पूजा क्या है – Puja Kya hai

पूजा क्या है ?

पूजा क्या है – Puja Kya hai

पूजा किसकी करनी चाहिये ?
पूजा का जो फल प्रदान करने में जो सक्षम हो उसकी पूजा करनी चाहिये।

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पूजा क्या है – Puja Kya hai

पूर्जायते ह्यनेन इति पूजा

प्रत्येक मनुष्य जीवन में सुख, समृद्धि, शांति आदि की इच्छा करता है और जीवन के बाद भी स्वर्गादि की प्राप्ति हो। ये सभी कामना हैं जो दो प्रकार के सिद्ध होते हैं; पहला लौकिक और दूसरा पारलौकिक।

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पूजा क्या है

पूजा का फल क्या है ?

पूजा का फल लौकिक एवं पारलौकिक भोग या सुख है।

एकादशी उद्यापन विधि
एकादशी उद्यापन विधि
  • अब तो पत्र लिखने की बात ही समाप्त हो गई नहीं तो पत्रलेखन में पूज्य शब्द मनुष्यों के लिये भी प्रयुक्त होता था।
  • यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः” – यहाँ नारी पूजा की बात भी कही गयी है।
  • माता, पिता, गुरु, ब्राह्मण की पूजा भी करनी चाहिये, अतिथि की भी पूजा करनी चाहिये, राजा भी पूज्य होता है …. आदि आदि।
  • आदर-सम्मांन-सेवा करना भी पूजा ही मानी जाती है।
  • नारी पूजा का तात्पर्य है आदर देना, संतुष्ट रखना; न की देवताओं की तरह पूजा के विभिन्न द्रव्यों से पूजा करना।
  • स्त्रियों की प्रसन्नता से देवता भी हर्षित रहते हैं, कल्याण करते हैं।
  • जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है इसका यही तात्पर्य है।
  • माता-पिता के माध्यम से ही जीव को शरीर प्राप्ति होती है एवं बच्चों के लिये सभी प्रकार की व्यवस्था जब तक बच्चा सक्षम न हो जाये माता-पिता ही करते रहते हैं।
  • माता-पिता की सेवा-सुश्रुषा करना, देखभाल करना ही माता-पिता की पूजा है।
  • गुरु, ब्राह्मण एवं अतिथि स्वरूप से तो मनुष्य ही होते हैं परन्तु इनको मनुष्य मानना ही नहीं चाहिये, शास्त्रों में इन्हें देवता कहा गया है और इसलिये इनकी पूजा शास्त्रीय विधि से भी करनी चाहिये।
  • इनका आदर-सत्कार, आसन, भोजनादि प्रदान करना भी पूजा का ही अंग होता है।
  • परन्तु गुरु और ब्राह्मण के लिये पूजा करने की शास्त्रीय विधि भी होती है।
  • राजा तो अब होते ही नहीं हैं अन्यथा राजा में भी ईश्वरत्व का वास होना शास्त्रों में कहा गया है और राजा की भी पूजा करने की व्यवस्था पौराणिक कथाओं में मिलती है।

निष्कर्ष : वास्तविक अर्थ में कल्याण कामना से भगवान, देवताओं, गुरु और ब्राह्मणों की विविध द्रव्यों से आराधना करना ही पूजा है। अन्यत्र आदर-सम्मान-सेवा-सुश्रुषा करना पूजा का समानार्थी है।

F & Q :

प्रश्न : पूजा का सही अर्थ क्या है?
उत्तर : पूजा का वास्तविक अर्थ देवताओं को प्रसन्न करने के लिये शास्त्रीय विधि के अनुसार की जाने वाली एक विशेष प्रक्रिया है।

प्रश्न : पूजा क्यों करते हैं?
उत्तर : जीवन का वास्तविक लक्ष्य तो मोक्ष है किन्तु सांसारिक जीवन यापन भी सत्य ही है। सांसारिक जीवन में दिव्य ऊर्जा प्राप्ति, सुख, शान्ति, समृद्धि आदि के लिये पूजा करते हैं।

प्रश्न : पूजा में क्या क्या जरूरी है?
उत्तर : जब भी हमें पूजा करनी हो तो पूजा के लिये कुछ विशेष आवश्यकतायें भी होती है –

  • पवित्रता – बाह्य व आतंरिक दोनों।
  • श्रद्धा व विश्वास – देवता में, शास्त्र में, पूजा विधि में।
  • आसन – पूजा करने के लिये आसन भी आवश्यक होता है।
  • शांत मन – पूजा करने के लिये मन को शांत रखना आवश्यक होता है जिसके लिये पूजा प्रारम्भ करने से पहले प्राणायाम आदि अनिवार्य अङ्ग होता है।
  • पूजा सामग्री – अंत में पूजा करने के लिये कुछ विशेष सामग्रियों की भी आवश्यकता होती है, जो स्थान, क्षमता, पूजा के प्रकार आदि पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न : पूजा के 3 प्रकार कौन से हैं?
उत्तर : कई आधारों से पूजा के प्रकार निर्धारित किये जाते हैं, जिनमें से एक है मंत्र प्रयोग का आधार। मंत्र प्रयोग आधार से पूजा के तीन प्रकार होते हैं :-

  1. वैदिक पूजा – वेद मंत्रों से जो पूजा की जाती है उसे वैदिक पूजा कहते हैं।
  2. पौराणिक पूजा – पुराण मंत्रों से जब पूजा की जाती है तो उसे पौराणिक पूजा कहते हैं।
  3. नाम मंत्र पूजा – पूजा जब न तो वेद मंत्र से न ही पौराणिक मंत्र से की जाय केवल देवता के नाम से की जाय तो उसे नाम मंत्र पूजा कहते हैं।

एक अन्य आधार से तीन प्रकार ये भी हैं – नित्य, नैमित्तिक और काम्य

प्रश्न : पूजा कितने प्रकार की होती है?
उत्तर : कई आधारों से पूजा के प्रकार निर्धारित किये जाते हैं लेकिन वास्तव में पूजा दो प्रकार की होती है :-

  1. वैदिक पूजा – वैदिक विधियों के अनुसार जो पूजा की जाती है उसे वैदिक पूजा कहते हैं।
  2. तांत्रिक पूजा – तंत्रोक्त विधि से जो पूजा की जाती है उसे तंत्रोक्त पूजा कहते हैं।

किन्तु आधार भेद से पूजा के कई प्रकार होते हैं – सात्विक, राजसी, तामसी। पञ्चोपचार, दशोपचार, षोडशोपचार … नित्य, नैमित्तिक, काम्य। इत्यादि-इत्यादि।

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