जो संस्कृत स्तोत्र आदि का पाठ न कर सकें उनके लिये चालीसा पाठ करना सरल और लाभकारी भी होता है। यहाँ सरस्वती चालीसा हिंदी में लिखा हुआ दिया जा रहा है जिसे पाठ करके माता सरस्वती की कृपा प्राप्त की जा सकती है। सरस्वती चालीसा आरती हिन्दी में दोनों ही दिया गया है।
सरस्वती चालीसा
॥दोहा॥
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्टजनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
॥ श्रीसरस्वती चालीसा चौपाई ॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥१॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥२॥
रूप चतुर्भुज धारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥३॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥४॥
तब ही मातु का निज अवतारी। पाप हीन करती महतारी॥५॥
वाल्मीकि जी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥६॥
रामचरित जो रचे बनाई। आदि कवि की पदवी पाई॥७॥
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥८॥
तुलसी सूर आदि विद्वाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥९॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा। केवल कृपा आपकी अम्बा॥१०॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥११॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता। तेहि न धरई चित्त मँह माता॥१२॥
राखु लाज जननि अब मेरी। विनय करउं भांति बहु तेरी॥१३॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥१४॥
मधुकैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥१५॥
समर हजार पाँच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥१६॥
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला। बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥१७॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥१८॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। क्षण महु संहारे उन माता॥१९॥
रक्त बीज से समरथ पापी। सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥२०॥
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा। बारबार बिनवउं जगदंबा॥२१॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा। क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥२२॥
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥२३॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा। सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥२४॥
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥२५॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥२६॥
रक्तदन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥२७॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥२८॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जय जय सुखदाता॥२९॥
नृप कोपित को मारन चाहे। कानन में घेरे मृग नाहे॥३०॥
सागर मध्य पोत के भंजे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥३१॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥३२॥
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करई न कोई॥३३॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥३४॥
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥३५॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥३६॥
भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥३७॥
बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥३८॥
रामसागर बाँधि हेतु भवानी। कीजै कृपा दास निज जानी॥३९॥
॥दोहा॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही दे दातु॥४०॥
सरस्वती आरती
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता ।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ॥
जय जय सरस्वती माता…
चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी ।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥
जय जय सरस्वती माता…
बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला ।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला ॥
जय जय सरस्वती माता…
देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया ।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥
जय जय सरस्वती माता…
विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो ।
मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो ॥
जय जय सरस्वती माता…
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो ।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो ॥
जय जय सरस्वती माता…
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे ।
हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे ॥
जय जय सरस्वती माता…
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता ।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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