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महाकुंभ कब लगता है – mahakumbh kab lagta hai

महाकुंभ कब लगता है - mahakumbh kab lagta hai

भारत साधना भूमि है और भारतीय सदैव देवताओं की आराधना, पूजा, साधना आदि में संलिप्त रहते हैं। वर्ष पर्यन्त कोई न कोई व्रत-पर्व आदि करते ही रहते हैं और इसका कारण है आत्मकल्याण की चाह। सामान्य व्रत-पर्वों के अतिरिक्त विशेष स्थितियों में कुछ विशेष व्रत-पर्व भी होते हैं जैसे मलमास, कुम्भ, अर्द्धकुम्भ। इस आलेख में कुम्भ अर्थात महाकुम्भ विषयक चर्चा की गयी है जो महाकुम्भ कब लगता है, कहां लगता है, कब है आदि जानकारी प्रदान करता है।

महाकुंभ कब लगता है – mahakumbh kab lagta hai

देवासुर संग्राम में भगवान विष्णु की प्रेरणा से अमृत प्राप्ति के लिये देव-दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। समुद्रमंथन में मदरांचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाकर बनाया गया। समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले और अंत में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं और दैत्यों में उसे पाने के लिए पुनः युद्ध आरंभ हो गया जो 12 दिन तक चलता रहा।

युद्धक्रम में पृथ्वी के 4 स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत की बूँदें गिरी। युद्ध शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर छल से देवताओं को अमृत पिला दिया। अमृत पीकर देवताओं ने दैत्यों को मार भगाया। काल गणना के आधार पर देवताओं का एक दिन पृथ्वी के वर्षतुल्य होता है। इस कारण हर 12 वर्षों में (देवताओं के 12 दिनों में) इन चारों स्थानों पर महाकुंभ होता है।

अन्य प्रकरण में इस प्रकार का वर्णन भी प्राप्त होता है कि अमृत कलश को स्वर्ग लोक तक ले जाने में इंद्र के पुत्र जयंत को 12 दिन लगे। इसी क्रम में कुम्भ से अमृत की बूंदे इन चारों तीर्थों पर गिरी और तबसे इन चारों तीर्थों में कुम्भ होता है।

महाकुंभ मेला कहां लगता है

कुम्भ बारह-बारह वर्ष के अन्तर से चार मुख्य तीर्थों में लगने वाला स्नान-दान का ग्रहयोग है। इसके चार स्थल प्रयाग, हरिद्वार, नासिक (पंचवटी) और अवन्तिका (उज्जैन) हैं। इस प्रक्रार अमृत कुम्भ से चार स्थलों पर अमृत की बूंदे गिरी थी – प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में। अतः इन्हीं चारों स्थानों पर विशेष राशियों में गुरु, सूर्य और चंद्र की स्थिति के आधार पर कुम्भ पर्व होता है। कुम्भ योग ग्रहों की निम्न स्थिति के अनुसार बनता है ।

महाकुंभ मेला कब लगता है

इसके पश्चात् यह भी महत्वपूर्ण प्रश्न है कि कुम्भ कब लगता है। कुम्भ का निर्णय बार्हस्पत्य संवत्सर के आधार पर होता है। बार्हस्पत्य संवत्सर का तात्पर्य है कि गुरु एक राशि में एक वर्ष रहता है इस प्रकार 12 राशियों के एक चक्र में गुरु को 12 वर्ष लगते हैं। संवत्सर का निर्धारण भी गुरु के आधार से ही होता है। कुम्भ कब और कहां लगेगा इसका निर्धारण गुरु और सूर्य-चंद्र की स्थिति के आधार पर होता है। इस विशेष स्थिति का शास्त्रों में वर्णन मिलता है जो आगे दिया गया है :

प्रयाग में कुंभ योग

मेषराशिगतेजीवे मकरे चन्द्रभास्करौ। अमावस्या तदा योगः कुम्भख्यस्तीर्थ नायके॥
मकरे च दिवानाथे वृष राशि स्थिते गुरौ। प्रयागे कुंभयोगो वै माघ मासे विधुक्षयै॥
माघामायां मृगे भानौ मेषराशिस्थिते गुरौ। कुम्भयोगो भवेत्तत्र प्रयागे त्वतिदुर्लभः॥

जब सूर्य एवं चंद्र मकर राशि में होते हैं और अमावस्या होती है तथा मेष अथवा वृषभ के बृहस्पति होते हैं तो प्रयाग में कुम्भ महापर्व का योग होता है। प्रयागराज में अत्यंत दुर्लभ कुंभ योग होता है। इस प्रकार गुरु मेष अथवा वृषभ दोनों में से किसी राशि में स्थित हों और माघ की अमावास्या को सूर्य और चंद्र दोनों मकर राशि में स्थित हों तो प्रयाग में दुर्लभ कुम्भ योग होता है। इस अवसर पर त्रिवेणी में स्नान करना सहस्रों अश्वमेध यज्ञों, सैकड़ों वाजपेय यज्ञों तथा एक लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से भी अधिक पुण्य प्रदान करता है।

हरिद्वार में कुंभ योग

पद्मिनीनायके मेषे कुम्भ राशि गते गुरोः। गंगाद्वारे भवेद्योगः कुम्भ नामा तथोत्तमाः॥ – कृत्यमंजरी

जिस समय गुरु कुम्भ राशि पर और सूर्य मेष राशि पर हो, तब हरिद्वार में कुम्भ पर्व होता है। मेष राशि कथन का तात्पर्य वैशाख मास भी है, अर्थात वैशाख की अमावास्या को जब सूर्य और चंद्र दोनों मेष राशि में हों और गुरु कुम्भ राशि में हो तो गंगाद्वार अर्थात हरिद्वार में उत्तम कुम्भयोग होता है।

नासिक में कुंभ योग

जब गुरु सिंह में हों तो सूर्य व चंद्र भी सिंह में एकत्र हों, अर्थात भाद्र की अमावास्या को यदि चन्द्रमा सिंह राशि का हो तो गोदावरी तट अर्थात नासिक में मुक्ति दायक कुम्भ योग बनता है। इसी प्रकार कर्क में गुरु-सूर्य-चंद्र तीनों हों तो भी गोदावरी तट अर्थात नासिक में कुम्भ योग होता है। गुरु-सूर्य-चंद्र तीनों का तात्पर्य यह भी है कि अमावास्या तिथि भी हो।

सिंह राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ। गोदावर्यां भवेत् कुम्भो जायते खलु मुक्तिदः॥
कर्के गुरूस्तथा भानुचन्द्रश्चन्द्रर्क्षगतस्था। गोदावर्यां तदा कुम्भो जयातेSवनि मण्डले॥

उज्जैन में कुंभ योग

मेष राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ । उज्जियन्यां भवेत् कुम्भः सदामुक्‍ति प्रदायकः॥

इसी प्रकार यदि गुरु सिंह राशि में हो और सूर्य मेष राशि में तो उज्जैन में कुम्भ योग होता है।

कुम्भ-पर्वके स्नान – दिन

कुम्भका पर्व हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक – इन चार तीर्थस्थानोंमें मनाया जाता है। ये चारों ही एकसे बढ़कर एक परम पवित्र तीर्थ हैं । इन चारों तीर्थोंमें प्रत्येक बारह वर्षके बाद कुम्भ-पर्व होता है—
गंगाद्वारे प्रयागे च धारागोदावरीतटे।
कुम्भाख्येयस्तु योगोऽयं प्रोच्यते शङ्करादिभिः ॥
‘गंगाद्वार (हरिद्वार), प्रयाग, धारानगरी (उज्जैन) और गोदावरी (नासिक) – में शंकरादि देवगणने ‘कुम्भयोग’ कहा है।’ कुम्भ भगवान्‌का मंदिर है । इसकी झाँकी उक्त चारों स्थानोंमें प्रत्येक बारहवें वर्षमें होती है । हरिद्वार आदि चारों स्थानोंके कुम्भ- -पर्वका अलग- अलग समय तथा महत्त्व आदि विषयोंका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार प्रस्तुत है—
(१) हरिद्वार

पद्मिनीनायके मेषे कुम्भराशिगते गुरौ ।
गंगाद्वारे भवेद्योगः कुम्भनामा तदोत्तमः ॥
(स्कन्दपुराण)
‘जिस समय बृहस्पति कुम्भ राशिपर स्थित हो और सूर्य मेष राशिपर रहे, उस समय गंगाद्वार (हरिद्वार) – में कुम्भ – योग होता है । ‘
अथवा
वसन्ते विषुवे चैव घटे देवपुरोहिते ।
गंगाद्वारे च कुम्भाख्यः सुधामेति नरो यतः ॥

हरिद्वारमें कुम्भके तीन स्नान होते हैं । यहाँ कुम्भका प्रथम स्नान शिवरात्रिसे प्रारम्भ होता है । द्वितीय स्नान चैत्रकी अमावास्याको होता है । तृतीय स्नान (प्रधान स्नान ) चैत्रके अन्तमें अथवा वैशाखके प्रथम दिनमें अर्थात् जिस दिन बृहस्पति कुम्भ राशिपर और सूर्य मेष राशिपर हो उस दिन कुम्भस्नान होता है ।

(२) प्रयाग

मेषराशिं गते जीवे मकरे चन्द्रभास्करौ ।
अमावास्या तदा योगः कुम्भाख्यस्तीर्थनायके ॥
(स्कन्दपुराण)
१- दक्षाङ्गुष्ठं परेऽङ्गुष्ठे क्षिप्त्वा हस्तद्वयेन च।
सावकाशां मुष्टिकां च कुर्यात् सा कुम्भमुद्रिका ॥

‘जिस समय बृहस्पति मेष राशिपर स्थित हो तथा चन्द्रमा और सूर्य मकर राशिपर हो तो उस समय तीर्थराज प्रयागमें कुम्भ- योग होता है।’
अथवा
करे च दिवानाथे ह्यजगे च बृहस्पतौ।
कुम्भयोगो भवेत्तत्र प्रयागे ह्यतिदुर्लभः ॥
प्रयागमें कुम्भके तीन स्नान होते हैं। यहाँ कुम्भका प्रथम स्नान मकरसंक्रान्ति (मेष राशिपर बृहस्पतिका संयोग होने)-से प्रारम्भ होता है।
द्वितीय स्नान (प्रधान स्नान) माघ कृष्णा मौनी अमावास्याको होता है। तृतीय स्नान माघ शुक्ला वसन्तपंचमीको होता है।
( ३) उज्जैन (अवन्तिका)
मेष राशि गते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ।
उज्जयिन्यां भवेत् कुम्भः सदा मुक्तिप्रदायकः ॥
‘जिस समय सूर्य मेष राशिपर हो और बृहस्पति सिंह राशिपर हो तो उस समय उज्जैनमें कुम्भ-योग होता है।’
(४) सिंहस्थ कुम्भ, नासिक-त्र्यम्बकेश्वर

सिंहराशिं सूर्ये सिंहराशि बृहस्पतौ।
गोदावर्यां भवेत्कुम्भ भक्तिमुक्तिप्रदायकः ॥
‘जिस समय सूर्य तथा बृहस्पति सिंह राशिपर हों तो उस समय नासिकमें मुक्तिप्रद कुम्भ होता है।’
गोदावरीके रम्य तटपर स्थित नासिकमें कुम्भ मेला लगता है। इसके लिये सिंह राशिका बृहस्पति एवं सिंह राशिका सूर्य आवश्यक है। इस पर्वका स्नान भाद्रपदमें अमावास्या-तिथिको होता है। देवगुरु बृहस्पति जबतक विश्वात्मा सूर्यनारायणके साथ सिंह राशिमें रहते हैं तबतकका समय सिंहस्थ कहलाता है | इस सिंहस्थ कालमें श्रीनासिक तीर्थकी यात्रा, पवित्र गोदावरी नदीमें स्नान एवं त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंगके दर्शन-लाभका बड़ा माहात्म्य है। यहीं पंचवटीमें भगवान् श्रीरामने वनवासका दीर्घकाल व्यतीत किया था।
हिन्दू-धर्मशास्त्र कुम्भ-पर्वकी महिमासे भरे पड़े हैं। स्कन्दपुराणका वचन है-
तान्येव यः पुमान् योगे सोऽमृतत्वाय कल्पते।
देवा नमन्ति तत्रस्थान् यथा रङ्का धनाधिपान् ॥
(स्कन्दपुराण)
‘ जो मनुष्य कुम्भ-योगमें स्नान करता है, वह अमृतत्व (मुक्ति)-की प्राप्ति करता है। जिस प्रकार दरिद्र मनुष्य सम्पत्तिशालीको नम्रतासे अभिवादन करता है, उसी प्रकार कुम्भ-पर्वमें स्नान करनेवाले मनुष्यको देवगण नमस्कार करते हैं। ‘

संक्षेपमें हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन तथा नासिकमें कुम्भ-स्नानका महत्त्व इस प्रकार है—
१. हरिद्वार-स्नानकी महिमा-
कुम्भराशिं गते जीवे तथा मेषे गते रवौ।
हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम् ॥
‘ कुम्भ राशिमें बृहस्पति हो तथा मेष राशिपर सूर्य हो तो हरिद्वारके कुम्भमें स्नान करनेसे मनुष्य पुनर्जन्मसे रहित हो जाता है। ‘
२. प्रयाग-स्नानकी महिमा-
सहस्त्रं कार्तिके स्नानं माघे स्नानशतानि च।
वैशाखे नर्मदा कोटिः कुम्भस्नानेन तत्फलम् ॥
(स्कन्दपुराण)
‘कार्तिक महीनेमें एक हजार बार गंगामें स्नान करनेसे, माघमें सौ बार गंगामें स्नान करनेसे और वैशाखमें करोड़ बार नर्मदामें स्नान करनेसे जो फल होता है, वह प्रयागमें कुम्भ-पर्वपर केवल एक ही बार स्नान करनेसे प्राप्त होता है। ‘
विष्णुपुराणमें भी कहा गया है-
अश्वमेधसहस्राणि वाजपेयशतानि च।
लक्षं प्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नानेन तत्फलम् ॥
‘ हजार अश्वमेध यज्ञ करनेसे, सौ वाजपेय यज्ञ करनेसे और लाखबार पृथ्वीकी प्रदक्षिणा करनेसे जो फल प्राप्त होता है, वह फल केवल प्रयागके कुम्भके स्नानसे प्राप्त होता है।’
३. उज्जैन-स्नानकी महिमा-
कुशस्थलीमहाक्षेत्रं योगिनां स्थानदुर्लभम्।
माधवे धवले पक्षे सिंहे जीवे अजे रवौ ॥
तुलाराशौ निशानाथे पूर्णायां पूर्णिमातिथौ।
व्यतीपाते सञ्जाते चन्द्रवासरसंयुते।
उज्जयिन्यां महायोगे स्नाने मोक्षमवाप्नुयात् ॥
(स्क ० पु ०, अवन्तीखण्ड)
अन्यत्र भी आया है-
‘धारायां च तदा कुम्भो जायते खलु मुक्तिदः।’
४. नासिक-स्नानकी महिमा-
षष्टिवर्षसहस्राणि भागीरथ्यवगाहनम्।
सकृद् गोदावरीस्नानं सिंहस्थे च बृहस्पतौ ॥
‘जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर हो उस समय गोदावरीमें केवल एक बार स्नान करनेसे मनुष्य साठ हजार वर्षोंतक गंगा-स्नान करनेके सदृश पुण्य प्राप्त करता है।’
ब्रह्मवैवर्तपुराणमें लिखा गया है-
अश्वमेधफलं चैव लक्षगोदानजं फलम्।
स्नानमात्रेण गोदायां सिंहगे गुरौ ॥
‘ जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हो, उस समय गोदावरीमें केवल स्नानमात्रसे ही मनुष्य अश्वमेध यज्ञ करनेका तथा एक लक्ष गो- दान करनेका पुण्य प्राप्त करता है।’
ब्रह्माण्डपुराणमें कहा गया है-
यस्मिन् दिने गुरुर्याति सिंहराशौ महामते।
तस्मिन् दिने महापुण्यं नरः स्नानं समाचरेत् ॥
कुम्भ-स्नानकी विधि एवं दानका महत्त्व

यस्मिन् दिने सुरगुरुः सिंहराशिगतो भवेत्।
तस्मिंस्तु गौतमीस्नानं कोटिजन्माघनाशनम् ॥
तीर्थानि नद्यश्च तथा समुद्राः क्षेत्राण्यरण्यानि तथाऽऽश्रमाश्च।
वसन्ति सर्वाणि च वर्षमेकं गोदातटे सिंहगते सुरेज्ये ॥

महाकुंभ 2025

महाकुम्भ

वर्ष 2025 में गुरु वृष राशि में स्थित हैं एवं गुरु यदि वृष राशि में स्थित हो तो “मकरे च दिवानाथे वृष राशि स्थिते गुरौ। प्रयागे कुंभयोगो वै माघ मासे विधुक्षयै॥” से यदि सूर्य एवं चंद्र मकर राशि में एकत्र हों माघ की अमावास्या को सूर्य और चंद्र यदि मकर राशि में हों तो तीर्थराज प्रयाग में कुम्भ योग होता है।

इस प्रकार का योग 2025 में बन रहा है 29 जनवरी, बुधवार को माघ मास की अमावास्या है और इस दिन सूर्य व चंद्र दोनों ही मकर राशि में स्थित हैं। गुरु तो पूर्व से वृष में स्थित है ही।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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