तीज त्यौहार : हरितालिका तीज का महत्व व व्रत-पूजा विधि

हरितालिका तीज पूजा विधि और कथा

जिस प्रकार वटसावित्री व्रत सभी सुहागिन स्त्रियां करती हैं उसी प्रकार हरितालिका तीज भी सभी सुहागिन स्त्रियां करती हैं। मिथिला में थोड़ी विशेषता है कि जो मधुश्रावणी करती है वो तीज नहीं करती और जो तीज करती है वो मधुश्रावणी नहीं करती दोनों में से कोई एक व्रत ही करती है। किसे तीज करना है और किसे मधुश्रावणी ये कुल परंपरा से ज्ञात होता है। इस आलेख में हम हरितालिका तीज व्रत का महत्व व व्रत-पूजा विधि की चर्चा करेंगे।

तीज त्यौहार : हरितालिका तीज का महत्व व व्रत-पूजा विधि

वर्तमान समय में विधवा विवाह के करना वैधव्य वैसा दुःख नहीं रहा जैसा पूर्व काल में होता था। वर्त्तमान काल में आध्यात्मिक प्रवृत्ति का ह्रास और भोगवादिता की वृद्धि हुयी है। उन्हें किस आधार से महात्मा, दार्शनिक आदि कहा गया यह समझना कठिन है जिन्होंने आध्यात्मिक प्रवृत्ति का ह्रास करते हुये भोगवादिता की वृद्धि में योगदान दिया और विधवा विवाह जैसी व्यवस्था को जन्म दिया। अब तो राजकीय विधि से विधवा विवाह को मान्यता प्राप्त है।

भले ही राजकीय रूप से भारत में भी विधवा विवाह को मान्यता प्राप्त हो गयी हो तथापि विधवा का जीवन सुखमय हो जाता है ये सतही तथ्य ही है। विधवा विवाह की व्यवस्था के कारण एक नया दोष भी उत्पन्न हो गया है और वो यह है कि की भोगवादिनी प्रथम विवाह धन-संपत्ति हेतु संपन्न व्यक्ति से करके उसकी हत्या भी करवा देती है और संपत्ति/नौकरी ग्रहण करके पुनः दूसरा विवाह कर लेती है।

यद्यपि गांवों में अभी भी इस प्रकार का निन्दित व्यवहार नहीं आया है तथापि नगरों में धन-संपत्ति के लिये जो-जो भी किया जाता है कम ही रहता है। विभिन्न फिल्मों व धारावाहिकों के माध्यम से गांवों में भी इस व्यवस्था को पहुंचाने का कुचक्र रचा जा रहा है जिससे गांव के लोग भी धन-संपत्ति के लिये नाना प्रकार के षड्यंत्र करना सीखें-समझें।

राजनीतिक रूप से विधवा विवाह को सनातन का लचीलापन सिद्ध किया जाता है, और बोलने वाले गर्वान्वित होकर बोलते हैं। किन्तु सच्चाई यही है कि ये शास्त्र-सम्मत व्यवहार नहीं है और इसके दोष भी अब सामने आने लगे हैं और दोष यही है कि कुछ पत्नियां भी पति की हत्या करने लगी है। तथापि ये दोष किसी को नहीं दिखेगा या सभी जान-बुझ कर ऑंखें मूंद लेंगे क्योंकि ये सनातन विरुद्ध व्यवस्था है।

भारत देवभूमि है, साधनाभूमि है, देवता भी भारत में जन्म ग्रहण करने की इच्छा रखते हैं ऐसा पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता है। अर्थात भारत भोगभूमि नहीं है तथापि अन्य देश जो भोगभूमि है और वहां के निवासी भोगवादी हैं उनका प्रभाव भारत में आ गया और भारत में भी भोगवादिता की वृद्धि होने लगी है व तीर्थयात्रा भी करनी हो तो हेलीकॉप्टर से करने लगे हैं जबकि तीर्थयात्रा नंगे पैर करना चाहिये। तीर्थयात्रा स्पेशल ट्रेने चलने लगी है, नाना प्रकार की अन्य गतिविधियां हो रही है जिससे पर्यटकों की संख्या बधाई जा सके भले ही कोई तीर्थयात्रा करे या न करे।

इसी भोगवादिता का प्रभाव है विधवा विवाह अन्यथा शास्त्रों में विधवा के लिये विधवा धर्म पालन करने की आज्ञा है, विवाह करने की नहीं। विधवा विवाह नामक कोई विधि शास्त्रों में नहीं है यदि ये शास्त्र-सम्मत होती तो इसका विधान भी होता। विधवा विवाह के अशास्त्रीय होने का ये एक यक्षप्रश्न है जो अनुत्तरित है और वह प्रश्न है कि विधवा का दान कौन करेगा ?

यद्यपि व्यवहार में ये व्यवस्था आ गयी है इसलिये वैकल्पिक रूप से विधवा के लिये भी दान की विधि बना दी गयी और विधवा स्वयं ही अपना दान करती है। तथापि पुनः एक प्रश्न अनुत्तरित है रहता है कि विधवा स्वयं का दान कैसे कर सकती है ऐसा कोई प्रमाण उपलब्ध ही नहीं है। लेकिन कलयुगी जीवों में शास्त्रविरुद्ध आचरण करने की प्रवृत्ति दिनानुदिन बढ़ती ही जायेगी ऐसा भी शास्त्रों में ही बताया गया है जो दिख भी रहा है।

विज्ञान व राजनीति पाप-पुण्य को मानती ही नहीं है, सदाचार-दुराचार को मानती ही नहीं है और यदि मानती भी है तो सदाचार को ही निषिद्ध करती है व दुराचार को ही प्रश्रय देती है एवं इसका प्रमाण है सर्वोच्च न्यायालय का समलैंगिक विवाह, लिंग परिवर्तन आदि को मान्यता देने का संबंधी प्रयास करना। समलैंगिक विवाह, लिंग परिवर्तन आदि पूर्णरूप से प्रकृति के भी विरुद्ध है तथापि विज्ञान को भी अपनी दुकान चलाना है और राजनीति को भी इसलिये संभव है कि ये व्यवस्थायें भी आगे के दिनों में राजकीय मान्यता प्राप्त कर ले।

हरितालिका तीज व्रत : शास्त्रों में वैधव्य को पाप का परिणाम बताया गया है जिसे विज्ञान व राजनीति स्वीकार नहीं करेगी। शास्त्रों में विधवा के लिये विशेष प्रकार से जीवन निर्वहन का नियम बताया गया है। साथ ही जो सुहागिने होती हैं उनके लिये अवैधव्य अर्थात वैधव्य नाश की कई विधियां बताई गई है। जैसे यदि कन्या मंगली हो तो विष्णु प्रतिमा विवाह, कुम्भ विवाह आदि। इसी कड़ी में अन्य कई व्रत भी बताये गये हैं जिनमें से एक है हरितालिका तीज व्रत।

अवैधव्य कामना अर्थात वैधव्य का अभाव या सौभाग्य कामना से हरितालिका व्रत किया जाता है। वर्तमान युग में जिस प्रकार से जनमानस को भ्रमित किया जा रहा है वो चिंताजनक है। विधवा विवाह की नई व्यवस्था से वैधव्य दोष का निवारण नहीं होता है अपितु पुनर्विवाह करके विधवाधर्म का परित्याग करके पतिता अर्थात नरकभागिनी बनाया जाता है। किन्तु वास्तविक भारत गांवों में बसता है और वहां अभी भी अधिकांश लोग धर्ममार्ग का ही अवलम्बन करना चाहते हैं।

जैसे दिन में आँखें मूंद लेने से रात नहीं हो जाती उसी तरह सत्य को नकारने मात्र से वह असत्य नहीं हो जाता। विधवा का नयी व्यवस्थानुसार पुनर्विवाह कर देने से जीवन में व्यस्तता तो आ जाती है किन्तु वैधव्य का दुःख समाप्त नहीं होता। हरितालिका तीज व्रत वैधव्य निवारण के लिये किया जाता है।

व्रत-पूजा विधि

  • हरितालिका व्रत के लिये 14 वर्षों तक करने का विधान बताया गया है।
  • किसी भी व्रत का नियम एक दिन पूर्व ही ग्रहण किया जाता है।
  • हरितालिका तीज व्रत का कर्मकाल प्रदोषकाल होता है अर्थात पूजा प्रदोषकाल में किया जाता है।
  • शिव पार्वती की पूजा से पहले नित्यकर्म करने का विधान है, स्त्रियों के नित्यकर्म में पंचदेवता व गौरीपूजा बताई गयी है।
  • हरितालिका तीज व्रत में शिवपार्वती की पूजा की जाती है।

हरितालिका तीज व्रत में शिवपार्वती की मृण्मयी प्रतिमा बनाकर पूजा करने का विधान है। शिवपार्वती की प्रतिमा तीन प्रकार से बनायी जा सकती है, तीनों प्रकार में से अपने कुलपरंपरानुसार नियम को ग्रहण करते हुये प्रतिमा का निर्माण करे :

  1. शिवलिंग और गौरी की प्रतिमा।
  2. अर्द्धनारीश्वर की प्रतिमा।
  3. चतुर्भुजा गौरी और वृषभारूढ़ पंचवक्त्र शिव की प्रतिमा।

प्रतिमा को किसी ताम्रपात्र में अष्टदल बनाकर रखे और उसके बाद विविध सामग्रियों से पूजन करे। चूंकि प्रतिमा बनाकर पूजा करनी होती है अतः इस स्थिति में मंत्र भी अनिवार्य होता है और मंत्र की अनिवार्यता होने से ब्राह्मण की भी अनिवार्यता होती है। संकल्प करके आवाहनपूर्वक गौरीशंकर की पूजा करे, कथा श्रवण करे। रात्रि भर भजन-कीर्तन करे। सूर्योदयपूर्व अरुणोदय वेला में विसर्जन करे। विसर्जन के लिये भी व्यवहार में चौड़ा आदि बनाकर जलाशय में विसर्जन करने का व्यवहार मिलता है।

अनुपनीतों के लिये हवन का निषेध है इस कारण हरितालिका तीज में हवन नहीं किया जाता है। विसर्जन के उपरांत ब्राह्मण को दक्षिणा, भोजन, दान आदि देकर व्रत का पारण करे। ये विधान मात्र प्रथम वर्ष के लिये नहीं होता है अपितु चौदह वर्षों के लिये होता है अर्थात 14 वर्षों तक इसी प्रकार से व्रत-पूजन करना चाहिये।

निष्कर्ष : हरितालिका तीज व्रत अवैधव्य कामना से किया जाता है। हरितालिका तीज व्रत 14 वर्षों तक करने का विधान है। व्रत का नियम एक दिन पूर्व ही ग्रहण किया जाता है, हरितालिका तीज व्रत में नित्यकर्म करके प्रदोषकाल में शिवगौरी की प्रतिमा बनाकर पूजन करे, कथाश्रवण करे और अरुणोदय काल में विसर्जन करके ब्राह्मण को दक्षिणा, भोजन आदि कराकर पारण करे।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

तीज पूजा विधि-मंत्र और कथा

प्रदोषकाल में नित्यकर्म अर्थात पंचदेवता व गौरी पूजन करके कुलपरंपरानुसार शिवपार्वती की मृण्मयी प्रतिमा बनाये। एक ताम्रपात्र में सुगन्धित चंदनादि से अष्टदल निर्माण करके उसमें शिवपार्वती की प्रतिमा को स्थापित करे। पूजा करने व कथा कहने के लिये ब्राह्मण की अनिवार्यता सिद्ध होती है किन्तु अत्यधिक संख्या में अलग-अलग सबके लिये ब्राह्मण उपलब्ध नहीं हो सकते इस कारण टोला-मुहल्ला स्तर पर सामूहिक रूप से सभी सौभाग्यवती स्त्रियां एकजुट होकर भी पूजा व कथा श्रवण कर सकती है। हरितालिका तीज में ब्राह्मण की अनिवार्यता का विचार करना भी आवश्यक है।

वर्त्तमान काल में एक नया षड्यंत्र भी किया जा रहा है मैं और मेरा भगवान, बीच में गुरु और ब्राह्मण की क्या आवश्यकता है ? ब्राह्मण की आवश्यकता विधान से होती है। भगवान में विश्वास है, शास्त्रों में विश्वास है तो शास्त्र के वचनों में अविश्वास कैसे हो सकता है ? और यदि शास्त्र के वचनों में अविश्वास ही है तो विश्वास करने का ढोंग क्यों ? ब्राह्मण की आवश्यकता शास्त्रवचनों से ही होती है।

नित्यपूजा में ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं होती किन्तु किसी भी विशेष पूजा में ब्राह्मण की अनिवार्यता शास्त्रों से ही होती है। पूजा में जब मंत्रों की बात आती है तो ऐसा कहा गया है कि मंत्र ब्राह्मणों के अधीन होता है अर्थात यदि ब्राह्मण मंत्र का प्रयोग करे तभी मंत्र की शक्ति कार्य करती है अन्यथा स्वयं पुस्तक पढ़ने से मंत्र प्रभावी नहीं होता : दैवाधीनं जगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवताः। ते मन्त्रा ब्राह्मणाधीनाः तस्मात् ब्राह्मण देवताः॥

इसके पश्चात कोई भी पूजा-व्रतादि हो उसके अंत में दक्षिणा भी अनिवार्य होती है और ब्राह्मण भोजन भी अनिवार्य होता है। यही शास्त्रों का नियम है और भगवान द्वारा स्थापित सिद्धांत है। जिसे शास्त्रोक्त नियमों में विश्वास ही नहीं हो उसे ये कहने की भी आवश्यकता नहीं है कि मेरे और भगवान के बीच गुरु और ब्राह्मण का क्या काम। जिसे विश्वास ही नहीं वो किस भगवान की बात करता है अर्थात किसी भगवान की बात नहीं करता है षड्यंत्र मात्र करता है।

हरितालिका तीज पूजा विधि और कथा

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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