महाशिवरात्रि सनातन धर्म (हिन्दुओं) के लिये एक बहुत बड़ा महोत्सव होता है। महाशिवरात्रि को भगवान शंकर का व्रत है और देश का सबसे बड़ा महोत्सव होता है। अन्य व्रत-पर्वों की अपेक्षा महाशिवरात्रि के बारे में कब है यह जानने के लिये लोग कई दिनों नहीं की महीनों पहले से उत्सुक रहते हैं। इसी कारण इस आलेख में मात्र महाशिवरात्रि कब है 2025 की ही जानकारी नहीं अपितु 2025 – 2030 तक की जानकारी दी गई है साथ ही महाशिवरात्रि के विषय में अन्य महत्वपूर्ण चर्चा भी किया गया है।
महाशिवरात्रि विषयक गंभीर चर्चा एवं 2025, 2026, 2027, 2028, 2029 और 2030 में होने वाले महाशिवरात्रि व्रत का निर्णय होने के कारण यह आलेख विशेष महत्वपूर्ण है।
महाशिवरात्रि कब है – Mahashivratri kab hai
कण्ठे यस्य लसत्करालगरलं गङ्गाजलं मस्तके
वामाङ्गे गिरिराजराजतनया जाया भवानी सती ।
नन्दिस्कन्दगणाधिराजसहिता श्रीविश्वनाथप्रभुः
काशीमन्दिरसंस्थितोऽखिलगुरुर्देयात्सदा मङ्गलम् ॥
महाशिवरात्रि व्रत के नियम (व्रत निर्धारण के सूत्र)
महाशिवरात्रि कब है यह जानने से पहले ये जानना आवश्यक है कि महाशिवरात्रि कब मनाया जाना चाहिये ? महाशिवरात्रि व्रत कब मनाया जाए, इसके लिए शास्त्रों के अनुसार इस प्रकार से नियम निर्धारित किये गये हैं अर्थात महाशिवरात्रि निर्धारक सूत्र इस प्रकार हैं :
माघकृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि । शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः ॥
तत्कालव्यापिनीग्राह्या शिवरात्रि व्रते तिथि ॥ – ईशान संहिता
ईशान संहिता के इस वचन में अर्द्धरात्रि को मुख्य कर्मकाल बताया गया है। इसमें कहा गया है कि माघकृष्ण चतुर्दशी को महानिशा काल में करोड़ों सूर्य के समान प्रकाशित शिवलिङ्ग रूप में आदिदेव (भगवान शिव) प्रकट हुये। शिवरात्रि व्रत के लिये तत्काल (अर्द्धरात्रि) व्यापिनी तिथि को ग्रहण करना चाहिये।
अर्धरात्रादधश्चोर्ध्वं युक्तायत्रचतुर्दशी। तत्तिथावेव कुर्वीत शिवरात्रिव्रतं व्रती ॥
नार्द्धरात्रादधश्चोर्ध्वंयुक्तायत्रचतुर्दशी। नैवतत्र व्रतं कुर्यादायुरैश्वर्य हानितः ॥
पुनः और विशेष लक्षण स्पष्ट करते हुये कहा गया है कि : जिस दिन अर्द्धरात्रि के पहले और बाद भी चतुर्दशी उपलब्ध हो उसी दिन महाशिवरात्रि व्रत करना चाहिये। यदि अर्धरात्रि के पहले और बाद चतुर्दशी न हो तो उस दिन व्रत नहीं करना चाहिये क्योंकि ऐसा करना हानिकारक है। इस प्रकार यहां अर्धरात्रि युक्ता (निशीथ व्यापिनी) चतुर्दशी को महत्वपूर्ण बताया गया है। निषेध का तात्पर्य अर्द्धरात्रि का महत्व सिद्ध करना है न कि किसी भी दिन अर्द्धरात्रि में चतुर्दशी के अनुपलब्ध होने पर व्रतलोप करना। अन्य स्थितियों के लिये विभिन्न पुराणों में और भी अन्य कई प्रमाण हैं :
- त्रयोदशी यदा देवि दिनभुक्तिप्रमाणतः । जागरणे शिवरात्रिः स्यान्निशिपूर्णा चतुर्दशी॥ – स्कन्द पुराण
- अर्द्धरात्रात् पुरस्ताच्चेज्जयायोगो यदा भवेत् । पूर्वविद्धैव कर्त्तव्या शिवरात्रिः शिवप्रिये॥ – पद्म पुराण
- अर्द्धरात्रि युतायत्रमाघकृष्णचतुर्दशी ।शिवरात्रिव्रतंतत्रसोश्वमेधफलंलभेत् ॥ – नारद संहिता
महाशिवरात्रि व्रत के विषय में प्रदोषव्यापिनी और निशीथ व्यापिनी दोनों तरह के प्रमाण वचन प्राप्त होते हैं। लेकिन मुख्य पक्ष निशीथव्यापिनी को माना जाता है – “निशीथव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रिचतुर्दशी” तथापि प्रदोष पक्ष की भी अवहेलना नहीं की जाती और इस कारण महाशिवरात्रि के लिये प्रदोष और निशीथकाल दोनों में व्याप्त होनेवाली चतुर्दशी को माधवाचार्यादि ने उत्तम बताया है। सूत्रों के आधार पर महाशिवरात्रि व्रत निर्धारण के नियम हिंदी में इस प्रकार बताये जा सकते हैं :
- यदि दोनों दिन प्रदोष व्यापिनी हो तो पूर्वदिन निशीथव्यापिनी भी प्राप्त होगा इसलिये पूर्वदिन ही व्रत करे।
- पूर्वदिन व्रत के पक्ष में त्रयोदशीयुक्ता चतुर्दशी का भी वचन मिलता है और अमावस्या युक्ता चतुर्दशी का निषेध भी प्राप्त होता है अतः विशेष रूप से पूर्वदिन ही महाशिवरात्रि व्रत करना सिद्ध होता है।
- तथापि यदि पूर्वदिन निशीथव्यापिनी चतुर्दशी न हो और पर दिन अर्थात अगले दिन निशीथव्यापिनी चतुर्दशी हो तो अमावस्या युक्त होने पर भी दूसरे दिन ही महाशिवरात्रि व्रत होगा।
- यदि दोनों में से किसी भी दिन निशीथव्यापिनी चतुर्दशी प्राप्त न हो (ऐसा संयोग अत्यल्प ही संभव), यथा पूर्वदिन निशीथकाल के बाद चतुर्दशी आरम्भ हो और परदिन निशीथकाल से पूर्व ही समाप्त हो जाये तो परदिन अर्थात अगले दिन महाशिवरात्रि करना चाहये क्योंकि अगले दिन प्रदोषव्यापिनी प्राप्त होगा।
दिनमानप्रमाणेन या तु रात्रौ चतुर्दशी। शिवरात्रिस्तु सा ज्ञेया चतुर्दश्यां तु पारणं ॥ – गौतम
महाशिवरात्रि व्रत के लिये एक और विशेषता बताई गयी है – चतुर्दशी में ही पारण करना और इस कारण भी अधिकतर पूर्वदिन ही ग्राह्य सिद्ध होता है।
महाशिवरात्रि कब है 2025 की
- फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का आयोजन होता है।
- पञ्चाङ्गों के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 26 फरवरी 2025 बुधवार को मध्याह्न में 11 बजकर 08 मिनट पर होगा और अगले दिन यानी 27 फरवरी 2025 गुरुवार को पूर्वाह्न 8 बजकर 54 मिनट पर समाप्त होगी।
- क्योंकि, भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व प्रदोष काल में होता है; इसलिए 26 फरवरी 2025 बुधवार को ही महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा।
क्योंकि, भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व प्रदोष काल में होता है, साथ ही व्रत हेतु निशीथव्यापिनी होने का विधान है अतः वर्ष 2025 में 26 फरवरी, बुधवार को प्रदोषव्यापिनी व निशीथव्यापिनी दोनों चतुर्दशी प्राप्त होने से विवादरहित 26 फरवरी, बुधवार को ही सिद्ध होता है। ये दृश्य अर्थात दृक पंचांग से प्राप्त तिथ्यादि मानों द्वारा सिद्ध होता है।
अदृश्य पंचांगों में यद्यपि तिथि प्रारम्भ व समाप्ति काल कुछ घटी पूर्व ही दिया गया है तथापि इससे महाशिवरात्रि व्रत के निर्णय में किसी प्रकार का अंतर नहीं हो रहा है।
महाशिवरात्रि व्रत नियम
- व्रत के दौरान क्रोध, लोभ, और मोह जैसे नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
- दिन में सोना वर्जित है।
- झूठ बोलना, चोरी करना, और दूसरों को परेशान करना वर्जित है।
- दान-पुण्य करें।
- शिवालय में जाकर भगवान शिव का रुद्राभिषेक करें।
- शिवलिंग पर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल) अर्पित करें।
- बेलपत्र, धतूरा, फल, फूल, और मिठाई चढ़ाएं।
- ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।
- रात्रि जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है

- पृथ्वी की रचना पूरी होने के बाद, पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा कि भक्तों के किस अनुष्ठान से आपको सबसे अधिक प्रसन्नता होती है। भगवान ने कहा है कि, हे देवी फाल्गुन के महीने के दौरान कृष्णपक्ष की चतुर्दशी की रात मेरा प्रिय व्रत है।
- एक कथा के अनुसार भगवान शिव और पार्वती का विवाह इसी दिन हुआ था इसलिये यह व्रत विशेष महत्वपूर्ण है।
- यदि महाशिवरात्रि को सोमवार हो तो और अधिक पुण्यकारी होता है।
- जो व्यक्ति महाशिवरात्रि व्रत और भगवान शिव की अराधना करता है उसे नरक की यातना कभी नहीं सहनी पड़ती।
- तांत्रिकों के लिये यह रात्रि सिद्धिदायक होती है।
महाशिवरात्रि व्रत कथा
महा शिवरात्रि व्रत के संबंध में कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार – भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।
- वहीं श्री शिवधर्मोत्तर में महाशिवरात्रि की एक अन्य कथा कही गई है, जिसके अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला।
- वह थककर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए (बिल्वपत्रार्पण)।
- अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उनपर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं (जलाभिषेक)।
- ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया; जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे को झुका (नमन)।
- इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया।
तीसरी कथा चित्रभानु और उसकी पत्नी के बारे में है। चित्रभानु एक शिकारी था। एक दिन शिकार करते हुए वह जंगल में रास्ता भटक गया। थककर वह एक गुफा में सो गया। उसकी पत्नी घर में उसकी चिंता कर रही थी। उसने शिवरात्रि का व्रत रखा और भगवान शिव से अपने पति के जीवन की प्रार्थना की।
उसी समय चित्रभानु की नींद खुली। उसने देखा कि उसके सामने शिवलिंग है। उसने भी शिवलिंग की पूजा की और रात्रि जागरण किया। अगले दिन सुबह चित्रभानु घर वापस आ गया। पति–पत्नी ने मिलकर व्रत का पारण किया। शिवजी की कृपा से चित्रभानु को जीवनदान मिला और दोनों को सुखी जीवन प्राप्त हुआ।
महाशिवरात्रि का महत्व
जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो यदि जान-बूझ कर भक्तिभाव से महाशिवरात्रि व्रत और देवाधिदेव महादेव का पूजन किया जाय कितना अधिक फलदायी होगा।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में क्या अंतर है
फाल्गुन मास के अतिरिक्त अन्य मासों की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है लेकिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी महाशिवरात्रि कहलाती है।
शिवरात्रि :
- प्रत्येक महीने की कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि मनाई जाती है।
- इस दिन उपवास और भगवान शिव की पूजा की जाती है।
- शिवरात्रि का व्रत रखने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
महाशिवरात्रि :
- फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
- यह सभी शिवरात्रियों में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
- इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।
- महाशिवरात्रि का व्रत रखने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाशिवरात्रि कब है
शिववास विचार – शिव वास देखने का नियम , फल और परिहार।
महाशिवरात्रि कब है 2025
- 26 फरवरी 2025 बुधवार
- त्रयोदशी समाप्त 11 बजकर 08 मिनट मध्याह्न में।
- चतुर्दशी आरंभ 11 बजकर 08 मिनट रात्रि से।
- प्रदोषव्यापिनी अनुपलब्ध।
- निशीथव्यापिनी उपलब्ध।
महाशिवरात्रि कब है 2026
- 15 फरवरी 2026 रविवार
- त्रयोदशी समाप्त 5 बजकर 04 मिनट संध्या में।
- चतुर्दशी आरंभ 5 बजकर 04 मिनट संध्या रात्रि से।
- प्रदोषव्यापिनी उपलब्ध।
- निशीथव्यापिनी उपलब्ध।
महाशिवरात्रि कब है 2027
- 6 मार्च 2027 शनिवार
- त्रयोदशी समाप्त 12 बजकर 02 मिनट दोपहर में।
- चतुर्दशी आरंभ 12 बजकर 02 मिनट दोपहर से।
- प्रदोषव्यापिनी उपलब्ध।
- निशीथव्यापिनी उपलब्ध।
महाशिवरात्रि कब है 2028
- 23 फरवरी 2028 बुधवार
- त्रयोदशी समाप्त 10 बजकर 43 मिनट दोपहर में।
- चतुर्दशी आरंभ 10 बजकर 43 मिनट दोपहर से।
- प्रदोषव्यापिनी उपलब्ध।
- निशीथव्यापिनी उपलब्ध।
महाशिवरात्रि कब है 2029
- 11 फरवरी 2029 रविवार
- त्रयोदशी समाप्त 1 बजकर 29 मिनट दोपहर में।
- चतुर्दशी आरंभ 1 बजकर 29 मिनट दोपहर से।
- प्रदोषव्यापिनी उपलब्ध।
- निशीथव्यापिनी उपलब्ध।
महाशिवरात्रि कब है 2030
- 02 मार्च 2030 शनिवार
- त्रयोदशी समाप्त 12 बजकर 22 मिनट दोपहर में।
- चतुर्दशी आरंभ 12 बजकर 22 मिनट दोपहर से।
- प्रदोषव्यापिनी उपलब्ध।
- निशीथव्यापिनी उपलब्ध।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।