अध्यात्म रामायण के बालकाण्ड में महादेव द्वारा श्री राम हृदय स्तोत्र (ram hridaya stotra) कहा गया है। यहां संस्कृत में श्री राम हृदय स्तोत्र दिया गया है।
राम हृदय स्तोत्र – ram hridaya stotra
श्री महादेव उवाच
ततो रामः स्वयं प्राह हनुमन्तमुपस्थितम् ।
शृणु यत्वं प्रवक्ष्यामि ह्यात्मानात्मपरात्मनाम् ॥१॥
आकाशस्य यथा भेदस्त्रिविधो दृश्यते महान् ।
जलाशये महाकाशस्तदवच्छिन्न एव हि ।
प्रतिबिम्बाख्यमपरं दृश्यते त्रिविधं नभः ॥२॥
बुद्ध्यवच्छिन्नचैतन्यमेकं पूर्णमथापरम् ।
आभासस्त्वपरं बिम्बभूतमेवं त्रिधा चितिः ॥३॥
साभासबुद्धेः कर्तृत्वमविच्छिन्नेऽविकारिणि ।
साक्षिण्यारोप्यते भ्रान्त्या जीवत्वं च तथाऽबुधैः ॥४॥
आभासस्तु मृषाबुद्धिरविद्याकार्यमुच्यते ।
अविच्छिन्नं तु तद्ब्रह्म विच्छेदस्तु विकल्पितः ॥५॥
अविच्छिन्नस्य पूर्णेन एकत्वं प्रतिपद्यते ।
तत्त्वमस्यादिवाक्यैश्च साभासस्याहमस्तथा ॥६॥
ऐक्यज्ञानं यदोत्पन्नं महावाक्येन चात्मनोः ।
तदाऽविद्या स्वकार्यैश्च नश्यत्येव न संशयः ॥७॥
एतद्विज्ञाय मद्भक्तो मद्भावायोपपद्यते
मद्भक्तिविमुखानां हि शास्त्रगर्तेषु मुह्यताम् ।
न ज्ञानं न च मोक्षः स्यात्तेषां जन्मशतैरपि ॥८॥
इदं रहस्यं हृदयं ममात्मनो
मयैव साक्षात्कथितं तवानघ ।
मद्भक्तिहीनाय शठाय न त्वया
दातव्यमैन्द्रादपि राज्यतोऽधिकम् ॥९॥
॥ श्रीमदध्यात्मरामायणे बालकाण्डे श्रीरामहृदयं सम्पूर्णम् ॥
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