जब पार्थिव शिव की पूजा की जाती है तो शिववास का विचार किया जाता है। यद्यपि अनेकानेक अवसर ऐसे भी हैं जब शिववास विचार की आवश्यकता नहीं होती। शिव पूजा में फल को शिववास भी प्रभावित करता है। मुख्य रूप से जब शिव का प्रथम आवाहन करना होता है तब शिववास का विचार करना आवश्यक होता है तथापि बहुत विद्वान रुद्राभिषेक के लिये भी शिववास विचार करने का मत व्यक्त करते हैं। इस आलेख में शिववास ज्ञात करने की विधि, शिववास के फल और शिववास का परिहार सभी विषयों की जानकारी दी गयी है।
शिववास विचार
शिव वास क्या होता है : शिव और वास दो शब्दों के योग से शिववास बनता है जिसका शिव का वसना ही स्पष्ट होता है। कर्मकाण्ड में शिव पूजन (मुख्य भाव – आवाहन) के लिये शिववास का विचार किया जाता है।
शिववास विचार का तात्पर्य ये तीन विषय हैं; जिनकी चर्चा हम करेंगे :-
- शिववास विचार करने के लिये ज्योतिष में एक विशेष गणितीय क्रिया की जाती है ।
- विभिन्न प्रकार के शिववास का अलग-अलग फल भी ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है।
- शिववास के कुछ परिहार भी बताये गये हैं।
यहाँ हम इन तीनों को शास्त्रीय प्रमाण के साथ समझेंगे।
शिव वास देखने का नियम
शिववास देखने के लिये जो ज्योतिषीय सूत्र अर्थात नियम है वह इस प्रकार श्लोकबद्ध है :
तिथिं च द्विगुणीं कृत्य बाणैः संयोजयेत्तदा ।
सप्तभिश्च हरेद्भागं शिववासं समुद्दिशेत् ॥
अर्थात – तिथि को दुगूना करके उसमें 5 जोड़ें। फिर उपलब्धि में 7 से भाग देकर शेष के अनुसार शिववास जाने।
सर्वप्रथम तिथिसंख्या ज्ञात करें। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा कर पंद्रह तिथियों की संख्या 1 – 15 होती है पुनः कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावास्या तक की पंद्रह संख्या 16 – 30 होती है। इस प्रकार यदि शुक्लपक्ष की द्वितीया हो तो उसकी संख्या 2 होगी किन्तु कृष्णपक्ष की द्वितीया हो तो उसकी संख्या 17 होगी; इसी तरह शुक्लपक्ष की चतुर्दशी हो तो 14 और यदि कृष्णपक्ष की चतुर्दशी हो तो 29 होगी।
Shiv kalp ka samay hota hai
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