।

कथा के अनुसार राजा बलि से वामन भगवान ने इसी दिन तीन पग भूमि में सब-कुछ लेकर उसे पाताल लोक भेजकर सदा उसके पास रहने का वचन दिया था। भगवान विष्णु एक रूप से क्षीरसागर में और दूसरे रूप से पाताल में राजा बलि के यहां भी निवास करते हैं।

  • वामन या जयंती एकादशी भाद्र मास के शुक्ल पक्ष में होती है।
  • इसके अधिदेवता भगवान वामन हैं।
  • वामन एकादशी की कथा सुनने से अश्वमेध यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है।

21. इन्दिरा एकादशी व्रत कथा

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम इन्दिरा एकादशी है। सतयुग में इन्द्रसेन नामक एक राजा हुआ जो धर्मपूर्वक माहिष्मतीपुरी पर राज करता था।

एक दिन उसकी सभा में नारद जी आये, राजा ने आदर-सत्कार करके आने का प्रयोजन जानना चाहा तो नारद जी ने बताया की पूर्वकाल में आपके पिता के व्रत में विघ्न आ गया था जिस कारण वो स्वर्ग नहीं जा सके हैं। आपके पिता यमराज के निकट रहते हैं उन्होंने आपके लिये कहा है कि इन्दिरा एकादशी का व्रत करके उसका पुण्य उनको प्रदान करें ताकि वो स्वर्ग जा सकें। फिर राजा के पूछने पर नारद जी ने व्रत का विधि-विधान भी बताया जिसे करने से राजा के पिता विमान पर आरूढ़ होकर स्वर्ग चले गए।

  • इन्दिरा एकादशी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में होती है।
  • इन्दिरा एकादशी की कथा सुनने से वाजपेय यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है।
  • पितृपक्ष में पड़ने वाली यह एकादशी पितरों के लिये भी तृप्तिकारक बताई गयी है।

22. पापांकुशा एकादशी व्रत कथा

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। पापों के लिये यह एकादशी अंकुश के सामान है इसीलिये इसका नाम पापांकुशा एकादशी है। मनुष्य जब तक पापांकुशा एकादशी नहीं करता है तब तक उसके शरीर का पाप नष्ट नहीं होता। इस एकादशी के प्रभाव से मनोकामना की पूर्ति होती है एवं स्वर्ग/मोक्ष के द्वार भी खुल जाते हैं।

  • पापांकुशा एकादशी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में होती है।
  • इसके अधिदेवता पद्मनाभ कहे गए हैं।

23. रमा एकादशी व्रत कथा

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा एकादशी है। कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक प्रतापी राजा हुए जिनका नाम मुचुकुन्द था और उनकी मित्रता इन्द्र तक से थी। वो विष्णुभगवान के परमभक्त थे और उनके राज्य में सबको एकादशी करना अनिवार्य था। उनकी पुत्री का नाम चंद्रभागा था जिसका विवाह शोभन के साथ हुआ था।

एक बार अत्यंत दुर्बल शोभन भी एकादशी के अवसर पर ही ससुराल आ गया जिससे उसकी पत्नी चिंतित हो गई की वह एकादशी का उपवास कैसे करेगा ? अंततः शोभन ने एकादशी कर लिया लेकिन अगली सुबह होते ही उसकी मृत्यु हो गई। व्रत के प्रभाव से वह मन्दराचल पर्वत पर देवपुर का राजा बन गया।

एक समय तीर्थ यात्रा करते हुये मुचुकुंदपुर निवासी सोमशर्मा ब्राह्मण वहां पहुंचे तो शोभन को देखकर आश्चर्यचकित हो गए। शोभन ने बताया की यह देवपुर उसे रमा एकादशी के प्रभाव से प्राप्त हुआ है किन्तु श्रद्धारहित करने से यह अस्थिर है। यदि चंद्रभागा को ये बात बताई जाय तो वो इसे लोक को अटल कर सकती है।

सोमशर्मा ने वापस आकर चंद्रभागा को शोभन के देवपुर का प्रसंग बताया तो वह वहां ले जाने लिये कहने लगी। सोमशर्मा उसे वामदेव मुनि के पास ले गये जिनके अभिमंत्रित जल छिड़कने से चंद्रभागा के शरीर भी दिव्य हो गया और वह देवपुर अपने पति शोभन के पास पहुँच गयी और अपने एकादशी व्रत के पुण्य से चंद्रभागा ने उस लोक को भी स्थिर कर दिया।

  • पापांकुशा एकादशी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में होती है।

24. देवोत्थान एकादशी व्रत कथा

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम देवोत्थान एकादशी है। इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है और देव उठनी एकादशी भी इसी को कहते हैं। एकभुक्त करने से १ जन्म के पाप का नाश होता है, नक्तव्रत करने से २ जन्मों के पाप का नाश होता है और उपवास करने से ७ जन्मों के पाप का नाश होता है। देवोत्थान एकादशी नहीं करने पर जन्मभर के सभी पुण्य वृथा हो जाते हैं।

इस कथा में एकादशी के नियमों की विस्तृत चर्चा की गयी है साथ ही दान के ऊपर भी विशेष चर्चा है। वर्त्तमान में चिंताजनक ये है कि व्रत करने वालों को न ही नियमों/विधियों का पालन करना स्वीकार है और दान शब्द की चर्चा भी नहीं चाहते। तुलसी विवाह कब होता है – देवोत्थान एकादशी को ही होता है।

  • देवोत्थान एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में होती है।
  • इसे प्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी भी कहते हैं।

जिस एकादशी के अधिदेवता का वर्णन नहीं मिलता है उसमें भगवान विष्णु का नाम समझना चाहिये। एकादशी व्रत का विधि-विधान या नियम, पूजा मंत्र, पूरी कथा आदि क्रमशः प्रस्तुत किये जायेंगे।

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