सरल रुद्राष्टाध्यायी – रुद्री पाठ संस्कृत : 8 Rudri

सरल रुद्राष्टाध्यायी – रुद्री पाठ संस्कृत

भगवान शिव की आराधना में रुद्राभिषेक का महत्वपूर्ण स्थान है। रुद्राभिषेक में अनेकों वेदसूक्तों का पाठ किया जाता है जिन्हें संयुक्त रूप से रुद्राष्टाध्यायी या रुद्री कहा जाता है। यहां संपूर्ण रुद्राष्टाध्यायी सरल करके प्रस्तुत किया गया है। लेकिन प्रायः ऐसा देखा गया है कि सरल करने के क्रम में विसंगतियां या असंगतियां उत्पन्न हो जाती है। यहां सरल पाठ के साथ-साथ त्रुटियों को दूर करके सर्वाधिक शुद्ध पाठ देने का प्रयास किया गया है, जिस कारण रुद्राभिषेक में यह विशेष उपयोगी हो जाता है।

इसके साथ ही एक और महत्वपूर्ण समस्या को दूर करने का भी प्रयास किया गया है। प्रायः मंत्रों के बीच में भी विज्ञापन आते हैं यहां इसका भी निवारण किया गया है।

सरल रुद्राष्टाध्यायी – रुद्री पाठ संस्कृत

-: भाविहुँ मेट सकहिं त्रिपुरारी :- इन रुद्राष्टाध्यायी के पाठ, अभिषेक आदि  के द्वारा शिवकृपा से हम अपने  लिए मनचाही स्थितियां निर्मित कर सकते हैं,इन प्रयोगों में प्रारब्ध को मिटाने की क्षमता है। 

सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी का एक आवृत्ति पाठ और अभिषेक करना रुद्राभिषेक या रुद्री कहलाता है। शिव पुराण में शतरुद्री से पूजन अभिषेक आदि का  अत्युत्तम व अद्भुत माहात्म्य बताया गया है। इसमें भी मंत्रो का प्रयोग रुद्राष्टाध्यायी से ही किया गया है। कुछ मन्त्र बाहर से लिये गये हैं। शतरुद्री सम्बन्धी वाक्य इस प्रकार मिलते हैं:-

  • षष्ठषष्ठि नीलसूक्तं च पुनर्षोडशमेव च । एषते द्वे नमस्ते द्वे नतं विद्द्द्वयमेव च॥
  • मीढुष्टमेति चत्वारि वय गुंग चाष्टमेव च । शतरुद्री समाख्याता सर्वपातकनाशिनी॥
नमक चमक रुद्राभिषेक – आगमोक्त
नमक चमक रुद्राभिषेक – आगमोक्त

शतरुद्री का प्रयोग श्रेष्ठ होने पर भी रुद्राभिषेक में रुद्री का नमकचमकात्मक प्रयोग विशेष रूप से प्रचलित है। इसमें रुद्राष्टाध्यायी का पहले सात अध्याय तक पाठ करके अष्टम अध्याय में क्रमशः ४,४, ४, ३, ३, ३, २, १, १, २  मन्त्रो पर विराम करते हुए पञ्चम अध्याय अर्थात नीलसूक्त के ११  पाठ होते है।

  • इस प्रकार एक नमकचमकात्मक रुद्राभिषेक को एक “रुद्र” कहते हैं।
  • ११  रुद्रों का एक लघुरुद्र होता है।
  • ११  लघुरुद्रों का एक महारुद्र होता है।
  • ११  महारुद्रों का एक अतिरुद्र होता है।

रुद्राष्टाध्यायी के पाठ और उनसे होने वाले रुद्रादि प्रयोंगों के लाभ :

रुद्री पाठ संस्कृत
रुद्री पाठ संस्कृत

1 : रूद्र प्रयोग : (रुद्री पाठ)

  • १  रुद्र से बालग्रहों की शान्ति होती है।
  • ३  रुद्रों से उपद्रव की शान्ति होती है।
  • ५  रुद्रों से ग्रह शान्ति होती है।
  • ७  रुद्रों से भय का निवारण होता है।
  • ९  रुद्रों से शान्ति एवं वाजपेय फल की प्राप्ति होती है।
  • ११  रुद्रों से राजा का वशीकरण होता है।

2 : लघुरुद्र प्रयोग –

  • १  लघुरुद्र से कामना की पूर्ति होती है।
  • ३  लघुरुद्रों से शत्रु भय का नाश होता है।
  • ५  लघुरुद्रों से शत्रु और स्त्री का वशीकरण होता है।
  • ७  लघुरुद्रों से सुख की प्राप्ति होती है।
  • ९  लघुरुद्रों से कुल की वृद्धि एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।

3 : महारुद्र प्रयोग

  • १  महारुद्र से राजभय का निराकरण, शत्रु का उच्चाटन,दीर्घायु, यश-कीर्ति-चतुर्वर्ग की प्राप्ति होती है।
  • ३  महारुद्रों से दुष्कर कार्य भी सुख साध्य हो जाता है।
  • ५  महारुद्रों से राज्य प्राप्ति के साधन होते हैं।
  • ७  महारुद्रों से सप्तलोक साधन होता है।
  • ९ महारुद्रों से मोक्ष पद के मार्ग प्राप्त होते हैं।

4 : अतिरुद्र प्रयोग

  • १  अतिरुद्र से देवत्व की प्राप्ति होती है।डाकिनी-शाकिनी-अभिचारादि भय का निवारण होता है।
  • ३  अतिरुद्रों से संस्कार भूतादि बाधायें दूर होती हैं।
  • ५  अतिरुद्रों से ग्रहजन्य फल एवं व्याधि शांत होती है।
  • ७  अतिरुद्रों से कर्मज व्याधियां शांत होती हैं।
  • ९  अतिरुद्रों से सर्वार्थसिद्धि होती है।
  • ११  अतिरुद्रों से असाध्य का भी साधन होता है।

रुद्राष्टाध्यायी यजुर्वेद का प्रमुख अंग है और वेदों को ही अपौरुषेय ग्रंथ भी बताया गया है। अपौरुषेय ग्रंथ का तात्पर्य है कि वेद शिव के ही अंश हैं “वेदः शिवः शिवो वेदः”। अर्थात् वेद ही शिव है तथा शिव ही वेद हैं, वेद का प्रादुर्भाव शिव से ही हुआ है। भगवान शिव तथा विष्णु भी एक ही हैं और दोनों में भेद करना भी अपराध बताया गया है। दोनों को संयुक्त रूप से हरिहर कहा जाता है, हरि अर्थात् नारायण (विष्णु) और हर अर्थात् महादेव।

वेद और नारायण (विष्णु) भी एक ही हैं “वेदो नारायणः साक्षात् स्वयम्भूरिति शुश्रुतम्”। सनातन में वेदों का इतना अधिक महत्व है तथा इनके ही ऋचाओं, सूक्तों से पूजा, यज्ञ, अभिषेक, हवन आदि किया जाता है। रुद्र अर्थात् ‘रुत्’ और रुत् अर्थात् जो दु:खों को नष्ट करे, वही रुद्र है, “रुतं–दु:खं, द्रावयति–नाशयति इति रुद्रः”। रुद्रहृदयोपनिषद् में लिखा है –

यहां भगवान शिव के अभषेक में पढ़ा जाने वाला वेद मंत्र सरल करके प्रस्तुत किया गया है जो रुद्राष्टाध्यायी नाम से जाना जाता है – रुद्री पाठ संस्कृत में।


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